कहते हैं कि स्वस्थ्य शरीर ही असल में आपकी दौलत है। अगर आपका शरीर बीमार रहता है, तो न आपका मन किसी काम में लगता है और न ही आप खुश रह पाते हैं। जब शरीर में कोई बीमारी जन्म लेती है, तो उसका सही समय पर उपचार बहुत जरूरी होता है वरना उनके कारण दूसरी बीमारी जन्म ले सकती है। हमारे शरीर में भले ही विभिन्न कार्यों को करने के लिए अलग-अलग ऑर्गन हो लेकिन किसी एक आर्गन के खराब होने पर दूसरे की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। आज हम आपको ऐसी ही दो समस्याओं के बारे में बताएंगे, जो एक-दूसरे से संबंधित है। डायबिटीज और डिप्रेशन (Diabetes and Depression) के एक-दूसरे से संबंधित होने के प्रमाण मिले हैं। जानिए आखिर क्या है एक-दूसरे का संबंध।
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डायबिटीज और डिप्रेशन (Diabetes and Depression) का संबंध
एनसीबीआई में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जिन व्यक्तियों को डायबिटीज की बीमारी होती है, उनमें डिप्रेशन होने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही जिन लोगों को डिप्रेशन की समस्या रहती है, उनमें डायबिटीज का खतरा भी बढ़ जाता है। यानी डायबिटीज या फिर डिप्रेशन होने पर आपको दूसरी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
इसी कारण से जिन लोगों को डिप्रेशन की समस्या होती है, उन्हें अक्सर डायबिटीज की जांच कराने की सलाह दी जाती है। डायबिटीज और डिप्रेशन (Diabetes and Depression) के बीच सीधे संबंध के बारे में बताना मुश्किल है लेकिन जानकारों का मानना है कि डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic neuropathy) या फिर ब्रेन में ब्लड वैसल्स के ब्लॉक होने पर डिप्रेशन की स्थिति पैदा हो सकती है। डिप्रेशन के कारण मस्तिष्क में परिवर्तन से कॉम्प्लीकेशन का खतरा बढ़ सकता है।स्टडी से जानकारी मिलती है कि डिप्रेशन से पीड़ित लोगों में डायबिटीज के कॉम्प्लीकेशन का खतरा अधिक हो जाता है, लेकिन यह निर्धारित करना मुश्किल होता है कि इनमें कौन से कारण शामिल हैं। डिप्रेशन के लक्षणों के कारण डायबिटीज से संबंधित कॉम्प्लीकेशंस को मैनेज करना कठिन हो जाता है।
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डायबिटीज और डिप्रेशन के कॉमन लक्षण (Common symptoms of diabetes and depression)
क्रॉनिक डायबिटीज या टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes) के लक्षणों के साथ ही आपको डिप्रेशन के लक्षण भी दिख सकते हैं। टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी होने पर हमारा शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है। कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करती हैं। इंसुलिन के बिना सेल्स ग्लूकोज का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं और थकावट, प्यास बढ़ना आदि डायबिटीज के लक्षण दिखने लगते हैं। डायबिटीज की बीमारी के लक्षण शुरुआत में दिखते नहीं हैं।अगर आपको डायबिटीज के लक्षण नियंत्रित भी दिखते हैं, तो हो सकता है कि कुछ समय बाद आपको डिप्रेशन के लक्षण दिखने लगे।यहां हम आपको कुछ लक्षणों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
- काम के दौरान एंजॉयमेंट न कर पाना
- अधिक नींद या नींद न आना (Insomnia)
- भूख न लगना (Loss of appetite) या अधिक भूख
- ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता
- सुस्ती महसूस होना (Feeling lethargic)
- चिंता या घबराहट (Nervousness)
- अकेलापन महसूस करना (Feeling isolated and alone)
- उदासी (Feeling sadness )
- सही न कर पाने का विचार
- खुद को नुकसान पहुंचाना
पूअर डायबिटीज मैनेजमेंट (Poor diabetes management) अवसाद के लक्षणों को प्रकट कर सकता है। ब्लड शुगर बहुत अधिक या बहुत कम होने पर आपकी चिंता, बेचैनी बढ़ सकती है। लो लेवल शुगर के कारण कंपकंपी और पसीना आ सकता है। एंग्जायटी (Anxiety) होने पर भी ये लक्षण नजर आते हैं। अगर आपको डिप्रेशन के लक्षण दिख रहे हैं, तो बिना देरी किए आपको तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए ताकि आपको डायबिटीज और डिप्रेशन का सामना (Diabetes and Depression) एक साथ न करना पड़े।
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टाइप 2 डायबिटीज और डिप्रेशन (Type 2 diabetes and depression)
टाइप 2 डायबिटीज जैसी क्रॉनिक डिजीज डिप्रेशन का कारण बन सकती है। इस कारण से बीमारी को नियंत्रित करने में समस्या पैदा हो सकती है। इन दोनों ही बीमारी से समान रिस्क फैक्टर जुड़े हुए हैं। जानिए इनके बारे में।
- डायबिटीज या डिप्रेशन का पारिवारिक इतिहास
- मोटापा (Obesity)
- हायपरटेंशन (Hypertension)
- इनएक्टिविटी (Inactivity)
- कोरोनरी आर्टरी डिजीज (Coronary artery disease)
डिप्रेशन के कारण डायबिटीज को कंट्रोल करने में मुश्किल हो जाती है। सेल्फ केयर के दौरान डिप्रेशन समस्या पैदा कर सकता है। डिप्रेशन के कारण सेल्फ केयर, डायट, एक्सरसाइज और लाइफस्टाइल के अन्य विकल्पों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। अब आपको डिप्रेशन की समस्या काफी समय से है, तो ये आपके ब्लड शुगर लेवल को भी बढ़ा सकती है। जानिए डायबिटीज और डिप्रेशन(Diabetes and Depression) को कैसे मैनेज किया जा सकता है।
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कैसे करें टाइप 2 डायबिटीज और डिप्रेशन को मैनेज (How to Manage Type 2 Diabetes and Depression)
डायबिटीज सेल्फ मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत मेटाबॉलिक कंट्रोल, फिटनेस लेवल को बढ़ाना, वेट लॉस (Weight loss) करना, कार्डियोवैस्कुलर रिस्क फैक्टर को कम करना आदि पर फोकस किया जाता है। इनसे लाइफ की क्वालिटी बेहतर होती है। साइकोथेरिपी (Psychotherapy) में कॉग्नेटिव बिहेवियर थेरिपी (Cognitive behavioral therapy) की मदद से डिप्रेशन को कम करने में मदद मिलती है, जिससे बेहतर डायबिटीज मैनेजमेंट किया जाता है। वहीं कुछ दवाओं के इस्तेमाल के साथ ही लाइफस्टाइल में बदलाव दोनों ही बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है। अगर आपको डायबिटीज की समस्या है, तो आपको डिप्रेशन के लक्षणों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। आपको बिना देरी किए इस संबंध में डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
डायबिटीज में नियंत्रण के लिए आपको डॉक्टर से जानकारी लेनी चाहिए कि कौने-से फूड्स को पूरी तरह से अवॉयड करना है और किनका थोड़ी मात्रा में सेवन किया जा सकता है। ऐसा करने से आपको फूड्स के सेवन के दौरान किसी प्रकार का कंफ्यूजन नहीं होगा।
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खानपान की आदतों में सुधार करके, रोजाना एक्सरसाइज या योगा करके और मोटापे को घटाकर आप डायबिटीज की संभावना को कम कर सकते हैं। अगर आपको डायबिटीज की बीमारी है, तो आपको अपने खानपान से लेकर व्यायाम तक को शेड्यूल करने की जरूरत है ताकि आपको कोई अन्य बीमारी न घेर लें।
हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता। इस आर्टिकल में हमने आपको डायबिटीज और डिप्रेशन (Diabetes and Depression) के संबंध में जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्सर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।
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