जेनेटिक टेस्ट को स्वैब टेस्ट भी कहा जाता है। इस जांच के दौरान मुंह के साथ-साथ गले के पीछे की जांच की जाती है। दरअसल इस रिपोर्ट में रेस्पिरेट्री पाइप के निचले हिस्से में तरल पदार्थों की आवश्यकता होती है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार स्वैब टेस्ट में गले या नाक के अंदर से रूई (कॉटन) की मदद से लार का सैंपल लिया जाता है। गले या नाक से सैंपल लेने का कारण भी है। क्योंकि हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार शरीर के इन हिस्सों में इंफेक्शन सबसे पहले यहीं से शुरू होता है। सैंपल लेने के बाद इसे एक खास तरह के केमिकल में डाला जाता है। केमिकल में डालने के बाद इससे सैंपल में मौजूद सेल्स और वायरस दोनों अलग-अलग हो जाते हैं। इस प्रोसेस के बाद पॉलीमरेस चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction) की मदद से कोरोना वायरस का पता लगाया जाता है। पॉलीमरेस चेन रिएक्शन को PCR भी कहते हैं।
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सेरोलॉजिकल टेस्ट (Serological Test)
इस टेस्ट के दैरान ब्लड सीरम में मौजूद एंटीबॉडी की पहचान की जाती है, जिससे कोरोना वायरस से संक्रमित होने की जानकारी मिलती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि मानव शरीर एंटीबॉडी प्रोटीन तब बना सकता है जब शरीर में कोई इंफेक्शन हो। एंटीबॉडी को संक्रमण को पहचानने में तीन से चार दिनों का समय लगता है। इस टेस्ट से इस बात की जानकारी मिलती है कि टेस्ट किये गए व्यक्ति को कोरोना वायरस है या नहीं। सेरोलॉजिकल टेस्ट के दौरान एंटिजन का इस्तेेेेेमाल किया जाता है। यही नहीं इस टेस्ट से शरीर में मौजूद एंटीबॉडी का पता लगाना के लिए भी किया जाता है। एंटीबॉडी की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर स्वैब टेस्ट की जाती है और उसके बाद पॉलीमरेस चेन रिएक्शन (PCR) टेस्ट। अगर ये टेस्ट पॉसिटिव आते हैं, तो इंफेक्शन से पीड़ित व्यक्ति को प्रोटोकॉल के तहत आइसोलेशन में रखा जाता है और जल्द से जल्द इलाज शुरू की जाती है।
रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट (Rapid antibody test)
रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट की मदद से इंफेक्शन का पता लगाया जाता है। भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट क्लस्टर और हॉटस्पॉट इलाकों में तेजी से किया जा रहा है, ताकि संक्रमित लोगों की जानकारी जल्द से जल्द मिल सके और अगर कोरोना वायरस से इन्फेक्सटेड व्यक्ति मिलते हैं, तो उनका जल्द से जल्द मौजूदा इलाज किया जा सके। रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट का उत्पादन भारत में ही किया जा रहा है।
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इन टेस्ट के अलावा लगातार स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोरोना वायरस के संक्रमण को कैसे खत्म किया जाए इस पर रिसर्च कर रहें हैं। हालही में लंदन के अस्पतलों से यह खबर सामने आई थी की आइबूप्रोफेन (Ibuprofen) दवा की मदद से संक्रमित लोगों का इलाज किया जा सकता है। क्योंकि इस दवा से बुखार और बॉडी पेन से राहत मिलने के साथ-साथ सांस संबंधित परेशानी भी दूर हो सकती है। हालांकि हेल्थ से जुड़े साइंटिस्ट मानते हैं कि आइब्रुफेन से कोरोना का इलाज संभव नहीं है। दरअसल आइब्रुफेन जब महामारी की शुरुआत हुई थी तब इसका प्रयोग किया गया था।