हार्ट रेट और हेल्थ… हेल्दी हार्ट, हेल्दी हेल्थ की निशानी है, लेकिन अगर हार्ट यानी दिल जब ठीक से अपना काम करने में सक्षम ना हो तो इसका सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। वैसे तो कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (Cardiovascular Disease) एक नहीं, बल्कि कई तरह की हैं और उन्हें में से एक है हार्ट रेट ठीक ना होना। हार्ट रेट और हेल्थ को समझेंगे, लेकिन दि एसोसिएटेड चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (The Associated Chambers of Commerce and Industry of India) द्वारा पब्लिश्ड साल 2021 की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत के 70 प्रतिशत हार्ट पेशेंट्स को तकरीबन एक साल बात यह जानकारी मिलती है कि उन्हें हार्ट से जुड़ी समस्या है। इन्हीं आंकड़ों में से 40 प्रतिशत पेशेंट ऐसे भी होते हैं जिन्हें तीन साल या इससे ज्यादा वक्त तक हार्ट डिजीज (Heart diseases) और हायपरटेंशन (Hypertension) की जानकारी भी नहीं मिलती है। इसलिए आज यहां हम आपके साथ हार्ट रेट और हेल्थ (Heart rate and health) से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां शेयर करने जा रहें हैं।
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हार्ट रेट और हेल्थ (Heart rate and health): हार्ट रेट क्या है?
हार्ट रेट को अगर सामान्य एवं आसान शब्दों में समझे तो दिल की धड़कन की गति। हार्ट रेट और हेल्थ (Heart rate and health) को आपस में जोड़कर देखा जाता है, क्यों अगर हार्ट रेट अपने नॉर्मल स्पीड से कम या तेज हो जाए तो इसका असर पूरे शरीर और पड़ना तय माना जाता है। अब अगर आपके मन में ये सवाल उठ रहा है कि हार्ट रेट (Heart rate) कितनी होनी चाहिए तो चलिए इसे समझते हैं।
हार्ट रेट और हेल्थ: दिल की धड़कन की गति कितनी होनी चाहिए? (Normal Heart rate according to age)
यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमन सर्विसेस ( U.S. Department of Health and Human Services) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार दिल की धड़कन उम्र के अनुसार अलग-अलग होती है। जैसे:
- न्यू बोर्न बेबी से 1 महीने तक के नवजात शिशुओं में 70 से 190 बीट्स प्रति मिनट।
- 1 महीने से 11 महीने के नवजात शिशुओं में हार्ट रेट 80 से 160 बीट्स प्रति मिनट।
- 1 साल से 2 साल के बच्चों में हार्ट रेट 80 से 130 बीट्स प्रति मिनट।
- 3 साल से 4 साल के बच्चों में हार्ट रेट 80 से 120 बीट्स प्रति मिनट।
- 4 साल से 5 साल के बच्चों में हार्ट रेट 75 से 115 बीट्स प्रति मिनट।
- 6 से 15 साल के बच्चों में हार्ट रेट 70 से 100 बीट्स प्रति मिनट।
- 18 या इससे ज्यादा उम्र के लोगों में हार्ट रेट 60 से 100 बीट्स प्रति मिनट।
ये हैं उम्र के अनुसार दिल के धड़कने की गति। अगर दिल के धड़कने की गति इससे कम या इससे ज्यादा होती है, तो इसका शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
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हार्ट रेट और हेल्थ: स्लो हार्ट रेट या फास्ट हार्ट रेट शरीर पर क्या पड़ता है प्रभाव? (Side effects of slow and fast heart rate on health)
हार्ट रेट सामान्य से कम या ज्यादा भी हो सकती है। इसलिए दोनों ही स्थिति को एक-एक कर समझते हैं।
स्लो हार्ट रेट (Slow Heart Rate)-
लो हार्ट रेट या स्लो हार्ट रेट का मतलब है 60 से कम दिल की गति होना। अगर प्रति मिनट दिल के धड़कने की गति 60 से कम हो तो इसे मेडिकल टर्म में ब्रैडीकार्डिया (Bradycardia) कहते हैं। वैसे तो अगर कभी-कभी यह समस्या होती है तो इसे सामान्य माना जाता है, लेकिन अगर ऐसी स्थिति रोजाना या ज्यादा होने लगे तो व्यक्ति को सतर्क हो जाना चाहिए। अब यहां हार्ट रेट और हेल्थ (Heart rate and health) को समझने के लिए एक बात का ध्यान रखें कि जब आप आराम कर रहें होते हैं, तो इस दौरान हार्ट रेट 60 से 100 बीट्स प्रति मिनट होना चाहिए। अगर हार्ट रेट में इससे कमी तो इसे समझने के लिए निम्नलिखित लक्षणों को समझना जरूरी है।
हार्ट रेट और हेल्थ: स्लो हार्ट रेट के लक्षण (Symptoms of slow heart rate)-
- कमजोरी (Weakness) महसूस होना।
- बेहोश होना या चक्कर (Fainting or Dizziness) आना।
- सांस लेने में कठिनाई (Shortness of Breath) महसूस होना।
- काम करते समय सांस लेने में परेशानी (Trouble Breathing when Working out) महसूस होना।
ये लक्षण सामान्य हो सकते हैं, लेकिन अगर इन लक्षणों को इग्नोर किया जाए तो तकलीफ बढ़ सकती है। जैसे:
- कार्डियक अरेस्ट (Cardiac Arrest) की स्थिति बनना।
- सीने में दर्द (Chest Pain) महसूस होना।
- लो या हाय ब्लड प्रेशर (Low or High Blood Pressure) होना।
- हार्ट फेलियर (Heart Failure) होना।
इसलिए हार्ट रेट और हेल्थ (Heart rate and health) का आपसी तालमेल माना गया है। अगर हार्ट रेट सामान्य से कम हो जाए तो हेल्थ पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। चलिए अब सामान्य से ज्यादा तेज हृदय गति होने की समस्या शरीर पर क्या प्रभाव डालती है।
फास्ट हार्ट रेट (Fast Heart Rate)-
फास्ट हार्ट रेट का मतलब है 60 या इससे ज्यादा दिल की गति होना। अगर प्रति मिनट दिल के धड़कने की गति प्रति मिनट 100 से ज्यादा होने लगे, तो फास्ट हार्ट रेट की समस्या को मेडिकल टर्म में टैकीकार्डिया (Tachycardia) कहते हैं। यहां एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि एक्सरसाइज, योग या तेजी से किसी काम को करने के दौरान भी दिल की गति सामान्य से ज्यादा तेज हो सकती है, जिसे नॉर्मल माना गया है। हालांकि अगर टैकीकार्डिया की स्थिति ज्यादा बनने लगे, तो व्यक्ति को सतर्क हो जाना चाहिए।
हार्ट रेट और हेल्थ: फास्ट हार्ट रेट के लक्षण (Symptoms of slow heart rate)-
- सांस लेने में परेशानी महसूस (Breathing problem) होना।
- सिरदर्द (Headache) की समस्या होना।
- पल्स रेट (Pulse rate) सामान्य से ज्यादा बढ़ जाना।
- दिल का तेजी से धड़कना (नॉर्मल 60-100/मिनट)।
- सीने में दर्द (Chest pain) महसूस होना।
- बेहोश (Faint) होना।
इसलिए हार्ट रेट और हेल्थ (Heart Rate and health) का आपसी तालमेल माना गया है। अगर हार्ट रेट सामान्य से ज्यादा तेज हो जाए तो हेल्थ पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
अलग-अलग रिसर्च रिपोर्ट्स के अनुसार हृदय गति का शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन फास्ट या स्लो हार्ट रेट के लक्षणों (Heart rate symptoms) को ध्यान में रखकर इस गंभीर बीमारी से बचने में मदद मिल सकती है।
हार्ट रेट और हेल्थ: हार्ट रेट को नॉर्मल बनाये रखने के लिए क्या करें? (Tips for normal heart rate)
हृदय गति को नॉर्मल बनाये रखने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। जैसे:
- तनाव से बचें (Reducing stress)- तनाव की वजह से हार्ट रेट (Heart rate) बढ़ने के साथ-साथ ब्लड प्रेशर (Blood pressure) भी बढ़ने लगता है। इसलिए तनाव से बचें। तनाव से बचने के लिए नियमित योगासन (Yoga), डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज (Deep breathing exercise) या मेडिटेशन (Meditation) करने से लाभ मिल सकता है।
- तंबाकू का सेवन ना करें (Avoiding tobacco)- हृदय गति को नॉमर्ल बनाये रखने के लिए तंबाकू के सेवन से बचें। तंबाकू का सेवन या स्मोकिंग हार्ट रेट को बढ़ाने का काम करता है।
- लूसिंग वेट (Losing weight)- अगर शरीर का वजन ज्यादा है, तो बॉडी वेट बैलेंस बनायें। शरीर का बढ़ता वजन कई बीमारियों को दावत देने का काम करता है।
इन तीन बातों को ध्यान में रखकर हार्ट रेट और हेल्थ (Heart Rate and health) दोनों को बेहतर बनाये रखने में मदद मिल सकती है।
अगर आप हार्ट डिजीज (Heart diseases) या कार्डियोवैस्कुलर हेल्थ के लिए चाय के फायदे से जुड़े सवालों का जवाब तलाश कर रहें थें, तो उम्मीद करते हैं कि ये जानकारी आपके लिए लाभकारी होगी। वैसे अगर आप या आपके कोई भी करीबी कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (Cardiovascular diseases) से पीड़ित हैं, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर से कंसल्टेशन अत्यधिक जरूरी है। क्योंकि ये बीमारियां गंभीर बीमारियों की लिस्ट में शामिल है। अगर इनका समय पर इलाज ना करवाया जाए तो पेशेंट की स्थिति गंभीर हो सकती है। डॉक्टर के संपर्क में रहने से पेशेंट की हेल्थ कंडिशन (Health Condition) और बीमारी की गंभीरता को ध्यान में रखकर इलाज किया जाता है।
स्वस्थ रहने के लिए अपने डेली रूटीन में एक्सरसाइज या योगासन को शामिल करना चाहिए। नीचे दिए इस वीडियो लिंक पर क्लिक कर योगासन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों को समझें।
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