विकास और व्यवहार
शिशु का विकास कैसा होना चाहिए ?
अब आप का शिशु 40 सप्ताह का यानी 9 महीने के लगभग का हो चुका है इस दौरान शिशु में कई तरह के व्यवहारिक बदलाव और विकास देखने को मिलते हैं ,अब वे लोगों को पहचानने के साथ अपनी प्रतिक्रियाएँ भी देने लगता है, जैसे कि जो लोग उनकी देखभाल करते हैं या जिन्हें वह पहचानते हैं उन्हें देख कर मुस्कुराना या आराम से उनकी गोदी में चले जाना इतना ही नहीं ,बल्कि जो लोग शिशु को अजनबी रखते हैं उन्हें देखकर मुंह छिपाना और उनके पास ना जाना. इस चरण में शिशु को यह समझ में आने लगता है कि उन्हें कैसी प्रतिक्रिया देनी है और किसके साथ में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं इसी के साथ शिशु के कई बार मूड स्विंग्स भी होते हैं जैसे कि यदि उसका मन किसी परिचित के पास जाने का नहीं है तो बहुत सारे नखरे करते हैं जो कि स्वाभाविक है
वह आपका ध्यानाकर्षण करने के लिए इशारे करते हैं , यहां तक कि आपको दरवाज़े की तरफ जाते हुए देख कर आपको बाय-बाय भी कर सकते हैं.
नौ वें महीने के आखिरी हफ्ते में आपका बच्चा क्या क्या कर सकता है:
- बॉल से खेलना( वह बॉल हमारी तरफ लुढ़का सकता है).
- अपने हाथों से खुद कब को पकड़कर किसी भी तरल पदार्थ को पी सकना
- अपनी उंगलियों और अँगूठे के मदद से छोटी चीजों को उठा सकता है( बच्चे की पहुंच से सभी खतरनाक चीजें दूर रखनी चाहिए)
- कुछ सेकंड के लिए अकेला खड़ा हो सकता है.
- बिना मदद के अकेला खड़ा हो सकता है
- अब आप का शिशु मां पापा दादी दादा आदि छोटे शब्द कहने की कोशिश करता है
- इस अवस्था में यदि आप इशारों द्वारा शिशु को कुछ समझाना चाहिए या आज्ञा देना चाहे तो वह प्रतिक्रिया करता है जैसे अगर आप कुछ माँगना चाहते हैं तो अपना हाथ उसके आगे करें तो वे यह समझ जाता है कि आप उससे वह चीज मांग रहे हैं जो उसके पास है.
शिशु के विकास के लिए मुझे क्या करना चाहिए?
नीचे दी गई लिस्ट के अनुसार हमें कुछ खेल सीखने चाहिए जैसे
- पीकाबू(लुका छुपी)
- ताली बजाना
- गाना और नाचना
- इसी तरह के दूसरे खेल
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स्वास्थ और सुरक्षा
मुझे डॉक्टर से क्या बात करनी चाहिए?
हमें डॉक्टर से शिशु के यह जाने वाले शारीरिक परीक्षणों और उनकी टेक्निक्स के बारे में अच्छी तरह से चर्चा करनी चाहिए, तथा इन परीक्षणों के लिए डॉक्टर क्या विधियां इस्तेमाल करने वाला है इसके बारे में भी हमें पूरा ज्ञान होना चाहिए ताकि बच्चे के परीक्षण के समय हमें किसी प्रकार की परेशानी या तनाव ना हो, साथ ही यह जानना चाहिए कि, इन सभी परीक्षणों के लिए जो विद्या इस्तेमाल की जाती है वह हर बच्चे के शारीरिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग होती हैं इसलिए परीक्षण के समय पर हमें अपने बच्चे के साथ दूसरे विधि का इस्तेमाल करते हुए देखकर तनाव ग्रस्त नहीं होना चाहिए।
सामान्य तौर पर डॉक्टर से हमने निम्न समस्याओं के बारे में सलाह ले सकते हैं
- बढ़ती उम्र के अनुसार बच्चे के स्तनपान निद्रा बच्चे का विकास और बच्चे की सुरक्षा आदि के बारे में डॉक्टर से सलाह ली जा सकती है.
- अगर डॉक्टर ने पहले से उन प्रश्नों का जवाब नहीं दिया है, जो आप उनसे पूछना चाहते हैं जैसे बच्चे को कौन सा नया खाद्य पदार्थ दे सकते हैं मछली अंडा मीट आदि बच्चों को कब देना चाहिए और बच्चे को बोतल से दूध पिलाने की आदत कब डालनी चाहिए या कब तक स्तनपान कराना चाहिए तो आप उनकी सलाह ले सकते है। .
मुझे किन बातों की जानकारी होनी चाहिए?
यहां कुछ चीजें हैं जिन्हें आपको जानना चाहिए जैसे;
दांत न होना:
साधारण तौर पर शिशु के दांत सातवें महीने से आने शुरू हो जाते हैं किंतु बहुत से बच्चों को 9 महीने यहां तक कि 1 साल पूरा हो जाने के बाद दांत आने शुरू होते हैं इसलिए हमें इस विषय पर ज्यादा तनाव ग्रस्त नहीं होना चाहिए क्योंकि बच्चे के दांत देर से आना भी वंशानुगत होता है लेकिन दांत देर से आने के कारण, शिशु के विकास में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती और बच्चा बिना दांत के भी हर प्रकार के चंकी फूट खा सकते हैं और आराम से मसूड़ों से उन्हें चबा भी सकते हैं इसलिए आप बच्चों के दाँत के लिए तनाव ग्रस्त ना क्योंकि समय के अनुसार बच्चों के दाँत आ जाते हैं इसलिए अपने स्वस्थ शिशु की बिना दांत वाली मुस्कुराहट का तनाव रहित होकर मजा उठाएं।
बालों का न होना:
दातों के नहीं होने की तरह ही इस उम्र में बालों का ना होना भी कोई बड़ी बात नहीं है और ना ही स्थाई है बालों का नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि आपके बच्चे के बाल कम होंगे या जब वह बड़ा हो जाएगा तो वह गंजा होगा समय के साथ बच्चे के बाल आ जाते हैं|
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महत्वपूर्ण बातें
हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
नौवें महीने के आखिरी सप्ताह में ध्यान रखने के लिए बहुत सी चीजें होती हैं जैसे:
खाने के समय को आसान बनाना:
खाने के समय को एक अच्छा समय बना लेना चाहिए, हमें अपने बच्चों को अनुमति देनी चाहिए कि वह खानों के प्रति अपनी पसंद हमारे सामने जाहिर कर सके, उनको खाना ज़बरदस्ती खत्म करने के लिए दबाव नहीं डालना चाहिए ना ही हर समय हर चीज के सैंपल उन्हें खिलाने चाहिए बच्चे को एक ऊंची कुर्सी पर बैठा कर खिलाना चाहिए जो टीवी की तरफ ना हो और घर के पालतू जानवर बच्चे के पास ना हो, खाना खिलाते समय बच्चे पर बहुत ज्यादा ध्यान देना चाहिए और खाने में कुछ मस्ती भी जोड़नी चाहिए, जैसे कि उनसे बात की जाए कि वे उंगली से किस तरह से खाना खा रहे हैं और उनकी ट्रे में अभी कितने पीस बचे हैं, इन बातों से वस्तुओं को पहचानने और बात करने की कला का भी विकास भी होता है..
आपका बच्चा वे सब खा सकता है जो आपके बाकी परिवार के लोग खाते हैं आप उनके खाने को छोटे और सुरक्षित टुकड़ों में बांट सकते हैं या फिर उनको मैश कर सकते हैं अगर उनमें ऐसी चीज़े नहीं है जिनके द्वारा बच्चे को एलर्जी हो सकती है, हमें बच्चे को बहुत ज्यादा गर्म खाना देना भी अवॉइड करना चाहिए क्योंकि वह अपना मुंह जला सकते हैं, बच्चा हर तरह के स्वाद को एन्जॉय करना पसंद कर सकते हैं, और आपका छोटा बच्चा ज्यादातर उन चीजों में बहुत इंटरेस्टेड हो सकता है जो चीजें आप खाते हैं.
अगर आप बाहर खाने का निर्णय लेते हैं तो यह बहुत जरूरी है कि आप ऐसा रेस्टोरेंट चुने जहां पर बच्चों का खाना मिलता हो बहुत से रेस्टोरेंट जहां पर फैमिली खाना खाने आती है वह ऊंची कुर्सियां और खिलौने अपने पास तैयार रखते हैं, लेकिन अगर आप समझते हैं कि आपका बच्चा शोर-शराबे वाले पर्यावरण में परेशान हो जाता है तो आपको बहुत सोच समझ कर इन सारी बातों को ध्यान में रखकर रेस्टोरेंट का चुनाव करना चाहिए
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