जो कपल किसी कारण बेबी प्लान नहीं कर पाते हैं, वे सरोगेसी (Surrogacy) की सहायता लेते हैं। दरअसल सरोगेसी एक ऐसी तकनीक है जिसके माध्यम से कपल सरोगेट मदर की सहायता से पेरेंट्स बन सकते हैं। सरोगेसी को ‘किराए की कोख’ भी कहते हैं, लेकिन सरोगेसी के मिथ (Surrogacy myth) कई बार कपल्स को परेशान कर सकते हैं। इस आर्टिकल में उन मिथकों के बारे में जानकारी दी जा रही है।
बता दें कि इस प्रॉसेस में एक हेल्दी महिला (स्वस्थ महिला) दूसरे कपल के लिए गर्भधारण करती है। सरोगेट मदर को डॉक्टर 9 महीने तक अपनी देख-रेख में रखते हैं। कपल की भी इन 9 महीनों की पूरी-पूरी जिम्मेदारी होती है सरोगेट मदर की देखभाल करने की। सरोगेट मदर को इसके लिए पैसे दिए जाते हैं।
सरोगेसी के मिथ और फैक्ट जानने से पहले जानते हैं कितने तरह की होती है सरोगेसी?
सरोगेसी के दो प्रकार बताए गए हैं जो निम्न हैं।
जेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational surrogacy)
इसमें माता पिता के स्पर्म और एग्स को टेस्ट ट्यूब के जरिए मेल कराने के बाद सरोगेट मदर के यूट्रस में प्रत्यारोपित किया जाता है। इस तरह से सरोगेट मदर का बच्चे से कोई बायलॉजिकल कनेक्शन नहीं होता है। वह नौ महीने गर्भ में बच्चे को रखकर जन्म देती है और फिर माता-पिता को बच्चा सौंप दिया जाता है।
ट्रेडिशनल सरोगेसी (Traditional surrogacy)
ट्रेडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी में सरोगेट मदर के एग को पिता बनने की चाह रखने वाले पुरुष के स्पर्म के साथ लैब में फर्टिलाइज किया जाता है और फिर उसे सरोगेट मदर के गर्भाशय में डाल दिया जाता है। जहां भ्रूण का नौ महीने तक विकास होता है। जन्म के बाद सरोगेट मदर उस पुरुष या कपल को बच्चा सौंप देती है। इस स्थिति में महिला बच्चे की बायलॉजिकल मां होती है।
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सरोगेसी (Surrogacy) के पहले कपल किन बातों का ध्यान रखें?
सरोगेसी के चयन से पहले निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। इनमें शामिल हैं।
- शिशु का लुक पेरेंट्स के लुक से अलग हो सकता है।
- यह निर्भर करता है कि अगर कपल के ओवम और स्पर्म को फर्टिलाइज करवाकर सरोगेट मदर के यूट्रस में इम्प्लांट किया गया है या कोई और विकल्प अपनाया गया है।
- ब्रेस्टफीडिंग या फीडिंग की प्लानिंग करें।
- जिस तरह से बेबी प्लानिंग या प्रेग्नेंसी प्लानिंग की योजना बनाते हैं ठीक उसी तरह मिल्क फीडिंग के बारे में प्लानिंग करें।
- कपल्स अपना स्वभाव नैचुरल रखें।
- सरोगेसी प्लानिंग के साथ ही यह भी निर्णय लेना भी जरूरी होता है कि आपका स्वभाव सरोगेट मदर के साथ कैसा रहना चाहिए। उनके साथ कपल को बैलेंस्ड स्वभाव को बनाए रखना जरूरी होता है।
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सरोगेट मदर किन-किन बातों का ध्यान रखें? (What are the things a surrogate mother should keep in mind?)
गर्भावस्था के साथ ही सरोगेट मदर को भी निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए। इनमें शामिल हैं।
- अपना ध्यान रखें।
- कपल के संपर्क में हमेशा रहें।
- डाक्यूमेंट्स ठीक तरह से चेक करें।
- गर्भ में पल रहे शिशु के साथ इमोशनल न हों क्योंकि डिलिवरी के बाद नवजात आपके पास नहीं रहेगा।
सरोगेसी के मिथ और फैक्ट से पहले जानते हैं इसके फायदे (Surrogacy benefits)
सरोगेसी के निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं। इनमें शामिल हैं-
- सरोगेसी कपल को फैमली आगे बढ़ाने में है सहायक जो किसी कारण पैरेंट्स नहीं बन पाते हैं।
- जो माता-पिता अपना शिशु चाहते हैं और किसी कारण गर्भधारण नहीं हो पाता है तो ऐसी स्थिति में सरोगेसी उनके लिए माता-पिता बनने का सक्सेसफुल विकल्प है। यही नहीं इससे कपल में बॉन्डिंग भी बनी रहती है।
- बदलते लाइफस्टाइल और करियर के कारण शादी में देर होने की वजह से प्रेग्नेंसी प्लानिंग में देर हो जाती है। ऐसे में सरोगेसी से बेबी प्लानिंग की जा सकती है। वैसे ही जो व्यक्ति शादी नहीं करते हैं लेकिन, अपना शिशु चाहते हैं उनके लिए सरोगेसी वरदान की तरह है और इसका बेहतर एग्जांपल शाहरुख खान और तुषार कपूर जैसे सेलेब्रिटी हैं।
- कई महिलाएं मेडिकल कंडिशन या लेबर पेन के कारण भी सरोगेसी से मां बन सकती हैं।
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सरोगेसी में कितना खर्च हो सकता है? (Surrogacy cost)
हेल्थकेयर वेबसाइट इलावीमेन आईवीएफ.आईयूआई सरोगेसी (ElaWoman IVF.IUI Surrogacy) के अनुसार 10 लाख से 17 लाख रुपए तक खर्च हो सकते हैं। ये सरोगेसी फी स्ट्रक्चर भारत का है। हाल ही में भारत में सरोगेसी से जुड़े नय नियम भी आ चुके हैं। लोगों के मन में सरोगेसी से जुड़े कई सवाल हैं। आइए एक नजर सरोगेसी के मिथ पर डालते हैं…
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सरोगेसी के मिथ और फैक्ट क्या हैं? (Surrogacy myths and facts)
सरोगेसी के मिथ और फैक्ट्स निम्न हैं।
सरोगेसी के मिथ (Surrogacy myth) : सरोगेसी प्रॉसेस सिर्फ सेलेब्रिटी वर्ग के लिए है।
फैक्ट: ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ सेलेब्रिटी वर्ग के लिए है। दरअसल सरोगेसी फी ज्यादा होने के कारण हर कोई सरोगेसी बेबी प्लान कर पाने में समर्थ नहीं हो पाता।
सरोगेसी के मिथ (Surrogacy myth) : सरोगेसी का विकल्प का उपयोग महिलाएं अपने फिगर को मेंटेन रखने के लिए करती हैं।
फैक्ट: ऐसी धारणा गलत है क्योंकि हेल्थ एक्सपर्ट मानते हैं कि इसका विकल्प कपल्स तभी अपनाते हैं जब वो माता-पिता बनने में असमर्थ होते हैं। इसे एक महिला की दूसरी महिला के मदद के तौर पर भी देखा जाता है। सरोगेसी बेहद इमोश्नल और एक्सपेंसिव प्रोसेस है। एक महिला बार-बार कंसीव न कर पाने के बाद सरोगेसी के जरिए बच्चा करने का फैसला लेती है। सरोगेसी का फैसला तब लिया जाता है जब कपल के पास इसके सिवा कोई ऑप्शन न बचा हो। सरोगेसी का फिगर से कोई लेना देना नहीं है।
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सरोगेसी के मिथ (Surrogacy myth) : शिशु की पेरेंट्स से बॉन्डिंग नहीं बन पाती है।
फैक्ट: ऐसी धारणा गलत है क्योंकि शिशु गर्भ में सरोगेट मदर के साथ रहता है, लेकिन जन्म के तुरंत बाद ही वो अपने माता-पिता के पास आ जाता है। माता पिता ही उसका ध्यान रखते हैं, जिससे उनका वैसे ही बच्चे के साथ जुड़ाव होता है जैसे दूसरे माता पिता का अपने बच्चों के साथ होता है। इसमें कोई अंतर नहीं होता है। इसलिए पेरेंट्स को बॉन्डिंग को लेकर किसी तरह का स्ट्रेस नहीं लेना चाहिए।
सरोगेसी के मिथ : सरोगेट मां (Surrogate mother) बच्चे की कस्टडी लेने की कोशिश कर सकती है।
फैक्ट: फर्टिलिटी क्लिनिक माता पिता और सरोगेट पेरेंट्स के बीच सरोगेसी एग्रीमेंट कराते हैं। रिप्रोडक्टिव लॉ एटोरनी इस प्रक्रिया को आसान बनाती है, क्योंकि इसमें आपके सभी प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं। सरोगेट मां का बच्चे पर कोई अधिकार नहीं होता है। सरोगेट मां को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे उनका बच्चे के साथ किसी तरह का भावनात्मक जुड़ाव न हो। ऐसे में सरोगेट मां को बच्चे के जन्म के बाद मां से अलग होने में आसानी होती है।
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यदि आपको सरोगेसी के मिथ (Surrogacy myth) से जुड़ी अन्य कोई जानकारी चाहिए तो बेहतर होगा आप किसी विशेषज्ञ से कंसल्ट करें। सरोगेसी प्लानिंग से पहले इससे जुड़े एक्सपर्ट से बात करें। ऐसे कपल्स से भी जरूर मिलें जिन्होंने सरोगेसी से अपनी फैमली आगे बढ़ाई हो। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में सरोगेसी के मिथ और फैक्ट के बारे में बताया गया है। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल है तो आप उसे कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं।
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