डॉ. प्रताप चौहान के मुताबिक, होली वसंत ऋतु चक्र का एक हिस्सा है और यह गर्मी व गर्म दिनों की शुरुआत है। वसंत में बढ़ती आर्द्रता के साथ तापमान में अचानक वृद्धि के कारण शरीर का कफ पिघलता है और कफ से संबंधित अनेक बीमारियों को जन्म देता है। होली के पर्व की अवधारणा मूल रूप से शरीर को द्रवीभूत कफ से मुक्ति दिलाने तथा तीन दोषों को उनकी प्राकृतिक अवस्था में दोबारा लाने के लिए बनाई गई।
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कफ मिटाने वाले हर्बल रंग किस चीज से बनाएं?
जीवा आयुर्वेद के निदेशक ने कहा कि, होली की खासियत रंगों से होली खेलना है। परंपरागत तौर पर हरे रंग के लिए नीम (अजादिराष्टा इंडिका) और मेंहदी (लॉसनिया इनरमिस), लाल रंग कुमकुम और रक्तचंदन (pterocarpus santalinus,पटेरोकार्पस सांतालिनस), पीला रंग के लिए हल्दी (कुरकुमा लोंगा), नीले रंग के लिए जकरांदा के फूल तथा अन्य रंगों के लिए बिल्वा (ऐगल मार्मेलोस), अमलतास (कैसिया फिस्टुला), गेंदा (टागेटस इरेक्टा) और पीली गुलदाउदी से होली के रंग तैयार किए जाते हैं, जिनमें कफ घटाने के गुण होते हैं। डॉ. चौहान ने बताया कि, हर्बल व रंग मिलाकर पानी की बौछर करने से इनमें मौजूद औषधीय घटक त्वचा में प्रविष्ठ करते हैं और त्वचा को डिटॉक्स करने में मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि, लोगों को होली के दौरान स्वास्थ्य लाभों को प्राप्त करने के लिए केवल आर्गेनिक हर्बल रंगों का ही उपयोग करें।
बाजार में मिलने वाले केमिकल युक्त रंगों से बचें
डॉ. प्रताप चौहान ने कहा कि, आजकल बाजार में मिलने वाले ज्यादातर रंगों में रसायन होता है और वह स्वास्थ्य के लिए असुरक्षित होते हैं। ये रंग त्वचा पर रैशेस पैदा कर सकते हैं। आयुर्वेदिक तरीके से होली खेलने के लिए जरूरी है कि, आप होली खेलने से एक दिन पहले पूरे शरीर पर सरसों का तेल लगा लें। इससे आपकी त्वचा सुरक्षित रहेगी और होली खेलने के बाद आप आसानी से रंगों को धोकर हटा सकते हैं। आप काफी मात्रा में नारियल तेल भी लगा सकते हैं। ये सुरक्षा एजेंट के रूप में कार्य करते हैं और रंगों को जड़ों में गहराई तक घुसने से रोकते हैं।
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आयुर्वेदिक तरीके से होली : त्वचा पर चकत्ते होने पर क्या करें?