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T2DM पेशेंट्स हायपरग्लाइसीमिया यानी हाय ब्लड शुगर को कैसे करें मैनेज?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 25/04/2022

    T2DM पेशेंट्स हायपरग्लाइसीमिया यानी हाय ब्लड शुगर को कैसे करें मैनेज?

    हायपरग्लाइसीमिया, हाय ब्लड शुगर या हाय ब्लड ग्लूकोज के लिए इस्तेमाल होने वाली टेक्निकल टर्म है। हाय ब्लड शुगर की समस्या तब होती है जब शरीर जरूरत से कम इंसुलिन बनाता है या जब शरीर सही से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाता। अगर बात की जाए टाइप 2 डायबिटीज की, तो यह डायबिटीज का सबसे सामान्य और गंभीर प्रकार है। अगर समय पर इसको मैनेज न किया जाए ,तो इसका रिजल्ट भयानक हो सकता है। आज हम बात करने वाले हैं T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DMpatients) के बारे में। T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) से पहले जान लेते हैं टाइप 2 डायबिटीज और हायपरग्लाइसीमिया के बारे में कुछ जरूरी बातें।

    टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes) क्या है?

    टाइप 2 डायबिटीज को एडल्ट-ऑनसेट डायबिटीज के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि, यह समस्या किसी को भी हो सकती है। लेकिन, बुजुर्गों में इसकी संभावना अधिक रहती है। इस स्थिति के कई मामलों में लोगों को कोई भी लक्षण नजर नहीं आता है। लेकिन, इसके सामान्य लक्षणों में थकावट, नजरों का धुंधला होना, अत्याधिक प्यास या भूख लगना, बार-बार बाथरूम जाना आदि शामिल है। समय पर इसके लक्षणों को पहचानना और डॉक्टर की सलाह जरूरी है। इसका इलाज तो संभव नहीं है, किंतु कुछ दवाइयों और जीवनशैली में बदलाव से इसके लक्षणों को मैनेज किया जा सकता है। T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) से पहले जानिए किसे कहा जाता है हायपरग्लाइसीमिया?

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    हायपरग्लाइसीमिया (Hyperglycemia) क्या है?

    हायपरग्लाइसीमिया यानी हाय ब्लड ग्लूकोज का अर्थ है कि रोगी के ब्लड में शुगर की मात्रा बहुत अधिक है। क्योंकि, शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता। इस स्थिति को अक्सर डायबिटीज के साथ लिंक किया जाता है। अगर हायपरग्लाइसीमिया का लंबे समय तक इलाज न किया जाए, तो इससे नर्वज, ब्लड वेसल्स, टिश्यूज और ऑर्गन्स डैमेज हो सकते हैं। ब्लड वेसल्स के डैमेज होने से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का रिस्क बढ़ जाता है। यही नहीं, नर्व के डैमेज होने से आई डैमेज, किडनी डैमेज जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। टाइप 2 डायबिटीज (Hype 2 diabetes) की फैमिली हिस्ट्री होना हायपरग्लाइसीमिया का मुख्य रिस्क फैक्टर है। T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia inT2DM patients) के बारे में जानने से पहले डायबिटीज में हायपरग्लाइसीमिया के बारे में भी जान लेते हैं।

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    डायबिटीज में हायपरग्लाइसीमिया (Hyperglycemia)

    हाय ब्लड शुगर यानी हायपरग्लाइसीमिया (Hyperglycemia) उन लोगों को प्रभावित करती हैं, जिन्हें डायबिटीज होती है। कई फैक्टर्स भी डायबिटीज से पीड़ित लोगों में इसका कारण बन सकते हैं जिसमें फूड, फिजिकल एक्टिविटी चॉइसेस, कोई बीमारी, नॉनडायबिटीज मेडिकेशन्स या ग्लूकोज कम करने वाली दवाईयों को स्किप करना या उन्हें पर्याप्त मात्रा में न लेना आदि शामिल है। ऐसे में हायपरग्लाइसीमिया को ट्रीट करना बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर इसका उपचार न किया जाए तो यह गंभीर हो सकती है। इसकी गंभीर स्थिति जैसे डायबिटिक कोमा में एमरजेंसी केयर की जरूरत होती है। लॉन्ग टर्म में, परसिस्टेंट हायपरग्लाइसीमिया (Persistent hyperglycemia) चाहे गंभीर न भी हो, लेकिन कई कॉम्प्लीकेशन्स का कारण बन सकता है। अब जानिए T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) कैसे संभव है?

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    T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients)

    जैसा कि पहले ही बताया गया है कि डायबिटीज पेशेंट्स के लिए हायपरग्लाइसीमिया बेहद रिस्की है। डायबिटीज को मैनेज करने के लिए रोगी के लिए नियमित ब्लड शुगर लेवल की जांच बेहद जरूरी है। ब्लड की जांच और हाय ब्लड शुगर का जल्दी उपचार करने से हायपरग्लाइसीमिया से जुड़ी समस्याओं को नजरअंदाज किया जा सकता है। T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) के लिए डॉक्टर इन तरीकों का सुझाव दे सकते हैं:

    T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट: नियमित व्यायाम करें (Get physical)

    रेगुलर व्यायाम ब्लड शुगर को कंट्रोल करने का सबसे प्रभावी तरीका है। लेकिन अगर रोगी के यूरिन में कैटोन्स हैं, तो एक्सरसाइज करने से बचें। इससे आपकी ब्लड शुगर और भी अधिक बढ़ सकती है। इसके बारे में आप अपने डॉक्टर की राय भी ले सकते हैं।

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    डॉक्टर की सलाह के अनुसार मेडिकेशन्स लें (Take your medication as directed)

    अगर आपको हायपरग्लाइसीमिया की समस्या है, तो डॉक्टर आपकी मेडिकेशन की टाइमिंग और डोज को एडजस्ट कर सकते हैं। इस स्थिति में डॉक्टर की सलाह के अनुसार नई दवाईयां लें।

    T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट: डायबिटीज ईटिंग प्लान को फॉलो करें (Follow eating plan)

    डायबिटीज ईटिंग प्लान को फॉलो करने से भी इस समस्या से राहत मिल सकती है। ईटिंग प्लान में स्मॉल पोरशन में आहार या शुगरी खाद्य पदार्थों का सेवन करना आदि शामिल हो सकता है। अगर आपको इस मील प्लान को फॉलो करने में समस्या होती है तो आप अपने डॉक्टर से भी बात कर सकते हैं।

    ब्लड शुगर लेवल को चेक करें (Check your blood sugar)

    T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) में यह पॉइंट बेहद महत्वपूर्ण है। डॉक्टर की सलाह के अनुसार ब्लड ग्लूकोज को मॉनिटर करना जरूरी है। अगर आप सीवियर हायपरग्लाइसीमिया या हायपोग्लाइसीमिया को लेकर चिंतित हैं, तो यह और भी जरूरी है।

    हायपरग्लाइसीमिया को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन को एडजस्ट करना भी महत्वपूर्ण है। इंसुलिन प्रोग्राम या शार्ट-एक्टिंग इंसुलिन का सप्लीमेंट से भी इसे कंट्रोल करने में मदद मिलती है। अगर आप को हाय ब्लड शुगर की समस्या है, तो डॉक्टर से जानें कि आपको कब इंसुलिन सप्लीमेंट की जरूरत हो सकती है। अब जानिए T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) में एमरजेंसी ट्रीटमेंट के बारे में।

    T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट, Management of Hyperglycemia in T2DM patients.

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    सीवियर हायपरग्लाइसीमिया के लिए एमरजेंसी ट्रीटमेंट  Emergency treatment for severe hyperglycemia

    अगर रोगी में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (Diabetic ketoacidosis) या हायपरग्लाइसीमिक हायपरोस्मॉलर स्टेट (Hyperglycemic hyperosmolar state) के लक्षण हों, तो उन्हें एमरजेंसी रूम में एडमिट करना पड़ सकता है। एमरजेंसी ट्रीटमेंट से ब्लड शुगर लेवल को नार्मल रेंज तक कम किया जा सकता है।  T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) में यह उपचार इस प्रकार संभव है:

    T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट: फ्लूइड रिप्लेसमेंट (Fluid replacement)

    इसमें रोगी को नसों के माध्यम से तब तक फ्लूइड दिया जाता है, जब तक रोगी रिहाइड्रेटेड न हो जाए। यह फ्लूइड उस फ्लूइड की जगह ले लेता है, जिसे रोगी अत्यधिक यूरिन के माध्यम से लोस्ट हो चुके होते हैं। इसके साथ ही य ब्लड में अत्यधिक शुगर को डायल्यूट करने में भी मददगार है।

    इलेक्ट्रोलाइट रिप्लेसमेंट (Electrolyte replacement)

    इलेक्ट्रोलाइट खून में मौजूद वो मिनरल्स हैं, जो टिश्यूज के सही से काम करने के लिए जरूरी हैं। इंसुलिन की अनुपस्थिति से ब्लड में कई इलेक्ट्रोलाइट्स का लेवल कम हो सकता है। ऐसे में हार्ट, मसल्स और नर्व सेल्स के सामान्य रूप से काम करने के लिए नसों के माध्यम से इलेक्ट्रोलाइट्स दिए जाते हैं।

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    इंसुलिन थेरेपी (Insulin therapy)

    इंसुलिन उन प्रक्रियाओं को रिवर्स कर देती है, जो आपके ब्लड में कीटोन का निर्माण करती हैं। तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स के साथ, आप इंसुलिन थेरेपी प्राप्त कर सकते हैं, जो आमतौर पर एक नस के माध्यम से दी जाती है। जैसे ही रोगी की कंडिशन थोड़ी स्थिर हो जाती है, तो आपके डॉक्टर इस बात पर विचार करेंगे कि सीवियर हाइपरग्लेसेमिया का कारण क्या हो सकता है। परिस्थितियों के आधार पर, रोगी को अतिरिक्त एवल्यूशन और ट्रीटमेंट की आवश्यकता हो सकती है। अगर डॉक्टर को लगता है कि रोगी को बैक्टीरियल इन्फेक्शन हैं, तो वो एंटीबायोटिक्स की सलाह दे सकते हैं।

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    यह तो थी जानकारी T2DM पेशेंट्स में हायपरग्लाइसीमिया मैनेजमेंट (Management of Hyperglycemia in T2DM patients) के बारे में।  T2DM पेशेंट्स के लिए इसे मैनेज करना बेहद जरूरी हैं। अन्यथा, यह कॉम्प्लीकेशन्स का कारण बन सकता हैं। अगर आपको डायबिटीज नहीं भी हैं और आपको हायपरग्लाइसीमिया के लक्षण नजर आते हैं, तो तुरंत मेडिकल हेल्प लें। ताकि, हायपरग्लाइसीमिया को मैनेज किया जा सके। अगर इसके बारे में आपके दिमाग में कोई भी सवाल हैं तो तुरंत डॉक्टर से बात करें।

    डिस्क्लेमर

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