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Secondary Bone Cancer: सेकंडरी बोन कैंसर क्या है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 05/01/2022

    Secondary Bone Cancer: सेकंडरी बोन कैंसर क्या है?

    रिसर्च के अनुसार एडल्ट व्यक्ति के शरीर में 200 हड्डियां (Bone) होती हैं। शरीर में मौजूद इन हड्डियों के कई काम होते हैं। जैसे: बॉडी को सपोर्ट देना, इंटरनल बॉडी ऑर्गेन की रक्षा करना, हड्डियों के मसल्स के साथ जुड़े रहने से बॉडी को मूव करने में सहायता मिलती है, हड्डियों में बोन मैरो होना, बोन मैरो ही न्यू ब्लड सेल्स को स्टोर करने का कार्य करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं हड्डियां प्रोटीन, मिनिरल्स और कैल्शियम को स्टोर करने का काम करते हैं। लेकिन अगर हड्डियां से संबंधित कोई तकलीफ शुरू हो जाए, तो कई अन्य बीमारियों का खतरा बना रहता है। आज इस आर्टिकल में जानेंगे सेकंडरी बोन कैंसर (Secondary Bone Cancer) से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां।

    • सेकंडरी बोन कैंसर क्या है?
    • सेकंडरी बोन कैंसर कितने प्रकार के हैं?
    • सेकंडरी बोन कैंसर के लक्षण क्या हैं?
    • सेकंडरी बोन कैंसर के कारण क्या हैं?
    • सेकंडरी बोन कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है?
    • पेशेंट्स को डॉक्टर से क्या-क्या जरूर पूछना चाहिए?

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    सेकंडरी बोन कैंसर (Secondary Bone Cancer) क्या है?

    रिसर्च के अनुसार सेकंडरी बोन कैंसर उन लोगों में होने की संभावना ज्यादा होती है, जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर, फेफड़े का कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर या थाइरॉइड जैसे कैंसर से पीड़ित होते हैं। दरअसल जब कैंसर लास्ट स्टेज में पहुंचने लगता है, तो सेकंडरी बोन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। सेकंडरी बोन कैंसर की वजह से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। आर्टिकल में आगे जानेंगे सेकंडरी बोन कैंसर के प्रकार।

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    सेकंडरी बोन कैंसर कितने तरह के होते हैं?

    सेकंडरी बोन कैंसर (Secondary Bone Cancer) दो अलग-अलग तरह के होते हैं। जैसे:

    (i) ओस्टियोलेटिक (Osteolytic)  (ii) ओस्टियोब्लास्टिक (Osteoblastic)

    (i) ओस्टियोलिटिक (Osteolytic):

    अगर सामान्य भाषा में ओस्टियोलिटिक को समझें, तो इस दौरान बोन के बनने से पहले ही मौजूदा बोन यानी हड्डी टूट जाती है। कई बार तो ओस्टियोलिटिक के दौरान हड्डियों में छेद (Holes) होने लगती हैं , जिसे लिटिक लेशन्स (Lytic lesions) कहते हैं। लिटिक लेशन्स होने की स्थिति में हड्डियां अत्यधिक कमजोर होने लगती हैं, जिससे हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है या हड्डियों से जुड़ी कोई अन्य तकलीफ भी हो सकती हैं।

    (ii) ओस्टियोब्लास्टिक (Osteoblastic):

    जब हड्डियों का निर्माण हो, लेकिन वो शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं और ऐसी हड्डियां एब्नॉर्मल होते हैं, जिसे ओस्टियोब्लास्टिक कहते हैं।

    सेकंडरी बोन कैंसर होने पर व्यक्ति को ओस्टियोलिटिक (Osteolytic)  और ओस्टियोब्लास्टिक (Osteoblastic) दोनों में से एक होती है, लेकिन रिसर्च के अनुसार कुछ लोगों में दोनों ही तरह के सेकंडरी बोन कैंसर (Secondary Bone Cancer) हो सकते हैं।

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    सेकंडरी बोन कैंसर के कारण क्या हैं?

    सेकंडरी बोन कैंसर उन्हीं लोगों को होते हैं, जो

    जो लोग इन ऊपर बताये कैंसर से पीड़ित होते हैं, उन्हें ही सेकंडरी बोन कैंसर होता है। हालांकि कभी-कभी कैंसर के शुरुआती स्टेज के साथ ही सेकंडरी बोन कैंसर की शुरुआत भी हो सकती है।

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    सेकंडरी बोन कैंसर के लक्षण क्या है?

    सेकंडरी बोन कैंसर के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं। जैसे:

    • बैक पेन होना
    • हड्डियों का कमजोर होना
    • डिहाइड्रेशन होना
    • असमंजस की स्थिति में रहना
    • पेट दर्द होना
    • कमजोरी महसूस होना या बीमार रहना
    • ब्लड में कैल्शियम लेवल बढ़ना (Hypercalcaemia)
    • बार-बार इंफेक्शन होना
    • सांस लेने में परेशानी महसूस होना
    • ब्लड सेल्स लेवल कम होने की वजह से ब्लीडिंग होना
    • पैरों का कमजोर होना

    इन लक्षणों के अलावा अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं। इसलिए किसी भी लक्षण या परेशानी को नजरअंदाज न करें और समय रहते डॉक्टर से संपर्क करें। ऐसा करने से बीमारी को ठीक करने में विशेष लाभ मिलता है।

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    सेकंडरी बोन कैंसर का निदान कैसे किया जाता है?

    सेकंडरी बोन कैंसर के निदान के लिए डॉक्टर निम्नलिखित टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। जैसे:

    ब्लड टेस्ट (Blood Test): ब्लड टेस्ट की सहायता से ब्लड काउंट और कैल्शियम लेवल की जानकारी मिलती है।

    बोन एक्स-रे (Bone x-ray): बोन एक्स-रे से चेस्ट एवं बोन डैमेज की जानकारी मिलती है। इससे फ्रैक्चर और नय बोन के फॉर्मेशन का भी पता लगाया जा सकता है।

    बोन स्कैन (Bone scan): रेडिओएक्टिव की कम मात्रा वेन में इंजेक्ट की जाती है। इससे हड्डियों में होने वाले एब्नॉर्मल चेंज को समझने में सहायता मिलती है। स्पेशल कैमरे की मदद से बोन स्कैन टेस्ट  की जाती है।

    सीटी (CT) स्कैन या एमआरआई (MRI): CT Scan या MRI करने में 30 से 90 मिनट का वक्त लग सकता है। इससे एब्नॉर्मल बोन को समझा जा सकता है।

    पीईटी (PET) – सीटी स्कैन (CT scan): पीईटी – सीटी स्कैन की मदद से ज्यादा जानकारी मिलती है।

    बोन बायोप्सी (Bone biopsy): बोन बायोप्सी करने के लिए अफेक्टेड बोन के हिस्से से टिशू से की जाती है।

    इन ऊपर बताये टेस्ट के अलावा अन्य बॉडी टेस्ट करवाने की सुझाव दे सकते हैं। इसलिए इस दौरान जो सलाह आपके हेल्थ एक्सपर्ट दें, उसे पूरी तरह से पालन करें।

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    सेकंडरी बोन कैंसर का इलाज कैसे किया जाता है?

    कैंसर रिसर्च यूके के रिपोर्ट के अनुसार पेशेंट की गंभीरता को देखते हुए इलाज की जाती है। सेकंडरी बोन कैंसर के इलाज के लिए थेरिपी दी जा सकती है। इन थेरिपी में शामिल है-

    • हॉर्मोन थेरिपी (Hormone therapy)
    • रेडियोथेरिपी (Radiotherapy)
    • एक्सटर्नल रेडियोथेरिपी (External radiotherapy)
    • इंटरनल रेडियोथेरिपी (Internal radiotherapy)
    • कीमोथेरिपी (Chemotherapy)
    • टार्गेटेड कैंसर ड्रग्स (Targeted cancer drugs)
    • बिसफोस्फोनेट्स (Bisphosphonates)
    • सर्जरी (Surgery)

    इन ऊपर बताये थेरिपी एवं सर्जरी से सेकंडरी बोन कैंसर का इलाज किया जा सकता है।

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    सेकंडरी बोन कैंसर सर्वाइवल रेट क्या है?

    कैंसर पेशेंट्स के सर्वाइवल से जुड़े रिसर्च के अनुसार यह पेशेंट्स की स्थिति पर निर्भर करती है। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार कैंसर की कौन से स्टेज है इसपर निर्भर करती है। प्रायः कैंसर का नाम सुनते ही लोग परेशान हो जाते हैं। ऐसे कई कैंसर पेशेंट्स हैं, जो इसे हरा चुका है और हेल्दी हैं।

    अगर आप सेकंडरी बोन कैंसर (Secondary Bone Cancer) से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।

    डिस्क्लेमर

    हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

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