कुछ ऐसे भी कारण हो सकते हैं जो ऊपर नहीं बताए गए हों। लेकिन, अगर आपको इन लक्षणों के अलावा कोई और लक्षण भी नजर आते हैं तो आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
हमें डॉक्टर से कब मिलना चाहिए?
अगर आपको ऊपर बताए गए लक्षण या कोई और लक्षण महसूस होते हैं तो आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। क्योंकि हर व्यक्ति के शरीर की बनावट अलग होती है। इसलिए बेहतर होगा की आप डॉक्टर से संर्पक करें।
और पढ़ें : खून में हीमोग्लोबिन बढ़ाने के लिए अपनाएं आसान टिप्स
[mc4wp_form id=’183492″]
किन कारणों से होता है थ्रोम्बोसाइटोपेनिया?
ब्लड रिलेशन या मेडिकल प्रॉब्लम की वजह से थ्रोम्बोसाइटोपेनिया हो सकता है।
बोन मेरो प्रॉब्लम होने की वजह से प्लेटलेट्स की संख्या कम हो सकती है। कुछ निम्नलिखित हेल्थ कंडीशन की वजह से भी ऐसा हो सकता है:
- ल्यूकेमिया
- एनीमिया
- कीमोथेरिपी ड्रग्स
- विटामिन-बी 12, फोलेट या आयरन की कमी
- सिरोसिस
- इस बीमारी के कारण स्प्लीन के कार्य पर प्रभाव पड़ता है, जैसे इंफेक्शन से लड़ना, हानिकारक तत्वों को पहचानना। स्प्लीन के बड़े होने के कारण यह ज्यादा प्लेटलेट्स को पकड़ कर रखता है और साथ ही ब्लड से प्लेटलेट्स की मात्रा कम होती है।
हेल्थ से जुड़ी परेशानी की वजह से प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं, जैसे:
- प्रेग्नेंसी के दौरान थ्रोम्बोसाइटोपेनिया की समस्या हो सकती है लेकिन, बच्चे के जन्म के बाद ठीक हो सकती है।
- इम्यून थ्रोम्बोसाइटोपेनिया ऑटोइम्यून सिस्टम डिसऑर्डर की वजह से हो सकता है।
- बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से थ्रोम्बोसाइटोपेनिया की परेशानी हो सकती है।
- थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिया परप्युरा (Thrombotic thrombocytopenia purpura) एक दुर्लभ स्थिति है जो छोटे रक्त के थक्के के गठन में वृद्धि और प्लेटलेट्स के बढ़ने की वजह से होता है।
- हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम एक दुर्लभ स्थिति है जो आमतौर पर बैक्टीरियल ई.कोली इंफेक्शन के कारण होता है।
- कुछ दवाएं कभी-कभी प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करती हैं और प्लेटलेट्स की संख्या को कम करती हैं, जैसे हेपरिन, सल्फा युक्त एंटी-बायोटिक।