चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. आर. के. ठाकुर (आर. के. क्लीनिक, लखनऊ) का कहना है कि “नवजात शिशुओं को पीलिया होना काफी आम है। हर 10 में से छह नवजात शिशु पीलिया से पीड़ित होते हैं। आमतौर पर जॉन्डिस (Jaundice) शिशु के जन्म के 24 घंटे बाद नजर आता है। यह तीसरे या चौथे दिन में और बढ़ सकता है। यह आमतौर पर एक सप्ताह तक रहता है।’
हालांकि, जन्म के एक से दो सप्ताह में ही पीलिया खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है लेकिन, यदि ऐसा न हो तो समय पर इसका उपचार कराना जरूरी हो जाता है। हैलो स्वास्थ्य के इस आर्टिकल में नवजात शिशुओं में पीलिया होने के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में जानेंगे।
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नवजात शिशुओं में पीलिया क्यों होता है?
नवजात शिशु को पीलिया बिलीरुबिन (Bilirubin) की मात्रा बढ़ने की वजह से होता है। जन्म के समय नवजात शिशुओं के अंग बिलीरुबिन को खुद से कम करने के लिए पूरी तरह से विकसित नहीं हुए होते हैं। इस वजह से न्यू बॉर्न बेबी को पीलिया हो जाता है। 20 में से केवल एक ही शिशु को इसके इलाज की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में आमतौर पर बच्चे की त्वचा और आंखों में पीलापन नजर आने लगता है।
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हालांकि, ऐसा देखा जाता है कि, ज्यादातर मामलों में, नवजात शिशु को पीलिया अपने आप ही कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि, जन्म के बाद बच्चे के लिवर का विकास होने लगता है और जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है तो उसका शरीर बिलीरुबिन से लड़ने में भी सक्षम होने लगता है। ज्यादातर मामलों में, पीलिया दो से तीन सप्ताह के अंदर ठीक हो जाता है। लेकिन, अगर इसकी समस्या 3 सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहती है, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। क्योंकि, अगर बच्चे के शरीर में बिलीरुबिन का लेवल बढ़ने लगेगा तो इसके कारण बच्चे में बहरापन, ब्रेन स्ट्रोक या अन्य शारीरिक समस्याओं का खतरा भी बढ़ सकता है।
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नवजात शिशु को पीलिया होने के कारण क्या हैं?
नवजात शिशु को पीलिया होने के कुछ कारण-
अविकसित लिवर
शिशु के शरीर में बिलीरुबिन की ज्यादा मात्रा शिशुओं में पीलिया होने का मुख्य कारण है। दरअसल लिवर खून से बिलीरुबिन के प्रभाव को कम करने का काम करता है लेकिन, नवजात शिशु का लिवर ठीक से विकसित न हो पाने की वजह से वह बिलीरुबिन को फिल्टर करने में सक्षम नहीं होता है। जिस वजह से न्यू बॉर्न बेबी में इसकी मात्रा बढ़ जाती है और उसे जॉन्डिस हो जाता है।
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प्रीमैच्योर बेबी
प्रीमैच्योर बेबी को जॉन्डिस होने की संभावना ज्यादा रहती है। प्रसव के समय से पहले जन्मे लगभग 80 प्रतिशत प्रीमैच्योर बेबी को पीलिया होता ही है।
ठीक से स्तनपान न करना
कुछ महिलाओं में दूध कम बनता है। जिसकी वजह से नवजात शिशु को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है और उन्हें जॉन्डिस होने की आशंका रहती है। इसे ब्रेस्टफीडिंग जॉन्डिस कहते हैं।
ब्रेस्ट मिल्क के कारण
कभी-कभी ब्रेस्ट मिल्क में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं, जो बिलीरुबिन को रोकने की प्रक्रिया में रुकावट डालते हैं। इस वजह से भी न्यू बॉर्न बेबी पीलिया की चपेट में आ सकता है।
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रक्त संबंधी कारण
यह तब होता है, जब मां और गर्भ में पल रहे शिशु का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होता है। इस स्थिति में मां के शरीर से ऐसे एंटीबॉडीज निकलते हैं, जो भ्रूण की रेड ब्लड सेल्स यानी लाल रक्त कोशिकाओं को खत्म कर देते हैं। ये शरीर में बिलीरुबिन की मात्रा को बढ़ाते हैं, जिससे बच्चा जॉन्डिस के साथ जन्म लेता है।
अन्य कारण – इनके अलावा, लिवर के ठीक से काम न करने, वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन और एंजाइम की कमी के कारण भी नवजात शिशु को पीलिया हो सकता है।
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नवजात शिशु में पीलिया के क्या लक्षण हैं?
नवजात शिशु में पीलिया के लक्षणों को सही समय पर पहचान कर जरूरी सावधानियां बरत ली जाएं तो यह आसानी से ठीक हो जाता है। शिशु में पीलिया के ये लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
- नवजात शिशु को पीलिया होने पर सबसे पहले उसके चेहरे पर पीलापन दिखेगा। उसके बाद हाथ, पैर, सीने और पेट पर भी पीलापन नजर आने लगता है।
- शिशु की आंखों के सफेद भाग का पीला पड़ना।
- शिशु को भूख न लगना।
- सुस्त रहना।
- 100 डिग्री से ज्यादा बुखार होना।
- शिशु को उल्टी व दस्त या दोनों ही हो रहे हों।
- शिशु का यूरिन गहरे पीले रंग का हो और पॉट्टी का रंग फीका होना।
इसके अलावा अगर बेबी सात दिन का हो गया है और बाद में पीलिया हुआ है, तो यह चिंता का विषय बन सकता है। इस स्थिति में डॉक्टर की सलाह लें।
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नवजात शिशु को पीलिया हो जाने पर क्या उपचार किए जाते हैं?
पीलिया के उपचार के निम्न विधियां अपनाई जा सकती हैंः
फोटोथेरेपी (Photo Therapy)
फोटोथेरेपी या लाइट थेरेपी एक सामान्य और अत्यधिक प्रभावी तरीका है जिसमें बच्चे के शरीर में बिलीरुबिन को कम करने के लिए ब्लू-ग्रीन स्पेक्ट्रम लाइट का उपयोग किया जाता है। इसमें शिशु को प्रकाश के नीचे एक बिस्तर पर रखा जाता है। शिशु के नीचे एक फाइबर-ऑप्टिक कंबल भी रखा जा सकता है। इस दौरान शिशु की आंखों को सुरक्षित रखने के लिए पट्टी या चश्में लगा दिए जाते हैं। वहीं उसके प्राइवेट पार्ट को भी कवर कर दिया जाता है। इस दौरान, बच्चे को हाइड्रेट रखना जरूरी है और ब्रेस्टफीडिंग इसका बेहतरीन जरिया माना जाता है।
इम्यूनोग्लोबुलीन इंजेक्शन (Immunoglobulin Injection)
नवजात शिशु और मां का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होने की वजह से शिशु को पीलिया हो सकता है। यह इंजेक्शन न्यू बॉर्न बेबी के शरीर में एंटीबॉडीज के स्तर को कम करता है, जिससे पीलिया कम होने लगता है।
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शिशु का ब्लड बदलना
यह तरीका तब अपनाया जाता है, जब अन्य कोई ट्रीटमेंट काम नहीं आता है। इस प्रक्रिया में बार-बार डोनर के ब्लड के साथ शिशु का रक्त बदला जाता है। यह तब तक किया जाता है, जब तक पूरे शरीर से बिलीरुबिन की लेवल कम नहीं हो जाता है।
लिक्विड
डिहाइड्रेशन की वजह से बिलीरुबिन का स्तर बढ़ सकता है। इसलिए नवजात शिशु को पीलिया होने पर उसे ज्यादा से ज्यादा स्तनपान कराएं।
शिशुओं में पीलिया होना आम है, जो एक सप्ताह के अंदर ही ठीक हो जाता है। अगर यह दो से तीन सप्ताह के बाद भी ठीक न हो और शिशु की पॉट्टी का रंग असामान्य (हल्का भूरा) हो, तो डॉक्टर से सलाह लें।
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न्यूबॉर्न जॉन्डिस (शिशु के पीलिया) को कैसे रोका जा सकता है?
शिशु में होने वाले पीलिया को रोकने का कोई फुल प्रूफ तरीका नहीं है। हालांकि, आप चाहें तो जल्द से जल्द जॉन्डिस की पहचान करवाने के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान ही ब्लड टेस्ट करवा सकते हैं।
इसके बाद जन्म होने पर बच्चे के ब्लड टाइप का टेस्ट करवाएं और ब्लड टाइप में विभिन्नता होने पर बच्चे को जॉन्डिस होने का जोखिम हो सकता है। अगर आपके बच्चे को पीलिया है तो अपने डॉक्टर से सलाह लें या ऊपर दी गई ट्रीटमेंट की मदद से बच्चे का इलाज करें।
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डॉक्टर से कब संपर्क करें
जॉन्डिस के ज्यादातर मामलें बेहद सामान्य होते हैं लेकिन कई बार पीलिया किसी अन्य गंभीर रोग का संकेत हो सकता है। गंभीर जॉन्डिस बिलीरुबिन के मस्तिष्क में जाने के खतरे को भी बड़ा सकता है जिसके कारण मस्तिष्क पूरी तरह से डैमेज हो सकता है।
अगर आपको निम्न लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें –
- यदि पीलिया अधिक तीव्र या फैला हुआ बन चूका है।
- शिशु को 100 डिग्री से अधिक का बुखार होने पर।
- शिशु का पीलापन बढ़ते जाना।
- बच्चा ठीक तरह से नहीं खा रहा है और बहुत तेज रोता है।
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