पेरिनियल ट्रॉमा (Perineal trauma) क्या है?
वजायना (vagina) के सामने के भाग से एनस (anus) तक के एरिया को पेरिनियल कहते हैं और शिशु के जन्म के दौरान शिशु का वजायना से बाहर न आने की स्थिति को पेरिनियल ट्रॉमा कहते हैं। पेरिनियल ट्रॉमा होने के मुख्य कारण हैं ज्यादा तेजी से इंटरकोर्स करना या नॉर्मल डिलिवरी के दौरान शिशु का सिर बड़ा होना या शिशु का कंधा प्यूबिक बोन में फस जाने के कारण होता है। ऐसी स्थिति में होने वाली परेशानी पेरिनियल टेर कहलाती है।
पेरिनियल ट्रॉमा के क्या कारण हैं?
नॉर्मल डिलिवरी गर्भवती महिला को जल्दी स्वस्थ होने में सहायक है लेकिन, ऐसा नहीं है की नॉर्मल डिलिवरी के बाद परेशानी नहीं होती है। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार 10 में से 9 महिलाएं नॉर्मल डिलिवरी के दौरान पेरिनियल टेर, ग्रेज (graze) या एपिसोटॉमी (episiotomy) की समस्या महसूस करती हैं। पेरिनियल टेर की समस्या पहली बार हुई गर्भवती महिलाओं में ज्यादा होती है। कुछ महिलाओं में टेर की समस्या कम होती है और जल्दी ठीक हो जाती है लेकिन, कुछ महिलाएं ज्यादा परेशानी महसूस करती है। पेरिनियल टेर फर्स्ट डिग्री, सेकेंड डिग्री, थर्ड और फोर्थ डिग्री तरह के होते हैं। थर्ड और फोर्थ डिग्री पेरिनियल टेर होने पर महिला के लिए परेशानी का कारण होता है। ऐसा लेबर के सेकेंड स्टेज में होता है। सेकेंड लेबर स्टेज में सर्विक्स पूरी तरह से खुल चुका होता है। इस दौरान बच्चे का सिर बर्थ कैनाल से बाहर आ चुका होता है। अगर आपको ज्यादा समय नहीं लगता है तो सेकेंड स्टेज आधे से लेकर एक घंटे में खत्म हो जाएगी। अगर सेकेंड स्टेज में आपको एपिड्यूरल (epidural) की जरूरत पड़ती है तो लेबर पेन स्टेजेस का समय बढ़ सकता है। कुछ महिलाओं में अगर बच्चे का सिर निकालने में डॉक्टर्स को समस्या होती है तो वो फॉरसेप्स या फिर वैक्यूम एक्सट्रेक्शन की हेल्प लेते हैं।
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पेरिनियल ट्रॉमा से बचने के लिए क्या करें?
पेरिनियल ट्रॉमा से बचने से गर्भावस्था के 35वें हफ्ते से शिशु के जन्म तक पेरिनियल मसाज करें। ऐसा करने से पेरिनियल ट्रॉमा से बचा जा सकता है जिससे पेरिनियल टेर भी नहीं होगा। पेरिनियल मसाज पहली डिलिवरी में ज्यादा फायदेमंद होती है। यह भी ध्यान रखें की अगर पहली डिलिवरी में पेरिनियल ट्रॉमा से बचने के बाद दूसरी डिलिवरी के दौरान भी इस परेशानी से बचा जा सकता है।
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पेरिनियल ट्रॉमा से बचने के लिए पेरिनियल मसाज कैसे करें?
- मसाज के लिए लुब्रिकेंट, विटामिन-इ, आलमंड ऑयल या ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करें।
- पेरिनियल मसाज से पहले गुनगुने पानी में थोड़ी देर के लिए बैठें। ऐसा करने से रिलैक्स महसूस करने के साथ-साथ पेरनियम मसल्स भी सॉफ्ट होंगे।
- मसाज शुरू करने के पहले नाखून चेक करें क्योंकि बड़े नाखून या नाखून शेप में नहीं होने के कारण यह नुकसानदायक हो सकता है।
- मसाज के लिए सही पुजिशन में लेट जाएं या तकिये के सहारे से बैठे जाएं।
- मसाज के लिए अंगूठे (Thumbs) का प्रयोग करें। यू-शेप मोशन में वजायना की मसाज करें। ऐसा 2 से 3 मिनट के लिए करें।
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पेरिनियल ट्रॉमा से बचने के लिए क्या एक्सरसाइज किया जा सकता है?
1. पेल्विस स्ट्रेचेस
नॉर्मल डिलिवरी के लिए पेल्विस स्ट्रेचेस (Pelvic stretches) करना बेहद आसान है। इसे बड़े तकिए या बड़े साइज के बॉल की मदद से भी किया जा सकता है। बॉल या तकिए पर अपने दोनों पैरों को रखकर और शरीर को नीचे की ओर झुका कर बॉडी को स्ट्रेच करें। ऐसा 20 बार तक किया जा सकता है।
2. स्विमिंग
स्विमिंग पूरे शरीर को फिट रखने के लिए एकमात्र एक्सरसाइज है। स्विमिंग से बॉडी के हर एक हिस्से को एक्टिव किया जा सकता है। इससे हार्ट बीट ठीक होने के साथ-साथ मसल्स भी स्ट्रांग होती हैं और नॉर्मल डिलिवरी में भी मदद मिल सकती है।
3. स्क्वॉट्स
गर्भावस्था में शरीर का वजन सामान्य से 16 किलो तक ज्यादा बढ़ा रहता है, जिसका पूरा भार पैरों पर पड़ता है। इसलिए पैरों को स्ट्रॉन्ग रखने के लिए स्क्वॉट्स एक्सरसाइज करने की सलाह फिटनेस एक्सपर्ट्स देते हैं। दरअसल स्क्वॉट्स से महिलाओं के पैर स्ट्रॉन्ग होते है जिससे उन्हें बेबी डिलिवरी करते समय कम दर्द का एहसास हो सकता है।
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4. वॉकिंग
प्रेग्नेंसी के आखरी महीने में अगर गर्भवती महिला एक्सरसाइज करने में असमर्थ है, तो वॉकिंग शरीर को स्वस्थ रखने के लिए आसानी से कर सकती है। गर्भावस्था के आखिरी महीने में गर्भ में पल रहा शिशु पूरी तरह से विकसित हो जाता है। इसलिए इस दौरान नियमित रूप वॉकिंग करना मां और शिशु दोनों के लिए अच्छा होता है। इस दौरान अपने डॉक्टर से यह जरूर समझें कि आपके शरीर को एक्सरसाइज की कितनी जरूरत है? प्रेग्नेंसी के दौरान एक्सरसाइज करने से जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा कम होता है और डिलिवरी आसानी से और नॉर्मल हो सकती है।
5. कीगल
नियमित रूप से 10-20 मिनट कीगल (Kegel) एक्सरसाइज डिलिवरी के दौरान और डिलिवरी के बाद भी हेल्थ के लिए बेहतर मानी जाती है। कीगल एक्सरसाइज करने से गर्भावस्था में होने वाली यूरिन और पेल्विक फ्लोर मसल्स संबंधी समस्या कम हो सकती है। कीगल एक्सरसाइजिस मैट पर आसानी से लेट कर की जा सकती है। इसमें पेल्विक फ्लोर की मसल्स को ऐसे मूव करना होता है जैसे कि हमने यूरिन को रोक रखा है और फिर रिलीज कर दिया है। इस एक्सरसाइज से पेल्विक फ्लोर मसल्स स्ट्रांग होती हैं और डिलिवरी के दौरान परेशानी कम होती है है। गर्भावस्था के दौरान कीगल एक्सरसाइज खाली ब्लैडर (टॉयलेट के बाद) के दौरान किए जाने पर सबसे ज्यादा आरामदायक होती है। गर्भावस्था के दौरान कीगल एक दिन में 3 बार 10-10 मिनट के लिए की जानी चाहिए।
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6. अपराइट रो
गर्भावस्था के चौथे महीने में अपराइट रो वर्कआउट बेहतर विकल्प माना जाता है। इसे आसानी से कुर्सी की मदद से गर्भवती महिला कर सकती हैं। इस एक्सरसाइज को करने के लिए सबसे पहले कुर्सी पर बैठ जाएं। बॉडी को स्ट्रेट रखें और अब दोनों हाथों में सबसे हल्के वजन का डंबल उठाएं और दोनों हाथों को चेस्ट तक लाएं। फिर हाथ को स्ट्रेट रखें। ऐसा 15 से 20 बार तक किया जा सकता है। अपराइट रो वर्कआउट से बॉडी की इंटेंसिटी बढ़ती है। अपराइट रो गर्भवती महिलाओं के हाथ, चेस्ट, पैरों को मजबूत बनाने के साथ-साथ उनके पूरे शरीर के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है।
पेरिनियल ट्रॉमा से बचने के लिए ऊपर बताई गई टिप्स फॉलो करें लेकिन, अगर आप पेरिनियल ट्रॉमा से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल के जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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