परिचय
लेवेटर एनी सिंड्रोम (Levator ani syndrome) क्या है?
लेवेटर एनी सिंड्रोम एक नॉनरिलेक्सिंग पेल्विक फ्लोर डायफ्यूजन है। लेवेटर एनी सिंड्रोम में पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियां बहुत ज्यादा टाइट हो जाती हैं। पेल्विक फ्लोर रेक्टम और यूरेथ्रा (Urethra) को सपोर्ट करता है। महिलाओं में यह यूटरस और वजायना को सपोर्ट करता है। लेवेटर एनी सिंड्रोम एक दीर्घकालिक समस्या है। लेवेटर एनी सिंड्रोम को रेक्टम और एनस में होने वाले छिटपुट दर्द से चिन्हित किया जाता है।
लेवेटर एनी सिंड्रोम होना कितना सामान्य है?
लेवेटर एनी सिंड्रोम महिलाओं को होने वाली एक सामान्य समस्या है। इसे लेवेटर सिंड्रोम या लेवेटर एनी स्पास्म सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है। एक सामान्य आबादी में यह करीब 7.4 % महिलाओं और 5.7 % पुरुषों को प्रभावित करती है। लेवेटर एनी सिंड्रोम से पीढ़ित आधे से ज्यादा लोगों में 30-60 वर्ष आयु वर्ग से आते हैं। यदि आप इसकी विस्तृत जानकारी चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
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लक्षण
लेवेटर एनी सिंड्रोम के क्या लक्षण हैं?
लेवेटर एनी सिंड्रोम के लक्षण निम्नलिखित हैं:
दर्द: लेवेटर एनी सिंड्रोम से पीढ़ित लोगों को रेक्टल पेन (रेक्टम में दर्द) का अहसास होता है, जो बाउल मूवमेंट से जुड़ा नहीं होता है। यह दर्द हल्का हो सकता है सकता है । लेवेटर एनी सिंड्रोम में रेक्टम में होने वाला दर्द कई घंटों या दिनों तक रह सकता है। बैठने या लेटने की स्थिति में यह दर्द और भी बदतर हो सकता है।
इसकी वजह से आप नींद से जाग सकते हैं। आमतौर पर यह दर्द रेक्टम में काफी होता है। एक तरफ, अक्सर बाईं तरफ आपको दाईं तरफ के मुकाबले ज्यादा टेंडरनेस का अहसास हो सकता है। लेवेटर एनी सिंड्रोम में आपकी लोअर बैक में दर्द हो सकता है, जो पेट और जांघ के बीच या जांघों में फैल सकता है। पुरुषों में यह दर्द प्रोस्टेट, अंडकोष और पेनिस और यूरेथ्रा में फैल सकता है।
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यूरिनरी और बाउल की समस्याएं
लेवेटर एनी सिंड्रोम में आपको कब्ज, बाउल पास करने में दिक्कत या बाउल पास करते वक्त दबाव का अहसास हो सकता है। साथ ही आपको यह भी अहसास हो सकता है कि आपने बाउल मूवमेंट पूरा न किया हो। इसके अतिरिक्त, आपको लेवेटर एनी सिंड्रोम में निम्नलिखित लक्षण नजर आ सकते हैं:
- पेट फूलना
- अक्सर यूरिन पास करने की जरूरत, तुरंत यूरिन पास करने या बिना ब्लैडर दर्द के यूरिन न पास कर पाना या यूरिन पास करते वक्त दर्द होना।
- यूरिनरी इनकॉन्टिनेंट की समस्या
सेक्स से संबंधित समस्याएं
महिलाओं में लेवेटर एनी सिंड्रोम सेक्स से पहले, दौरान या इंटरकोर्स के बाद दर्द पैदा कर सकता है। पुरुषों में इजेक्युलेशन करते वक्त दर्द, प्रीमेच्योर इजेक्युलेशन या इरेक्टाइल का कारण बन सकता है।
उपरोक्त लक्षणों के अलावा भी लेवेटर एनी सिंड्रोम के कुछ अन्य लक्षण हो सकते हैं। उपरोक्त सूची पूर्ण नहीं है। यदि आप इसके लक्षणों को लेकर चिंतित हैं तो अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।
मुझे डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?
यदि आपको उपरोक्त लक्षणों या संकेतों में से किसी एक का अनुभव होता है तो अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। हालांकि, हर व्यक्ति की बॉडी इस समस्या में भिन्न प्रतिक्रिया देती है। अपनी स्थिति की बेहतर जानकारी के लिए डॉक्टर से राय लेना जरूरी है।
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कारण
लेवेटर एनी सिंड्रोम का क्या कारण है?
लेवेटर एनी सिंड्रोम के सटीक कारण के बारे में अभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेवेटर एनी सिंड्रोम किन कारणों से होता है, यह अभी भी गहन शोध का विषय है। मौजूदा समय में इस संबंध में कोई भी विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध नहीं है। यदि आप लेवेटर एनी सिंड्रोम के कारणों के संबंध में अधिक जानकारी चाहते हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
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जोखिम
किन कारकों से लेवेटर एनी सिंड्रोम का खतरा बढ़ता है?
निम्नलिखित कारकों से इस बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है:
- यूरिन न पास होना।
- वजायना का सिकुड़ना या वुल्वा (Vulva) में दर्द होना।
- दर्द होने के बावजूद भी इंटरकोर्स जारी रखना।
- सर्जरी या दुर्घटना से पेल्विक फ्लोर में चोट आना, इसमें यौन दुष्कर्म जिसमें एक अन्य प्रकार के पेल्विक दर्द शामिल किया जाता है। बाउल मूवमेंट पास करते वक्त जलन होने जैसे कारण को भी इसमें शामिल किया जाता है।
- एंडोमेट्रियोसिस
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उपचार
यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के रूप ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
लेवेटर एनी सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है?
लेवेटर एनी सिंड्रोम का पता निम्नलिखित तरीकों से लगाया जा सकता है:
मेडिकल हिस्ट्री और जांच: इस बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर सबसे पहले आपकी पूरी मेडिकल हिस्ट्री पूछ सकता है। इसके बाद वह एक फिजिकल जांच कर सकता है। रेक्टल की जांच करते वक्त लेवेटर मसल को दबाया जाता है। इस दौरान उसे यहां पर दर्द का अहसास हो सकता है।
निम्नलिखित स्थितियों में डॉक्टर को लेवेटर एनी सिंड्रोम का शक हो सकता है:
- यदि आपको पुराना रेक्टम दर्द या 20 मिनट से ज्यादा बार-बार रेक्टम में दर्द होता है।
- लेवेटर मांसपेशियों को छूने पर गंभीर दर्द का अहसास होना।
टेस्ट
- स्टूल सैंपल टेस्ट
- ब्लड टेस्ट
- एंडोस्कोपिक प्रक्रिया
- इमेंजिंग टेस्ट
यह टेस्ट पाए गए लक्षणों के आधार पर निर्भर करेंगे। इसी आधार पर डॉक्टर इन टेस्ट को कराने पर विचार कर सकता है।
लेवेटर एनी सिंड्रोम का उपचार कैसे किया जाता है?
निम्नलिखित तरीकों से लेवेटर एनी सिंड्रोम का इलाज किया जाता है:
फिजिकल थेरेपी: पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों की अकड़न और ऐंठन को कम करने के लिए फिजिकल थेरेपी जैसे मसाज की जा सकती है।
इलेक्ट्रोगाल्वेनिक स्टिमुलेशन (Electrogalvanic stimulation) (EGS): इस प्रक्रिया में एक सलाई को एनस में डालकर हल्की इरेक्टाइल स्टिमुलेशन दी जाती है। इसे फिजिकल थेरेपी से ज्यादा असरदार पाया गया है।
बायोफीडबैक: इस प्रक्रिया में एक विशेष इक्विपमेंट से मांसपेशियों की गतिविधियों का आंकलन किया जाता है। फीडबैक मिलने के आधार पर लोग इसे नियंत्रित करना या कुछ मांसपेशियों में से लक्षणों को कम करना सीख जाते हैं।
बोटोक्स इंजेक्शन (Botox injections): बोटोक्स इंजेक्शन को एक संभावित इलाज के रूप में पाया गया है। एक शोध में नियमित रूप से बोटोक्स इंजेक्शन के जरिए मांसपेशियों की अकड़न में राहत का पता लगाया गया है। वहीं, 2004 में एक ऐसा ही शोध प्रकाशित किया गया था।
इलाज के अन्य तरीके: मांसपेशियों को राहत देने वाली दवाइयां जैसे गेबापेनटिन (न्यूरोनटिन) (Gabapentin (Neurontin)) और प्रेगाबालिन (लिरिका), एक्युपंक्चर, नर्व स्टिमुलेशन, सेक्स थरेपी आदि से इस समस्या का इलाज किया जाता है।
घरेलू उपाय
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जीवन शैली में होने वाले बदलाव क्या हैं, जो मुझे लेवेटर एनी सिंड्रोम को ठीक करने में मदद कर सकते हैं?
जीवन शैली या लाइफस्टाइल में निम्नलिखित बदलाव करके लेवेटर एनी सिंड्रोम से लड़ा जा सकता है:
सिट्ज बाथ (Sitz bath): कई लोगों के लिए सिट्ज बाथ काफी सहज होती है। इसमें आपको हल्के गुनगुने पानी में स्कॉट करते हुए एनस को भिगोना होता है।
इसे 10-15 मिनट तक किया जा सकता है। नहाने के बाद अपने आपने आप को पोछ लें। तौलिया से अपने आपको रब करने से बचें, जिससे एनस के हिस्से में जलन पैदा हो सकती है।
तकिए पर बैठना: यदि आप तकिए पर बैठते हैं तो इससे एनस पर कम दबाव पड़ता है, जिससे लक्षणों में राहत मिलती है।
गैस या बाउल मूवमेंट: बीच-बीच में बाउल मूवमेंट या गैस पास करके इस समस्या में राहत मिलती है।
एक्सरसाइज: डीप स्कॉट एक्सरसाइज से अकड़ी हुई पेल्विक मांसपेशियों को ढीला किया जा सकता है।
- इसके लिए अपने दोनों पैरों को हिप से ज्यादा फैला लें। किसी स्थिर वस्तु को पकड़ें।
- इसके बाद नीचे की तरफ जाएं, जब तक कि आपको पैरों में खिंचाव न महसूस होने लगे।
- ऐसा होने पर 30 सेकेंड तक रुकें और गहरी सांस लें।
- इस एक्सरसाइज को दिन में पांच बार दोहराएं।
इस संबंध में आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि आपके स्वास्थ्य की स्थिति देख कर ही डॉक्टर आपको उपचार बता सकते हैं।
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हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
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