इस तकलीफ से निपटने के लिए कौन कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज से बचने के लिए प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है। जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान बिना सलाह के ड्रग्स का सेवन करती हैं या फिर वायरल इंफेक्शन होने पर ठीक से इलाज नहीं करा पाती है, उनके बच्चों को कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज या जन्मजात दिल की बीमारी का अधिक खतरा रहता है। बेहतर होगा कि प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी प्रकार की समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और बीमारी का इलाज कराएं। कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर सर्जरी की हेल्प ले सकते हैं। सर्जरी की हेल्प से हार्ट या ब्लड वैसल्स को रिपेयर किया जा सकता है।
कुछ बच्चों को सर्जरी की जरूत नहीं होती है और उन्हें कार्डियक कैथेटेराइजेशन (cardiac catheterization) के माध्यम से ठीक करने की कोशिश की जाती है। कैथेटर एक लंबी ट्यूब होती है, जिसे रक्त वाहिकाओं के माध्यम से हार्ट में डाला जाता है। इसके माध्यम से डॉक्टर मेजरमेंट के साथ ही पिक्चर भी ले सकते हैं। इस दौरान रिपेयर का काम भी किया जाता है। ऐसा करने से बिना सर्जरी के ब्ल फ्लो को ठीक किया जा सकता है और दिल भी ठीक तरह से काम करना शुरू कर देता है। कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज के साथ जीना चुनौतीपूर्ण होता है। बच्चे को बड़े होने तक बहुत सी सावधानियां रखनी पड़ती है। डॉक्टर इस संबंध में सभी जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
इस तकलीफ में बच्चे की हेल्थ का ख्याल कैसे रखा जा सकता है?
जिन बच्चों को कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज होती है, वो लंबे समय तक जी सकते हैं। यानी ऐसा जरूरी नहीं है कि जिन बच्चों को कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज की समस्या है, उनकी मौत हो जाएगी। कुछ लोगों में समय के साथ विकलांगता हो सकती है। जेनेटिक प्रॉब्लम के कारण विकलांगता उत्पन्न हो सकती है, जो कि जोखिम को बढ़ाने का काम करती है। अगर जन्म से ही बच्चे का ट्रीटमेंट कराया जाए हार्ट डिफेक्ट के लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है। ऐसे बच्चों में समय के साथ हार्ट की अन्य समस्याएं जैसे कि अनियमित हार्ट बीट, हार्ट मसल्स में इंफेक्शन की समस्या (increased risk of infection in the heart muscle ), कार्डियोमायोपैथी की समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में बच्चों को रूटीन चेकअप की जरूरत पड़ती है। चाइल्डहुड सर्जरी के साथ ही भविष्य में भी सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। अगर कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज के साथ लंबे समय तक जीना है, तो रूटीन चेकअप के साथ ही लाइफस्टाइल में सुधार भी बहुत जरूरी हो जाता है। “इस बारे में लखनऊ कि क्लीनिकल आयुर्वेदिक डॉक्टर प्रियतमा चतुर्वेदी का कहना है कि आज के समय बच्चों में इस तरह की हार्ट डिजीज देखना एक बड़ा चिंता का विषय है। इसकी सबसे बड़ी वजह है प्रेग्नेंसी के दौरान खराब लाइफस्टाइल और खानपान की। जिसका प्रभाव सीधे पेट में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इस वजह से भी बच्चा जन्म के साथ ही दिल की बीमारी के साथ पैदा होता है। इस बीमारी को कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज (Congenital Heart Disease) यानी दिल की जन्मजात बीमारी कहते हैं। लेकिन इन सबके अलावा दिल से जुड़ी कुछ ऐसी भी बीमारियां हैं जो किसी को भी जन्म के बाद भी हो सकती हैं। किसी भी व्यक्ति को जन्मजात दिल की बीमारी होने का मतलब यह है कि उसके हृदय में जन्म से ही कई दिक्कतें मौजूद हैं। बच्चें में होने वाली हार्ट डिजीज का समय रहते इलाज बहुत जरूरी है। “
कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज है, तो इन बातों का रखें ध्यान
अगर बच्चे को कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज (Congenital Heart Disease) है, तो उसे जीवनभर कई सावधानियों को अपनाने की जरूरत पड़ती है। जानिए क्या सावधानियां अपनाई जा सकती हैं।
- खाने में फ्रूट्स और वेजीटेबल्स को शामिल करें और जूस का अधिक मात्रा में सेवन न करें।
- बटर या एनिमल फैट्स के बजाय लो सैचुरेटेड फैट ही लें।
- खाने में या फिर पेय पदार्थों में शुगर का कम सेवन करें।
- खाने में व्होल ग्रेन लें। प्रोसेस्ड फूड को इग्नोर करें।
- खाने में कम मात्रा में नमक लें और साथ ही फैट मीट प्रोडक्ट को इग्नोर करें।
- बैलेंस मील को अपनाएं।
- बाहर खाने के बजाय घर में ही खाएं।
- छोटे बच्चे को स्पेशल डायट सजेस्ट की जा सकती है, उसे फॉलो करें।
- वयस्क होने पर एल्कोहॉल का सेवन या स्मोकिंग न करें।
- अपनी दिनचर्या में वॉकिंग के साथ ही एक्सरसाइज को भी शामिल करें।
- वजन को नियंत्रित रखें। वजन बढ़ने से हार्ट से संबंधित समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
- स्ट्रेस न लें। अगर कोई समस्या हो, तो अपनों से शेयर करें। कई बार स्ट्रेस और डिप्रेशन के कारण भी हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है।