मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome) हेल्थ कंडिशंस के उस ग्रुप को कहा जाता है, जो एक साथ होती हैं और रोगी में हार्ट डिजीज, स्ट्रोक और टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ा देती हैं। इन कंडिशन में ब्लड प्रेशर का बढ़ना, हाय ब्लड शुगर, कमर में अत्यधिक फैट और एब्नार्मल कोलेस्ट्रॉल या ट्राइग्लिसराइड लेवल आदि शामिल हैं। इस सिंड्रोम के रोगियों में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को लो एरोबिक कैपेसिटी और बिगड़े हुए स्केलेटल मसल एनर्जी मेटाबोलिज्म के साथ भी जोड़ा जाता है। आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) के बारे में। लेकिन मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) से पहले मेटाबॉलिक सिंड्रोम और सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के बारे में जानकारी होना भी आवश्यक है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome): क्या है यह समस्या?
यह सिंड्रोम खुद कोई बीमारी नहीं है। लेकिन, यह रिस्क फैक्टर्स का एक समूह है। जैसे हाय ब्लड प्रेशर (High blood pressure), हाय ब्लड शुगर (High blood sugar), अनहेल्दी कोलेस्ट्रॉल लेवल (Unhealthy cholesterol level) और एब्डोमिनल फैट (Abdominal fat) आदि। इनमें से अगर आपको कोई भी एक समस्या है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित हैं। लेकिन, इसका मतलब यह है कि आपको गंभीर बीमारियों के होने का जोखिम अधिक है। अगर आपमें यह एक से अधिक कंडिशंस विकसित हो जाती हैं जैसे टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes) और हार्ट डिजीज (Heart Disease), तो कॉम्प्लीकेशन्स का रिस्क बहुत अधिक बढ़ सकता है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome) की समस्या सामान्य रूप से बहुत अधिक बढ़ रही है। अगर आपको यह सिंड्रोम है, तो ऐसे में जीवनशैली में बदलाव से कई हेल्थ प्रॉब्लम्स से बचा जा सकता है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) के बारे में जानने से पहले आइए जानें इसके लक्षणों के बारे में।
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मेटाबॉलिक सिंड्रोम के लक्षण (Symptoms of metabolic syndrome)
मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome) को मोटापा और इंएक्टिविटी से जोड़ कर देखा जाता है। यही नहीं, इसे इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin resistance) से भी लिंक किया जाता है। आमतौर पर हमारा डायजेस्टिव सिस्टम जो आहार हम खाते हैं, उसे शुगर में ब्रेक-डाउन कर देता है। इंसुलिन उस हॉर्मोन्स को कहा जाता है, जिसे हमारा पैंक्रियाज बनाता है। इंसुलिन शुगर को सेल्स के अंदर जाने में मदद करती हैं, ताकि उसका इस्तेमाल फ्यूल के रूप में किया जा सके। इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin resistance) में सेल्स इंसुलिन को सही से इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण शरीर में ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) बढ़ सकता है।
अब बात की जाए इस समस्या के लक्षणों की तो आमतौर पर इसके कोई लक्षण रोगी को नजर नहीं आते हैं। इसका एक लक्षण जिसे नोटिस किया जा सकता है वो है कमर में चर्बी का बढ़ना। अगर आपके शरीर में ब्लड ग्लूकोज में बढ़ोतरी हो गई हो, तो आप डायबिटीज के लक्षणों का भी अनुभव कर सकते हैं जैसे प्यास बढ़ना, लगातार मूत्र त्याग, थकावट या नजरों का धुंधला होना आदि। मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) से पहले सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress) किसे कहा जाता है, जानिए।
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सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस किसे कहा जाता है? (Systemic Oxidative Stress)
सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress) उस स्टेट को कहा जाता है, जो शरीर के सेल्स में फ्री रेडिकल्स के बहुत अधिक होने पर होती है। हमारा शरीर मेटाबॉलिक प्रोसेसेज के दौरान फ्री रेडिकल्स को प्रोड्यूज करता है। ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, सेल्स, प्रोटीन और DNA को डैमेज कर सकती है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो यह समस्या शरीर में फ्री रेडिकल्स और एंटीऑक्सिडेंट्स के असंतुलन को कहा जाता है। फ्री रेडिकल्स इलेक्ट्रॉन्स के अनइवेन नंबर्स के साथ ऑक्सीजन-युक्त मोलेक्युल्स होते हैं। फ्री रेडिकल्स के कारण शरीर में लार्ज चैन केमिकल रिएक्शंस (Chemical reactions) हो सकते हैं। क्योंकि, वो अन्य मोलेक्युल्स के साथ आसानी से रियेक्ट कर सकते हैं। इन रिएक्शन को ऑक्सीडेशन कहा जाता है। यह फ्री रेडिकल्स लाभदायक भी होते हैं और हानिकारक भी हो सकते हैं। फ्री रेडिकल्स के असंतुलन के कारण कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे:
- डायबिटीज (Diabetes)
- एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis)
- इंफ्लेमेटरी कंडिशंस (Inflammatory conditions)
- हाय ब्लड प्रेशर (High blood pressure)
- हार्ट डिजीज (Heart disease)
- न्यूरोजेनेरेटिव डिजीज (Neurodegenerative diseases)
कई अन्य फैक्टर्स भी इस स्ट्रेस को बढ़ाने और बहुत अधिक फ्री रेडिकल्स प्रोडक्शन में योगदान दे सकते हैं जैसे खराब डायट और लाइफस्टाइल, कुछ कंडिशंस या एनवायर्नमेंटल फैक्टर्स जैसे प्रदूषण और रेडिएशंस आदि। हेल्दी लाइफस्टाइल से इस स्थिति से बचा जा सकता है। अब जानिए मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) के बारे में।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients): क्या कहती है स्टडी जानिए?
अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (American Diabetes Association) के द्वारा की गई एक स्टडी का उद्देश्य यह जानना था कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients), लो एरोबिक कैपेसिटी (Low aerobic capacity) और बिगड़ी स्केलेटन मसल एनर्जी, मेटाबोलिज्म (Skeletal Muscle Energy Metabolism) से संबंधित है या नहीं? दरअसल सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress) को इंसुलिन रेजिस्टेंस और ओबेसिटी से जोड़ कर देखा जाता है। इससे न केवल टाइप 2 डायबिटीज और कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का रिस्क ही नहीं बढ़ता, बल्कि मृत्यु का जोखिम भी बढ़ सकता है। इस स्टडी में चौदह पुरुषों को शामिल किया गया था।
इन सब लोगों को इनमें से कोई भी समस्या नहीं थी जैसे कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (Cardiovascular disease), पेरीफेरल आर्टरी डिजीज(Peripheral artery disease), पल्मोनरी डिजीज (Pulmonary Disease), स्ट्रोक (Stroke) आदि। न ही वो टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes) या डिसलिपिडेमिया (Dyslipidemia) की कोई दवा ले रहे था। इन मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित चौदह रोगियों में से सात का एंटीहायपरटेंसिव ड्रग्स (Antihypertensive drugs) से उपचार किया गया। तीन रोगियों को बीटा-ब्लॉकर्स (Beta blockers), अन्य तीन को एंजियोटेंसिन II रिसेप्टर ब्लॉकर्स (Angiotensin II receptor blockers) और एक मरीज को डाइयूरेटिक्स (Diuretics) दी गई। इसके साथ ही उनका बॉडी वेट, वेस्ट सरकमफेरेंस, हाइट, ब्लड प्रेशर आदि मापा गया। इसके साथ ही रोगियों के होल बॉडी फैट मास Whole-body fat mass और लीन बॉडी मास (Lean body mass) को भी जांचा गया।
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उनके ब्लड सैम्पल्स लिए गए ताकि ब्लड ग्लूकोज, प्लाज्मा इंसुलिन, HbA1c, HDL कोलेस्ट्रॉल, LDL कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड और फ्री फैटी एसिड्स को भी मापा जा सके। उनकी एरोबिक कैपेसिटी (Aerobic capacity), डेली फिजिकल एक्टिविटी (Daily physical activities) और सिस्टमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस आदि के बारे में भी जाना गया। इस स्टडी में यह निष्कर्ष निकला कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients), लो एरोबिक कैपेसिटी और बिगड़ी स्केलेटन मसल एनर्जी मेटाबोलिज्म से जुड़ा हुआ है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस(Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients): मेटाबॉलिक सिंड्रोम को इस तरह से करें मैनेज
यह तो थी मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) के बारे में जानकारी। एक स्वस्थ जीवनशैली का पालन करना उन स्थितियों को रोक सकती है, जो मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome) का कारण बनती हैं। ऐसे में हेल्दी जीवनशैली में इन अच्छी आदतों को अवश्य शामिल करें जैसे नियमित फिजिकल एक्टिविटीज करें। रोजाना कम से 30 मिनट अवश्य निकालें ताकि आप व्यायाम कर सकें। अधिक से अधिक सब्जियों, फलों, लीन प्रोटीन और साबुत अनाज का सेवन करें। इसके साथ सैचुरेटेड फैट, चीनी और नमक सीमित मात्रा में लें। अपने वजन को सही रखें और स्मोकिंग करने से बचें।
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उम्मीद है कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम पेशेंट्स में सिस्टेमिक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (Systemic Oxidative Stress in metabolic syndrome patients) के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर इसके बारे में आपके मन में कोई भी सवाल है, तो अपने डॉक्टर से अवश्य जानें। आप हमारे फेसबुक पेज पर भी अपने सवालों को पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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