- ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) ट्रीटमेंट
- एंटीकोआगुलंट्स (Anticoagulants)
- एसएसआरआई (Selective serotonin reuptake inhibitors)
- कीमोथेरिपी (Chemotherapy)
नोट: अगर आप ऊपर बताई गई ट्रीटमेंट ले रहें हैं, तो घबराएं नहीं, क्योंकि इन दवाओं का साइड इफेक्ट्स ना हो इसके लिए भी मेडिसिन प्रिस्क्राइब करते हैं। लेकिन ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का ठीक तरह से पालन करें।
गैस्ट्रिक और डुओडेनल अल्सर ऊपर बताये स्थितियों के अलावा निम्नलिखित स्थितियों में होने की संभावना ज्यादा होती है। जैसे:
- 70 वर्ष की आयु या इससे ज्यादा उम्र होना
- एल्कोहॉल का सेवन करना
- स्मोकिंग करना
- पेप्टिक अल्सर पहले कभी हुआ हो
- गंभीर चोट लगना या शारीरिक आघात होना
- अत्यधिक तेल मसाले वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना
इन स्थितियों में गैस्ट्रिक और डुओडेनल अल्सर की संभावना ज्यादा बढ़ सकती है।
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गैस्ट्रिक और डुओडेनल अल्सर का निदान कैसे किया जाता है?
अल्सर का निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले आपका मेडिकल हिस्ट्री जानना चाहेंगे। अगर आपको कोई बीमारी है या पहले हो चुकी है, तो उस बारे में जरूर बताएं। इसके साथ ही अपनी शारीरिक तकलीफ डॉक्टर से शेयर करें। अगर आप किसी तरह की दवाओं का सेवन करते हैं या पहले कर चुके हैं, तो उसकी जानकारी भी डॉक्टर को जरूर दें। डॉक्टर पेशेंट की मेडिकल हिस्ट्री समझने के बाद निम्नलिखित टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। इन टेस्ट में शामिल है:
- ब्लड टेस्ट (Blood test)- ब्लड टेस्ट से बॉडी में फैले इंफेक्शन की जानकारी मिलती है।
- स्टूल एंटीजेन टेस्ट (Stool antigen test)- इस टेस्ट के दौरान स्टूल में मौजूद अलग तरह की प्रोटीन की जांच की जाती है।
- यूरिया ब्रेथ टेस्ट (Urea breath test)- इस टेस्ट के दौरान कार्बन डाईऑक्साइड की जानकारी ली जाती है। दरअसल पाइलोरी एक तरह का एंजाइम बनाता है, जिसे यूरेएस (Urease) कहते हैं। यही यूरेएस यूरिया को तोड़ कर अमोनिया एवं कार्बन डाईऑक्साइड बनाता है। टेस्ट के दौरान पेशेंट को निगलने के लिए एक टैबलेट दी जाती है, जिससे कार्बन डाईऑक्साइड के लेवल की जानकारी मिलती है।
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इन टेस्ट के अलावा अन्य टेस्ट की भी सलाह दी जा सकती है। जैसे:
एसोफागोगैस्ट्रोडुओडेनोस्कॉपी (Esophagogastroduodenoscopy (EGD))
कैमरे की मदद से मुंह लाइट भेजी जाती है, जिससे खाने की नली, पेट और स्मॉल इंटेस्टाइन को देखा जा सके। इससे अल्सर (छाले) की जानकारी मिलती है। आवश्यकता पड़ने पर बायोप्सी के लिए टिशू भी ली जा सकती है।
अपर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सीरीज (Upper gastrointestinal series)
इस टेस्ट के दौरान पेशेंट को लिक्विड पिलाई जाती है, जिसे बेरियम स्वालो (barium swallow) या अपर जीआई सीरीज (upper GI series) भी कहते हैं। इससे एक्स-रे (X-Rays) के दौरान खाने की नली, पेट और स्मॉल इंटेस्टाइन का परिक्षण करते हैं।
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गैस्ट्रिक और डुओडेनल अल्सर का इलाज कैसे किया जाता है?
- गैस्ट्रिक और डुओडेनल अल्सर का इलाज पेशेंट के कंडिशन पर निर्भर करता है। हेल्थ एक्सपर्ट अल्सर के खतरे को कम करने के लिए हिस्टामाइन रिसेप्टर ब्लॉकर्स (Histamine receptor blockers (H2 blockers)) या प्रोटॉन पंप इन्हिबिटर (Proton pump inhibitors (PPIs)) प्रिस्क्राइब करते हैं, पाचन तंत्र को स्ट्रॉन्ग बनाने में मदद मिलती है।
- हेलिकोबेटर पायलोरी (H. pylori bacteria/Helicobacter pylori) के कारण अल्सर की समस्या शुरू हुई है, तो डॉक्टर प्रोटॉन पंप इन्हिबिटर (Proton pump inhibitors (PPIs)) प्रिस्क्राइब कर सकते हैं।
- नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इन्फ्लामेट्री ड्रग्स (Nonsteroidal anti-inflammatory drugs) के कारण अगर अल्सर (छाले) की समस्या हुई है, तो ऐसी दवाओं का सेवन कम कर दिया जाता है।
- अगर अल्सर की वजह से ब्लीडिंग की समस्या हो रही है, तो आपका डॉक्टर ईजीडी प्रक्रिया से एंडोस्कोप कर ब्लीडिंग को रोकते हैं।
अगर दवा या इंडोस्कोपी से अल्सर की तकलीफ दूर नहीं हो पाती है, तो आपका डॉक्टर सर्जरी करवाने की सलाह दे सकते हैं। बीमारी की गंभीरता को देखते हुए मेडिकेशन या सर्जरी का निर्णय लेते हैं।