एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) एक आनुवंशिक विकार है, जो नवजात शिशुओं में होने वाली बीमारी होती है। इस बीमारी में बच्चे की त्वचा बहुत नाजुक होती है या फिर त्वचा पर फफोले हो जाते हैं। यह एक दुर्लभ बीमारी है, जिसका इलाज अभी भी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। कई मामलों में इस बीमारी के लक्षण किशोरावस्था या वयस्क उम्र में भी देखी जाती है।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें त्वचा पर फफोले और उसे फटने की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। यह फफोले साधारण खुजली या चोट के कारण बढ़ने या फैलने लगते हैं। बेहद गंभीर मामलों में फफोले त्वचा के अंदर विकसित होने लगते हैं। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) का कोई इलाज नहीं है। हालांकि उम्र के साथ कम गंभीर मामलों में स्थिति अपने आप ठीक होने लगती है। इसके इलाज की प्रक्रिया में डॉक्टर फफोले को ठीक करने व नए फफोलों को विकसित होने से रोकने की कोशिश करते हैं।
और पढ़ें : Anal fissure: एनल फिशर क्या है? जानिए इसके कारण लक्षण और उपाय
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) के लक्षण (Symptoms of Epidermolysis Bullosa)
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा फफोले की तरह शरीर पर उभरा हुआ होता है। यह शरीर के ऊपरी और बाहरी दोनों अंगों पर हो सकता है। फफोलो जब त्वचा से झड़ने लगते हैं, तो शरीर पर घाव हो जाते हैं। इसके बाद, त्वचा (Skin) तितली के पंख जितनी नाजुक हो जाती है इसलिए, इसे बटरफ्लाई बीमारी (Butterfly disease)भी कहा जाता है।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) के संकेत-
- कोहनी की सतहों पर छाले
- घुटनों (Knee) पर छाले
- एड़ियों पर फफोले
- हिप्स पर छाले
- श्लेष्म झिल्ली पर छाले
- मोटे या न विकसित (Development) होने वाले नाखून
- हाथों और पैरों की ताड़ पर त्वचा का मोटा होना
- बाल झड़ना (Hair loss)
- दांत टूटना (Tooth pain)
- त्वचा पर दर्द (Skin pain) व खुजली (Iching) होना
- निगलने में दिक्कत आना
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) हो सकता है बच्चे के बड़े होने तक दिखाई न दें जब तक कि वे खेलना या चलना न सीख जाए। क्योंकि शारीरिक गतिविधियों के कारण ही ये स्थिति बढ़ने लगती है।
और पढ़ें : Anemia chronic disease: एनीमिया क्रोनिक डिजीज क्या है? जानिए इसके कारण, लक्षण और उपाय
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) के प्रभाव
इस बीमारी के तीन रूप पाए गए हैं, जिसे ईपी सिम्पलेक्स, जंक्शनल ईपी और डिस्ट्रोफिक ईपी कहा जाता है। जिनमें से ईपी सिम्पलेक्स और जंक्शनल ईपी से पीड़ित अधिकतर बच्चे छोटी उम्र में ही मर जाते हैं। वहीं, डिस्ट्रोफिक ईपी के कारण किशोरावस्था की शुरुआती उम्र में जान जाने का खतरा बना रहता है।
आंकड़ों पर गौर करें, तो दुनियाभर में पैदा होने वाले प्रति 10 लाख बच्चों में से यह 20 बच्चों को अपना शिकार बनाता है। इनमें से अधिकतर बच्चों की पांच साल की उम्र तक ही मौत हो जाती है। वहीं, अब भी इस लाइलाज बीमारी से प्रति दस लाख में से 9 लोग इससे पीड़ित हैं।
[mc4wp_form id=”183492″]
यह न सिर्फ शरीर की ऊपरी त्वचा को नष्ट करता है बल्कि, आंतरिक अंगों को भी प्रभावित करता है। साथ ही, यह शरीर के लिए कई जरूरी गुणवत्ता को भी खत्म कर देता है।
और पढ़ें : Bedwetting : बिस्तर गीला करना (बेड वेटिंग) क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के कारण (Cause of Epidermolysis Bullosa)
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा आमतौर पर अनुवंशिक (Genetic) बीमारी होती है। यह रोग शिशु के माता-पिता से एक जीन के जरिए आती है। और कुछ मामलों में यह दोनों से ही शिशु में आ सकती है।
त्वचा बाहरी और अंदरूनी परत की बनी होती है। जहां ये दोनों मिलते है उस हिस्से को बेसमेंट मेम्ब्रेन (Basement membrane) कहा जाता है। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) के विभिन्न प्रकार त्वचा की परत पर निर्भर करते हैं।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के मुख्य प्रकार (Types of Epidermolysis Bullosa)
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा सिम्प्लेक्स (Epidermolysis Bullosa Simplex)– यह एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) का सबसे सामान्य प्रकार है। यह त्वचा की बाहरी परत पर विकसित होता है और मुख्य रूप से हथेलियों और पैरों को प्रभावित करता है। इस प्रकार के कारण हुए फफोले आमतौर पर अपने आप ही ठीक हो जाते हैं।
जंक्शनल एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Junctional Epidermolysis Bullosa)– यह प्रकार गंभीर हो सकता है, क्योंकि इसमें फफोले नवजात अवस्था में ही विकसित होने लगते हैं। इस स्थिति के कारण शिशु बेहद जोर से रोने लग सकता है क्योंकि त्वचा पर लगातार फफोले विकसित और फूटते रहते हैं।
डिस्ट्रोफिक एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Dystrophic Epidermolysis Bullosa)– इस प्रकार एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) जीन में आई खराबी के कारण होता है जो कोलेजन के उत्पादन में मदद करता है। कोलेजन त्वचा के ऊतकों को बनने में मदद करता है। इस जीन की कमी या खराबी के कारण त्वचा की परत सही तरह से नहीं जुड़ पाती हैं।
और पढ़ें : Onabotulinumtoxina : ओनबोटुलिनमटोक्सिना क्या है? जानिए इसके उपयोग, साइड इफेक्ट्स और सावधानियां
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) के जोखिम कारक और जटिलताएं
परिवार में एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) की हिस्ट्री होने पर इसका जोखिम बढ़ जाता है। अनुवांशिकता इसका एकलौता मुख्य जोखिम कारक है। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा की जटिलताओं में निम्न शामिल हैं –
संक्रमण (Infection): फफोलो के कारण त्वचा पर संक्रमण होने का जोखिम बढ़ जाता है।
सेप्सिस (Sepsis): जब बैक्टीरिया बढ़ी मात्रा में रक्त प्रवाह में मिलकर पूरे शरीर में फैल जाता है तो सेप्सिस की स्थिति विकसित होती है। सेप्सिस लगातार तेजी से बढ़ने वाली जानलेवा बीमारी है जिसके कारण शॉक से व्यक्ति का अंग कार्य करना भी बंद कर सकता है।
उंगलियों का जुड़ना या जोड़ों में बदलाव : एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) के गंभीर प्रकार के कारण उंगलियों का जुड़ना और जोड़ों का अनियमित रूप से आकर लेना शामिल होता है। इस के कारण उंगलियों, घुटनों और कोहनियों के कार्यों में समस्या आ सकती है।
पोषण में समस्या आना : मुंह में छाले होने के कारण व्यक्ति को खाने में मुश्किलें आ सकती है जिसके कारण कुपोषण और एनीमिया (Anemia) हो सकता है। पोषण की कमी के कारण घाव भरने की प्रक्रिया में भी देरी आने लगती है जिससे बच्चे का विकास धीरे होता है।
और पढ़ें : Botulinum Poisoning : बोटुलिनिम पॉइजनिंग (बोटुलिज्म) क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय
कब्ज (Constipation)- गुदा में छालें होने के कारण मल त्यागने में समस्या आ सकती है। यह नियमित मात्रा में तरल पदार्थ और हाई फाइबर आहार न लेने के कारण भी हो सकता है।
डेंटल प्रॉब्लम (Dental problem)- कुछ प्रकार के एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के कारण दांत टूटने और मुंह के ऊतकों में समस्या भी आ सकती है।
स्किन कैंसर (Skin cancer)- एपिडर्मोलिसिस बुलोसा से ग्रसित लोगों में बढ़ती उम्र के साथ स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा नाम के स्किन कैंसर होने का खतरा रहता है।
मृत्यु (Dead)- जंक्शनल एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) से ग्रसित नवजात शिशुओं में संक्रमण (Babies infection) और तरल पदार्थ की कमी के कारण शरीर में फफोले तेजी से फैलने लगते हैं जिसके कारण स्थिति जानलेवा हो जाती है। फफोलों के कारण नवजात के जीने की संभावना बेहद कम हो जाती है जिसके कारण उनके सांस लेने और खाने की क्षमताएं भी प्रभावित होने लगती हैं। इस स्थिति में नवजात शिशु की किशोरावस्था तक मृत्यु भी हो सकती है।
और पढ़ें : सर्वाइकल डिस्टोनिया (स्पासमोडिक टोरटिकोलिस) क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (ईबी) का इलाज (Treatment for Epidermolysis Bullosa)
हालांकि, अभी तक इस बीमारी का सफल इलाज नहीं किया जा सका है लेकिन, इसके शुरुआती इलाज में कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) का परीक्षण और इलाज
मरीज के खून की जांच कर जेनेटिक टेस्ट भी किए जाते हैं। इससे यह पता लगाया जा सकेगा कि मरीज के जीन में आनुवंशिक तौर पर कितना परिवर्तन हुआ है।
इस प्रक्रिया के दौरान त्वचा विशेषज्ञ मरीज के त्वचा के टिश्यू के एक हिस्से की जांच करते हैं। इसके माध्यम से डॉक्टर यह पता लगा सकेंगे कि त्वचा के विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन (Protein) सामान्य रूप से काम कर रहा है या नहीं।
इसके अलावा, अभी तक इस बीमारी के इलाज के लिए कोई सफल उपचार नहीं खोजा जा सका है। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए घरेलू तरीके थोड़े मददगार हो सकते हैं। इसके लिए बच्चे की ड्रेसिंग अच्छे से करें। समय-समय पर उसके शरीर और फफोलों पर मरहम लगाते हैं। उसे बाहर के धूल और प्रदूषण से दूर रखें। साथ ही, डेबरा एक राष्ट्रीय दान है, जो एपिडर्मोलिसिस बुलोसा (Epidermolysis Bullosa) से पीड़ित लोगों की मदद के लिए अंतर्राष्ट्रीय तौर पर काम करता है। उसकी मदद ले सकते हैं।
और पढ़ें : Dysfunctional Uterine Bleeding: अक्रियाशील गर्भाशय रक्तस्राव क्या है? जानिए इसके कारण, लक्षण और उपाय
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का घरेलू इलाज (Home remedies for Epidermolysis Bullosa)
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का इलाज भले ही मुमकिन न हो लेकिन इसे कुछ घरेलू उपायों की मदद से कम किया जा सकता है या इसे बढ़ने से रोका जा सकता है। फफोलों को बढ़ने से रोकने के लिए त्वचा की खास देखभाल करें और निम्न घरेलू उपचार अपनाएं –
त्वचा (Skin) पर चोट या घाव न लगने दें – लोशन की मदद से त्वचा को नम बनाएं रखने की कोशिश करें। घाव (Wound) को ढंकने के लिए नरम पट्टी का इस्तेमाल करें और उसे ज्यादा टाइट न बांधें। ढीले कपड़े पहनें जिनपर न तो कोई टैग लगा हो और न ही जिनकी बाजुएं और सिलाई टाइट हो।
त्वचा को ठंडा रखें – अपने नहाने के पानी को कमरे के तापमान यानी 25 डिग्री से अधिक न रखें। जितना हो सके उतना एसी (एयर कंडीशनर) में रहने की कोशिश करें और गर्म व नमी से बचें।
और पढ़ें : Generalized Anxiety Disorder : जेनरलाइज्ड एंजायटी डिसऑर्डर क्या है? जानें इसके कारण, लक्षण और उपाय
फफोलों को फोड़ना – अगर एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का इलाज न किया जाए तो इनमें तरल पदार्थ भर सकता है जो की आगे चल के संक्रमित हो जाते हैं। फफोलों को खाली करने के लिए डॉक्टर से परामर्श करें।
संक्रमण के संकेतों को पहचाने – अगर त्वचा संक्रमित (Skin infection) होने लगी है, तो त्वचा के छूने पर लालिमा या गर्म महसूस हो सकता है। इसके साथ ही प्रभावित हिस्से से पस या पीलें रंग का डिस्चार्ज (Discharge) निकलता नजर आ सकता है। त्वचा पर लालिमा दिखाई देने या बुखार (Fever) और ठंडा महसूस होने पर आपको त्वचा का संक्रमण हो सकता है। इनमें से किसी भी लक्षण के दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
[embed-health-tool-vaccination-tool]