महिलाओं के लिए गर्भावस्था का पीरियड (Pregnancy Period) बहुत ही संवेदनशील होता है। इस दौरान मां बनने वाली महिला के मन में खुशी और चिंता दोनों ही भाव दौड़ते हैं। महिला इस वक्त खुद को मानसिक (Mentally) और शारीरिक (Physically) दोनों रूप से स्वस्थ रखने की कोशिश करती है। महिलाओं के लिए नौ महीने का ये पेचीदा समय उनके लाइफस्टाइल को उलट कर देता है। प्रेग्नेंसी के दौरान महिला कई तरह की समस्याओं से जूझती हैं, जिनमें से एक हैं ‘नींद ना आना’ (अनिंद्रा) जिसे अंग्रेजी में इनसोम्निया (Insomnia) कहते हैं। इस आर्टिकल में बात करेंगे गर्भावस्था के तीसरे महीने में इनसोम्निया (Insomnia Problem in Pregnancy trimester) के कारण, लक्षण और प्रभाव बारे में। साथ ही इस समस्या से निपटने के कुछ घरेलू ट्रीटमेंट की भी जानकारी देंगे।
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प्रेग्नेंसी में इनसोम्निया (insomnia in first trimester) आम बात हैं?
गर्भावस्था के दौरान महिला का शरीर सामान्य दिनों से अलग हो जाता है। ऐसे में काम के दौरान वह जल्दी थक जाती हैं, जिससे उन पर शारीरिक और मानसिक दवाब पड़ता है। जब गर्भवती महिला मानसिक रूप से परेशान होती है तों उनकी नींद वाली इंद्रियां सुस्त पड़ जाती हैं, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान नींद न आना एक आम समस्या है। शोध के मुताबिक 78 फीसदी गर्भवती महिला इस समस्या का सामना करती हैं। अब प्रेग्नेंसी में उचित नींद न आने के क्या कारण हैं, इस पर भी चर्चा कर लेते हैं, लेकिन इससे पहले जान लेते हैं कि इसके लक्षण क्या हैं?
प्रेग्नेंसी में इनसोम्निया के लक्षण
- प्रेग्नेंसी के दौरान उचित नींद न आना और नींद के बार-बार टूटने के कई लक्षण हो सकते हैं। आइए पहले इस इस पीरियड में नींद न आने के क्या लक्षण नजर आते हैं पहले इस पर चर्चा करें।
- बेड पर लेटने के बाद भी देर रात तक नींद न आना
- बीच-बीच में नींद का टूटना
- नींद से जागने के बाद भी थकान और सुस्त महसूस होना
- नींद टूटने पर लाख कोशिशों के बाद भी नींद न आना
- सुबह-सुबह ही आंख खुल जाना और फिर पूरे दिन नींद न आना
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प्रेग्नेंसी के ट्राईमेस्टर में नींद न आने के कारण
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से थका हुआ महसूस करने लगती हैं। इस कारण वे चाहकर भी शरीर को आराम नहीं दे पाती हैं। उनके लिए यह समस्या ज्यादा हावी हो जाती हैं, जो पहली बार मां बनने का अनुभव कर रही होती हैं और गर्भावस्था की पहली तिमाही में उन्हें अलग-अलग हलचल होने लगती हैं। आइए जानते हैं इस पीरियड में इनसोम्निया के क्या कारण हैं?
एसिडिटी (Acidity)
एसिडिटी एक आम समस्या है, जो महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान भी भुगतनी पड़ती है। इसमें महिला के सीने में जलन होने लगती है। रात के समय में प्रेग्नेंट महिलाओं को गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (Gastroesophageal Reflux Disease) के कारण सीने मे जलन के कारण नींद नहीं आती है।
बार-बार पेशाब जाना (Urine Problem)
इस पीरियड में बार-बार पेशाब आना भी बड़ी समस्या है, जिसके कारण गर्भवती महिलाओं की नींद में खलल पैदा होती है। इसमें दरअसल, कोख में पल रहे शिशु का भार मूत्राशय और पेल्विक मांसपेशियों पर प्रेशर डालता है। यही कारण है कि इस अवस्था में महिलाओं को बार-बार वॉशरूम का रास्ता पकड़ना पड़ता है। बार-बार पेशाब आना अत्यधिक चिंता और मानसिक तनाव के कारण भी हो सकता है।
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शारीरिक वजन बढ़ना (Weight Gain)
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का पेट बढ़ने से उनका वजन में भी बढ़ोतरी हो जाती है। अब बढ़े हुए पेट से आरामदायक नींद संभव नहीं हो पाती है। इस दौरान महिलाएं एक ही करवट पर लेटे-लेटे ऊब जाती हैं और परेशान होने लगती हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए नींद में करवट लेना आसान नहीं होता हैं, क्योंकि इस दौरान शिशु को कोई हानि न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाता है।
चिंता और तनाव (Depression)
प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने में महिला को एहसास होने लगता है कि उनका वजन सामान्य दिनों से बढ़ता जा रहा है। इस दौरान उन्हें पेट में शिशु की हलचल होने का भी पता चलने लगता है। पहली बार मां बनने जा रही महिलाओं के लिए यह अनुभव नया होता है तो उनको चिंता होने लगती हैं और इस कारण उनपर तनाव भी हावी होने लगता है। साथ ही वे लेबर पेन को सोचकर भी घबराने लगती हैं। यह भी एक कारण जिसके चलते उन्हें नींद नहीं आती है।
स्लीप एपिनिया (Sleep apnea)
स्लीप एपिनिया सांस से जुड़ी समस्या है। इसमें प्रेग्नेंट महिला को खर्राटें आते हैं और सांस रुक-रुक आती है। वहीं, प्रेग्नेंसी के दौरान बढ़े हुए वजन के कारण नींद में खलल पड़ती है। हैरानी की बात यह है कि इस समस्या को खुद गर्भवती महिलाओं को भी पता नहीं चलता है, जिसके कारण वे सो नहीं पाती हैं। उचित नींद न लेने के कारण गर्भवती महिलाएं पूरे दिन सुस्त और नींद में छाई रहती हैं। ऐसे में जरूरी है कि डॉक्टर की सलाह ले ही लें।
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रेस्ट लेस लेग सिंड्रोम
प्रेग्नेंसी में शरीर का सारा भार पैरो पर आ पड़ता है। इससे कारण पैरों में दर्द और बेचैनी की शिकायत उठने लगती है और जब पैरों में लगातार दर्द हो रहा हो तो नींद आना असंभव है। इस समस्या से 15 फीसदी गर्भवती महिलाएं जूझती हैं।
सोने की जगह में बदलाव
कुछ मामलों में गर्भवती महिलाओं को उनके कंफर्ट जोन को देखते हुए अलग कमरा दे दिया जाता है। ऐसे में कुछ महिलाओं को कमरे में बदलाव होने की वजह से भी नींद नहीं आती है, इसे नींद न आने का व्यावहारिक कारण भी कह सकते हैं।
प्रेग्नेंसी में नींद न आने के अन्य कारण
हाॅर्मोन्स में परिवर्तन, अत्यधिक थकान, पीठ में लगातार दर्द, सिर दर्द, पेट में जलन मेटाबॉलिज्म चेंज, पेट में ऐंठन और पेट में शिशु की हलचल आदि ऐसे कारण हैं जो गर्भवती महिलाओं की नींद में गुणवत्ता को कम करने का काम करते हैं।
प्रेग्नेसी में नींद की गोली ले सकते हैं?
गर्भवती महिलाओं के लिए यह एक बड़ा सवाल हो सकता है कि क्या प्रेग्नेंसी में नींद की गोली ले सकते हैं? मेडिकल साइंस के मुताबिक, प्रेग्नेंसी में इनसोम्निया की समस्या से जूझ रही महिलाओं के लिए नींद की गोली लेना सही नहीं माना गया है। ध्यान दें कि यह मां और शिशु दोनों के लिए घातक हो सकता है। क्योंकि इन दवाओं का परिणाम अच्छा नहीं होता है। इन दवाओं का प्रभाव यह पड़ता है कि बच्चे में जन्मजात विकार और प्रीमेच्योर बेबी होने की संभावना बढ़ जाती है। हो सकता है कि जन्म के वक्त बच्चे का वजन सामान्य से कम हो। ऐसी कोई दवा लेने से पहले डॉक्टर की सलाह मां और शिशु दोनों के लिए लाभदायक हो सकती है।
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‘नींद न आना’ शिशु के लिए नुकसानदायक ?
मेडिकल टर्म में तो साफ-साफ लिखा है कि गर्भावस्था के दौरान काम के साथ-साथ पर्याप्त आराम भी बहुत जरूरी है। अनिंद्रा या इनसोम्निया की समस्या मां और शिशु दोनों पर ही बुरा प्रभाव छोड़ती है। एक शोध के मुताबिक, गर्भवती महिला के लिए 7 घंटे से कम की नींद उनमें गर्भावधी मधुमेह का कारण बनता है और प्रसव पीड़ा भी अधिक जूझना पड़ सकता है। वहीं, नींद की कमी से शिशु प्रीमेच्योर हो सकता है और लो बर्थ वेट का जोखिम भी बना रहता है।
प्रेग्नेंसी में इनसोम्निया (Insomnia in Pregnancy) से निपटने के टिप्स
रेगुलर एक्सरसाइज (Regular Exercise)
प्रेग्नेंसी में हल्का-फुल्का व्यायाम करने से भी ‘नींद न आने’ (इनसोम्निया) की समस्या कम हो सकती है। वहीं, गर्भावस्था के तीसरे महीने या फिर कहे पहले ट्राइमेस्टर में व्यायाम बहुत प्रभावी साबित हो सकता है। इससे इनसोम्निया की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। ध्यान रहें बिना किसी ट्रेनर के एक्सरसाइज न करने लगें क्योंकि यह मां और शिशु दोनों के लिए हानिकारिक हो सकता है।
स्लीपिंग टाइम टेबल जरूरी (Sleeping Time)
कोशिश करें कि प्रेग्नेंसी पीरियड में एक टाइम टेबल बना लें। इसमें नींद पर ज्यादा ध्यान दें। यह गांठ बांध ले कि आपको कितने बजे सोना और उठना है। ऐसा करके ही इनसोम्निया से लड़ा जा सकता है।
घर में रखें शांति का माहौल
जी हां, सोने के लिए सबसे जरूरी है शांति। बेडरूम का वातावरण शांतिपूर्ण हो, साथ ही ध्यान दें कि यह मौसम के अनुसार ठंडा और गर्म भी हो।
खाते ही बिस्तर पर न पड़ें
खाना खाने के ठीक बाद सोना किसी के लिए भी समस्या खड़ी कर सकता है। ऐसे में अपनी प्रेग्नेंसी के पहले पड़ाव पर पहुंचने वाली महिलाएं सोने से ठीक पहले कुछ भी भारी खाने या पीने से बचें। क्योंकि खाना न पचने की अवस्था में रात में बार-बार वॉशरूम भागना पड़ सकता है।
मेडिटेशन (Meditation)
सोने से पहले ध्यान लगाने की आदत डाल सकती हैं। इससे मन को शांति और शरीर को तसल्ली मिलेगी। साथ ही आप थोड़ा म्यूजिक सुन लें, नहीं तो आप किताब पढ़कर भी नींद का अनुभव ले सकती हैं। इससे आपकी मानसिक उत्तेजना में शांति होगी।
गर्म पानी से नहाएं
ध्यान रहे अगर नींद नहीं आ रही है तो जबरदस्ती सोने की कोशिश बिल्कुल भी न करें। ऐसे में आप गुनगुने पानी का स्नान ले सकती हैं, जिससे शरीर और मन दोनों की थकावट दूर होने के बाद अच्छी नींद आ सकती है।
डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए
जब गर्भवती महिलाओं खासकर पहली बार मां बनने जा रही महिलाओं को गर्भावस्था के तीसरे महिने में यह महसूस होने लगे कि नींद न आने (इनसोम्निया) की समस्या बढ़ गई हैं तो उन्हें डॉक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए। नीचे दिए गए लक्षण नजर आए तो भी आपके लिए डॉक्टर के पास जाना जरूरी हो जाता है।
- अत्यधिक थकान महसूस होने पर
- तीन दिन तक लगातार नींद न आने पर
- जब व्यवहार में चिड़चिड़ापन बढ़ने लगे
- पैरो में असहनीय दर्द और बढ़ती बेचैनी
- आखों और सिर में नियमित दर्द होने पर
प्रेग्नेंसी के दौरान गर्भवती महिला में नींद न आने की समस्या हो सकती है। इसके लिए भी बहुत जरूरी है कि आपको यह समस्या होने पर तुरंत अपने डॉक्टर को मिलें। इसके अलावा आप अपने आप को बिजी भी रखें ताकि आपको नींद आ जाए।
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