मम्प्स (Mumps) का निदान कैसे किया जाता है?
इंफेक्शन के दौरान पैरोटिटिस का निर्धारण करके इसका पता किया जा सकता है। हालांकि, जब रोग के लक्षण कम दिखे, तो पैरोटिटिस को अन्य संक्रामक रोगों का कारण माना जाना चाहिए जैसे कि एचआईवी, कॉक्ससैकीवायरस और इन्फ्लूएंजा। एक फिजिकल टेस्ट के द्वारा सुजी हुई ग्लैंड को चेक किया जा सकता है। आमतौर पर, रोग का पता क्लिनिकल आधार पर किया जाता है। इसके लिए किसी तरह के लेबोरेटरी टेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है। यदि क्लिनिकली टेस्ट के बारे में कुछ अनिश्चितता है, तो लार या रक्त का परीक्षण किया जा सकता है। रियल टाइम नेस्टेड पोलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) का उपयोग करके बीमारी की पुष्टि कर सकते हैं।
मम्प्स (Mumps) का इलाज कैसे किया जाता है?
क्योंकि मम्प्स वायरस की वजह से होता है इसलिए इस बीमारी पर एंटीबायोटिक या अन्य दवाओं का असर कुछ खास असर नहीं दिखता है। हालांकि इनसे आप बीमारी के लक्षणों में कुछ आराम पा सकते हैं।
- जब आपको कमजोरी या थकान महसूस हो तो आराम करें।
- बुखार को कम करने के लिए एसिटामिनोफेन और इबुप्रोफेन जैसी दर्द निवारक दवाइयां लें।
- आइस पैक की सिकाई से ग्लैंड में आई सूजन को कम किया जा सकता है।
- बुखार के कारण डीहाइड्रेशन से बचने के लिए तरल पदार्थों का सेवन करें।
- सूप, दही व अन्य नरम आहारों का सेवन करें जिनको चबाने में कठिनाई ना हो (क्योंकि जब मुंह की ग्लैंड्स में सूजन आ जाती है तो चबाने के दौरान दर्द महसूस हो सकता है)
- एसिडिक फूड व पेय पदार्थों का सेवन ना करें क्योंकि ये लार ग्रंथियों में और ज्यादा दर्द का कारण बन सकते हैं।
[mc4wp_form id=”183492″]
जीवनशैली में बदलाव और घरेलू उपचार
वेक्सीनेशन से मम्प्स को रोका जा सकता है। अधिकांश शिशुओं और बच्चों को एक ही समय में खसरा, मम्प्स और रूबेला (MMR) के टीके लगाए जाते हैं। पहला एमएमआर आमतौर पर 12 से 15 महीने की उम्र के बच्चों को नियमित अंतराल पर दिया जाता है। 4 से 6 वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों के लिए दूसरा वैक्सीनेशन आवश्यक होता है।