यूटराइन प्रोलैप्स (Uterine prolapse) महिलाओं में होने वाली एक शारीरिक समस्या है। जब यूट्रस अपनी जगह से खिसक कर वजायना की ओर आ जाता है तो इसे यूटराइन प्रोलैप्स कहा जाता है। यूटराइन प्रोलैप्स का टीट्रमेंट सर्जरी के माध्यम से किया जाता है। महिला में बच्चेदानी लिगामेंट और टिशूज यानी ऊतक से जुड़ी हुई होती है। जब बच्चेदानी के आसपास की मसल्स ढीली पड़ जाती हैं तो सपोर्ट में कमी आ जाती है, इस कारण महिला की बच्चेदानी नीचे की ओर खिसक जाती है।
बच्चेदानी के साथ ही महिला का मूत्राशय भी प्रभावित होता है। ऐसे में महिला को यूरिन (Urine) पास करने में भी दिक्कत हो सकती है। जब महिला को पेट या फिर पेल्विस में भारीपन लगता है, पेट साफ नहीं हो पाता है या फिर कमर के नीचे दर्द की समस्या होती है तो इसका पता लगता है। यूटराइन प्रोलैप्स के कारण महिला को ब्लैडर में इंफेक्शन (Bladder Infection) की समस्या भी हो सकती है। अधिक मात्रा में डिस्चार्ज भी होता है। महिलाओं को यूटराइन प्रोलैप्स के कारण पीरियड्स (Periods) के दौरान दिक्कत या फिर दर्द की समस्या भी हो सकती है।
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यूटराइन प्रोलैप्स (Uterine prolapse) का पता कैसे चलता है?
यूटराइन प्रोलैप्स का पता लगाने के लिए डॉक्टर एक डिवाइस की हेल्प लेते हैं। ये डिवाइस स्पेकुलम (Speculum) कहलाती है। स्पेकुलम को संबंधित महिला की वजायना में डाला जाता है। स्पेकुलम की हेल्प से वजायनल कैनाल (Vagainal canal) और यूट्रस (Uterus) के अंदर देखा जा सकता है। डॉक्टर देखकर ये जानकारी ले लेते हैं कि महिला को किस प्रकार की समस्या है। एक्जामिनेशन के दौरान महिला को लेटाया जा सकता है या फिर खड़े रहने को भी कहा जा सकता है।
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यूटराइन प्रोलैप्स का जोखिम क्या है? (Risk factor of Uterine prolapse)
एक महिला की उम्र बढ़ने के साथ ही उसके शरीर में इस्ट्रोजन का स्तर कम होने लगता है। इसी कारण से यूट्रस के आगे बढ़ने का खतरा भी ज्यादा हो जाता है। इस्ट्रोजन से पेल्विक मसल्स मजबूत रहती हैं। प्रेग्नेंसी और डिलिवरी के दौरान पेल्विक मसल्स को हानि पहुंच सकती है। जिन महिलाओं की एक से ज्यादा बार वजायनल डिलिवरी हुई है, उन्हें पोस्टमेनोपॉजल (Postmenopausal) में खतरा अधिक रहता है। कोई भी ऐसी एक्टिविटी जिसके कारण पेल्विक मसल्स में अधिक भार पड़ता है, उससे यूटराइन प्रोलैप्स (Uterine prolapse) होने की संभावना बढ़ जाती है।
यूटराइन प्रोलैप्स के ग्रेड
यूटराइन प्रोलैप्स को चार स्टेज (4 Stage of Uterine prolapse) में बांटा जा सकता है। ये स्टेज यूट्रस के वजायना की ओर बढ़ने की स्थिति और बाहर निकलने की स्थिति को बताता है।
स्टेज फर्स्ट – जब यूट्रस वजायना के अपर हाफ में होता है।
स्टेज सेकेंड- जब यूट्रस वजायना के पास में आ जाता है।
स्टेज थर्ड- जब यूट्रस वजायना से बाहर निकलने लगता है।
स्टेज फोर्थ- जब यूट्रस पूरी तरह से वजायना से बाहर आ जाता है।
तीसरी डिग्री के प्रोलैप्स के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है। वजायनल पेसरी की हेल्प से यूट्रस को सही पुजिशन में रखने में हेल्प मिलती है। सर्जिकल ट्रीटमेंट के लिए स्किन ग्राफ्टिंग (Skin grafting) या डोनर टिशू आदि का प्रयोग यूटराइन सस्पेंशन के लिए किया जाता है। अगर महिला का मन दोबारा मां मन बनने का है तो सर्जन यूट्रस को रिपेयर करके यूटराइन प्रोलैप्स का इलाज कर देते हैं। अगर यूटराइन प्रोलैप्स दिक्कत खड़ी कर रहा है तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिलकर इसके इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
यूटराइन प्रोलैप्स का नॉनसर्जिकल ट्रीटमेंट (Non surgical treatment for Uterine Prolapse)
- पेल्विक स्ट्रक्चर में अधिक तनाव न हो, इसलिए अधिक वेट का सामान उठाने से बचना चाहिए।
- वजायनल मसल्स की स्ट्रेंथ के लिए कीगल एक्सरसाइज (Kegel Exercise) या पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज करना बेहतर रहेगा।
- वजायना में डाली जाने वाली डिवाइस जिसे पेसरी (Pessary) कहते हैं, इसका यूज करना बेहतर रहेगा। ये डिवाइस यूट्रस और सर्विक्स (Cervix) को पुश-अप करने और स्टेबलाइज करने में मदद करती है।
- यूटराइन प्रोलैप्स के ट्रीटमेंट में लिए वजायनल इस्ट्रोजन का उपयोग करना भी बेहतर रहेगा। वजायनल इस्ट्रोजन वजायनल टिशू को रिजनरेट करके उन्हें स्ट्रेंथ देने का काम करता है।
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यूटराइन प्रोलैप्स का सर्जिकल ट्रीटमेंट (Surgical treatment for Uterine Prolapse)
- यूटराइन प्रोलैप्स के सर्जिकल ट्रीटमेंट में यूटेराइन संस्पेंशन या हिस्टेरेक्टोमी (Hysterectomy) शामिल है। सर्जन पेल्विक लिगामेंट को रीअटैच करके यूट्रस को उसकी सही पुजिशन में लेकर आता है। हिस्टेरेक्टोमी की प्रॉसेस में डॉक्टर यूट्रस को वजायना या एब्डॉमन से हटा देते हैं। या कह सकते हैं कि यूट्रस को पूरी तरह से शरीर से निकाल दिया जाता है।
- यूटराइन प्रोलैप्स के इलाज के लिए सर्जरी को उपयुक्त माना जाता है। जिन महिलाओं को दोबारा मां बनना है, उनके लिए हिस्टरेक्टमी (Hysterectomy ) सर्जरी उपयुक्त नहीं मानी जाती है। हिस्टरेक्टमी सर्जरी में महिला का यूट्रस निकाल दिया जाता है।
ऐसे बचें यूटराइन प्रोलैप्स की समस्या से
यूटराइन प्रोलैप्स के दौरान मेडिकेशन
यूटराइन प्रोलैप्स के इलाज के लिए ईस्ट्रोजन क्रीम या फिर सपोसिटरी ओव्यूल्स (Suppository ovules) को वजायना में इंसर्ट किया जाता है। वजायना के टिशू को स्ट्रेंथ देने के लिए ऐसा किया जाता है। ईस्ट्रोजन का यूज पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं के लिए किया जाता है।
यूटराइन प्रोलैप्स के दौरान सर्जरी
सर्जरी करते समय डॉक्टर ये ध्यान रखता है कि महिला को दोबारा मां बनना है या फिर नहीं। जिन महिलाओं को दोबारा मां नहीं बनना होता है, सर्जन उनकी बच्चेदानी को हटा देता है। साथ ही सर्जरी के दौरान सर्जन योनि की दीवारों, मूत्रमार्ग, मूत्राशय, या मलाशय की शिथिलता को भी ठीक कर सकता है। सर्जरी पेट में छोटा चीरा लगाकर या फिर योनी के माध्यम से की जाती है। इसके लिए विशेष उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी या वजायनल सर्जरी
इसमें पेल्विक फ्लोर के टिशू को सर्जरी की हेल्प से रिपेयर किया जाता है। ऐसा करने से पेल्विक फ्लोर टिशू पेल्विक ऑर्गन को सपोर्ट करने का काम करते हैं।
यूट्रस को हटाना (Hysterectomy)
इस सर्जरी में महिला के यूट्रस को हटा दिया जाता है। ऐसा करने से भविष्य में मां बनने की संभावना खत्म हो जाती है। जिन महिलाओं को कम उम्र यानी 30 से 35 साल में बच्चेदानी में कोई प्रॉब्लम आने लगती है उनके लिए सर्जरी सही उपाय नहीं रहता है। इस उम्र में महिलाएं अक्सर मां बनना चाहती हैं। ऐसे में डॉक्टर द्वारा बच्चेदानी को हटा देना सही कदम नहीं होगा। थेरिपी में डिवाइस की हेल्प ली जाती है और उसे वजायना के रास्ते अंदर लगा दिया जाता है।
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यूटराइन प्रोलैप्स से कैसे बचें?
यूटराइन प्रोलैप्स से सभी सिचुएशन में नहीं बचा जा सकता है। यूटराइन प्रोलैप्स के जोखिम को कम करने के लिए कुछ उपाय जरूर किए जा सकते हैं।
- रोजाना फिजिकल एक्सरसाइज करें।
- वजन पर नियंत्रण (Weight control) रखना बहुत जरूरी है।
- रोजाना कीगल एक्सरसाइज (Kegel Exercise) की प्रैक्टिस जरूर करें।
- क्रोनिक कॉन्टिपेशन और और कफ (Cough) का इलाज समय रहते करा लेना चाहिए। इन समस्याओं के बढ़ जाने से पेल्विक पर दबाव बढ़ जाता है।
यूटराइन प्रोलैप्स के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
यूटराइन प्रोलैप्स की समस्या है तो सर्जरी या फिर अन्य विधियों को अपनाने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।
- अगर महिला की योनी में पेसरी डाली गई है, तो महिला को जांच करनी चाहिए कि वो सही तरह से फिट की गई है या फिर नहीं। पेसरी को नियमित अंतराल में फिट रखना बहुत जरूरी होता है।
- डॉक्टर से पेसरी के बारे में दिशा निर्देश जरूर जान लें। आप डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकती हैं कि इसे कैसे निकाला जाता है और फिर कैसे पेसरी की सफाई की जाती है।
- अगर डॉक्टर ने आपको कीगल एक्सरसाइज की सलाह दी है, तो उसे जरूर करें। साथ ही डॉक्टर या फिर एक्सपर्ट से एक्सरसाइज करने का सही तरीका पूछ लेना भी बेहतर रहेगा।
- कुछ समय तक एक्सरसाइज करने के बाद डॉक्टर से चेक भी कराएं कि मांसपेशियों में कुछ परिवर्तन आया है या फिर नहीं।
यूटराइन प्रोलैप्स की समस्या से बचने का सरल उपाय यही है कि जिन महिलाओं की वजायनल डिलिवरी हुई है, वो कीगल एक्सरसाइज (Kegel Exercise) पर ध्यान दें। जिन महिलाओं को अधिक समस्या हो, वे तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर मरीज की हालत देखने के बाद ही निर्णय लेते हैं।
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