के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
पित्त का कैंसर वो कैंसर है जिसकी शुरुआत पित्ताशय (गॉलब्लैडर) से होती है। गॉलब्लैडर लिवर के ठीक नीचे नाशपाती के आकार का अंग होता है। इसका काम लिवर द्वारा रिलीज किए गए बाइल को स्टोर करना होता है। बाइल पित्त नली के माध्यम से गॉलब्लेडर से लिवर और छोटी आंत तक जाता है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, गॉलब्लैडर कैंसर दुर्लभ होता है। यदि इसका शुरुआती स्टेज में पता लगा लिया जाए तो इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। लेकिन ज्यादातर गॉलब्लैडर कैंसर के बारे में आखिरी स्टेज में मालूम होता है, जब इसका इलाज बेहद मुश्किल होता है। गॉलब्लैडर कैंसर का पता लगाना भी बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि ज्यादातर इसके किसी तरह के कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं।
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भारत में पित्ताशय के कैंसर के मामलों में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। इंडियन पापुलेशन डेमोंस्ट्रेटेस (Indian population demonstrates) के आंकड़ों के मुताबिक पित्त के कैंसर के सबसे अधिक मामले उत्तर और पूर्वी भारत में पाए जाते हैं। दी नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम ऑफ इंडिया (The National Cancer Registry Programme of India) से यह सामने आया है कि उत्तरी भारत में 1 लाख पुरुषों में से 4.5 पुरुष पित्त के कैंसर से ग्रसित होते हैं। जबकि महिलाओं में ये आंकड़े और अधिक बढ़ कर 1 लाख में 10.1 हो जाते हैं।
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पित्त कैंसर के कई प्रकार होते हैं। जो पित्ताशय को विभिन्न रूप से प्रभावित करते हैं। पित्त के कैंसर के प्रकार कुछ तरह हैं –
एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma)
यह पित्ताशय का सबसे सामान्य कैंसर होता है जो कि 100 में से 85 मामलों में लोगों में पाया जाता है। इस प्रकार का कैंसर ग्रंथियों की कोशिकाओं से शुरू होता है। यह ग्रंथियां श्लेम बनाने का कार्य करती हैं।
पित्ताशय के एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma) के तीन प्रकार होते हैं –
स्क्वैमस सेल कैंसर (Squamous cell cancer)
स्क्वैमस सेल कैंसर पित्ताशय की परत और ग्रंथियों की त्वचा समान कोशिकाओं में विकसित होता है। इसका इलाज एडेनोकार्सिनोमा के सामान होता है। पित्त के कैंसर के केवल 5 प्रतिशत मामले स्क्वैमस सेल कैंसर के होता हैं।
एडेनोस्क्वैमस कैंसर (Adenosquamous cancer)
एडेनोस्क्वैमस कार्सिनोमा में ग्रंथियों संबंधी और स्क्वैमस सेल दोनों प्रकार के कैंसर होते हैं। इसका इलाज एडेनोकार्सिनोमा की ही तरह किया जाता है।
स्माल सेल कैंसर (Small cell cancer)
स्माल सेल कैंसर को ओट सेल कार्सिनोमा भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस प्रकार के कैंसर में कैंसर कोशिकाएं ओट (जई) जैसी दिखाई देती हैं।
सारकोमा (Sarcoma)
पित्ताशय की मांसपेशियों की परत में होने वाले कैंसर को सार्कोमा कैंसर कहा जाता है। सारकोमा एक ऐसे प्रकार का कैंसर होता है जो शरीर को बचाने वाले ऊतकों को प्रभावित करता है। इन्हें आमतौर पर कनेक्टिव टिशू कहा जाता है। मांसपेशियां, रक्त वाहिकाएं और नसे (तंत्रिका) भी कनेक्टिव टिशू होती है।
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (Neuroendocrine tumour)
न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर एक दुर्लभ प्रकार के कैंसर होते हैं जो हॉर्मोन उत्पादक ऊतकों में विकसित होते हैं। ऐसा ज्यादातर मामलों में पाचन प्रणाली में होता है। न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर के सबसे सामान्य प्रकार को कार्सिनॉइड (carcinoid) कहा जाता है।
लिम्फोमा और मेलेनोमा (Lymphoma and Melanoma)
यह पित्ताशय के कैंसर के बेहद दुलर्भ प्रकार हैं। इन्हें जरूरत पढ़ने पर अन्य प्रकार के कैंसर की तरह ठीक नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लिम्फोमा कैंसर कोशिकाओं को कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी की मदद से ठीक किया जा सकता है। जबकि इनके इलाज में सर्जरी से ठीक होने की संभावना कम होती है।
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पित्त के कैंसर के बारे में शुरुआती दौर में मालूम करना बहुत मुश्किल होता है। क्योंकि इसके कोई खास लक्षण नजर नहीं आते हैं और जब कोई लक्षण होते हैं तो ये सामान्य होते हैं। इसके अलावा पित्त की थैली की लोकेशन भी एक कारण है, जो इसके बारे में पता नहीं लग पाता है।
गॉलब्लेडर कैंसर में निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:
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यदि आपको ऊपर दिए गए लक्षणों में से किसी भी प्रकार की स्थिति का संकेत मिलता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। हालांकि, ध्यान रहे कि इस सूची में सभी लक्षणों को शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह रोग विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न रूप से प्रभावित करता है। ऐसे में किसी भी प्रकार के पेट दर्द या अन्य असुविधा महसूस होने पर भी अपने डॉक्टर से सलाह लेने एक बेहतर विकल्प होता है।
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शोधकर्ताओं ने कुछ जोखिम कारक पाएं हैं, जो गॉलब्लैडर कैंसर को विकसित करने की संभावना को बढ़ाते हैं।
क्रोनिक गॉलब्लैडर इंफ्लामेशन (Chronic Gallblader Inflamation): गॉलब्लैडर में सूजन पित्त के कैंसर के कई जोखिम कारकों में से एक है। उदाहरण के लिए, जब किसी को गॉलस्टोन की समस्या होती है तो उसका गॉलब्लैडर बाइल को धीरे रिलीज करता है। इससे गॉलब्लेडर में जो सेल्स होते हैं, वो बाइल में मौजूद रासायन के संपर्क में अधिक समय के लिए रहते हैं। इससे गॉलब्लैडर में जलन और सूजन की परेशानी हो सकती है।
पोर्सिलेन गॉलब्लैडर (Porcelain gallbladder): पोर्सिलेन गॉलब्लेडर वो स्थिति है जिसमें गॉलब्लैडर की वॉल कैल्शियम डिपोजिट से कवर हो जाती है। ऐसा कई बार पित्ताशय की थैली में लंबे समय से सूजन के कारण होता है, जो गॉलब्लैडर स्टॉन का कारण बनता है। इस स्थिति वाले लोगों में पित्ताशय की थैली के कैंसर का खतरा अधिक होता है, क्योंकि दोनों ही स्थिति सूजन से संबंधित हो सकती है।
मोटापा (Obesity): गॉलब्लैडर कैंसर से पीड़ित लोग ज्यादातर ओवरवेट की समस्या से जूझ रहे होते हैं। मोटापा गॉलस्टोन होने का भी जोखिम कारक है।
बड़ी उम्र में (Older age): गॉलब्लैडर कैंसर ज्यादातर बड़ी उम्र के लोगों में देखने को मिलता है। यह कम उम्र में भी हो सकता है। पित्ताशय के कैंसर वाले अधिकांश लोग 65 या उससे अधिक उम्र के होते हैं।
पित्त नलिकाओं में असामान्यताएं (Abnormalities of the bile ducts): अग्न्याशय छोटी आंत में एक वाहिनी के माध्यम से बाइल जारी करता है। यह वाहिनी पित्त नली के साथ मिलती है। जहां ये नलिकाएं मिलती हैं, कुछ लोगों में इस जगह दोष होता है। इस कारण तरल पदार्थ को पीछे प्रवाहित करती हैं। इन असामान्यताओं वाले लोगों में पित्ताशय की थैली के कैंसर का खतरा अधिक होता है।
अन्य संभावित जोखिम कारक:
कुछ शोध के अनुसार निम्न कारक गॉलब्लैडर कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं:
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इस कैंसर के बारे में डॉ राहुलकुमार चव्हाण, सलाहकार सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, हीरानंदानी अस्पताल वाशी का कहना है,पित्त के कैंसर का निदान करने के लिए कुछ टेस्ट जरूरी है। जिनमें शामिल हैं: ब्लड केमिस्ट्री (Blood chemistries): यह टेस्ट ब्लड में कैंसर का सेंकत देने वाले विशिष्ट प्रकार के पदार्थों के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। इसके अलावा एब्डोमिनल अल्ट्रासाउंड गॉलब्लैडर कैंसर का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।
लिवर फंक्शन टेस्ट (Liver function test): यह टेस्ट लिवर द्वारा जारी कुछ पदार्थों के स्तर को मापता है, जो इस बात का संकेत देते हैं कि ग़ॉल्बलेडर कैंसर से लिवर प्रभावित हुआ है या नहीं।
सीटी स्कैन (CT scan): ये एक तरह का एक्स-रे है जो अंगों की विस्तृत छवियां लेने के लिए किया जाता है।
सीए 19.9 टेस्ट (CA 19-9 assay): यह टेस्ट बल्ड में ट्यूमर मार्कर, सीए 19-9 के स्तर को मापता है। यह पदार्थ स्वस्थ और कैंसर दोनों कोशिकाओं द्वारा जारी किया जाता है। शरीर में इस पदार्थ की उच्च मात्रा गॉल्बलेडर और पैंक्रिएटिक कैंसर का संकेत हो सकता है।
एमआरआई (MRI): इसमें मैगनेट, रेडियो वेव्स और कंप्यूटर की मदद से शरीर के अंदर की तस्वीरें ली जाती हैं।
ईआरसीपी (ERCP): यह एक एक्स-रे है जो पित्त नलिकाओं की तस्वीरें लेता है। गॉलब्लैडर कैंसर इन नलिकाओं के संकुचन का कारण बन सकता है।
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कैंसर के चरणों की मदद से कैंसर कोशिकाओं के फैलने की सीमा के बारे में पता लगाया जाता है। इस तकनीक से यह सुनिश्चित करने में आसानी होती है कि कैंसर पित्ताशय के अलावा किन अंगों तक फैल चुका है। आप कैंसर के किस चरण पर हैं इस बात का पता आपके डॉक्टर द्वारा लगाया जाता है। इसके साथ ही चरण के मुताबिक ही डॉक्टर आपको आपके इलाज की प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।
अमेरिकन जॉइंट कमिटी द्वारा पित्त के कैंसर के चरणों को टीएनएम (TNM) स्टेजिंग सिस्टम की मदद से विभाजित किया गया है। इसमें कैंसर के शून्य से लेकर चौथा चरण तक मौजूद होते हैं। मरीज कैंसर की किस स्टेज पर है इस बात का पता कैंसर कोशिकाओं के फैलने और अन्य अंगों के प्रभावित होने पर निर्भर करता है।
स्टेज 0 का मतलब होता है कि कैंसर की आसामान्य कोशिकाएं उतपन्न हुई जगह से कही और नहीं फैली हैं। इसे आमतौर पर कार्सिनोमा कहा जाता है। जब ट्यूमर फैल चुका होता है और अन्य अंगों को प्रभावित करने लगता है तो इस स्थिति को कैंसर का चौथा चरण माना जाता है।
गॉलब्लैडर कैंसर के ट्रीटमेंट के लिए कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी और सर्जरी की जाती है। हो सकता है ट्रीटमेंट में तीनों का उपयोग किया जाए। यह मरीज की उम्र और संपूर्ण हेल्थ पर भी निर्भर करता है। गॉलब्लैडर और उसके आस-पास के टिशू को रिमूव करने के लिए की जाने वाली सर्जरी को कोलसिस्टेक्टोमी कहते हैं। हो सकता है सर्जन गॉलब्लैडर के साथ उसके आस पास मौजूद लिम्फ नोड्स को भी हटा दे। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके शरीर में कैंसर कितना फैला है। गॉलब्लैडर कैंसर की पहली स्टेज में गॉलब्लैडर के आस-पास मैलिगनेंट सेल्स (malignant cells) पाए जाते हैं, जिन्हें सर्जरी द्वारा हटाया जा सकता है। गॉलब्लैडर कैंसर की दूसरी, तीसरी और आखिरी स्टेज में कैंसर गॉलब्लैडर से अन्य अंगों और टिशू तक फैल जाता है जिन्हें सर्जरी से हटाया नहीं जा सकता है।
रेडिएशन थेरेपी में कैंसर सेल्स को नष्ट करने, उन्हें बढ़ने से रोकने के लिए रेडिएशन के उच्च स्तर का उपयोग किया जाता है। कीमोथेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने या उन्हें गुणा होने से रोकने के लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है। कीमोथेरेपी दवाएं मुंह से या इंजेक्शन द्वारा ली जा सकती हैं।
शुरुआती चरणों में सर्जरी की मदद से पित्ताशय को हटा दिया जाता है। यदि कैंसर कोशिकाएं शुरुआती चरण में पित्ताशय के साथ लिवर को भी कुछ हद तक प्रभावित कर देती हैं तो उन्हें भी सर्जरी की मदद से निकाल दिया जाता है।
बाद के चरणों या गंभीर स्थिति में कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी का इस्तेमाल होता है। कुछ मामलों में दोनों का इस्तेमाल किया जाता है। इन थेरेपी की मदद से कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है।
कुछ गंभीर परिस्थितियों में पित्त नलिकाओं में रुकावट आने से पित्त के कैंसर की जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। कैंसर कोशिकाओं के कारण आई रुकावट को कुछ प्रक्रियाओं की मदद से ठीक किया जा सकता है। जैसे कि, सर्जन पित्त नलिकाओं को एक दूसरे से फिर से जोड़ने के लिए स्टेंट का इस्तेमाल करते हैं और साथ ही इससे पित्त को होल्ड करने में भी मदद मिलती है।
अगर आपका इससे जुड़ा किसी तरह का कोई सवाल है, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।
क्योंकि उम्र, अनुवांशिकता और जातीयता को बदला नहीं जा सकता है इसलिए पित्त के कैंसर को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है। हालांकि, एक स्वस्थ जीवनशैली की मदद से आप पित्त के कैंसर के होने के जोखिम को कम जरूर कर सकते हैं। जीवनशैली में निम्न तरह के बदलाव लाने से इसकी आशंका को कम किया जा सकता है –
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