डीवर्मिंग (Deworming) एक प्रोसेस है, जिसके तहत वर्म (Worms) या कृमि को मारने का काम किया जाता है। कृमि शरीर में संक्रमण (Infection) फैलाने का काम करते हैं। बच्चों में कृमि का संक्रमण अधिक फैलता है। यानी 18 साल से कम लोगों में कृमि के कारण अधिक संक्रमण की समस्या होती है। इससे छुटकारा पाने के लिए हर साल डीवर्मिंग एक्सरसाइज (Deworming exercise) या प्रोसेस की जाती है। इस दौरान बच्चों को मेडिसिन्स दी जाती हैं ताकि कृमि को मारा जा सके। डीवर्मिंग के दौरान फोलिक एसिड टेबलेट्स (Folic acid tablets) और आयरन (Iron) की गोलियों का वितरण भी किया जाता है। नेशनल डीवर्मिंग (National Deworming) हर साल 10 फरवरी को मनाया जाता है। आज हम आपको डिवार्मिंग की जानकारी, डिवर्मिंग से होने वाले दुष्प्रभाव आदि के बारे में जानकारी देंगे।
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क्यों मनाया जाता है नेशनल डीवर्मिंग डे (National deworming day)?
नेशनल डीवर्मिंग डे हर साल 10 फरवरी को पूरे देश में मनाया जाता है। ये एक ऐसा दिन है, जिसमें सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों को इंटेस्टाइनल वर्म से छुटकारे के लिए ट्रीटमेंट (Treatment for intestinal worms) दिया जाता है। बच्चों को देखकर ये बता पाना मुश्किल हैं कि वो कृमि से संक्रमित है या फिर नहीं। कृमि के संक्रमण से बचाने के लिए सभी बच्चों को मेडिसिन्स दी जाती है। डीवर्मिंग से एनीमिया (Anemia) को रोकने में मदद मिलती है। दवाओं का सेवन करने से किसी भी तरह की समस्या नहीं होती है। नेशनल डीवर्मिंग डे का उद्देश्य बच्चों को कृमि के संक्रमण (Infection) से बचाना है।
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जानिए डीवर्मिंग (Deworming) की प्रक्रिया
कृमि संक्रमण का डायग्नोज करने में अधिक समय लगता है, इसलिए सभी बच्चों को दवा का सेवन करने की सलाह दी जाती है। बच्चों को एल्बेंडाजोल (Albendazole) दवा दी जाती है, जो आंतों के संक्रमण का सुरक्षित उपचार है। ये दवा दो साल के बच्चे से लेकर 19 साल तक के एडल्ट्स को दी जाती है। दो वर्ष की आयु से अधिक के बच्चे को 400 मिलीग्राम एल्बेंडाजोल की खुराक दी जाती है,वहीं दो वर्ष से कम के बच्चों को 200 मिलीग्राम एल्बेंडाजोल की खुराक दी जाती है। छोटे बच्चों को पानी में दवा घोल कर दी जाती है। जिन बच्चों को कृमि संक्रमण होता है, उन्हें उल्टी (Vomiting) या बेचैनी की समस्या हो सकती है। दवा के सेवन से बच्चों या वयस्कों में मामुली साइड इफेक्ट देखने को मिल सकते हैं, जो कि शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
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कृमि संक्रमण या वार्म इन्फेक्शन कैसे फैलता है?
वर्तमान समय में लोगों की खाने की आदतों में बहुत से बदलाव हुए हैं। जहां पहले लोग ज्यादातर घर का खाना ही खाते थे, अब बाहर का खाना मानों जरूरत बन गई हो। इस कारण से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं (Health problems) अधिक बढ़ गई हैं। वार्म विषैले खाने के साथ शरीर में प्रवेश कर जाता है और डायजेस्टिव सिस्टम (Digestive system) को खराब करने का काम करता है। डीवर्मिंग की प्रक्रिया न पता होने के कारण लोगों को कृमि के संक्रमण से जल्द छुटकारा नहीं मिल पाता है। वैसे तो कृमि संक्रमण वयस्कों की अपेक्षा बच्चों में अधिक देखने को मिलता है लेकिन लाइस्टाइल में बदलाव के कारण अब ये सब लोगों में आम हो चुका है। कृमि संक्रमण के कारण भारत में बच्चों की मृत्यु दर में इजाफा हुआ है। बिना पके मीट को खाने से भी कृमि संक्रमण हो सकता है।
टेपवर्म (Tapeworm), राउंडवॉर्म (Roundworm) और हुकवर्म (Hookworms) मुख्य कृमि हैं, जो पेट की दीवार को संक्रमित करने का काम करते हैं। ये शरीर में भोजन के माध्यम से पहुंचते हैं और मनुष्य के शरीर से पोषण लेना शुरू कर देते हैं। धीरे-धीरे कृमि या वार्म फेफड़े, मस्तिष्क, आंखों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं। जानिए कृमि संक्रमण के दौरान कौन से लक्षण दिखाई देते हैं।
- बुखार (Fever)
- भूख में कमी
- वजन कम होना (Weight loss)
- एनीमिया (Anemia)
- लूज स्टूल
- वॉमिटिंग
- खांसी की समस्या
भले ही कृमि संक्रमण के लक्षण वयस्कों से अधिक बच्चों में देखने को मिलते हो लेकिन डीवर्मिंग की प्रक्रिया वयस्कों के साथ भी अपनाई जाने की जरूरत है। जो लोग खराब सीवेज, पूअर फूड सेनिटाइजेशन या कम पानी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, उन्हें कृमि संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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कृमि संक्रमण के कारण क्या हैं? (Cause of worm infestation)
कृमि संक्रमण के लिए एक नहीं बल्कि कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। जानिए किन कारणों से वर्म इन्फेक्शन (Worm infestation) फैलता है।
- पालतू जानवर के चाटने से
- नंगे पांव घर में या बाहर जाना
- अनट्रीटेड स्वीमिंग पूल से
- भोजन से पहले या भोजन के बाद या खाना बनाने से पहले हाथ नहीं धोना
- दूषित पानी पीने से
- कम पका हुआ मांस खाना
- खाने या फिर लिक्विड के माध्यम से वर्म का लार्वा, एग या सिस्ट शरीर में पहुंचना
अगर दिए गए कारणों पर ध्यान दिया जाए, तो काफी हद तक कृमि संक्रमण से बचा जा सकता है। खाना पकाने और खाने के दौरान विशेष हाइजीन की जरूरत होती है वरना आपको संक्रमण हो सकता है।
डीवर्मिंग के साथ ही इन बातों का रखें ध्यान
- अगर आपको कृमि संक्रमण से बचना है, तो घर में सब्जियां या फल लाने के बाद उन्हें अच्छे से धुलें और फिर खाएं।
- आपको रोजान अपने हाथों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए वरना आपका खाना दूषित भी हो सकता है।
- रोजाना ट्वाइलेट, बेडरूम और लॉन्ड्री की सफाई करें।
- कपड़े, टॉवेल और बिस्तर की चादर को हमेशा साफ रखें।
- डीवर्मिंग के दौरान एल्बेंडाजोल का डोज भले ही आंतों में कृमि को खत्म कर देता हो लेकिन कृमि के प्रकार के अनुसार ही उपचार की जरूरत होती है।
- अगर आपको संक्रमण के लक्षण दिखाई दे रहे हों, तो आप स्टूल टेस्ट करा सकते हैं। इससे कृमि के बारे में डॉक्टर को आवश्यक जानकारी मिल जाती है।
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जानिए कृमि संक्रमण से जुड़े मिथ और फैक्ट के बारे में
कृमि संक्रमण से बचाव के लिए डीवर्मिंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो बच्चों और वयस्कों के लिए जरूरी है। कुछ लोगों के मन में कृमि को लेकर बहुत से सवाल और साथ ही कुछ मिथ भी हैं, जो उन्हें परेशान कर सकते हैं। आइए जानते हैं कृमि संक्रमण से जुड़े मिथ और फैक्ट के बारें में।
मिथ – जो लोग नॉनवेजीटेरियन होते हैं, उन्हें ही वर्म इन्फेक्शन होता है।
फैक्ट – ऐसा नहीं है। कृमि संक्रमण राउंडवॉर्म, फ्लूक्स (Flukes) और टेपवर्म के कारण होता है। इन कृमियों के अंडे सब्जियों और फलों में भी पाएं जाते हैं। खुले में जहां लोग शौच करते हैं, अगर वहां सब्जियां उगाई जाती हैं, तो कृमि का उनमें अधिक खतरा रहता है। नॉन वेजीटेरियन और वेजीटेरियन, दोनों में ही कृमि हो सकते हैं।
मिथ – आर्थिक रूप से कमजोर और गंदे स्थान में रहने वाले लोगों में कृमि संक्रमण की अधिक संभावना रहती है।
फैक्ट – कृमि संक्रमण कच्चा सलाद खाने से, सब्जियां, फल या मीट खाने से फैल सकता है। यानी ये किसी भी व्यक्ति को हो सकता है। सार्वजनिक स्थानों पर भोजन करने से बचना चाहिए और साथ ही अपने आसपास हाइजीन का पूरा ख्याल रखना चाहिए।
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मिथ – मसालेदार भोजन कीड़े या कृमि को मारने का काम करता है।
फैक्ट – ये बात बिल्कुल गलत है। कृमि मसालेदार भोजन के कारण नहीं मरता है। डीवर्मिंग की प्रक्रिया से ही कृमि को खत्म किया जा सकता है।
मिथ – वर्म केवल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक को ही नुकसान पहुंचाता है।
फैक्ट – वर्म न केवल छोटी आंत में समस्या पैदा करते हैं बल्कि ये मस्तिष्क, यकृत, फेफड़े और मांसपेशियों को भी संक्रमित कर सकते हैं। हुकवर्म त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है और संक्रमण फैलाता है। साफ-सफाई, हैंडवाशिंग ऐसे संक्रमण से बचाने का काम कर सकती है।
डीवर्मिंग की प्रक्रिया क्यों जरूरी होती है, हम उम्मीद करते हैं कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से पता चल गया होगा। बेहतर होगा कि आप इस विषय के बारे में डॉक्टर से जानकारी प्राप्त करें। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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