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इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (ITP) का कैसे किया जाता है ट्रीटमेंट?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 28/05/2021

    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (ITP) का कैसे किया जाता है ट्रीटमेंट?

    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (आईटीपी) एक इम्यून डिसऑर्डर है, जिसके कारण ब्लड क्लॉट नहीं हो पाता है। इस कंडीशन को इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (Immune thrombocytopenia) भी कहते हैं। आईटीपी के कारण चोट और अधिक ब्लीडिंग का खतरा बढ़ जाता है। ब्लड में प्लेटलेट या थ्रोम्बोसाइट्स का स्तर भी घटने लगता है। प्लेटलेट (Platelets) का प्रोडक्शन बोन मैरो में होता है। जब कोई कट या फिर चोट लगती है, तो ये एक साथ मिलकर क्लॉट का निर्माण करती है, जिसके कारण खून बहना बंद हो जाता है। अगर खून में पर्याप्त मात्रा में प्लेटलेट न हो, तो क्लॉटिंग की प्रक्रिया धीमी गति से होगी। इस कारण से खून भी अधिक बहेगा। इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा किस कारण से होता है और इसे दूर करने के लिए कौन-से ट्रीटमेंट अपनाएं जाते हैं, आज हम आपको इस आर्टिकल में जानकारी देंगे।

    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (Idiopathic Thrombocytopenic Purpura)

    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा

    जिन लोगों में इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा डिसऑर्डर की समस्या होती है, उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों या स्किन में परप्यूरा (बैंगनी रंग के निशान) दिखाई पड़ते हैं। ये दाग पिनपॉइंट होते हैं और स्किन में रैशेज की तरह दिखाई पड़ते हैं। ये प्लेटलेट डिसऑर्डर बच्चों से लेकर एडल्ट तक में पाया जा सकता है। कम उम्र में महिलाओं में ये समस्या कॉमन होती है जबकि उम्र बढ़ने पर पुरुषों में ये डिसऑर्डर ज्यादा कॉमन हो जाता है। अगर बच्चों को वायरल संक्रमण (Viral infection) हो जाए, तो उनमें इस रक्त विकार (Blood disorder) का खतरा अधिक बढ़ जाता है। कुछ वायरस जैसे कि चिकनपॉक्स, मीजल्स आदि के कारण आईटीपी का खतरा बढ़ जाता है। जानिए आईटीपी होने पर शरीर पर क्या लक्षण दिखाई पड़ते हैं।

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    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा के लक्षण( Symptoms of Idiopathic Thrombocytopenic Purpura)

    आईटीपी के सबसे आम लक्षणों में निम्नलिखित लक्षण शामिल हैं:

    •  निचले पैरों पर निशान बनना
    • कट्स से लंबे समय तक ब्लीडिंग (Prolonged bleeding from cuts)
    • अचानक से खून बहना (Spontaneous nosebleeds)
    • मसूड़ों से खून बहना (Bleeding from the gums)
    • आसानी से चोट लगना (Bruising easily)
    • पेशाब में खून (Blood in the urine)
    • मल में खून (blood in the stool)
    • असामान्य हैवी पीरियड्स (abnormally heavy menstruation)
    • सर्जरी के दौरान प्रोफ्यूज ब्लीडिंग (profuse bleeding during surgery)

    आईटीपी से पीड़ित कुछ व्यक्तियों में जरूरी नहीं है कि उपरोक्त दिए गए लक्षण नजर आएं। अगर आपको उपरोक्त लक्षण नजर आते हैं, तो आपको बिना देरी किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इलाज में देरी अधिक ब्लीडिंग का कारण बन सकती है, जो कि जानलेवा भी हो सकता है।

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    किस कारण से होती है आईटीपी की समस्या (Causes of ITP)?

    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। पहला एक्यूट आईटीपी और दूसरा क्रॉनिक यानी लॉन्ग टर्म Llong term) आईटीपी। बच्चों में एक्यूट आईटीपी की समस्या होती है, जो छह माह तक रह सकती है। वहीं क्रॉनिक आईटीपी की समस्या एडल्ट्स, टीनएजर्स में दिखाई पड़ती है। आईटीपी की बीमारी का कारण पहले ज्ञात नहीं था लेकिन अब ये माना जाता है कि इम्यून सिस्टम (Immune system) इस बीमारी में अहम रोल अदा करता है। इसी कारण से इस बीमारी को इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (immune thrombocytopenia) के नाम से भी जाना जाता है।

    जब इम्यून सिस्टम प्लेटलेट के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है, तो आईटीपी की बीमारी हो जाती है। ये प्लेटलेट स्प्लीन के माध्यम से हटा दी जाती हैं और इस कारण से प्लेटलेट की संख्या कम हो जाती है। इम्यून सिस्टम उस सेल्स पर फिर इंटरफेयर करता है, जो प्लेटलेट को बनाने का काम करती हैं। यहीं कारण है कि धीरे-धीरे प्लेटलेट की संख्या कम होने लगती है। कुछ ऑटोइम्यून डिजीज, प्रेग्नेंसी, मेडिकेशन या फिर किसी प्रकार का कैंसर इस बीमारी के सेकेंड्री ट्रिगर के रूप में काम कर सकता है।

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    इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया को कैसे किया जाता है डायग्नोज? (Diagnosis of immune thrombocytopenia)

    इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (immune thrombocytopenia) का डायग्नोसिस करने के लिए पहले डॉक्टर पेशेंट की शारीरिक जांच करते हैं और फिर उन लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं, जो वो महसूस कर रहा है। डॉक्टर ब्लड टेस्ट से साथ ही सीबीसी यानी कम्प्लीट ब्लड काउंट टेस्ट (complete blood count) कराने की सलाह देते हैं।  ब्लड टेस्ट के दौरान लिवर और किडनी के फंक्शन के बारे में भी जानकारी मिलती है। ब्लड स्मीयर ( blood smear) के दौरान डॉक्टर ब्लड की कुछ मात्रा को ग्लास स्लाइड में लेकर जांचते हैं। इससे प्लेटलेट के बारे में जानकारी मिलती है। अगर लो प्लेटलेट काउंट हुआ, तो डॉक्टर बोन मैरो टेस्ट (bone marrow test) के लिए भी कह सकते हैं। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉ़क्टर से परामर्श कर सकते हैं।

    इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया का ट्रीटमेंट (Treatment of immune thrombocytopenia)

    ट्रीटमेंट इस बात पर निर्भर करता है कि प्लेटलेट की कितनी संख्या है और कितनी खून बह चुका है। कुछ केसेज में ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है। बच्चों में होने वाली एक्यूट आईटीपी को ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि ये छह से सात महीने में ठीक हो जाता है। आईटीपी के ट्रीटमेंट के लिए मेडिकेशन, सर्जरी, इमरजेंसी ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है। जानिए आईटीपी की बीमारी होने पर डॉक्टर किन दवाओं को लेने की सलाह देते हैं।

    कोर्टिकोस्टेरॉइड्स (Corticosteroids) – प्रेडनिसोन (prednisone) का इस्तेमाल खून में प्लेटलेट की संख्या को बढ़ाने के लिए किया जाता है। ऐसा इम्यून सिस्टम की एक्टिविटी को कम करके किया जाता है।

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    इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन (Intravenous immunoglobulin) – अगर किसी व्यक्ति को ब्लीडिंग अधिक हो गई है और उसे तुरंत अधिक प्लेटलेट चाहिए, तो ऐसे में इंट्रावीनस इम्युनोग्लोबुलिन दी जाती है।

    एंटी-डी इम्यूनोग्लोबुलिन  (Anti-D immunoglobulin) – जिनका लोगों में ब्लड Rh-पॉजिटिव होता है, उन्हें एंटी-डी इम्यूनोग्लोबुलिन की जरूरत पड़ती है। ये शरीर में तेजी से प्लेटलेट को बढ़ाने का काम करती है। इसके दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं।

    रिटक्सिमैब (Rituximab)- ये एक एंटीबॉडी थेरिपी (Antibody therapy) है, जिसमें इम्यून सेल्स को टारगेट किया जाता है। उन प्रोटीन पर हमला किया जाता है, जो प्लेटलेट पर अटैक करती हैं।

    सर्जरी (Surgery)

    अगर किसी व्यक्ति को क्रॉनिक आईटीपी की समस्या है, और दवाओं से इलाज नहीं हो पा रहा है, तो ऐसे में सर्जरी की सहायता ली जाती है। स्प्लेनेक्टोमी (splenectomy) की हेल्प से स्प्लीन को हटाया जाता है। स्प्लीन अपर एब्डॉमन के लेफ्ट साइट में होता है। स्प्लेनेक्टोमी बच्चों में भी की जा सकती है। इस सर्जरी से बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।

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    इन बातों का रखें ध्यान

    • अगर प्रेग्नेंसी के दौरान (During pregnancy) आपको आईटीपी की समस्या हो गई है, तो डॉक्टर प्रेग्नेंसी के बाद ट्रीटमेंट की सलाह देते हैं। आपको घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका असर बच्चे पर नहीं पड़ता है।
    • ट्रीटमेंट के बाद बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए डॉक्टर से जानकारी जरूर लें कि किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
    • डॉक्टर आपको कुछ दवाओं को खाने से मना करेंगे, जो प्लेटलेट फंक्शन को प्रभावित करती हैं। इसमें एस्पिरिन, ब्लड थिनिंग मेडिसिन हो सकती हैं।
    • आपको ऐसी एक्टिविटी नहीं करनी चाहिए, जिससे आपको चोट लगने का अधिक खतरा हो।

    हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता। इस आर्टिकल में हमने आपको प्लेटलेट डिसऑर्डर

    इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (Idiopathic Thrombocytopenic Purpura)   के संबंध में जानकारी दी है। अगर आपको किसी प्रकार का रक्त विकार हो गया है, तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं और ट्रीटमेंट कराएं।

    उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।

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