रेप ट्रॉमा (Rape Trauma)
यौन हिंसा के संपर्क में आने वाले लोग अक्सर ऐसा महसूस करते हैं कि उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया है और वे कभी भी किसी दूसरी परेशानी का सामना नहीं कर पाएंगे। उनकी सोच इस तरह से प्रभावित हो जाती है कि उन्हें लगता है कि वह फिर कभी अपने जीवन में किसी पर भरोसा नहीं कर पाएंगे। खासकर तब जब उनकी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से होती है, जिसके हाव-भाव उस इंसान से मिलते हों, जिसने उनके साथ गलत व्यवहार किया हो। यौन हिंसा के बारे में इतनी सारी अफवाहें सुनने के बाद रेप विक्टिम अक्सर अपने अनुभव को दूसरों के साथ शेयर करने में डरते हैं। यहां तक कि वे जिनके करीब हैं उनसे भी बात करने कतराते हैं। उन्हे ये डर होता है कि उन्हें दोषी ठहराया जाएगा या लोग उन पर विश्वास नहीं करेंगे।
एसिड अटैक ट्रॉमा (Acid Attack Trauma)
भारत में एसिड अटैक की घटनाओं के आंकड़ें डराने वाले हैं। एसिड अटैक से गुजरने वाले लोग अलग तरह का मेंटल ट्रॉमा झेलते हैं। यह ट्रामा व्यक्ति को ना केवल शारिरिक रुप से कमजोर करता है बल्कि मानसिक रूप से कमजोर करता है। इस ट्रॉमा को झेल रहे लोग सामाजिक अलगाव का भी सामना करते हैं। वे सामान्य जीवन जीने में असमर्थ होने लगते हैं, एसिड अटैक अकसर लोगों की आंख की रोशनी चली जाती है। साथ ही चेहरा भी बुरी तरह झुलस जाता है, जिससे उन्हें पहचानना भी मुश्किल हो जाता है। एसिड अटैक विक्टिम के लिए यह किसी से उसकी पहचान छीन लेना जैसा होता है।
हर साल एसिड अटैक के मामले बढ़ रहे हैं। औपचारिक रूप से रिपोर्ट किए गए मामले 2012 से 2015 के बीच काफी तेजी से बढ़ें। जबकि यह माना जाता है कि कई मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें रिपोर्ट नहीं किया गया। पीड़ित ज्यादातर 14 और 35 साल की उम्र के बीच की महिलाएं होती हैं। इसमें ज्यादातर मामले ऐसे हैं जिनमें किसी ने शादी के प्रस्ताव या यौन संबंधों को अस्वीकार कर दिया और उसका बदला लेने के लिए उन पर एसिड अटैक किया गया। पर्याप्त दहेज न मिलने, लड़की पैदा होने, अच्छा खाना ना बनाने के भी कई मामलों का अंत एसिड अटैक के रूप में हुआ। दुनिया भर में इस तरह की छोटी बातों पर बहुत से लोगों को एसिड अटैक का मेंटल ट्रॉमा झेलना पड़ता है।
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