थायरॉइड (Thyroid) हमारे शरीर की महत्वपूर्ण ग्लैंड या ग्रंथि होती है। जब थायरॉइड ग्लैंड (Thyroid gland) सही से कार्य नहीं करती है, तो थायरॉइड डिजीज हो जाती है। थायरॉइड की समस्या पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक पायी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि थायरॉइड की समस्या बच्चों को भी हो सकती है ? थायरॉइड की बीमारी किसी को भी हो सकती है। यहां तक कि ये बीमारी न्यूबॉर्न बेबी को भी हो सकती है। बच्चों में ये बीमारी फैमिली हिस्ट्री के कारण भी हो सकती है। बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी पर अगर ध्यान न दिया जाए तो ये बड़ी समस्या बन सकती है।
नवजात बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) की समस्या से उनके विकास में बाधा उत्पन्न होने के साथ-साथ कई मनोविकार भी जन्म ले लेते हैं। कई बार जन्म के दौरान हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इनके लक्षण और इसके खतरे बच्चे की उम्र पर निर्भर करते हैं। खासतौर से इस बात पर कि बच्चे की थायरॉइड (Thyroid) ग्रंथि किस प्रकार कार्य कर रही है। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism in children) की समस्या होने पर क्या लक्षण दिखाई देते हैं और क्या उपाय अपनाकर इस समस्या से कंट्रोल किया जा सकता है।
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बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism in child) कितना सामान्य है?
हाइपोथायरायडिज्म बच्चों में अक्सर पाया जाता है। हालांकि, ये किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है चाहे बच्चे हों, नवजात या वयस्क। हाइपोथायरायडिज्म होने का मुख्य कारण हाशिमोटो थायरोडिटिस (Hashimoto’s disease) है। थायरॉइड ग्लैंड में स्वैलिंग होने को थायरॉइडिटिस (Thyroiditis) कहा जाता है। ये एक तरह का ऑटोइम्यून डिसऑर्डर होता है जो एंटीबॉडी का प्रोडक्शन कर ग्लैंड को नुकसान पहुंचाने का काम करता है। ऐसी स्थिति में थायरॉइड ग्लैंड नष्ट भी हो सकती है।
इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टरी परामर्श जरूर लें। थायरॉइड ग्लैंड या थायरॉइड ग्रंथि एंडोक्राइन ग्लैंड है गर्दन के लोअर फ्रंट यानी निचले हिस्से में स्थित होती है।थायरॉइड ग्लैंड हार्मोन बनाने का काम करती है। हार्मोन ब्लड के माध्यम से टिशू यानी ऊतक में जाता है। बच्चों के विकास के लिए थायरॉइड हार्मोन बहुत जरूरी है। अगर नवजात शिशु को थायरॉइड डिजीज हो जाती है तो उसका विकास भी प्रभावित हो सकता है। बॉडी की एनर्जी, मेटाबॉलिज्म की प्रोसेस , हार्ट, मसल्स और अन्य ऑर्गन के ठीक तरह से काम करने के लिए थायरॉइड ग्लैंड महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Hypothyroidism in child)
हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन बच्चों में इसके लक्षण भिन्न हो सकते हैं। नवाजात बच्चों में जन्म के पहले हफ्ते से लेकर कुछ महीने बाद तक भी लक्षण नजर आ सकते हैं। कई बार ये लक्षण इतने साधारण होते हैं कि डॉक्टर्स और माता-पित से इनकी अनदेखी हो जाती है।
ये लक्षण नजर आ सकते हैं :
- बच्चों की स्किन आंख के सफेद भाग का पीला पड़ना
- कब्ज की समस्या
- बच्चे का दूध नहीं पीना
- बच्चे की स्किन ठंडी पड़ना
- बच्चे का रोना कम हो जाना
- तेज सांस लेना
- बार-बार सोना और हाथ-पैर कम हिलाना
- सिर के कुछ हिस्सों में स्पॉट आना
- जबान सामान्य से बड़ी नजर आना
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यंग बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म लक्षण क्या हैं ?
यंग बच्चों में भी हाइपोथायरायडिज्म के निम्न लक्षण दिखाई दे सकतें हैं :
- सामान्य से कम हाइट
- सामान्य से छोटे हाथ और पैर
- दांतों का देर से आना
- धीमा दिमागी विकास
- दिल की धड़कन सामान्स से धीमी
- कमजोर या सामान्य से कम बाल
वयस्कों के निम्न लक्षण बच्चों में भी नजर आ सकते हैं :
- थकावट की समस्या
- कब्ज की समस्या
- रूखी त्वचा
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टीनेजर्स/किशोरों में लक्षण :
किशारों(teenagers) में हाइपोथायरायडिज्म लड़कों के मुकाबले लड़कियों को ज्यादा होता है। ये सामान्यत: आटोइम्यून डिसीज हैशीमोटो (Hashimoto’s disease) की वजह से होता है। जिन किशोरों के परिवार में कोई सदस्य ऐसी बीमारी से पीड़ित रहा हो उनमें भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। किशोरों में वयस्कों की तरह लक्षण दिखाई दे सकते हैं पर इन्हें पहचान पाना मुश्किल होता है। हाइपोथायरायडिज्म पीड़ित किशोरों में निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं-
- वजन बढ़ना
- विकास धीमा होना
- हाइट कम रह जाना
- उम्र से ज्यादा यंग दिखना
- वक्षस्थल/ब्रेस्ट का धीमा विकास
- पीरियड्स देर से शुरू होना
- पीरियड्स में अत्यधिक रक्तस्त्राव
- लड़कों में टेस्टिकल्स/अंडकोषों का बड़ा होना
- रूखी त्वचा की समस्या
- कब्ज
- रूखी त्वचा की समस्या
- रूखी त्वचा की समस्या
- मांसपेशियों में जकड़न और दर्द
इसके अलावा किशारों में ये अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं
- मूड और व्यवहार संबंधी बदलाव
- स्कूल में खराब प्रदर्शन
- डिप्रेशन/अवसाद
- एकाग्रता की कमी
उपरोक्त के अलावा भी कई लक्षण नजर आ सकते हैं। अगर आपको कोई परेशानी है तो अपने डॉक्टर की मदद लेना न भूलें।
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कब दिखाएं डॉक्टर को?
अगर आपके बच्चे में उपरोक्त में से कोई भी लक्षण नजर आते हैं तो डॉक्टर को तत्काल दिखाएं। कई बार बीमारियों के लक्षण हर व्यक्ति में भिन्न नजर आते हैं। ऐसे में चिकित्सा परामर्श लेना सबसे बेहतर है।
क्या हैं बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) के कारण?
बच्चों में हायपोथायरोज्म का सबसे प्रमुख कारण अनुवांशिक होता है। इसके अलावा निम्न कारण हो सकते हैं-
बच्चे की डाइट में आयोडीन की कमी
जिन बच्चों को अयोडीन सही मात्रा में नहीं मिल पाता है, उन बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism)की समस्या हो सकती है। आयोडीन की कम मात्रा थायरॉइड ग्लैंड के कार्य को प्रभावित करती है।
खराब थायरॉइड ग्रंथि के साथ या उसके बिना पैदा होना
थायरॉइड ग्रंथि के सही से कार्य न कर पाने के कई कारण हो सकते हैं। कुछ बच्चे जन्म से ही खराब थायरॉइड ग्रंथि के साथ पैदा होते हैं। ऐसे बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism)की समस्या हो सकती है। वहीं कुछ बच्चे बिना थायरॉइड ग्रंथि के ही पैदा होते हैं, जिसके कारण उन्हें अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
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गर्भावस्था के दौरान मां के थायरॉइड का सही इलाज न होना
गर्भावस्था या प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का थायरॉइड चेकअप होता है और डॉक्टर जरूरत पड़ने पर थायरॉइड का इलाज भी करते हैं। जिन महिलाओं का प्रेग्नेंसी के दौरान थायरॉइड का सही से चेकअप नहीं हो पाता है, उनके बच्चों को हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) की समस्या से गुजरना पड़ सकता है।
पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland) का असामान्य व्यवहार
पीयूष ग्रंथि को मास्टर ग्लैंड भी कहा जाता है। ये शरीर की अन्य ग्रंथियों को निंयत्रण में रखती है। जब पीयूष ग्रंथि सही से काम नहीं करती है तो थायरॉइड ग्लैंड का कार्य भी प्रभावित होता है। इस कारण से बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म (hypothyroidism) की समस्या हो सकती है।
थायरॉइड सर्जरी (Thyroid surgery) के कारण हाइपोथायरायडिज्म
थायरॉइड को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी के कारण भी हाइपोथायरायडिज्म की समस्या हो सकती है। अगर थायरॉइड का केवल हिस्सा हटाया जाए तो भी बची हुई ग्रंथि शरीर की जरूरतों के लिए पर्याप्त हॉर्मोन का प्रोडक्शन कर सकती है लेकिन ये बात सर्जरी पर निर्भर करती है कि ग्रंथि का कितना हिस्सा हटाया गया है।
किन बच्चों में ज्यादा होता है हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) का खतरा?
जिन बच्चों को माता-पिता, दादा-दादी या भाई बहन को हायपोथारोडिज्म हो और जिनके परिवार के किसी सदस्या को रोगप्रतिरोधक क्षमता संबंधी बीमारो हो उन्हें इसका ज्यादा खतरा होता है।
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बच्चों में कैसे पता चलता है हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) का?
बच्चे की उम्र और बाकी कारकों के आधार पर डॉक्टर बच्चे का उपचार करते हैं। सामान्य तौर पर फिजिकल टेस्ट, ब्लड टेस्ट (Blood test) और हार्मोन टेस्ट से इसका पता लगा लिया जाता है। हर 4 हजार में से 1 बच्चे में ये समस्या पाई जाती है। अगर थायरॉइड ग्रंथि बढ़ गई है तो इसके गोइटर (goiter) या घेंघा कहते हैं जिसे गर्दन पर साफ देखा जा सकता है।
बच्चों में कैसे होता है हाइपोथायरायडिज्म (hypothyroidism) का इलाज?
हाइपोथायरायडिज्म के कई इलाज संभव हैं। सबसे थायरॉइड हार्मोन थेरेपी की जाती है जिसमें लीवथायरॉक्सिन (Levothyroxin) नामक दवाई दी जाती है। वहीं नवजात बच्चों में पहले एक महीने तक इसका इलाज आसान है। हालांकि, अगर जन्म के बाद इसका इलाज नहीं किया गया तो यह गंभीर समस्या पैदा करता है। इससे बच्चे के विकास में बाधा और कई विकार उत्पन्न होने लगते हैं।
बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म के इलाज के नेचुरल तरीके
बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म का इलाज करने के लिए आप कुछ नेचुरल तरीके भी आजमा सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले बच्चे के खान-पान और लाइफस्टाइल को बदलने की जरूरत हो सकती है।
शुगर और कैफीन को बच्चों की डायट से बाहर करें
बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म की समस्या में शुगर और कैफीन को उनकी डायट में कम कर दें। इसके अलावा कार्बोहाइड्रेट को भी उनकी डायट में संतुलित करने की जरूरत होती है। इसके अलावा बच्चों को ऐसी सब्जियां खिलाएं, जिनमें स्टार्च कम होता है।
प्रोटीन को बच्चों की डायट में शामिल करें
प्रोटीन बॉडी के सभी पार्ट्स में थायरॉइड हॉर्मोन का सर्कुलेट करता है। डेली डायट में प्रोटीन को शामिल करके बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म की समस्या से छुटाकारा पाया जा सकता है। नट्स में काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसके अलावा मीट, अंडे, मछली, फलियां और सब्जियों में भी काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। ऐसे में बच्चों में हायपोथायरॉइड की समस्या में इन फूड आयटम्स को उनके भोजन में शामिल करने की जरूरत होती है।
आयोडीन
माना जाता है कि आयोडीन की कमी से भी थायरॉइड होता है। सी वेजिटेबल्स और सी फ़ूड आयोडीन के मुख्य स्त्रोत हैं। अंडे, शतावरी, मशरूम, पालक, तिल के बीज, और लहसुन से भी आयोडीन प्राप्त होता है।
हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) की समस्या कुछ लोगों में परमानेंट रहती है वहीं कुछ लोगों में ये समय के साथ ही ठीक भी हो जाती है। अगर हाइपोथायरायडिज्म का ट्रीटमेंट कराया जाए तो ये कंट्रोल रहती है। जिन लोगों में सर्जिकल रिमूवल या फिर रेडिएशन ट्रीटमेंट के कारण हाइपोथायरायडिज्म की समस्या होती है, वो परमानेंट यानी लाइफटाइम रहती है। मेडिकेशन या फिर आयोडीन के कारण होने वाली हाइपोथायरायडिज्म की समस्या इलाज के बाद ठीक होने की संभावना रहती है। लिवोथायरोक्सिन की डोज चाइल्डहुड में और फिर किशोरावस्था में बदल सकती है। ऐसा ग्रोथ, मेटाबॉलिज्म में चेंज या फिर थायराइड के कार्य में होने वाले बदलाव के कारण बदल सकती है। इस डिजीज को नियंत्रण में करने के लिए डॉक्टर रोज खाली पेट दवा लेने की सलाह दे सकते हैं। साथ ही लाइफस्टाइल में चेंज भी बीमारी से राहत दिला सकती है। आपको इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करना चाहिए।
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अगर आपको अपनी समस्या को लेकर कोई सवाल हैं, तो कृपया अपने डॉक्टर से परामर्श लेना ना भूलें। हम आशा करते हैं कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बच्चों में हाइपोथायरायडिज्म की समस्या के बारे में जानकारी मिली होगी। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।
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