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World Parkinson Day: पार्किंसन रोग से लड़ने में मदद कर सकता है योग और एक्यूपंक्चर

World Parkinson Day: पार्किंसन रोग से लड़ने में मदद कर सकता है योग और एक्यूपंक्चर

 वर्ल्ड पार्किंसन डे के मौके पर हम आपको इस बीमारी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। बता दें कि 19वीं सदी की शुरुआत में जेम्स पार्किंनसर ने “एन एसे ऑन द शेकिंग पेल्सी’’ में न्यूरोलॉजिकल कंडिशन के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा था। इसमें आराम व मूवमेंट के दौरान होने वाली कंपकंपी/झटके (tremors) की जानकारी थी। पार्किंसन रोग के बारे में यह शोध पूर्व में किए गए पैरालाइसिस डिसऑर्डर कंपकंपी पर किए स्टडी पर आधिरित थे। मौजूदा समय में भारत में पार्किंसन डिजीज (पार्किंसन रोग) के बेहद कम मामले हैं, वहीं विश्व में यह बीमारी तेजी से उभर रही है। रिसर्च बताते हैं कि आने वाले 25 वर्षों में पार्किंसन रोग के मामले दोगुने हो जाएंगे। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि डिमेंशिया (dementia) को छोड़ पीडी पूरे विश्व में तेजी से उभरने वाला न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके कम होने का आसार नहीं दिख रहे। अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2040 तक विश्व में करीब 6.9 मिलियन लोग पार्किंसन रोग से ग्रसित हो जाएंगे। वहीं जनसंख्या वृद्धि होती है तो यह संख्या 14.2 मिलियन तक पहुंच सकती है।

भारत में पॉपुलेशन बेस्ड स्टडी नहीं होने के कारण स्थिति उतनी स्पष्ट नहीं है। अनुमानित डाटा के हिसाब से देखते हैं कि भारत में पार्किंसन रोग कितनी हद तक फैली है।

  •  दक्षिण कर्नाटका के बंगलुरु जिले में 2004 तक एक लाख लोगों में 33 लोग बीमारी से पीड़ित थे।
  •  कोलकाता में साल 2006 तक एक लाख लोगों में 45.82 लोग बीमारी से पीड़ित थे।
  • कश्मीर में 90 दशक के बीच में लाख लोगों में करीब 14.1 लोग बीमारी से पीड़ित थे।

        80 दशक के अंत तक मुंबई की पारसी समुदाय में एक लाख लोगों में करीब 192 लोग इस बीमारी से पीड़ित थे, जो पूरे देश की जनसंख्या में सबसे ज्यादी थी

लोगों में जागरूकता और उन्नत तकनीक के कारण बीमारी का आसानी से डायग्नोसिस होने की वजह से पार्किंसन रोग की आसानी से पहचान की जा रही है।

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पार्किंसन रोग के लक्षण

पार्किंसन डिजीज न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसऑर्डर है। जो मुख्य रूप से डोपामाइन (dopamine) को प्रभावित करता है। वहीं डोपामाइन दिमाग के सब्सटेनिया नाइग्रा (Substania nigra) में न्यूरॉन पहुंचाने का काम करता है। शुरुआत में यह बीमारी 60 वर्ष से ज्यादा व बुजुर्गों में ज्यादा देखने को मिलती थी, वहीं यह काफी रेयर थी, लेकिन मौजूदा समय में यह बीमारी 50 वर्ष से नीचे उम्र के लोगों में भी देखी जा रही है। वैसे लोगों में अर्ली आनसेट व यंग आनसेट के लक्षण दिखाई देते हैं।

इस बीमारी के कारण मरीज का मूवमेंट धीमा हो जाता है। वहीं पीड़ित व्यक्ति को कमजोरी होने के साथ-साथ उसकी मसल्स कठोर हो जाती है। समय गुजरने के साथ मरीज के शरीर के साथ जबड़े, मुंह और पूरे शरीर में झटके (कंपकंपी) महसूस करता है। कई केस में इस प्रकार के लक्षण के कारण मरीज को रोजमर्रा के काम करने में परेशानी आती है। वहीं बीमारी का इलाज नहीं कराया गया तो आगे चलकर मरीज को मानसिक तौर पर भी परेशानी होती है और मरीज के व्यव्हार में बदलाव देखने को मिलता है। ऐसे में चिड़चिड़ापन, नींद न आना, तनाव, यादाश्त में कमी जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं। जरूरी है कि बीमारी के शुरुआती लक्षणों को देखकर ही इलाज करवाना चाहिए। बीमारी की सबसे खास बात यह है कि यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होती है। खासतौर पर उन्हें जो ज्यादा बार मां बनी हों।

पार्किंसन डिजीज के होने के सही कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है। माना जाता है कि यह बीमारी तब होती है जब दिमाग में नर्व सेल्स या न्यूरोन्स खत्म/मर जाते हैं, इसके कारण ब्रेन मूवमेंट पर कंट्रोल नहीं कर पाता और मरीज में इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं। न्यूरॉन्स के काम न करने व नष्ट हो जाने के कारण ही दिमाग में डोपामाइन की कम मात्रा उत्पन्न होती है, जिसके कारण ही मूवमेंट से संबंधित परेशानी आती है। वहीं दिमाग में नोरएफिनेफिरीन जैसे तत्व होते हैं जो हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करते हैं। पार्किंसन डिजीज इसको भी प्रभावित कर सकता है। इस कारण मरीज को थकान, अनियमित ब्लड प्रेशर या फिर एकाएक ब्लड प्रेशर का कम हो जाना (खासतौर पर तब जब व्यक्ति लंबे समय तक बैठा रहे या नीचे लेटा रहे) के साथ वहीं डायजेस्टिव ट्रैक से खाने का सही से न उतरना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

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पार्किंसन डिजीज का इलाज

पार्किंसन रोग के होने के कारण शुरुआती अवस्था में लक्षणों की पहचान नहीं हो पाती है। क्योंकि पीड़ित व्यक्ति धीरे-धीरे बोलता है या फिर धीरे-धीरे लिखता है वहीं सामान्य लोगों की तुलना में हाथ-पांव का मूवमेंट सही से नहीं कर पाता है। वहीं कई बार परिवार के अन्य सदस्य यह देखते हैं कि मरीज सही से प्रतिक्रिया नहीं कर पाता, लेकिन लोग फिर यह सोचने लगते हैं कि कहीं उम्र ज्यादा होने के कारण वो ऐसा तो नहीं कर रहे। सोचकर बिना इलाज कराए ही छोड़ देते हैं। जबकि जरूरी है कि मरीज में इस प्रकार के लक्षण दिखे तो डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए। बता दें कि इस बीमारी का पता लगाने के लिए किसी प्रकार का ब्लड टेस्ट, न्यूरोलाजिकल इग्जामिनेशन कर पता नहीं लगाया जा सकता है।

एक बार पार्किंसन रोग का पता लग जाने के बाद डोपामाइन के लेवल को बढ़ाने के लिए और मरीज के लक्षणों को देखकर दवा दी जाती है। पीड़ित व्यक्ति चुस्त-दुरुस्त रहे और उसके मसल्स की स्ट्रेंथ अच्छी रहे इसके लिए साइकोथेरेपी के द्वारा भी इलाज किया जाता है। वहीं लंबे समय तक बीमारी रही तो इसका इलाज संभव नहीं है। खासतौर से तब जब बीमारी पकड़ में न आए।

इसका इलाज दवा के अलावा बीमारी का इलाज करने के लिए साइकोथेरिपी, एक्यूपंक्चर और योगा की सलाह दी जाती है। क्योंकि इसके द्वारा शरीर के ब्लॉक नसों को खोलने की कोशिश की जाती है। ऐसा कर शरीर में ब्लड फ्लो बेहतर हो सकता है। वहीं सेल्स व ग्रोथ फैक्टर बेस्ड थैरपी के साथ डायट व लाइफस्टाइल में बदलाव कर काफी हद तक बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है।

और पढ़ें: पार्किंसंस रोग के लिए फायदेमंद है डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS)

पार्किंसन रोग के कारण अज्ञात हैं, लेकिन निम्न कारक इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं:

जीन (genes): शोधकर्ताओं ने एक विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन की पहचान की है जो इस रोग का कारण बन सकता है। पर्यावरण ट्रिगर (Environmental triggers): कुछ टॉक्सिन्स या पर्यावरणीय कारकों के संपर्क में आने से पार्किंसंस रोग का खतरा बढ़ सकता है।

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डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Parkinson’s disease/https://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/parkinsons-disease/symptoms-causes/syc-20376055/Accessed 11 April 2020

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Everything You Want to Know About Parkinson’s Disease/https://www.healthline.com/health/parkinsons#causes/Accessed 11 April 2020

Parkinson’s disease and its causes/https://www.medicalnewstoday.com/articles/323396/Accessed 11 April 2020

Current Version

05/05/2021

Written by डॉ. प्रदीप महाजन

Updated by: Toshini Rathod


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Written by

डॉ. प्रदीप महाजन

इंटरनल या जनरल मेडिसिन · Seniority


अपडेटेड 05/05/2021

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