ट्रॉमा एक स्ट्रेसफुल इवेंट पर होने वाली प्रतिक्रिया है। फिर चाहे वह युद्ध का समय हो या कोई प्राकृतिक आपदा या कोई दुर्घटना। ट्रॉमा को हिंदी में आघात कहा जाता है। ऐसी स्थिति में इंसान खुद को असुरक्षित, हेल्पलेस महसूस करता है। उसे दुनिया खुद के लिए खतरनाक लगने लगती है। ट्रॉमा में कई प्रकार के शारीरिक और भावनात्मक लक्षण दिखाई देते हैं। भावनात्मक लक्षणों में व्यक्ति खुद के इमोशन, मेमोरीज और चिंता से संघर्ष करता रहता है। यह उसे स्तब्ध, अलग-थलग होने और अन्य लोगों पर भरोसा करने में असमर्थ महसूस करा सकता है।
ट्रॉमेटिक अनुभवों में अक्सर जीवन को खतरा होता है, लेकिन कोई भी स्थिति जो आपको व्याकुल, अकेला महसूस करवा दे, तो वह भी ट्रॉमा का कारण बन सकती है। हर कोई जो स्ट्रेसफुल इवेंट से होकर गुजरता है, लेकिन जरूरी नहीं कि सभी में ट्रॉमा या ट्रॉमा के लक्षण डेवलप हो। कुछ लोगों में ट्रॉमा के लक्षण दिखाई देते हैं और कुछ हफ्तों के बाद लक्षण चले जाते हैं। वहीं कुछ लोगों में इसका असर लंबे समय तक रहता है। हालांकि ट्रीटमेंट के जरिए लोगों को ट्रॉमा के कारण का पता चल जाता है और वे इसको मैनेज करने का तरीका भी जान लेते हैं। वर्ल्ड ट्रॉमा डे के अवसर पर हम ट्रॉमा के प्रकार, कारण और लक्षण के बारे में बता रहे हैं।
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ट्रॉमा के प्रकार
ट्रॉमा के लक्षण जानने से पहले ट्रॉमा के प्रकार के बारे में जान लें। ट्रॉमा के कई प्रकार हैं। हम यहां आपको कुछ प्रमुख प्रकारों के बारे में बता रहे हैं।
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एक्यूट ट्रॉमा
यह किसी एक तनावयुक्त और भयानक इवेंट का परिणाम हो सकता है।
क्रोनिक ट्रॉमा
यह अत्यधिक तनावपुर्ण घटनाओं के लगातार दोहराए जाने के परिणामस्वरूप होता है। इसमें बाल शोषण, धमकाने की घटनाएं या घरेलू हिंसा जैसे मामले शामिल हैं।
कॉम्प्लेक्स ट्रॉमा
यह ट्रॉमा कई प्रकार के ट्रॉमेटिक इवेंट्स के कारण होता है।
सेकेंड्री ट्रॉमा
यह भी ट्रॉमा का एक प्रकार है। जिसमें एक व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के संपर्क में रहकर जिसने एक दर्दनाक घटना का अनुभव किया हो ट्रॉमा के लक्षण विकसित हो जाते हैं। इसे विकारियस ट्रॉमा (Vicarious trauma) भी कहते हैं। ट्रॉमा में रहने वाले व्यक्ति की देखभाल करने वाले परिवार के लोगों, मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल आदि में इस प्रकार का ट्रॉमा होने के चांजेस रहते हैं।
ट्रॉमा का किसी व्यक्ति पर लंबे समय तक प्रभाव रह सकता है। अगर लक्षण लगातार बने रहते हैं और ये ट्रॉमा मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर का कारण भी बन सकता है, जिसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) कहते हैं।
ट्रॉमा के कारण
इमोशनल और साइकोलॉजिकल ट्रॉमा के ये कारण हो सकते हैं।
वन टाइम इवेंट्स
कोई एक दुखद इंसीडेंट, इंजरी या हिंसक घटना, खासतौर पर जब इनकी उम्मीद न हो या जब ये बचपन में घटी हो, आपको ट्रॉमा दे सकती है।
लगातार होने वाला स्ट्रेस
अगर कोई व्यक्ति ऐसे किसी आस-पड़ोस में रहता है, जहां पर अपराध होते रहते हैं। अगर किसी को कोई जानलेवा बीमारी है तो वह भी ट्रॉमा का कारण बन सकती है। इसके साथ ही बार-बार होने वाली दर्दनाक घटनाओं का अनुभव करना जैसे कि घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न या बचपन की उपेक्षा लोगों को ट्रॉमा की तरफ धकेल सकती है।
अनदेखे कारण
जैसे कि सर्जरी (विशेष रूप से जीवन के पहले 3 वर्षों में), किसी की अचानक मृत्यु, किसी महत्वपूर्ण रिश्ते का टूटना, अपमानजनक या गहरा निराशाजनक अनुभव, खासकर अगर कोई जानबूझकर बहुत क्रूर था। ये भी ट्रॉमा के कारण बनते हैं।
प्राकृतिक आपदाओं के साथ समन्वय बिठाना भी कई प्रकार बहुत चुनौतिपूर्ण हो सकता है, जब आप भले ही सीधे तौर पर उस घटना में शामिल न हुए हो। उदाहरण के लिए चाहे कोई व्यक्ति आतंकवादी हमले, प्लेन क्रेश या सामूहिक नरसंहार का शिकार न हुआ हो फिर भी सोशल मीडिया या न्यूज चैनल पर आने वाली ऐसी घटनाओं की तस्वीरें देखकर तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है और दर्दनाक तनाव पैदा कर सकता है। जो ट्रॉमा का कारण बन सकता है।
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ट्रॉमा के लक्षण
ट्रॉमा के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। ये व्यक्ति के गुणों, उसकी मेंटल कंडिशन, पहले के ट्रॉमेटिक इवेंट्स के साथ एक्सपोजर, इवेंट के प्रकार और व्यक्ति के इमोशन को हेंडल करने के बैकग्राउंड पर निर्भर करते हैं। आइए जानते हैं ट्रॉमा के शारीरिक और भावनात्मक लक्षण।
ट्रॉमा के भावनात्मक लक्षण
- स्तबध हो जाना, इनकार और अविश्वास
- भ्रम, ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी
- गुस्सा, चिड़चिड़ापन, मूड का बदलना
- चिंता और डर
- अपराध बोध की भावना, शर्म महसूस करना और खुद को दोष देना
- दूसरों से दूर रहना
- दुखी और निराश रहना
- दूसरों से कटा-कटा महसूस करना या सुन्न होना
ट्रॉमा के शारीरिक लक्षण
- अनिद्रा या बुरे सपने आना
- थकान
- मांसपेशियों में खिंचाव
- हृदय गति का बढ़ना
- दर्द और पीड़ा का एहसास होना
- आवेश और उग्रता की भावना
- किसी बात पर आसानी से चौंक जाना या कांप उठना
- सिर में दर्द
- पाचन तंत्र का ठीक से काम न करना
- पसीना आना
बता दें कि ट्रॉमा सिर्फ व्यस्कों में ही नहीं होता। बच्चे भी इससे पीड़ित हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि बच्चों में ट्रॉमा क्या है?
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बच्चों में ट्रॉमा
रिसर्च के अनुसार बच्चों में ट्रॉमा का जोखिम अधिक होता है, क्योंकि उनके मतिष्क का विकास जारी होता है। बच्चे डरावनी या भयानक घटनाओं के दौरान तनाव की उच्च अवस्था का अनुभव करते हैं और फिर उनका शरीर तनाव और भय से संबंधित हॉर्मोन रिलीज करता है। बच्चों में इस प्रकार का ट्रॉमा सामान्य मस्तिष्क विकास को बाधित कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक चलने वाला ट्रॉमा बच्चे के भावनात्मक विकास, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
इसके चलते डर और लाचारी की भावना वयस्क होने तक बनी रह सकती है। इसकी वजह से भविष्य में भी ट्रॉमा होने का रिस्क बना रहता है। छोटे बच्चों में ट्रॉमा के लक्षण की पहचान ऐसे करें।
ट्रॉमा के लक्षण (o-3 साल के शिशु में)
- ठीक से खाना न खाना
- नींद में रुकावट या नींद बार-बार खुलना
- चिड़चिड़ा होना / परेशान करना
- बच्चे का डरा हुआ रहना
- किसी भी बात पर चौंक जाना
- बोलने में देरी
- आक्रामक व्यवहार
- ट्रॉमेटिक इवेंट के बारे में बात करना और उसे याद करते रहना
ट्रॉमा के लक्षण (3-6 साल के बच्चे में)
- टालमटोल करना, चिंता में रहना
- हमेशा डरा हुआ महसूस करना
- निराश रहना और खुद को बेबस समझना
- सिर में दर्द होना
- समझने में मुश्किल होना कि उन्हें क्या परेशान कर रहा है
- दिन में सपने देखना और हमेशा चिड़चिड़ा रहना
- आक्रामक व्यवहार
- दुखी या चिंता में रहना
- दोस्त न बनाना और अकेले रहने का प्रयास करना
तो आप समझ गए होंगे कि किस तरह ट्रॉमा बच्चों से लेकर बड़ों को परेशान कर सकता है। एक्सरसाइज, अकेले न रहकर, अपनी हेल्थ को मॉनिटर करके और प्रोफेशनल मदद लेकर इससे निपटा जा सकता है।
उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और ट्रॉमा और ट्रॉमा के लक्षण से संबंधित जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।