के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
क्रोनिक किडनी डिजीज को क्रोनिक किडनी फेलियर भी कहा जाता है। किडनी का काम होता है खून को फ़िल्टर करना। लेकिन अगर कोई व्यक्ति क्रोनिक किडनी डिजीज से पीड़ित है तो उसकी किडनी खून फ़िल्टर नहीं कर पाती। “क्रोनिक किडनी डिजीज’ शब्द का अर्थ है किडनी को होने वाला स्थायी नुकसान या स्थिति, जो समय के साथ बदतर हो सकती है। अगर यह स्थिति बहुत अधिक खराब हो जाए तो किडनी काम करना बंद कर सकती है। इसे किडनी फेलियर और एंड-स्टेज रीनल डिजीज (ESRD) भी कहा जाता है। अगर किसी की किडनी ख़राब हो जाती है तो उसे जीवित रहने के लिए डायलिसिस कराने या किडनी ट्रांसप्लांट कराने की आवश्यकता पड़ती है। यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका में लगभग 37 मिलियन लोग इस समस्या से पीड़ित हैं।
अगर किसी व्यक्ति को क्रोनिक किडनी डिजीज है, तो उसमे निम्नलिखित लक्षण देखने को मिल सकते हैं जैसे:
अगर आपकी किडनी एकदम काम करना बंद कर दें तो आप इन लक्षणों को महसूस कर सकते हैं:
ऊपर दिए लक्षणों में से एक या एक से अधिक लक्षण गंभीर किडनी समस्या का प्रतीक है। अगर आपको इन में से कोई भी लक्षण देखने को मिले तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।
क्रोनिक किडनी डिजीज के कुछ अन्य कारण इस प्रकार हैं:
कहा जाता है।
इन स्थितियों में क्रोनिक किडनी डिजीज का जोखिम बढ़ सकता है
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क्रोनिक किडनी डिजीज के निदान का सबसे पहले कदम है, डॉक्टर आपसे आपकी निजी और पारिवारिक हिस्ट्री के बारे में जानेंगे। इस के अलावा, आपके डॉक्टर आपसे पूछ सकते हैं कि कहीं आप उच्च ब्लडप्रेशर का शिकार तो नहीं हैं? इसके साथ ही आपसे यह सवाल भी पूछे जा सकते हैं, जैसे:
क्रोनिक किडनी डिजीज के पूरी तरह से उपचार नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ थेरपीस से इसके लक्षणों और जटिलताओं आदि को दूर किया जा सकता है और रोग को बढ़ने से भी रोका जा सकता है।
क्रोनिक किडनी डिजीज के रोगियों को आमतौर पर अधिक मात्रा में दवाईयों की जरूरत पड़ती है। इस उपचार में यह सब शामिल है:
हीमोग्लोबिन रेड ब्लड सेल्स में पाया जाने वाला वो तत्व है जो ऑक्सीजन को शरीर के अंगों तक पहुंचाता है। अगर इसका लेवल कम है तो रोगी को एनीमिया हो सकता है। किडनी की बीमारी के रोगी को आमतौर पर आयरन की खुराक लेनी होती है जिसे वो रोजाना गोलियों या कभी-कभी इंजेक्शन के रूप में ले सकता है।
जिन लोगों को किडनी संबंधी रोग है ,उनके शरीर से फॉस्फेट को बाहर निकालने में मुश्किल होती है। ऐसे में रोगी को फॉस्फेट को कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है जैसे रेड मीट, अंडे, मछली, दूध और दूध से बने उत्पाद आदि।
क्रोनिक किडनी डिजीज के रोगियों में उच्च रक्तचाप की समस्या आम है। किडनी को कोई नुकसान न हो इसके लिए रक्तचाप को कम करना आवश्यक है और इससे धीरे-धीरे रोग को कम किया जा सकता है।
एंटीहिस्टामाइन, जैसे कि क्लोरफेनीरामिन (Chlorpheniramine) , खुजली के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती है।
अगर शरीर में हानिकारक तत्वों का निर्माण अधिक हो जाता है तो किडनी अच्छे से काम नहीं करती और रोगी बीमार महसूस करता है। साइक्लीज़ीन या मेटोक्लोप्रामिड (Metoclopramide) जैसी दवाएं बीमारी से राहत दिलाने में मदद करती हैं।
NSAIDs,जैसे एस्पिरिन या आइबूप्रोफेन का सेवन न करें या तभी लें जब इसे लेने की सलाह डॉक्टर दे।
जब किडनी अपनी क्षमता से 10-15 प्रतिशत कम कार्य करे तो उस समय अंतिम चरण के उपचार की आवश्यकता होती है। सही आहार, दवाईयां और उपचार इसमें फायदेमंद हैं। इसके साथ ही अंतिम चरण में रोगी को जीवित रहने के लिए किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की आवश्यकता हो सकती है।
किडनी डायलिसिस दो तरह के होते हैं यह इस प्रकार हैं
हेमोडायलिसिस : इसमें खून को रोगी के शरीर के बाहर पम्प्ड आउट किया आता है और यह एक डायलाइज़र के माध्यम से निकलता है। रोगी एक हफ्ते में तीन बार हेमोडायलिसिस से गुजरता है और इसका हर सेशन लगभग तीन घंटे तक रहता है।
पेरिटोनियल डायलिसिस: पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) एक उपचार है जिसमे रोगी के पेट (बेली एरिया) की लाइनिंग का उपयोग किया जाता है, जिसे पेरिटोनियम कहा जाता है, और इसके साथ रोगी के खून को साफ करने के लिए डायलिसेट नामक क्लीनिंग सलूशन का भी प्रयोग किया जाता है।
किडनी ट्रांसप्लांट अंतिम चरण के किडनी फेलियर ज्यादातर रोगियों के लिए सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन इसके लिए रोगी की उम्र कम होने चाहिए, उसे कोई गंभीर हृदय का रोग नहीं होना चाहिए, न ही उसे कोई अन्य गंभीर बीमारी होनी चाहिए। हर व्यक्ति के शरीर में दो किडनी होती है और अगर एक स्वस्थ डोनर अपनी एक किडनी रोगी को दे दे तो उसका रोगी के शरीर में ट्रांसप्लांट कर के रोगी की जान बचाई जा सकती है।
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