मार्च के महीने को ब्लीडिंग डिसऑर्डर अवेयरनेस मंथ (Bleeding Disorder Awareness Month) के तौर पर जाना जाता है। इस महीने में ब्लीडिंग डिसऑर्डर जैसे हीमोफीलिया (Hemophilia) को लेकर लोगों को जागरूक किया जाता है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है उनके लिए हर वक्त परेशानी बनी रहती है। क्योंकि इस बीमारी में मरीज के शरीर के किसी भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून निकलना शुरू हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन लोगों में क्लॉट बनाने वाले घटक काफी कम होते हैं। इस बीमारी का इलाज बहुत मुश्किल है लेकिन हाल ही में किए गए एक शोध के अनुसार, दवा से शरीर में क्लॉट बनाने वाले घटकों की कमी को पूरा किया जा सकता है। हीमोफीलिया के उपचार के बारे में जानने से पहले विस्तार में इस बीमारी के बारे में जानते हैं…
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हीमोफीलिया के उपचार से पहले समझें, हीमोफीलिया क्या है? (What is Hemophilia)
हीमोफीलिया एक आनुवांशिक बीमारी है, जिसमें ब्लड क्लॉट बनने का प्रोसेस धीमा हो जाता है। जब कभी शरीर के किसी हिस्से पर चोट लगती है तो खून बहने लगता है। हमारे खून में क्लॉट बनाने वाले जरूरी घटक खून में मौजूद प्लेटलेट्स में मिलकर उसे गाढ़ा बना देते हैं, जिससे खून बहना बंद हो जाता है। हीमोफीलिया से ग्रसित लोगों में क्लॉट बनाने वाले घटक काफी कम होते हैं। यहीं कारण है कि उनमें लंबे समय तक खून बहता रहता है और वो जमता नहीं है। इसलिए किसी तरह की चोट या दुर्घटना ऐसे लेगों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। यूएस के आंकड़ों के मुताबिक, हर 5000 में से एक पुरुष इस बीमारी से ग्रसित होता है।
हीमोफीलिया को लेकर डॉ. विजय तोमर बताते हैं, ‘ज्यादातर लोगों में यह बीमारी आनुवांशिक कारणों से होती है। यानी अगर माता पिता में से किसी एक को भी यह परेशानी है तो वो बच्चे को भी हो सकती है। इस बात की संभावना बहुत कम होती है कि यह परेशानी किसी दूसरे कारण से हो’।
हीमोफीलिया 2 तरह के होते हैं:
- हीमोफीलिया-ए ( इसमें क्लॉटिंग फैक्टर 8 की कमी होती है)
- हीमोफीलिया-बी (इसमें क्लॉटिंग फैक्टर 9 की कमी होती है)
बता दें खून का धक्का बनाने के लिए ये दोनों फैक्टर ही जरूरी होते हैं। दोनों में किसी एक फैक्टर के जरूरत से ज्यादा कम होने पर हीमोफीलिया की बीमारी शुरू हो सकती है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों को किसी तरह की चोट लगने पर लगातार ब्लीडिंग हो सकती है। इसमें कभी-कभी इंटरनल ब्लीडिंग होती है, जो काफी गंभीर हो सकती है।
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हीमोफीलिया के उपचार से पहले समझें इसके लक्षण (Symptoms of Hemophilia)
ब्लड क्लॉटिंग की स्थिति में हीमोफीलिया के लक्षण निर्भर करते हैं। इसके लक्षण हल्के से लेकर बहुत गंभीर तक हो सकते हैं। लंबे समय तक रक्तस्राव के अलावा भी इस बीमारी के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं…
- नाक से लगातार खून बहता है (Frequent nose bleeds)
- मसूड़ों से खून निकलता है (Bleeding from mouth and gums)
- टीकाकरण के बाद खून बहना (Bleeding after vaccination or injection)
- त्वचा आसानी से छिल जाती है (Skin peels off easily)
- शरीर में आंतरिक रक्तस्राव के कारण जॉइंट्स में दर्द होता है (Bleeding into the joints which can lead to swelling or pain)
- स्टूल या यूरिन से ब्लड आना(Blood in the urine or stool)
- नील होना (Bleeding into the skin)
कई बार इस बीमारी में सिर के अंदर भी रक्तस्त्राव होता है जिस कारण सिरदर्द, गर्दन में अकड़न, बेहोशी, धुंधला दिखना और चेहरे पर लकवा होने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत कम मामलों में देखने को मिलता है।
हीमोफीलिया कैसे होता है?
हीमोफीलिया के उपचार से पहले आपको जानन होगा कि हीमोफीलिया होता कैसे है। यह बीमारी बच्चों को अपने माता-पिता से विरासत में मिलती है। इसके मरीजों में शरीर में कटने या खरोंच लगने पर लगातार खून बहता है। यदि माता या पिता में से किसी को यह बीमारी है तो उन्हें पहले ही बच्चे की जांच करा लेनी चाहिए। उपरोक्त बताए गए लक्षण में यदि आपको कोई लक्षण नजर आए तो तुरंत अपने डॉक्टर से कंसल्ट करें।
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हीमोफीलिया के कितने स्तर होते हैं:
हीमोफीलिया के तीन स्तर होते हैं। पहला होता है हल्का स्तर। इसमें शरीर में क्लॉट बनाने वाले घटक 5 से 50 प्रतिशत तक होते हैं। दूसरा होता है मध्यम स्तर। इसमें क्लॉट बनाने वाले घटक 1 से 5 प्रतिशत होते हैं। तीसरा है गंभीर स्तर जिसमें धक्के बनाने वाले घटक का स्तर 1 प्रतिशत से भी कम होता है।
हीमोफीलिया के उपचार (Treatment of Hemophilia)
हीमोफीलिया का पहले कोई उपचार नहीं था लेकिन वैज्ञानिकों ने हीमोफीलिया के उपचार ढ़ूंढने में सफलता पाई है। वैज्ञानिकों ने ऐसा इंजेक्शन तैयार किया है जिससे शरीर में घटकों की कमी को दूर किया जा सकता है। इसलिए आज हीमोफीलिया के उपचार आसान हो गया है। अगर बीमारी ज्यादा गंभीर नहीं है तो सिर्फ दवा देकर इलाज किया जाता है। बता दें, हीमोफीलया ‘ए’ 10 हज़ार में से एक मरीज में पाया जाता है और वहीं हीमोफीलया ‘बी’ 40 हजार में से एक को होता है। हीमोफीलया ‘बी’ काफी गंभीर है और इसे लेकर बहुत कम लोगों को सही जानकारी है। हाल ही में हुए एक रिसर्च के मुताबिक, हर दो से तीन दिन में EHL-FIX की डोज देकर हीमोफीलया ‘बी’ में होने वाली फैक्टर 9 की कमी को कंट्रोल में रखा जा सकता है। इसके अलावा हीमोफीलया ‘ए’ के पेशेंट्स में जीन थेरेपी दवा प्रभावी पाई गई है। शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अनुंसाध के अनुसार, हीमोफीलिया ए पीड़ितों पर एक साल तक जीन थेरेपी दवा की एकल उपचार विधि आजमाई गई। इस दवा को देने से मरीजों में थक्का बनने में मददगार प्रोटीन का स्तर सामान्य पाया गया।
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हीमोफीलिया के उपचार के साथ जीवनशैली में करें ये बदलाव
- इंट्रामस्कुलर इंजेक्शन लगाने से बचें
- ड्राइविंग के वक्त हमेशा सीट बेल्ट का इस्तेमाल करें
- ऐसी गतिविधियों को करने से बचें जहां आपको चोट लगने का डर हो
- साल में दो बार अपने डेंटिस्ट के पास जरूर जाएं
- डायट पर खास ध्यान दें
इस आर्टिकल में हमने आपको हीमोफीलिया से संबंधित जरूरी बातें बताने की कोशिश की है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस बीमारी से जुड़े किसी अन्य सवाल का जवाब जानना है, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे। आपको हमारा यह लेख कैसा लगा यह भी आप हमें कमेंट कर बता सकते हैं।