आजकल महिलाएं और पुरुष दोनों ही देरी से शादी करना पसंद करते हैं। वहीं, कुछ जोड़े ऐसे होते हैं, जो शादी तो समय पर कर लेते हैं लेकिन, माता-पिता बनने का फैसला एक लंबे अर्से के बाद लेते हैं। इस स्थिति में अक्सर उन्हें इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझना पड़ता है। यह एक ऐसी स्थिति यह जब पुरुष और महिला दोनों में माता-पिता बनने की क्षमता घट जाती है।
ये कहना गलत नहीं होता कि बायोलॉजिकल क्लॉक के अनुसार लोग अगर माता-पिता बनने के बारे में नहीं सोचते हैं तो उन्हें फर्टिलिटी की समस्या से जूझना पड़ता है। भले ही आज टेक्नोलॉजी ने प्रगति कर ली हो, लेकिन मानव का शरीर एक समय तक ही प्रजनन के लिए सक्षम होता है, उसके बाद प्रजनन क्षमता घटने लगती है। अगर आपने भी सही उम्र में बच्चे के बारे में नहीं सोचा है तो इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि कैसे अधिक उम्र फर्टिलिटी की समस्या को बढ़ा देती है।
फर्टिलिटी की समस्या: महिलाओं की उम्र और फर्टिलिटी
उम्र के साथ महिला के एग्स की गुणवत्ता और संख्या कम होने लगती है। इसी के चलते बढ़ती उम्र फर्टिलिटी को प्रभावित करने वाला कारण बनती है। हालांकि, अच्छी सेहत प्रेग्नेंट होने की संभावना को बढ़ा देती लेकिन, इसका मतलब यह नहीं हुआ कि यह अधिक उम्र में भी उतना ही प्रभावी रहे। 20 वर्ष की उम्र तक आते-आते लड़कियों के हर महीने 25 -30 प्रतिशत गर्भवती होने की संभावना रहती है। हालांकि, महिलाओं की फर्टिलिटी 30 की उम्र से घटना शुरू हो जाती है। यह गिरावट 35 साल के बाद और रफ्तार पकड़ लेती है। वहीं, 40 की उम्र में हर महीने के मासिक धर्म में प्रेग्नेंट होने की पांच पर्सेंट संभावना होती है।
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प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन पर उम्र का प्रभाव
एनसीबीआई में ‘इफेक्ट ऑफ एजिंग ऑन दि फीमेल रीप्रोडक्टिव फंक्शन’ नाम से प्रकाशित शोध के मुताबिक, कॉर्पस ल्यूटियम (सी एल) एक विशेष एंडोक्राइन स्ट्रक्चर है। यह एक ऐसा स्ट्रक्चर है, जिससे इसके विकास, रखरखाव और रिग्रेसन को प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। इसका प्रमुख कार्य प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन को प्रोड्यूस करना है। यह हॉर्मोन गर्भ ठहरने और उसके रखरखाव में सबसे ज्यादा जरूरी होता है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर करें।
ऑव्युलेशन के बाद 8-10 दिनों के भीतर यह हाॅर्मोन तेजी से बनता है। उम्र के हिसाब से इसका प्रोडक्शन कम हो जाता है। उम्र के बढ़ने से शरीर की कोशिकाएं और अंग सामान्य तरीके से कार्य नहीं करते हैं। इस स्थिति में ओवरियन, ओविडक्ट, यूट्रस और इम्यून सिस्टम की कोशिकाएं प्रभावित होती हैं।
ऐसे में सेल्युलर सेंसेशन बढ़ने से महिला की प्रजनन क्षमता ओवरी की कोशिकाओं की गुणवत्ता कम होने से प्रभावित हो सकती है। उम्र के साथ इनफर्टिलिटी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के रूप में इंगित किया है। अधिक उम्र में फर्टिलिटी की समस्या का यह एक बड़ा कारण है।इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर करें।
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फर्टिलिटी की समस्या: उम्र के बढ़ने से घटते हैं फॉलिकल्स
फॉलिकल्स का प्रोडक्शन उम्र के हिसाब से घट जाता है। आमतौर पर 32 वर्ष की उम्र तक आते-आते इसमें गिरावट शुरू हो जाती है और 37 वर्ष की उम्र के बाद इनकी संख्या गिरने लगती है। हालांकि, 20 से 30 वर्ष की उम्र के बीच मासिक आधार पर फॉलिकल्स के प्रोडक्शन का आंकड़ा करीब 25 प्रतिशत रहता है, जिसमें 35 वर्ष की उम्र के बाद 10 प्रतिशत गिरावट आती है। यह गर्भधारण में समस्या पैदा करते हैं। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।
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फर्टिलिटी की समस्या: उम्र का पुरुषों की फर्टिलिटी पर प्रभाव
2004 में अमेरिकन जर्नल ऑफ गायनेकोलॉजी में एक शोध प्रकाशित किया गया। यह शोध उन कपल्स पर किया गया जो हाई टेक फर्टिलिटी ट्रीटमेंट ले रहे थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि पुरुष के एक बच्चे का पिता बनने की संभावना हर एक वर्ष के गुजरने से कम हो जाती है।
शोध में यह भी पाया गया कि हर वर्ष सफल प्रेग्नेंसी का आंकड़े में 11 प्रतिशत तक की गिरावट आई। पुरुषों में भी पिता बनने की क्षमता में गिरावट देखी गई। इस शोध में जर्मनी की शोधकर्ताओं ने बाद जोड़ा कि पुरुषों की उम्र बढ़ने से उनके स्पर्म की मात्रा, गतिशीलता और आकार घटता है। उन्होंने इस अपडेट को 2004 में ह्मयूमन रिप्रोडक्टिव अपडेट के नाम से प्रकाशित किया।ऊपर बताए गए कारणों की वजह से फर्टिलिटी की समस्या हो सकती है। 30-35 की उम्र में प्रेग्नेंसी प्लानिंग कर रहे हैं तो एक बार डॉक्टर से जरूर कंसल्ट करें।
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फर्टिलिटी की समस्या : गर्भ में पल रहे बच्चे पर असर
ऐसा नहीं है कि सिर्फ उम्र ही फर्टिलिटी की समस्या पैदा करती है। जो बच्चे मां के गर्भ में अनुकूल वातावरण नहीं पाते हैं, उन्हें भविष्य में फर्टिलिटी की समस्या से गुजरना पड़ सकता है। ऐसी बात रिचर्स में सामने आई है। बच्चा जब गर्भ में होता है तो मां की कुछ आदतों का असर बच्चे पर भी पड़ता है। अगर मां प्रेग्नेंसी में स्मोकिंग करती है या फिर ऐसे वातावरण में रहती है, जो प्रदूषित हो इसका असर मां के पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। यानी ऐसे बच्चों को भविष्य में फर्टिलिटी की समस्या से गुजरना पड़ सकता है। जो बच्चे जन्म के समय कम वजन के होते हैं, उन्हें भविष्य में फर्टिलिटी की समस्या से गुजरना पड़ सकता है। ऐसी बात रिचर्स में भी सामने आ चुकी है।
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