ऐसे में डॉक्टर बोन मैरो बायोप्सी करते है। इसके लिए डॉक्टर को बोन मैरो का सैंपल चाहिए होता है, जो कि एनालिसिस के लिए लैब में भेजा जाता है। इसके लिए डॉक्टर ब्रेस्ट बोन या फिर हिप बोन में ट्यूब निडिल डालते हैं। इससे बोन मैरो का एक छोटा सा टुकड़ा बाहर निकाला जाता है। अगर एक बार बीमारी डायग्नोज हो जाती है, तो यह भी देखा जाता है कि कैंसर किस तरह से अन्य अंगों को प्रभावित कर रहा है। साथ में ही डॉक्टर एम आर आई, सीटी स्कैन टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं। इन सभी टेस्ट से जानकारी मिल जाती है कि शरीर के विभिन्न हिस्सों में कहां-कहां कैंसर फैल चुका है। अगर आपको यह कैंसर हुआ है, तो डॉक्टर आपको बताएंगे कि आगे ट्रीटमेंट किस तरह से कराना है। ट्रीटमेंट के दौरान विभिन्न प्रकार की विधियां अपनाई जाती हैं। आपको कैंसर किस तरह का हुआ है या फिर कितना फैल चुका है, इसी के आधार पर ट्रीटमेंट दिया जाता है।
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क्रॉनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया का ट्रीटमेंट (Chronic myeloid leukemia Treatment)
इस कैंसर के इलाज के लिए डॉक्टर हेल्थ के साथ ही बीमारी के प्रोग्रेशन को देखकर निर्णय लेते हैं। डॉक्टर टारगेटेड थेरेपी की सलाह भी दे सकते हैं। इस थेरेपी में ऐसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, जो कैंसर सेल्स को मारने का काम करती है। साथ ही उन प्रोटीन को भी ब्लॉक करने का काम करती है, जो बीसीआर-एबीएल जीन द्वारा बनाए जाते हैं।
कुछ मामलों में डॉक्टर कीमोथेरेपी की भी सलाह देते हैं। कीमोथेरिपी कैंसर सेल्स को मारने के लिए मेडिसिंस का यूज किया जाता है। यह मेडिसिन पूरी ब्लड स्ट्रीम में जाती है और कैंसर को खत्म करने का काम करती हैं। इसे या तो ओरली या मुंह के माध्यम से दिया जा सकता है या फिर इंट्रावेनस दिया जाता है। कीमोथेरेपी कॉमन कैंसर ट्रीटमेंट है, जिसके साथ साइड इफेक्ट्स भी जुड़े हुए हैं।
जरूरत पड़ने पर डॉक्टर बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराने की भी सलाह देते हैं। इसकी जरूरत तभी पड़ती है जब बाकी ट्रीटमेंट पेशेंट पर असर नहीं करते हैं। यह प्रोसीजर रिस्की होता है और इसके लिए मैचिंग डोनर का मिलना भी कई बार कठिन हो जाता है। ट्रांसप्लांट से पहले कीमोथेरेपी का इस्तेमाल कैंसर को मारने में किया जाता है ताकि हेल्थी बोन मैरो को इंफ्यूज किया जा सके। इस प्रोसीजर के भी बहुत से साइड इफेक्ट्स होते हैं। आपको उसके बारे में डॉक्टर से अधिक जानकारी लेनी चाहिए।
डायट पर जरूर दें ध्यान
अगर आपको बीमारी डायग्नोज हुई है, तो ऐसे में लाइफस्टाइल में सुधार के साथ-साथ आपको अपने खान-पान पर भी ध्यान देने की जरूरत पड़ती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बीमारी के कारण शरीर में थकान होना, वजन कम हो जाना आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं। आपको खाने में पोषक तत्वों को शामिल करना चाहिए, जिसमें विटामिन ,खनिज और कैरोटीनॉयड आदि शामिल हो। आपको खाने में साबुत अनाज, कम वसा वाले फूड्स और फ्रूट्स और वेजिटेबल शामिल करने चाहिए। बेहतर होगा कि आप खाने में लो डेयरी प्रोडक्ट को शामिल करें।
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इस कैंसर से पीड़ित होने वाले लोगों में सर्वाइवल रेट तब अधिक हो जाता है, जब समय पर व्यक्ति को ट्रीटमेंट मिल जाए। जिन लोगों में इस बी मारी के बारे में शुरुआती चरण में पता नहीं चल पाता है, वह ब्लास्टिक फेस में पहुंच जाते हैं। ऐसी अवस्था में व्यक्ति का लंबे समय तक जीवित रह पाना मुश्किल हो जाता है। लाइफस्टाइल में सुधार कर और कुछ बातों का ध्यान रख पेशेंट अपनी तबीयत को सुधार सकता है। इस बीमारी में अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
इस आर्टिकल में हमने आपको क्रॉनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (Chronic Myeloid Leukemia) के बारे में अहम जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की ओर से दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको कैंसर के संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हैलो हेल्थ की वेबसाइट में आपको अधिक जानकारी मिल जाएगी।
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