पाइलोरिक स्टेनोसिस तब होता है, जब स्फिंक्टर की मांसपेशी असामान्य रूप से बड़ी या मोटी हो जाती है। जिस कारण पेट से सामान्य प्रवाह प्रतिबंधित हो जाता है। यह रोग ज्यादातर नवजात बच्चों में देखने को मिलता है। इसे बेबी हाइपरट्रॉफिक पाइलोरिक स्टेनोसिस कहा जाता है। यह खाने के बाद गंभीर उल्टी जैसे लक्षणों का कारण बनता है और कई बार उल्टी में रक्त के निशान भी हो सकते हैं। इसमें बच्चे का वजन कम होने लगता है और बच्चा कुपोषण के कारण लगातार भूख लगना और डिहायड्रेशन जैसे लक्षण भी नजर आने लगते हैं। पाइलोरिक स्टेनोसिस का कारण अभी भी अज्ञात है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यह जेनेटिक भी हो सकता है। जिन माता-पिता को बचपन में यह बीमारी थी, उनके बच्चों में इसके होने का जोखिम (20%) अधिक होता है। वर्तमान में, बढ़ी हुई मांसपेशियों के प्रभावों को उलटने के लिए सर्जरी ही एकमात्र विकल्प है। वयस्कों को भी इस बीमारी का खतरा होता है लेकिन संकुचन आमतौर पर कैंसर, वृद्धि, सूजन या अल्सर से होने का कारण बन सकता है।
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पाइलोरोस्पाज्म (Pylorospasm)
पाइलोरोस्पाज्म तब होता है जब स्फिंक्टर के मांसपेशी फाइबर समय से पहले सिकुड़ जाते हैं और सूजन पैदा करने और पाचन प्रक्रिया को आगे ले जाने में विफल हो जाते हैं। इससे डयूोडेनल में काइम के प्रवाह में रुकावट आती है और पेट अत्यधिक भरा महसूस हो सकता है। जिससे खाने के बाद उल्टी और दर्द जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं। इस विकार का इलाज मांसपेशियों को आराम देने वाली दवाओं से किया जा सकता है।
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पाइलोरिक स्फिंक्टर के बारे में आपने जाना यहां। इसका इलाज आपके कारण और लक्षणों पर निर्भर करता है। इसके लिए डॉक्टर आपका कुछ जरूरी ब्लड टेस्ट, स्टूल टेस्ट और जरूरत होने पर पेट का इमैजिंग स्कैन भी करवा सकते हैं। फिर आपकी रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर आपको मेडिकेशन की सलाह देंगे। जिन मामलों में सर्जरी की जरूरत है, डॉक्टर वो बताएंगे। पाइलोरिक स्फिंक्टर के इलाज के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।