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जोड़ों का दर्द एक बहुत ही आम समस्या है। इसे आयुर्वेद में संधि शूल (shandhi shoola) के नाम से जाना जाता है। यह आमतौर पर इंजरी, अर्थराइटिस (गठिया) या ऑटोइम्यून विकारों की वजह से होता है। बुजुर्ग लोगों में जॉइंट-पेन उम्र के साथ-साथ बदतर होता जाता है, जिससे चलने-फिरने, बैठने, झुकने, खड़े होने और पैरों को मोड़ने में भी कठिनाई होने लगती है। ऐसे में जोड़ो में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज स्थिति को कंट्रोल करने में बेहद प्रभावी साबित हो सकता है। “हैलो स्वास्थ्य” के इस आर्टिकल में जानते हैं कि जोड़ो में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज और घुटनों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा क्या है? आयुर्वेद के अनुसार जोड़ो में दर्द होने पर क्या करना चाहिए और क्या नहीं?
आयुर्वेद में, हड्डियों और जोड़ों में परेशानी का कारण शरीर में वात को माना जाता है। आयुर्वेद में जॉइंट पेन के दो प्रमुख प्रकार के बारे में बताया गया है। पहला खराब-पोषण की वजह से जोड़ों में दर्द या लो बोन डेंसिटी (low bone density) और जोड़ों की कमजोरी से जुड़ा हुआ है। इस तरह की समस्या जोड़ों में कुछ परेशानियों के साथ शुरू होती है और यदि ध्यान न दिया जाए तो जोड़ों की चलने-फिरने की क्षमता खत्म हो जाती है। दूसरी तरह का जोड़ों में दर्द, जॉइंट्स में टॉक्सिन्स के साथ जुड़ा हुआ है। यह अमा (अधपचे भोजन की वजह से चिपचिपा जमा विषाक्त पदार्थ) के जमने से होता है। इसमें पहले कठोरता और भारीपन लगता है। यदि यह लंबे समय तक रहता है, तो जोड़ों में सूजन और दर्द पैदा हो सकता है। ठंडा मौसम इस प्रकार के जॉइंट पेन को बढ़ा सकता है।
वात-संबंधी जोड़ों में दर्द
जब व्यान वात (वात का एक एस्पेक्ट है, जो सर्क्युलेशन और तंत्रिका आवेगों को नियंत्रित करता है) उत्तेजित हो जाता है, तो पहले प्रकार की जॉइंट प्रॉब्लम हो सकती है। इससे व्यक्ति के शरीर में ब्लड सर्क्युलेशन, मेटाबॉलिज्म और भोजन को एब्सोर्ब करने की क्षमता कमजोर हो जाती है। नतीजतन, हड्डी के टिश्यूज को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है और वे कमजोर होने लगते हैं। व्यान वात के कारण असंतुलित सर्क्युलेशन, मेटाबॉलिज्म और अवशोषण में असंतुलन की वजह से जोड़ों में ल्यूब्रिकेशन को नियंत्रित करने वाले श्लेषका कफ (Shleshaka Kapha) प्रभावित होते हैं। जब ऐसा होता है, तो जोड़ों में पर्याप्त चिकनाई नहीं होती है, जिससे क्रैकिंग साउंड और जॉइंट फ्लेक्सिबिलिटी को नुकसान पहुंचता है।
अमा-संबंधी जॉइंट प्रॉब्लम
दूसरी प्रकार की जॉइंट प्रॉब्लम जोड़ों में अमा (पाचन विषाक्त पदार्थों) की वजह से होता है। ठंड या आर्द्र मौसम में जोड़ों के दर्द के लक्षण और खराब हो सकते हैं। यदि अमा को समय रहते न निकाला जाए, तो यह लंबे समय तक जोड़ों में चिपक जाता है। जिससे अमा, अमाविषा (Amavisha) में बदल जाती है। अमाविषा के कारण जोड़ों में दर्द और सूजन पैदा हो सकती है। रूमेटाइड अर्थराइटिस (Rheumatoid arthritis) इस ही वजह से होता है।
जोड़ों के दर्द से जुड़े लक्षण और संकेत इस प्रकार हैं-
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निर्गुंडी (Nirgundi)
निर्गुंडी जॉइंट पेन की सबसे आम जड़ी-बूटियों में से एक है। इसका उपयोग करने से सूजन को कम करने के साथ-साथ दर्द में राहत मिलती है। इसमें एंटी-इंफ्लमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जिससे जोड़ों के दर्द से छुटकारा मिलता है। जॉइंट पेन के आयुर्वेदिक इलाज के लिए आप निर्गुन्डी के तेल का उपयोग भी कर सकते हैं और इसे जोड़ों पर लगा सकते हैं।
अजवाइन
अजवाइन में एंटी-इंफ्लमेटरी गुण पाए जाते हैं। इसकी वजह से इसे गठिया के दर्द के घरेलू उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एनेस्थेटिक गुण भी होते हैं, जो सर्दियों के दौरान अत्यधिक दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं।
दशमूल (Dashmool)
दशमूल खुद एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी नहीं है, बल्कि दस औषधीय जड़ी-बूटियों का मिश्रण है। जिसका उपयोग कई तरह की बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जाता है। इसमें बेरहटी, शालपर्णी जैसी हर्ब्स शामिल की जाती हैं। दशमूल वात रोग में प्रभावी है। इसके एंटी-इंफ्लमेटरी, एंटी-ऑक्सीडेंट और शामक गुण जोड़ों के दर्द को ठीक करने में मदद करते हैं। यह तेल और पाउडर के रूप में उपलब्ध है।
शल्लकी
शल्लकी जड़ी-बूटी जोड़ों को मजबूत रखने और उन्हें किसी भी दर्द से राहत देने के लिए जानी जाती है। यह न केवल दर्द को कम करता है, बल्कि सूजन को कम करने में भी मददगार है। ऑस्टियोअर्थराइटिस की वजह से जोड़ों में दर्द और अकड़न को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। आयुर्वेद में इसे वात दोष के असंतुलन के कारण हुई बीमारियों के इलाज के लिए जाना जाता है।
शतावरी (Shatavari)
शतावरी एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है, जिसमें चिकनाई प्रदान करने वाले गुण होते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि इसका इस्तेमाल शरीर में सूजन पैदा करने वाले रसायनों (जैसे कि TNF- अल्फा और IL-1B) को खत्म करने में किया जाता है।
अश्वगंधा
अश्वगंधा मांसपेशियों की कमजोरी को कम करने में उपयोगी है। अर्थराइटिस की वजह से होने वाली सूजन के उपचार में भी यह मददगार है। जोड़ों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
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जोड़ों में दर्द के आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के रूप में थेरेपी का इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे-
निदान परिवार्जन
इस आयुर्वेदिक कर्म में रोग के कारण को दूर किया जाता है। इससे बीमारी को बढ़ने, उससे बचाव और दोबारा होने से रोका जा सकता है। जोड़ों में दर्द के इलाज के लिए अनशन (व्रत), अल्पशन (कम मात्रा में खाना), रुक्षन्नपान सेवन (सूखे खाद्य पदार्थों का सेवन), प्रमितशन (सीमित आहार लेना) और लंघन (व्रत) जैसी कई आयुर्वेदिक क्रियाएं शामिल है। इनका इस्तेमाल व्यक्ति की प्रकृति और दोष पर निर्भर करता है।
स्वेदन
शरीर में जमी अमा यानी टॉक्सिन्स को बाहर निकालने के लिए यह आयुर्वेदिक क्रिया महत्वपूर्ण है, जिसमें पसीने के जरिए विषाक्त पदार्थ बाहर निकलते हैं। अर्थ्राल्जिया के आयुर्वेदिक इलाज के रूप में प्रभावित हिस्से को गर्म करके अमा को पिघलाया जाता है, जिससे टॉक्सिन्स बाहर निकल सकें।
अभ्यंग
अभ्यंग आयुर्वेदिक कर्म में कई हर्ब्स से बने तेल की मालिश प्रभावित हिस्से पर की जाती है। इससे जिस हिस्से में जॉइंट पेन होता है, उस अंग में दर्द से राहत मिलती है।
इसके अलावा जोड़ों में दर्द के आयुर्वेदिक इलाज के लिए विरेचन, लेप, अग्नि कर्म, बस्ती जैसी प्रक्रियाओं को भी अपनाया जाता है।
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दशमूलारिष्ट
ऑस्टियोअर्थराइटिस के रोगी को जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा के रूप में दशमूलारिष्ट लेने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा इसका उपयोग वात की वजह से जन्मे फिस्टुला, अस्थमा और खांसी के इलाज के लिए भी किया जाता है।
मुक्ताशुक्ति भस्म
कैल्शियम की कमी के कारण होने वाले जोड़ों में दर्द को कंट्रोल करने में यह आयुर्वेदिक दवा उपयोगी है। यह जोड़ों में दर्द की आयुर्वेदिक दवा खराब हुए पित्त और वात दोष को बैलेंस करती है।
योगराज गुग्गुल
पिप्पलीमूल, गोक्षुरा, त्वाक (दालचीनी), शतावरी, गुडूची, गुग्गुल आदि जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार की गई यह दवा वात रोगों विशेषकर रुमेटाइड अर्थराइटिस को मैनेज करने में प्रभावी है। वात और रक्त धातु में असंतुलन की वजह से गाउट होने से जोड़ों में दर्द की समस्या होती है। जोड़ों में दर्द की यह आयुर्वेदिक दवा इसमें भी उपयोगी होती है।
ऊपर बताई गई आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन डॉक्टर की सलाह से ही किया जाना चाहिए।
वीरभद्रासन, धनुरासन (बो पोज), सेतु बंधासन (ब्रिज पोज), त्रिकोणासन (त्रिकोण मुद्रा), मकर अधो मुख सवासना, उष्ट्रासन आदि योगासन मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करते हैं। इनसे ऑस्टियोपोरोसिस और अर्थराइटिस से पीड़ित लोगों में होने वाले जॉइंट पेन में आराम पहुंचता है।
हल्दी में कर्क्युमिन तत्व होता है, जो कि शरीर में इंफ्लमेशन का कारण बनने वाले तत्वों को ब्लॉक करने और कार्टिलेज डैमेज को कम करने में मदद करता है। इससे आपके जोड़ों का दर्द कम होता है और आपको राहत मिलती है। 2016 में हुई एक स्टडी के मुताबिक, कर्क्युमिन ऑस्टियोअर्थराइटिस के विकास में देरी पैदा करता है। लेकिन इसके इस्तेमाल से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
हल्दी के अलावा अदरक भी ऐसा घरेलू उपाय है, जिसकी मदद से जोड़ों के दर्द से राहत प्राप्त की जा सकती है। अदरक अपने एंटी-सेप्टिक गुणों के कारण कई समस्याओं के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। जिससे जोड़ों में सूजन और दर्द को कम करने में मदद मिलती है। इसका उपयोग करने से शरीर में ब्लड सर्क्युलेशन भी तेज होता है, जिससे दर्द कम होता है। इसका इस्तेमाल करने के लिए आप अदरक वाली चाय पी सकते हैं या फिर अदरक का पेस्ट या एसेंशियल ऑयल अपने घुटनों पर लगा सकते हैं।
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क्या करें?
क्या न करें?
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हैलो स्वास्थ्य उम्मीद करता है कि आपको इस आर्टिकल के द्वारा पर्याप्त जानकारी मिल गई होगी कि जोड़ों में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज क्या है और यह कैसे काम करता है? लेकिन एक बात का जरूर ध्यान रखें कि वैसे तो आयुर्वेदिक औषधियां काफी हद तक सुरक्षित होती हैं। लेकिन, कुछ निश्चित स्थितियों जैसे- गर्भवती महिला, क्रॉनिक डिजीज या अन्य जड़ी-बूटी से एलर्जी आदि में इसके कुछ साइड इफेक्ट्स दिखने से इंकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए किसी भी समस्या के लिए आयुर्वेदिक उपायों को अपनाते हुए एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। जो कि आपके स्वास्थ्य की पूरी तरह से जांच करके आपको उचित और सही जानकारी देगा।
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