इनोसेंट बच्चे अगर घर या फिर बाहर रहते हुए वायलेंस का शिकार होते हैं तो वो किसी से कुछ कह नहीं पाते हैं। पारिवारिक कलह या फिर वायलेंस के कारण बच्चों का मन कुंठित हो जाता है। इन्हीं कारणों की वजह से बच्चों के व्यवहार में भी धीरे-धीरे बदलाव आने लगता है। बच्चों को सही और गलत के बारे में जानकारी नहीं होती है, इसी कारण से बच्चे ऐसा कदम भी उठा सकते हैं, जो आगे चलकर बड़ी घटना में तब्दील हो सकता है। अगर घर के बाहर बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है तो इस बात की जिम्मेदार माता-पिता होते हैं। कई बच्चों में आदत होती है कि वो माता-पिता के डर की वजह से उन्हें अपने साथ हो रहे गलत व्यवहार के बारे में जानकारी नहीं देते हैं। इसलिए घर में बच्चों के सामने कभी भी ऐसा व्यवहार ना करें जो उनकी मानसिक स्थिति को प्रभावित करें और उनके व्यवहार में बदलाव का कारण बनें।
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घर में ही हिंसा का शिकार हो जाते हैं इनोसेंट बच्चे (Children become victims of violence at home)
सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते हैं। कुछ बच्चे एक बार में बात मान जाते हैं, कुछ बच्चों को अलग ढंग से समझाना पड़ता है। अगर आए दिन खबरों पर विश्वास किया जाए तो बच्चों के साथ घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है। अगर घर में महिला के साथ घरेलू हिंसा होती है तो कई बार इनोसेंट बच्चे भी एब्यूज (Abuse) का शिकार बन जाते हैं। बच्चों को कभी भी मारें नहीं। अगर वे जिद कर रहे हैं तो किसी दूसरे तरीके से उन्हें अपनी बात समझाएं। ऐसा नहीं है कि बच्चों में लड़कियां ही फिजिकल, सेक्शुअल और इमोशनल एब्यूज का सामना करती हैं, बल्कि लड़कों के साथ ही ऐसी घटनाएं होती हैं। ये बात सच हैं कि लड़कियों को सेक्शुअल एब्यूज का ज्यादा सामना करना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में सिखाएं। उन्हें किसी अंजान व्यक्ति के साथ कहीं ना भेजें। जिन लोगों पर आप पूरा भरोसा करते हैं उनके साथ भी बच्चों को अकेला छोड़ने से पहले एक बार जरूर सोचें। क्योंकि अगर ऐसे मामलों में जान पहचान वाले लोग की गुनेहगार पाए जाते हैं।
वायलेंस का शिकार बच्चे: नहीं दर्ज किए जाते हैं मामलें
ऐसा नहीं है कि बच्चों के साथ होने वाली हिंसा या फिर यौन हिंसा के लिए कानून नहीं बनाया गया हो, लेकिन फिर भी ऐसे मामलें तेजी से बढ़ रहे हैं। साल 2012 में बच्चों के साथ होनी वाली यौन हिंसा को रोकने के लिए पास्को (POCSO) कानून बनाया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि कानून बनने के करीब दो साल बाद पहला मामला दर्ज किया गया था। यानी बच्चों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में कम ही लोग बात करना चाहते हैं और बच्चों की सुरक्षा के लिए आगे बढ़ते हैं। ऐसे कई मामलें सामने आए हैं जिनमे रिश्तोदारों ने ही बच्चे के साथ गलत व्यवहार किया होता है और वो मामला न दर्ज करवाने पर दबाव डालते हैं।