गर्भावस्था के दौरान लगभग हर महिला अपने गर्भ में शिशु का हिचकी लेना महसूस करती हैं। हालांकि, कुछ प्रेग्नेंट महिलाओं को गर्भ में शिशु का हिचकी लेना बार-बार सुनाई देता रहता है, तो कुछ महिलाओं को सप्ताह या महीने में एक या दो बार ही सुनाई देता है। मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना गर्भ में शिशु के विकसित होने के लक्षणों में शामिल होता है। गर्भावस्था के दौरान न सिर्फ महिला बल्कि, उसके गर्भ में पल रहे भ्रुण में कई तरह के शारीरिक बदलाव होते रहते हैं। गर्भावस्था के लगभग 18 से 20 सप्ताह के दौरान गर्भवती आपको अपने गर्भ में पल रहे शिशु की भिन्न-भिन्न हरकतों को महसूस करती रहती हैं। वहीं, जैसे-जैसे गर्भावस्था का समय बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे ही मां के पेट में शिशु का भी विकास भी तेज होने लगता है और उसकी हलचले भी बढ़ने लगती हैं। कई बार पेट में महिलाओं को अचानक से एक पल के लिए ऐंठन महसूस हो सकती है, जिसे वो गर्भ में शिशु का किक मारना समझ सकती हैं। हालांकि, यह स्थिति मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना हो सकता है।
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गर्भ में शिशु का हिचकी लेना : क्यों आती शिशु को हिचकी?
गर्भ में शिशु कई कारणों की वजह से हिचकी ले सकता है। अधिकतर मामलों में यह बिल्कुल सामान्य स्थिति होती है। हालांकि, कुछ मामलों में गर्भ में शिशु का हिचकी लेना चिंताजनक भी हो सकता है, जिसके लिए महिला को डॉक्टर से संपर्क भी करना चाहिए। मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना क्या है या गर्भ में शिशु हिचकी क्यों लेता है, अभी तक डॉक्टरों को इसके पीछे के असली कारण की जानकारी नहीं हैं, हालांकि, उनका मानना है कि गर्भ में शिशु का हिचकी लेना भ्रूण के फेफड़ों के विकास से जुड़ा हुआ हो सकता है। इसके अलावा, मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना यह भी दर्शाता है कि उसका शारीरिक विकास उचित और समय से हो रहा है।
निम्न कारणों से गर्भ में शिशु का हिचकी लेना संभव है, जिनमें शामिल हैंः
डायफ्राम में संकुचन होना
आमतौर पर देखा जाए, तो मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना दूसरी तिमाही के दौरान शुरू हो सकता है। इसका कारण है उनके फेफड़ों का विकास होना। इस दौरान गर्भ में भ्रूण मां के शरीर से एमिनोटिक एसिड फ्लूइड निगल लेता है, जो उसके सांस में जाती है और शिशु भ्रूण में ही हिचकी लेने लगता है। डायफ्राम फेफड़ों और पेट के बीच विभाजन का कार्य करने वाली मांसपेशी तेजी से सिकुड़ती है, जिससे मां के पेट में अचानक से ऐंठन हो सकती है। इस दौरान गर्भ में बच्चे का सेंट्रल नर्वस सिस्टम भी विकसित हो चुका होता है। जिससे एमिनोटिक एसिड बच्चे के फेफड़ों से अंदर और बाहर प्रवाहित होता है, जिससे कारण डायफ्राम में संकुचन हो सकती है और गर्भ में शिशु का हिचकी लेना भी हो सकता है।
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भ्रूण के गले में गर्भनाल का फंसना या सिकुड़ना
गर्भनाल को नाड़ या अंबिलिकल कोर्ड भी कहते हैं। अगर किसी कारण से बच्चे के गले में यह फंस जाए, तो इसके कारण भी मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना शुरू हो सकता है। हालांकि, यह बेहद ही गंभीर स्थिति भी हो सकती है। इसके कारण बच्चे को सांस लेने के लिए हवा नहीं मिल पाती है। इससे भ्रूण के शरीर में खून का प्रवाह कम हो सकता है और हार्ट रेट बढ़ सकती है। इस स्थिति में बच्चे का हिचकी लेना लगातार जारी रहता है जिससे मां को पेट में तेज ऐंठन हो सकती है। ऐसी स्थिति महसूस करने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
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फ्यूचरिस्टिक रिफ्लेक्सेस
मां के गर्भ में कुछ बच्चे सुस्त, तो कुछ बहुत ज्यादा एक्टिव रहते हैं। ऐसे में जो भ्रूण गर्भाशय में बहुत ज्यादा एक्टिव रहते हैं, वो बाहर आने के लिए काफी बेचेन भी रहते हैं। जिसके संकेत मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना भी हो सकता है। इसके अलावा शिशु का हिचकी लेना भ्रूण के रिफ्लेक्सेस को मजबूत करने में मदद करती है। जो पैदा होने के बाद शिशु की सांस की नली को विकसित और संचालित करने में मदद करती हैं। इन रिफ्लेक्सेस के कारण शिशु को बिना गले में अटके आहार खाने में मदद मिलती है।
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ब्रेस्टफीडिंग के लिए महिला का तैयार होना
कई बार मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना मां का बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग के लिए तैयार होने के भी संकेत हो सकते हैं।
मैं अपने गर्भ में शिशु का हिचकी लेना कब सुन सकती हूं?
सामान्यतौर पर गर्भावस्था के दूसरी या तीसरी तिमाही में मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना महसूस कर सकते हैं, जो गर्भावस्था के छठे महीने में और भी बढ़ सकती है।
कब-कब हो सकता है गर्भ में शिशु का हिचकी लेना?
मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना दिन या रात के समय कितनी बार हो सकता है, इसके बारे में अभी कोई उचित जानकारी नहीं है। लेकिन, महिलाओं के अनुभव के आधार पर गर्भ के अंदर शिशु दिन के समय कई बार हिचकी लेते हैं।
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मां के पेट में शिशु का हिचकी लेना कब गंभीर हो सकता है?
आमतौर पर शिशु की हिचकी उसके अच्छे स्वास्थ्य और विकास का संकेत होती है। लेकिन, गर्भावस्था के 32वें सप्ताह के बाद हिचकी आना आमतौर पर बंद हो सकती है। लेकिन, अगर इस समय के बाद भी गर्भ में शिशु को लगातार 15 से 20 मिनट के बीच में हिचकी आती है या दिन में 7 से 8 बार से ज्यादा हिचकी आती है या बच्चा एक बार में तीन से अधिक हिचकी लेता है, तो आपको अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
कैसे समझें कि मां के पेट में शिशु हिचकी ले रहा है या किक मार रहा है?
हिचकी और किक दोनों ही स्थितियों में मां के पेट में ऐंठन या दर्द महसूस हो सकता है। हालांकि, हिचकी स्थिति सिर्फ कुछ सेकेंड के लिए हो सकती है, जबकि बच्चा का किक मारना थोड़ी-थोड़ी देर पर जारी रह सकता है।
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इन स्थितियों में गर्भ में किक मारता है शिशु
- घूमने या चलने के दौरान
- असहज स्थिति में बैठने या लेटने पर
- गर्म, ठंडा या मीठा खाने पर, क्योंकि आप जो भी खाएंगी उसका स्वाद बच्चे को भी महसूस हो सकता है, जो आपकी इंद्रियों को उत्तेजित कर सकता है।
- बच्चा किक पेट के बीच में अगल-बगल या ऊपर-नीचे की तरफ भी सकता है, जो दो-तीन बार से अधिक हो सकता है।
इन स्थितियों में गर्भ में हिचकी लेता है शिशु
- सहज अवस्था में बैठने या लेटने के दौरान पेट के किसी एक हिस्से में अचानक कुछ हलचल महसूस करना। ये चिकोटी या चिंटी के काटने जैसा अनुभव हो सकता है।
भ्रूण के गले में गर्भनाल का फंसना या सिकुड़ना के जोखिम क्या हो सकते हैं?
अगर गर्भ में आपके शिशु को हिचकी गर्भलान के फंसने या सिकुड़ने के कारण आ रही है, तो निम्न जोखिम हो सकते हैंः
- बच्चे की हृदय गति में परिवर्तन होना
- बच्चे के ब्लड प्रेशर में परिवर्तन होना
- बच्चे के रक्त में CO2 का निर्माण होना
- बच्चे के ब्रेन को नुकसान पहुंचना
- जन्म से पहले बच्चे का जन्म कराना।
अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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