परिचय
ट्राइकोटिलोमेनिया क्या है?
ट्राइकोटिलोमेनिया एक डिसऑर्डर है। जिसे हेयर पुलिंग डिसऑर्डर भी कहा जाता है। यह एक मानसिक असंतुलन है। इसमें मरीज बालों को खींचने का आदी हो जाता है। सिर के अलावा वो भौहों, पलकों और शरीर के अन्य जगहों के भी बाल खींच सकता है। इस तहर बार—बार बालों खींचने से पलकों और भौहों के बाल पूरी तरह से हट सकते हैं। इससे सिर या चेहरे पर धब्बे या पैच भी पड़ जाते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति मानसिक तौर पर परेशान हो जाता है। साथ ही सामाजिक और व्यावसायिक कामों में भी दखल पड़ता रहता है।
अब इसे एक बीमारी के तौर पर देखा जाने लगा है। जैविक रूप से देखा जाए तो दिमाग के कुछ हिस्सों में तंत्रिका कोशिकाओं के बीच एक रासायनिक संदेशवाहक की प्रणाली में समस्या होने पर ये डिसऑर्डर हो जाता है। ट्राइकोटिलोमेनिया के लक्षण हर मरीज में अलग—अलग हो सकते हैं। ये अभी शोध का विषय बना हुआ है। ट्राइकोटिलोमेनिया जैसी समस्या ज्यादातर 9 से 13 साल के बच्चों में देखी गई हैं।
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जब बच्चों में ट्राइकोटिलोमेनिया की समस्या दिखती है तो उसी समय इलाज करवाना शुरू कर देना चाहिए। इलाज और देखभाल से बाल तोड़ने की आदत छूट जाती है। इस समस्या का कारण कोई चिंता या ऊबन हो सकती है। इसके अलावा कोई तनावपूर्ण घटना, परिवार में कलह या मौत के डर की वजह से भी लोग इस तरह की हरकतें करने लगते हैं। ऐसे लोगों को अच्छी काउंसलिंग की जरूरत होती है। विभिन्न भावनात्मक अवस्थाओं के साथ हो सकती है, जैसे कि चिंता या ऊब की भावनाएं। एक तनावपूर्ण घटना जैसे कि दुर्व्यवहार, पारिवारिक संघर्ष या मृत्यु भी ट्राइकोटिलोमेनिया को ट्रिगर कर सकती है।
कारण
ट्राइकोटिलोमेनिया के कारण क्या हैं?
- ट्राइकोटिलोमेनिया किन कारणों से होता है, इस पर अभी शोध हो रहा है। हालांकि कुछ मानसिक विकार इसका कारण हो सकते हैं। यह पाया गया है कि आसपास के वातावरण के प्रभाव में आकर बच्चे ट्राइकोटिलोमेनिया से पीड़ित हो जाते हैं।
- यह एक आनुवांशिक बीमारी भी हो सकती है। परिवार में अगर किसी को ट्राइकोटिलोमेनिया जैसी समस्या है तो बच्चे उसे देखकर ऐसा करने लगते हैं और धीरे-धीरे उनकी आदत हो जाती है।
- किशोरावस्था में ट्राइकोटिलोमेनिया जैसी समस्या पैदा होती है। ऐसे में बढ़ते उम्र के बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत होती है। शरुआत में ही उपचार करा लेने पर यह समस्या ठीक हो जाती है।
- जिन्हें तनाव, अवसाद या चिंता होती है, उन्हें भी ट्राइकोटिलोमेनिया जैसी बीमारी हो सकती है।
- पुरुषों की अपेक्षा यह बीमारी महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है।
- देखने से तो ट्राइकोटिलोमेनिया की समस्या ज्यादा गंभीर नहीं लगती है लेकिन ये आपके जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। कुछ समय बाद लोग इससे शर्म, अपमान और शर्मिंदगी जैसी भावनाएं महसूस करने लगते हैं। ऐसे में वे शराब और नशीली दवाओं के आदी भी हो सकते हैं।
- ट्राइकोटिलोमेनिया से बाल झड़ने लगते हैं। ऐसे में लोगों को विग पहनने पर मजबूर होना पड़ता है। भौं और पलकों के बाल गायब होने पर चेहरे की खूबसूरती भी चली जाती है। साथ ही बालों में पैच भी आ जाते हैं।
- बालों को लगातार खींचने से त्वचा पर संक्रमण हो जाता है।
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लक्षण
ट्राइकोटिलोमेनिया के लक्षण क्या हैं?
ट्राइकोटिलोमेनिया बीमारी में बार-बार बाल खींचने के अलावा कुछ अन्य लक्षण शामिल हो सकते हैं:
- बालों को खींचने से पहले तनाव महसूस करना।
- बालों को खींचने के बाद राहत, संतुष्ट, या प्रसन्नता महसूस करना
- बाल खींचने के कारण काम या सामाजिक जीवन में संकट या समस्या होना।
- बालों को खींचने के कारण त्वचा पर पैच पड़ जाना।
- व्यवहार में बदलाव जैसे कि बालों में हाथ डालना, बालों को अंगुली से घुमाना, दांतों के बीच फंसाकर बालों को खींचना, बालों को चबाना या बालों को खाना।
- बहुत से लोग जिनको ट्राइकोटिलोमेनिया की समस्या होती है वे खुद को बीमार होने से इनकार करते हैं।
- साथ ही अपने झड़ते हुए बालों को टोपी, स्कार्फ या विग से ढकने की कोशिश करते हैं। साथ ही नकली भौं और पलके भी लगाते हैं।
- ट्राइकोटिलोमेनिया से बीमार लोग टीवी देखते समय या फिर बोर होते हुए अपने आप ही बाल तोड़ने लग जाते हैं।
- ऐसे लोगों में त्वचा को नोचने, नाखून चबाने या होठों को चबाने जैसे लक्षण भी दिखते हैं।
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इलाज
ट्राइकोटिलोमेनिया का इलाज क्या है?
- ट्राइकोटिलोमेनिया का उपचार जटिल हो सकता हैं। इसके उपचार में समय लगता है और इसमें अभ्यास की ज्यादा जरूरत होती हैं। डॉक्टर पहले कई तरीकों का इस्तेमाल मरीज की इस बीमारी को ठीक करने की कोशिश करते हैं। लक्षण बार-बार आते-जाते हैं तो निराशा हो सकती है।
- डॉक्टर बच्चे या अन्य मरीजों की आदतों को बदलने की कोशिश करते हैं। जिन चीजों को देखकर या जिस वातावरण में उसका बालों को तोड़ने का मन होता है, वैसी चीजें ना करने के लिए कहते हैं। इसके लिए माता-पिता को ज्यादा ध्यान रखना होता है।
- साथ ही बच्चों की आदतें बदलवाने की भी कोशिश करते हैं। डॉक्टर पैरेंटस को सिखाते हैं कि ऐसी परिस्थिति को कैसे पहचानें जब बालों को तोड़ने का मन करे। बच्चों के व्यवहार पर भी ध्यान देना होता है।
- ऐसी बीमारी को ठीक करने के लिए सेल्फ अवेयरनेस भी जरूरी है। बालों को तोड़ने की उत्सुकता होते वक्त खुद को कंट्रोल करना जरूरी है। साथ ही ये ध्यान रखना होता है कि ऐसा करने से सिर्फ नुकसान ही होगा।
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- ट्राइकोटिलोमेनिया के मरीज को रिलैक्सेशन ट्रेनिंग भी दी जाती है। जिससे वो अपना मन किसी एक चीज पर केंद्रित कर सके और शांत रहे। शांत वातावरण मरीज को जल्द ठीक कर सकता है।
- इसके अलावा कुछ योगा के भी प्रशिक्षण दिए जा सकते हैं। इसमें सांस को अंदर-बाहर छोड़ने वाला योगा और मेडिटेशन सिखाया जा सकता है।
- डॉक्टर टॉक थेरेपी का भी सहारा ले सकते हैं। बात करने से मरीज के मानसिक हालातों का पता चलता है। इससे जानना आसान हो जाता है कि बाल तोड़ते वक्त उसके अंदर कैसी भावनाएं उत्पन्न होती हैं।
- कुछ दवाओं से ट्राइकोटिलोमेनिया की बीमारी को ठीक किया जा सकता है। चिंता के कुछ लक्षणों के उपचार के लिए SSRI और SNRI दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
- बच्चों और किशोरों के लिए फैमिली थेरेपी दी जाती है। माता-पिता लक्षणों को अच्छे से समझ सकते हैं।
- ट्राइकोटिलोमेनिया का हर मरीज में अलग-थलग भावनाएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए हर किसी का इलाज भी अलग तरह से होता है।
- ट्राइकोटिलोमेनिया का इलाज लंबे समय तक चल सकता है। मरीज का पूरी तरह से ठीक होना जरूरी है, वर्ना लक्षण दोबारा लौट सकते हैं।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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