देश में जहां एक तरफ कोरोना महामारी ने सभी की लाइफस्टाइल को प्रभावित किया है, वहीं, दूसरी तरफ प्राकृतिक आपदाओं ने भी जनजीवन को अस्त व्यस्त कर के रखा है। ऐसे में बड़ों के साथ ही कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ भी प्रभावित हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के साथ ही एक मानसिक महामारी भी चल पड़ी है। कोरोना महामारी के खत्म होने के बाद भी मानसिक महामारी बनी रहेगी। इसका एक कारण ये भी है कि मानसिक परेशानी बड़ों की तुलना में बच्चों को जल्दी प्रभावित करती है। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि किस तरह से कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रभावित हो रही है। बच्चों के मेंटल हेल्थ को आप किस तरह से संभाल सकते हैं?
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कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ कैसे हो रही प्रभावित?
कोरोना महामारी के दौरान सभी को लगातार घरों में रहने की हिदायत दी जा रही है, ऐसे में बच्चे घरों में रहना बिल्कुल भी नहीं पसंद कर रहे हैं। उन्हें 24 घंटे घर के अंदर रहने से कई तरह की मेंटल प्रॉब्लम हो रही है। हैलो स्वास्थ्य ने ये जानने के लिए कुछ पेरेंट्स से बात की :
बेटी का व्यवहार हो गया चिड़चिड़ा
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले की रहने वाली नीरा मौर्या बताती है कि उनकी आठ साल की एक बेटी है। उनकी बेटी का स्वभाव बहुत ही चंचल है और वह एक पल भी घर में रहना नहीं पसंद करती है। कोरोना महामारी फैलने के बाद से लॉकडाउन और बच्चे को घर में रखना जरूरी हो गया। लेकिन फिर भी बेटी बाहर खेलने जाने की जिद करती रहती थी। प्यार से समझा कर, डांट कर हर तरह से समझा कर देख लिया। धीरे-धीरे बेटी का व्यवहार चिड़चिड़ा हो गया। जिसके कारण वह कोई भी बात मानना बंद कर दी और जिद्दी स्वभाव की हो गई।
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बच्चा शांत रहने लगा
महाराष्ट्र के रहने वाले मनोज शिंदे का चार साल का बेटा कुक्कु है। मनोज का कहना है कि महाराष्ट्र में फ्लैट की लाइफ सिर्फ एक कमरे में सिमट कर रह जाती है। ऐसे में जब बच्चा छोटा हो तो उसे अपनी चंचलता दिखाने के लिए स्पेस चाहिए होता है। ऐसे में जब अचानक से बच्चे को घर में बंद रखना पड़े तो उसके स्वभाव में बदलाव आ ही जाता है। पहले कुक्कु को प्यार से समझाकर घर में रखना चाहा, बाद में उसकी बढ़ती जिद के कारण उसे डांटना भी पड़ा। धीरे-धीरे उसका व्यवहार चंचल से शांत हो गया, अब हमें उसके बिहेवियर को लेकर टेंशन होने लगी है।
कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ पर जानें एक्सपर्ट की राय
वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के सर सुंदरलाल हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. जयसिंह यादव से हैलो स्वास्थ्य ने बात की। डॉ. जयसिंह ने बताया कि ये वक्त सभी के लिए बहुत कठिन है, जहां एक तरफ बड़े आर्थिक तंगी से गुजरने के कारण डिप्रेशन, स्ट्रेस और सुसाइडल टेंडेंसी से गुजर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ बच्चे स्ट्रेस से गुजर रहे हैं, उन्हें उनके मन मुताबिक बाहर एक्टिविटी करने के लिए नहीं मिल पा रही है। ऐसे में वह धीरे-धीरे अपने व्यवहार को बदलने लगते हैं। ऐसे बच्चे को साइकोथेरिपी की जरूरत पड़ सकती है, जिसके लिए आपको अपने बच्चे को किसी बाल मनोचिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। इसके बाद डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देश को फॉलो करें और बच्चे को इस मानसिक समस्याओं से बाहर निकालें।
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क्या कहती हैं रिसर्च?
लॉस एंजेल्स की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया ने एक रिसर्च किया, जिसमें आइसोलेशन के कारण होने वाले ट्रॉमा का जिक्र किया गया। रिसर्च में ये बात सामने आई है कि 25 प्रतिशत बच्चों को आइसोलेट और क्वारंटाइन रहने से उन्हें पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर हो गया।
मार्च 2020 में ओरेगॉन यूनिवर्सिटी में हुए एक सर्वे में ये बात सामने आई कि 68 प्रतिशत पेरेंट्स ने बच्चों में स्ट्रेस लेवल को बढ़ते हुए देखा है। वही, 33 प्रतिशत बच्चों में चिड़चिड़ापन और बुरा व्यवहार देखने को मिला। दूसरी तरफ अप्रैल 2020 में याले सर्वे में 5000 ऑनलाइन क्लासेस देने वाले टीचर्स से पूछा गया तो उन्होंने बच्चों में पांच तरह के बदलाव महसूस किए। टीचर्स का कहना है कि उन्होंने बच्चों में चिंता, डर, तनाव, घबराहट और दुख से ग्रसित महसूस किया।
यूनिसेफ (द यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रन्स फंड) के मुताबिक पूरी दुनिया में करीब 1.5 अरब बच्चे और वयस्क लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोरोना काल का असर पड़ रहा है। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने करीब 188 देशों के लोगों को प्रभावित कर रहा है। यूनिसेफ के अनुसार अगर ग्लोबल स्टूडेंट्स की बात की जाए तो करीब 90 प्रतिशत बच्चों पर स्कूल बंद होने के कारण निगेटिव इफेक्ट्स पड़ रहा है। कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रभावित हो रही है जिसके कारण बच्चों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, गुस्सा और मानसिक तनाव पैदा हो रहा है।
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कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम से कैसे बाहर निकालें?
नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्कूल साइकोलॉजी के मुताबिक कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ का इलाज तीन चरणों में होना चाहिए।
- पहला चरण : बच्चों को मानसिक समस्या से बचाना
- दूसरा चरण : अगर बच्चा किसी तरह से मानसिक समस्या का शिकार हो गया है तो उसे तुरंत ट्रीटमेंट की जरूरत होगी।
- तीसरा चरण : इस चरण में बच्चे को साइकोथेरिपी की जरूरत होती है।
इन चरणों के लिए पेरेंट्स और टीचर्स को बच्चे की मानसिक स्थिति को पहले समझना पड़ता है। इसके बाद उन्हें हैंडल करने का प्रयास डॉक्टर की मदद से करना चाहिए।
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कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ के लिए पहले चरण में बच्चे के बदलते व्यवहार को पलटना होता है। हावर्ड सेंटर के अनुसार बच्चे को अच्छे काम में उलझा कर रखें, उसमें सामाजिक भावना पैदा करें और सच्चाई बताएं। बच्चे को बताएं कि कोरोना काल में उसे कैसे ठीक से रहना है। कोरोना बीमारी क्या हैं, उसका इलाज क्या है और रोकथाम क्या है। बच्चे को ऐसी सरल भाषा में बताएं कि वो बिल्कुल भी पैनिक ना हो।
इसके बाद भी अगर कोरोना में बच्चों की मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम हो जाती है तो दूसरे चरण में बच्चे को लेकर किसी मनोचिकित्सक के यहां जाना चाहिए और बच्चे के बदले हुए व्यवहार के बारे में बताना चाहिए। इसके बाद तीसरे चरण में बच्चे की साइकोथेरिपी कराएं। जिससे उसे पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से बाहर निकाला जा सकता है।
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इन तरीकों से आप कोरोना में बच्चे की मेंटल हेल्थ का पूरा ध्यान रख सकते हैं। इसके अलावा अधिक परेशानी होने पर अपने डॉक्टर से जरूर मिलें। हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई मेडिकल जानकारी, इलाज आदि मुहैया नहीं कराता है।