पैसिफायर या अंगूठा चूसना सभी शिशुओं की एक नॉर्मल आदत होती है। हर बच्चा जन्म के कुछ हफ्तों बाद से ही पैसिफायर या अंगूठा चूसने को अपनी आदत बना लेता है। कुछ बच्चों को तो थंब सकिंग की आदत मां के पेट से लग जाती है। इसका सबूत है अल्ट्रासाउंड की बेहद प्यारी तस्वीरें।
लेकिन चाहे आपके शिशु को अंगूठा चूसने की आदत पेट से लगी हो या जन्म के कुछ हफ्तों बाद, आपको इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा अपनी इस आदत को स्कूल के समय तक न बनाए रखे। अगर समय रहते बच्चों की पैसिफायर या अंगूठा चूसने की आदत को नहीं छुड़वाया गया तो आगे चल कर आपको ऑर्थोडोन्टिक के महंगे खर्चे का सामना करना पड़ सकता है।
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नवजात शिशुओं का पैसिफायर या अंगूठा चूसना
हालांकि, आपको अभी से ये आदत छुड़वाने की जरूरत नहीं है। नवजात शिशुओं का पैसिफायर या अंगूठा चूसना पूरी तरह से नेचुरल आदत होती है। यहां जानें कैसे –
- बच्चे पैदा होते ही अंगूठा चूसना शुरू कर देते हैं। पैसिफायर या अंगूठा चूसना बच्चों का सामान्य व्यवहार होता है क्योंकि इसी तरह वह स्तनपान करते हैं। अगर आपका बच्चा पहले ही इसे समझ चुका है तो यह एक अच्छी बात है।
- पैसिफायर या अंगूठा चूसने से बच्चे को आराम मिलता है। स्तनपान होने के बाद भी शिशु को पीने की लालसा होती है जिसके कारण वह अपना अंगूठा चूसना शुरू कर देता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसे फिर से भूख लगी है। नवजात शिशु अपना पेट भरने के लिए ही नहीं बल्कि खुद को शांत रखने के लिए भी अंगूठा चूसते हैं। स्टडी की मानें तो शिशुओं के लिए कई बार नॉन-न्यूट्रेटिव सकिंग भी जरूरी होती है। इसीलिए हमारे पास शुरुआत से ही पैसिफायर होना जरूरी होता है। कुछ बच्चे अन्य शिशुओं के मुकाबले अधिक अंगूठा चूसना पंसद करते हैं जो कि एक हद तक चिंता की बात नहीं होती है।
- पैसिफायर या अंगूठा चूसना दोनों से ज्यादा बच्चे अंगूठा चूसना पसंद करते हैं। दरअसल इसमें पसंद या नपसंद जैसे कुछ नहीं होता। शिशु के पास अंगूठा पहले से ही उसके हाथ में होता है जबकि पैसिफायर का उसे इंतजार करना पड़ता है। इसलिए बच्चों का अंगूठा चूसना एक सामान्य रिफ्लेक्स होता है। पहली कुछ बार बच्चे अंगूठा गलती से चूसना शुरू करते हैं लेकिन धीरे-धीरे यह उन्हें मन को शान्ति पहुंचने की आदत बन जाती है।
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आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम और पैसिफायर के बीच संबंध
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक स्टडी के मुताबिक जो बच्चे सोते समय पैसिफायर का इस्तेमाल करते हैं उनमें आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम (सड्न इन्फेंट डेथ सिंड्रोम) होने का खतरा कम होता है। इस स्थिति में यह मायने नहीं रखता की शिशु पेट के बल सोता है या पीठ के। शोधकर्ताओं ने यह अनुमान लगाया कि पैसिफायर बच्चों के एयरवेज (श्वास नलिका) को खुला रखता है और बिस्तर में दम घुटने जैसी स्थिति की आशंका को कम कर देता है। सोते समय पैसिफायर का इस्तेमाल न करने वाले शिशुओं के मुकाबले करने वालों में आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम के कारण मृत्यु की संभावना कम होती है।
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पैसिफायर के अन्य फायदे और नुकसान
पैसिफायर या अंगूठा चूसना? शिशु के लिए क्या अधिक हानिकारक होता है? इसका जवाब देना मुश्किल है क्योंकि इसकी आदत को छुड़वाने के लिए आप इसे शिशु से ले सकते हैं जबकि अंगूठे या उंगली चूसने की आदत को आप आसानी नहीं छुड़वा सकते हैं। इसके अलावा अंगूठा या उंगली को शिशु कभी भी चूस सकता है, इसके लिए उसे आपकी जरूरत नहीं होती है। इसी कारण इस आदत को छुड़वा पाना पैसिफायर के मुकाबले मुश्किल होता है।
इसके अलावा कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ऑर्थोडॉन्टिक नामक पैसिफायर के कारण डेंटल प्रॉब्लम होने की आशंका कम होती है। हालांकि, अमेरिकन अकैडमी ऑफ पीडियाट्रिक डेंटिस्ट्री के मुताबिक अंगूठा, उंगली और पैसिफायर सभी से बच्चों के दांत प्रभावित हो सकते हैं और शिशु के मजबूत दांत आने से पहले उनकी चूसने की आदत को छुड़वाना बेहतर होता है अन्यथा यह उनके दांतों और जबड़े को हानि पहुंचा सकती है।
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इसके विपरीत कुछ स्टडी की मानी तो पैसिफायर के इस्तेमाल से बच्चों में कान में संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसा पैसिफायर चूसते समय एयरफ्लो में रूकावट आने के कारण होता है। यूस्टेकियन ट्यूब कान को खुला और साफ रखने में मदद करती है लेकिन पैसिफायर के कारण इसमें हवा सही तरीके से नहीं आ पाती है और कान का संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है।
पैसिफायर का इस्तेमाल इस बात की गारंटी नहीं देता कि आपके बच्चे को अंगूठा चूसने की आदत कभी नहीं लगेगी। एक सर्वे के अनुसार 34 प्रतिशत अंगूठा चूसने वाले बच्चे पहले पैसिफायर का इस्तेमाल कर चुके होते हैं।
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अंगूठा चूसने के फायदे और नुकसान
अंगूठा चूसना पैसिफायर से बेहतर इसलिए होता है क्योंकि इसमें शिशु को अपने आपको शांत करने के लिए आपकी मदद की आवश्यकता नहीं होती है। पैसिफायर के लिए आपको कई बार रातों में जागना भी पड़ सकता है। एक बार जब शिशु अंगूठा या उंगली चूसना सीख जाता है तो उसके बाद उसे खुद को शांत करने के लिए किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ती है।
लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि पैसिफायर के मुकाबले अंगूठा चूसने की आदत को छुड़वाना ज्यादा मुश्किल होता है और अंगूठा चूसने वाले शिशुओं में लंबे समय तक इस आदत के विकसित होने की आशंका रहती है।
इसके अलावा कोई भी स्टडी इस बात का दावा नहीं करती है कि पैसिफायर की तरह अंगूठा या उंगली चूसना आकस्मिक नवजात मृत्यु सिंड्रोम के खतरे को कम कर सकता है। अंगूठा चूसने की बजाए शिशु को पैसिफायर की आदत डालने के पीछे यह एक बेहद महत्वपूर्ण कारक होता है। ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को पैसिफायर देना अधिक पसंद करते हैं।
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पैसिफायर टिप्स
शिशु को पैसिफायर देते समय इन बातों का जरूर ध्यान रखें –
- अगर आप स्तनपान करवाती हैं तो एक प्रभावशाली रूटीन सेट होने तक बच्चे को पैसिफायर न दें। इसमें आमतौर पर 3 से 4 हफ्तों का समय लगता है। अगर आपका शिशु पैसिफायर नहीं चूसना चाहता है तो उसे फोर्स न करें।
- सिलिकॉन व डिशवॉशर सेफ पैसिफायर का चयन करें ताकि पैसिफायर के गंदे होने पर आप उसे बिना किसी हानि के धो सकें। घर में हमेशा 1 से अधिक पैसिफायर का स्टॉक रखें।
- पैसिफायर को साफ रखना बेहद आवश्यक होता है। नवजात शिशु का इम्यून सिस्टम इतना मजबूत नहीं होता है कि वह किसी भी प्रकार के कीटाणु या बैक्टीरिया से खुद को बचा सके। आप चाहें तो पैसिफायर को साबुन और पानी या डिशवॉशर में भी धो सकते हैं। पैसिफायर को साफ करने के लिए कभी भी अपने मुंह का इस्तेमाल न करें। इससे कीटाणु और अधिक फैल जाते हैं। बच्चे को पैसिफायर देते समय अपने हाथों को साफ रखें।
- शिशु की उम्र के अनुसार पैसिफायर का साइज बदलते रहें।
- पैसिफायर को किसी स्ट्रिंग या स्ट्रैप में बांधकर बच्चे के गले में लंबे समय तक न टांगे।
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पैसिफायर या अंगूठा चूसना एक लंबे समय तक चलने वाली बुरी आदत का रूप ले सकती है। खासतौर से जो बच्चे पहली कक्षा के बाद भी इसका इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में कई माता पिता इन दोनों की आदतों को शुरुआत से ही रोकने की कोशिश करते हैं। लेकिन आपको बता दें कि बच्चे के पहले वर्ष में पैसिफायर या अंगूठा चूसना एक सामान्य आदत होती है और ज्यादातर बच्चे अपनी इस आदत को समय के साथ छोड़ देते हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि अपनी इस आदत की मदद से आराम महसूस करते हैं।
अगर आपको लगता है कि आप अपने शिशु के लिए पैसिफायर या अंगूठे चूसना में से किसी एक का चयन कर सकते हैं तो आपको बता दें कि इस बात का निर्णय आप पर निर्भर नहीं करता है। आमतौर पर शिशु खुद ही यह निर्णय लेता है कि उसे पैसिफायर पसंद है या अंगूठा चूसना। लेकिन पैसिफायर या अंगूठा चूसना दोनों की ही आदत बच्चे को ना पड़े यही अच्छा होता है।
नवजात शिशु के लिए चुसनी का उपयोग कब से शुरू करना चाहिए?
सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि नवजात शिशु के लिए चुसनी का उपयोग करना सुरक्षित माना जाता है, हालांकि इसके कई नुकसान भी हो सकते हैं। इसलिए अगर आप अपने शिशु के लिए चुसनी का उपयोग शुरू करना चाहते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि आपके बच्चे को स्तनापन करने की आदत हो गई हो। आप अपने डॉक्टर की सलाह पर एक से डेढ़ माह की उम्र के होने पर ही अपने शिशु को चुसनी का उपयोग करने के लिए दे सकते हैं। साथ ही, जब आपके शिशु के दूध के दांत निकलने शुरू हो जाए, तो उन्हें इसकी आदत कम करने लगें। दांत निकलने के कारण आपका शिशु हर चीज को काटना शुरू कर देता है। ऐसे में चुसनी रबड़ की बनी हो सकती है। जिसके टुकड़े कट कर शिशु के पेट में जा सकते हैं। जो कई बार शिशुओं में चोकिंग की भी समस्या का कारण बन सकते हैं।
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