भारत जैसे बहुसंख्यकीय देश के लिए हमेशा से ही संचारी और गैर संचारीय रोग परेशानी का सबब बने हुए हैं। हालांकि कुछ बीमारियों को छोड़कर, जो आम लोगों को बड़े पैमाने पर होती है, इसके अलावा कुछ स्वास्थ्य समस्याएं ऐसी भी हैं, जो अपने आप में रेयर डिजीज (rare disease) कहलाती हैं। इन रेयर डिजीज का अक्सर पता नहीं चल पाता, जिसके चलते समय के साथ रोगी की स्थिति बद से बद्तर होती चली जाती है। आइये जानते हैं इन रेयर डिजीज (rare disease) के बारे में कुछ ख़ास जानकारी और जरूरी बातें।
रेयर डिजीज क्या होते हैं? (What is rare disease)
ग्लोबल एस्टीमेट के मुताबिक, दुनिया में करीब करीब 365 मिलियन लोग ऐसे हैं, जो रेयर डिजीज से ग्रस्त हैं। ऐसा जरूरी नहीं कि हमेशा रेयर डिजीज के चलते आपको गंभीर तकलीफें हों, लेकिन रेयर डिजीज (rare disease) के निदान में लगने वाले समय के कारण इसके इलाज के लिए भी रोगी को देर हो जाती है, जिसके कारण उसकी ये बीमारी गंभीर रूप ले लेती है। कई बार ये तकलीफ जानलेवा भी हो सकती है। रेयर डिजीज के कई प्रकार हो सकते हैं, कुछ मौसमी बदलावों के कारण होते हैं, वहीं कुछ के सिम्पटम्स दिखाई देने में समय लगता है। इसलिए इसे पहचान कर इसका इलाज शुरू करना अपने आप में एक चुनौती साबित हो सकती है। सिर्फ भारत में हीरेयर डिजीज से करीब 70 मिलियन लोग जूझ रहे हैं। लेकिन ये स्थिति इसलिए और भी बिगड़ जाती है, क्योंकि भारतीय डॉक्टरों में रेयर डिजीज को लेकर जागरूकता कम है, जिसके चलते इन तकलीफों के इलाज में देर हो जाती है।
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रेयर डिजीज का क्या कारण हो सकता है? (causes of rare diseases)
रेयर डिजीज के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन रेयर डिजीज के अधिकतर केसेस जेनेटिक कारणों के चलते होते हैं, जिनके पीछे जींस और क्रोमोज़ोम्स कारण बनते हैं। रेयर डिजीज में 40 प्रतिशत केसेस जेनेटिक कारणों के चलते होते हैं। कुछ केसेस में, जेनेटिक बदलावों के कारण होनेवाली रेयर डिजीज एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन तक माता-पिता के जरिये पहुंच जाती है। वहीं कुछ मामलों में ये व्यक्तिगत रूप से लोगों को देखी जा सकती है। कई रेयर डिजीज (rare disease) में, जैसे इन्फेक्शन्स, रेयर कैंसर्स और कुछ ऑटो इम्यून दिक्कतें माता-पिता से ना आकर अपने आप में पैदा होती हैं। इसे लेकर दुनियाभर के रिसर्चर्स इलाज ढूंढने की कोशिशों में लगे हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए अभी काफी समय लग सकता है।
भारत में रेयर डिजीज (Rare disease) के लिए उपलब्ध पॉलिसीज
भारत में रेयर डिजीज के ट्रीटमेंट के लिए आम तौर पर महंगे इलाज ही उपलब्ध हैं। पूरे देश में बहुत से नवजात शिशु जेनेटिक डिसऑर्डर्स के साथ पैदा होते हैं। हर साल करीब आधे मिलियन बच्चे मेलफोर्मेशन के साथ पैदा होते हैं और वहीं करीब 20,000-25,000 बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ। लेकिन फिर भी देश के ज्यादातर लोगों के पास में रेयर डिजीज (rare disease) से बचाव के लिए कोई भी साधन उपलब्ध नहीं है। साथ ही देश में इन लोगों के लिए ना ही कोई हेल्थ प्रोग्राम है और ना ही नवजातों में जेनेटिक डिसऑर्डर को पहचानने के लिए कोई स्क्रीनिंग की सुविधा है।
आपको जानकार हैरानी होगी कि देश की कुछ कम्युनिटी में रेयर डिजीज के ज्यादातर मामले देखे जाते हैं। जिसका कारण अक्सर उन कम्युनिटीज की रूढ़िवादी विवाह परंपरा को माना गया है। इन कम्युनिटीज में ज्यादातर मामले G6PD डेफिशिएंसी, डाउन सिंड्रोम, सिकल सेल डिजीज और बी थेलेसिमिया के होते हैं। वहीं दुसरे मामलों में आम तौर पर थेलेसिमिया, सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी गंभीर समस्याएं देखी जाती हैं।
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डाउन सिंड्रोम (Down syndrome)
डाउन सिंड्रोम में बच्चे उनके 21वें क्रोमोसोम की एक्स्ट्रा कॉपी के साथ पैदा होते हैं। इसलिए इस समस्या को ट्रायसॉमी 21 भी कहा जाता है। रिप्रोडक्शन की प्रक्रिया के दौरान माँ-बाप के जीन्स बच्चों में आते हैं। ये जींस अपने साथ क्रोमोसोम भी लेकर आते हैं। जब बच्चे के सेल डेवेलप होते हैं, तो हर सेल में 23 जोड़ी क्रोमोसोम्स होते हैं। इस हिसाब से कुल 46 क्रोमोसोम्स होते हैं। इसमें से आधे मां के और आधे पिता के क्रोमोसोम्स होते हैं।
डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) से ग्रसित बच्चों में एक क्रोमोसोम अच्छे से बंट नहीं पाता और इसलिए क्रोमोसोम की संख्या 21 रह जाती है। इसकी वजह से बच्चे में शारीरिक और मानसिक विकास देर से और अच्छे से नहीं हो पाता।
इस तकलीफ में बच्चे में विकासात्मक देरी, चेहरे की विशिष्ट बनावट, बौद्धिक विकलांगता और थायराइड और दिल से जुड़ी अन्य तकलीफें हो सकती हैं। इसके अलावा बोलने, सुनने और देखने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इनमें से कुछ दिक्कतें पूरी जिंदगी बनी रहती हैं। इसके बाद भी डाउन सिंड्रोम (Down syndrome) में साथ लोग बेहतर लाइफ जी पाते हैं। इसके लिए बच्चों और उनके परिवारों को दिया जानेवाला इंस्टीट्यूशनल सपोर्ट एक अच्छा ऑप्शन साबित होता है।
थेलेसिमिया (Thalassemia)
थेलेसिमिया एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जो तब होता है, जब शरीर जरूरी मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। जो रक्त का एक प्रमुख भाग माना जाता है। जब शरीर में भरपूर मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बनता, तो रेड ब्लड सेल्स ठीक से काम नहीं कर पाते और उनका लाइफ स्पैन कम होता चला जाता है। जिसके कारण शरीर में कम मात्रा में हेल्दी रेड ब्लड सेल्स ही रह जाते हैं। इसके कारण बच्चे के पूरे विकास पर असर पड़ता है। थेलेसिमिया दो प्रकार के होते हैं, अल्फ़ा थेलेसिमिया और बीटा थेलेसिमिया (Thalassemia)।
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सिकल सेल एनीमिया (Sickle cell anemia)
ये एक ब्लड डिसऑर्डर के रूप में जाना जाता है। जिसे सिकल सेल डिजीज भी कहा जाता है। ये एक जेनेटिक रेड ब्लड सेल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर में ऑक्सीजन पहुंचनेवाले रेड ब्लड सेल्स की कमी हो जाती है। आम तौर पर फ्लेक्जिबल, राउंड ब्लड सेल्स आसानी से ब्लड वेसेल्स में तैर पाते हैं। लेकिन सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anemia) में रेड ब्लड सेल्स का आकार खराब हो जाता है। इसके कारण रेड ब्लड सेल्स आसानी से ख़त्म हो जाते हैं या ये ब्लड वेसल्स में ब्लॉकेज बनाने लगते हैं, जिसके कारण एनीमिया या दर्द की तकलीफ होती है। इसके कारण व्यक्ति बार-बार बीमार होता है और उसके वाइटल ऑर्गन्स, जैसे ब्रेन, किडनी या हार्ट को नुक्सान पहुँचता है। हालांकि इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन फिर भी दवाइयों की मदद से इसमें होनेवाले दर्द और इसकी वजह से होनेवाली स्वास्थ्य समस्याओं को कंट्रोल किया जा सकता है।
रेयर डिजीज से बचाव तब मुमकिन है, जब आप इससे जुडी जानकारी के प्रति सजग बनेंगे और जानेंगे कि इसे मैनेज कैसे किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि हम प्राइमरी मेडिकल सर्विसेस में जेनेटिक डिजीज को भी शामिल करें, इससे जुड़े मिथ से दूरी बनाएं, माता-पिता को पैरेंटल जैनेटिक काउंसिलिंग दी जाए और साथ ही पैरेंटल जेनेटिक टेस्टिंग की जाए। इस तरह हम जेनेटिक रेयर डिजीज से कुछ हद तक बचने में सफल हो सकते हैं।