जानिए मूल बातें
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट क्या है?
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट का इस्तेमाल क्रोमोसोम्स (गुणसूत्र) के आकार, आकृति और संख्या का पता लगाने के लिए किया जाता है। गुणसूत्र यानी क्रोमोसोम शरीर की कोशिकाओं का एक हिस्सा होते हैं एवं यह जींस में पाए जाते हैं।जींस डीएनए का हिस्सा होते हैं, जो हर व्यक्ति को आनुवांशिक रूप से अपने माता-पिता से मिलते हैं। जींस से हर व्यक्ति के शरीर की कुछ खास विशेषताएं निर्धारित होती हैं जैसे कि कद-काठी, आंखों और त्वचा का रंग।क्रोमोसोम्स लगभग शरीर की हर कोशिकाओं में मौजूद होते हैं। आमतौर पर शरीर में कुल 43 क्रोमोसोम्स होते हैं जो हर कोशिका में 23 जोड़ो में विभाजित होते हैं। शिशु को हर एक जोड़ा अपने माता व पिता से आनुवांशिक रूप में प्राप्त होता है।
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कई बार शिशुओं में 46 से अधिक या कम गुणसूत्र पाए जाते हैं, जिसका पता लगाने के लिए डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की जांच करते हैं। आनुवांशिक विकारों का पता लगाने के लिए कार्योटाइप टेस्टिंग सबसे अधिक प्रभावशाली मानी जाती है। इस टेस्ट की मदद से क्रोमोसोम की कमी, इनकी अधिक संख्या, असामान्यता और क्षति का पता लगाना काफी आसान हो जाता है।
कारण
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट क्यों किया जाता है?
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट की मदद से कई प्रकार की गुणसूत्र संबंधित असामान्यताओं का पता लगाया जाता है। इसका उपयोग आनुवांशिक विकारों की जांच के लिए भी किया जाता है जिसमें निम्न स्थितियां विशेष रूप से शामिल हैं :
- डाउन सिंड्रोम : इसमें बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में देरी आती है जिससे मनोवैज्ञानिक विकार होने का खतरा बड़ जाता है। ये बच्चे के चेहरे के नैन-नक्श पर भी असर डालता है।
- टर्नर सिंड्रोम : आमतौर पर ये विकार लड़कियों में पाया जाता है जिसमें एक्स क्रोमोसोम गायब या क्षतिग्रस्त होता है। इसकी वजह से ह्रदय और गर्दन से जुड़ी समस्याएं और लंबाई कम हो सकती है।
- एडवर्ड सिंड्रोम : इस विकार में शिशु में 18वां क्रोमोसोम ज्यादा होता है। इससे ग्रस्त शिशु को कई तरह की समस्याएं होती हैं और अधिकतर बच्चे एक साल से ज्यादा समय तक जी नहीं पाते हैं।
- पटाऊ सिंड्रोम : इसमें शिशु में 13वां क्रोमोसोम ज्यादा होता है। शिशु को ह्रदय से जुड़ी समस्याएं और गंभीर मानसिक परेशानियां होती हैं। अधिकतर बच्चे एक साल से ज्यादा समय तक नहीं जी पाते हैं।
- क्लाइनफेलटर सिंड्रोम : ये विकार लड़कों में ज्यादा होता है और इसमें लड़कों में एक्स क्रोमोसोम (एक्सएक्सवाई) ज्यादा होता है। बच्चे यौवनावस्था यानी प्यूबर्टी धीमी गति से आती है। हो सकता है कि इस विकार से ग्रस्त लड़के पिता न बन पाए।
- ट्रिपल एक्स सिंड्रोम : इसे ट्रिसोमी एक्स और 47, एक्सएक्सएक्स के नाम से भी जाना जाता है। इसमें महिला के शरीर में प्रत्येक कोशिका में एक्स क्रोमोसोम अधिक मौजूद होता है। इससे प्रभावित महिलाओं की हाइट सामान्य से अधिक होती है। आमतौर पर कोई अन्य शारीरिक विकलांगता और इनफर्टिलिटी होती है।
फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम की पहचान करने के लिए बोन मैरो या ब्लड टेस्ट किया जा सकता है। ये क्रोनिक माइलोजेनस ल्यूकेमिया से ग्रस्त 85 फीसदी लोगों में पाया जाता है।
क्रोमोसोम से संबंधित परेशानियों का पता लगाने के लिए विकासशील शिशु का एमनियोटिक फ्लूइड टेस्ट किया जाता है।
जरूरी तान
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट कराने से पहले मुझे क्या पता होना चाहिए?
अगर आप गर्भवती हैं तो आप निम्न जोखिम कारकों की स्थिति में अपने भ्रूण का कार्योटाइप टेस्ट करवा सकती हैं :
उम्र : अनुवांशिक जन्म विकार का खतरा उन महिलाओं में ज्यादा होता है जो 35 के बाद मां बनती हैं।
जेनेटिक डिस्ऑर्डर के संकेत दिखने पर आपके बच्चे को ये टेस्ट करवाना पड़ सकता है। कई तरह के आनुवांशिक विकार होते हैं जिनके अलग-अलग लक्षण होते हैं। डॉक्टर बताते हैं कि कब टेस्ट करवाने की जरूरत होती है।
यदि आपको गर्भधारण करने में दिक्कत हो रही है या आपका कई बार गर्भपात हो चुका है तो आपको कारियोटाइप टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है। एक बार गर्भपात होना सामान्य बात है लेकिन बार-बार ऐसा होना क्रोमोसोम में किसी समस्या के कारण हो सकता है।
अगर आपमें ल्यूकेमिया, लिम्फोमा या मल्टिपल मायलोमा या कुछ प्रकार के एनीमिया का निदान किया गया हो तो इस स्थिति में भी आपको कार्योटाइप टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है। इन विकारों की वजह से क्रोमोसोम में बदलाव आ सकता है।
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प्रक्रिया
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट के लिए खुद को कैसे तैयार करें
इस टेस्ट कि तैयारी टेस्ट के प्रकार पर निर्भर करती है। इस टेस्ट के लिए डॉक्टर खून की कोशिकाओं का सैंपल लेते हैं। खून निकालकर, बोन मैरो बायोप्सी और एम्निओसेंटेसिस के द्वारा सैंपल लिया जा सकता है। टेस्ट के इन तरीकों की वजह से कभी-कभी कुछ परेशानियां हो सकती हैं लेकिन ऐसा दुर्लभ ही होता है।
कार्योटाइपिंग टेस्ट के दौरान क्या होता है?
कार्योटाइप टेस्ट एक साधारण ब्लड टेस्ट की ही तरह किया जाता है। हालांकि इसके परिणाम आने में काफी समय लग सकता है। यह टेस्ट सैंपल लेने के बाद बेहद मुश्किल होता है। ब्लड सैंपल के अलावा निम्न प्रकार के विभिन्न ऊतकों से कोशिकाओं का सैंपल लिया जा सकता है :
- बोन मैरो
- एमनियोटिक फ्लूइड (amniotic fluid)
- प्लेसेंटा
इसके बाद निम्न तरीकोंं से कार्योटाइप टेस्ट को पूरा किया जाता है :
ब्लड सैंपल की मदद से : इस प्रकिया में बांह के ऊपरी हिस्से पर एक इलास्टिक बैंड को कस के बांधकर सुई की मदद से खून के सैंपल लिए जाते हैं। रक्त को इकट्ठा करने के लिए सुई के साथ एक ट्यूब को जोड़ दिया जाता है। टेस्ट के लिए पर्याप्त रक्त प्राप्त हो जाने के बाद बैंड को हटा दिया जाता है।
भ्रूण से कोशिका का सैंपल : इस टेस्ट के लिए भ्रूण के अंदर से कोशिकाएं ली जाती हैं। ऐसा करने के लिए डॉक्टर एम्निओसेंटेसिस (amniocentesis) या कोरियोनिक विलस सैंपलिंग की मदद लेते हैं।
अस्थि-मज्जा से कोशिकाओं का सैंपल : अस्थि-मज्जा (बोन मैरो) से कोशिकाओं का सैंपल लेने के लिए कार्योटाइप टेस्ट में बोन मैरो एस्पिरेशन का इस्तेमाल किया जाता है।
क्रोमोसोम कार्योटाइप टेस्ट के बाद क्या होता है?
कार्योटाइप टेस्ट के लिए सैंपल लेने के बाद इसे एक खास तरह की लैब में भेजा जाता है जिसे साइटोजेनिक लैब कहा जाता है, जहां क्रोमोसोम्स की अच्छी तरह से जांच की जाती है। सभी अस्पतालों में साइटोजेनिक लैब नहीं होती है। इस स्थिति में सैंपल को खासतौर से कार्योटाइप जांच करने वाली लैब भेजा जाता है।
कार्योटाइप टेस्ट के परिणाम आने पर आपके डॉक्टर आपको उससे संबंधित विशेष जानकारी देंगे। आपको डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करना है।
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परिणाम
क्रोमोसोम टेस्ट के परिणामोंं को कैसे समझें?
आमतौर पर कार्योटाइप टेस्ट के परिणाम एक से दो हफ्तों में आ जाते हैं। हर व्यक्ति में कुल 46 क्रोमोसोम्स होते हैं। सभी क्रोमोसोम मिलकर 23 जोड़े बनाते हैं जिनमें से एक सेक्स आधारित क्रोमोसोम होता है (एक्स-एक्स महिला के लिए और एक्स-वाई पुरुष के लिए)। कार्योटाइप टेस्ट के सामान्य परिणाम हर लैब या अस्पताल के अनुसार विभिन्न हो सकते हैं। टेस्ट के परिणाम से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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