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सर्दियों में बढ़ जाता है ब्रेन स्ट्रोक का खतरा, पहले से ही रखें ये सावधानियां

सर्दियों में बढ़ जाता है ब्रेन स्ट्रोक का खतरा, पहले से ही रखें ये सावधानियां

कोराेना की मार के साथ साल 2021 की सर्दियों ने दस्तक दे दिया है। इस ठंड के मौसम का प्रभाव भारत में विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग देखने को मिलता है। कहीं तेज हवाओं के साथ कोहरा हो रहा होता है, तो कहीं बर्फ गिर रही होती है। लेकिन इस बार सभी जगह कोरोना का कहर बराबर ही है। लोगों का ध्यान पूरी तरह से इस वायरस पर ही लगा हुआ है।  लेकिन ठंड के मौसम में भी कई मेजर हेल्थ प्रॉब्लम का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि स्ट्रोक का खतरा।  यह एक जानलेवा बीमारी है। सर्दियों के दौरान यह गिरा हुआ तापमान सीधे दिमाग को प्रभावित करता है और इसी के साथ कार्डियक अरेस्ट का जोखिम भी अधिक बढ़ जाता है।

ब्रेन स्ट्रोक ( Brain Stroke) क्या है ?

ब्रेन स्ट्रोक एक ऐसी स्थिति है, जिसमें ब्लड कलॉटेज के कारण ब्लॉकेज हो जाती है और दिमाग की कोई एक नस फट जाती है। सर्दियों में मौसम में ब्रेन स्ट्राेक का खतरा इसलिए भी और बढ़ जाता क्योंकि दिमाग को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। जिसके कारण रक्तसंचार धीमा हो जाता है और मस्तिष्क के ऊतकों में पोषण तत्वों की कमी होने लगती है। इस कारण दिमाग की नस डैमेज होने लगती हैं। मस्तिष्क की नसें सिकुड़ जाती हैं और रक्त संचरण में बाधा के चलते रक्त वाहिका फट जाती है।अगर समय पर उपचार नहीं किया जाता है, तो मरीज को लकहवा पड़ सकता है  और जान जाने तक की स्थिति भी आ सकती है।  इससे

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स्ट्रोक के प्रकार ( Types of stroke)

ब्रेन स्ट्रोक मुख्यतः दो प्रकार का होता है, पहला इस्कीमिक स्ट्रोक (Ischemic Stroke) और दूसरा हेमोरेजिक स्ट्रोक (Hemorrhagic Stroke) होता है। आइए, स्ट्रोक के बारे में विस्तार से जानते हैं

इस्कीमिक स्ट्रोक के बारे में

इस्कीमिक स्ट्रोक अंतर्गत दिमाग तक ऑक्सीजन और पोषण पहुंचाने वाली रक्त वाहिकाएं संकरी या ब्लॉक हो जाती है। इस स्थिति में रक्त वाहिकाओं में ब्लड क्लॉट्स बन जाते हैं और रक्त प्रवाह रुक जाता है। एथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis) के टूटने से भी उसके अंश रक्त वाहिकाओं को अवरूद्ध कर देते हैं। इस्कीमिक स्ट्रोक के दो प्रकार होते हैं, पहला थ्रोंबोटिक (thrombotic) और दूसरा एंबोलिक (embolic)। जब दिमाग तक रक्त पहुंचाने वाली रक्त धमनियों में ब्लड क्लॉट बन जाता है और रक्त प्रवाह को बाधित करता है, तो थ्रोंबोटिक स्ट्रोक कहलाता है। जबकि दूसरी तरफ, जब ब्लड क्लॉट या अन्य डेब्रिस शरीर के दूसरे हिस्सों में बनता है और रक्त के द्वारा दिमाग तक पहुंचकर रक्त वाहिकाओं को बाधित करता है, तो एंबोलिक स्ट्रोक कहलाता है। सीडीसी के मुताबिक स्ट्रोक के 87 प्रतिशत मामले इस्कीमिक स्ट्रोक होते हैं। (रक्त वाहिका के ब्लॉक होने पर धमनी के कारण आंतों में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, जिसे इंटेस्टाइनल इस्किमिया कहते हैं।)

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ट्रांजियंट इस्कीमिक स्ट्रोक के बारे में

स्ट्रोक के बारे में काफी रिसर्च की गई है। इसका एक प्रकार ट्राजियंट इस्कीमिक स्ट्रोक है। इसे मिनीस्ट्रोक या टीआईए (TIA) भी कहा जाता है। इस समस्या के दौरान ब्लड क्लॉट या अन्य डेब्रिस की वजह से रक्त वाहिकाएं अस्थाई तौर पर बाधित होती है। हालांकि, इससे लक्षण भी इस्कीमिक स्ट्रोक के जैसे हो सकते हैं, लेकिन यह लक्षण कुछ देर या घंटों के बाद सामान्य हो सकते हैं। आमतौर पर, टीआईए को इस्कीमिक स्ट्रोक का संकेत माना जाता है। सीडीसी के मुताबिक, टीआईए की चपेट में आने वाले एक-तिहाई से ज्यादा मरीजों को अगले एक साल के अंदर मेजर स्ट्रोक का सामना करना पड़ता है।

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हेमोरेजिक स्ट्रोक के बारे में

इस्कीमिक स्ट्रोक के बारे में कहा जाता है कि जब दिमाग में किसी रक्त वाहिका के फटने या उससे रक्त स्राव होने लगे तो इसे हेमोरेजिक स्ट्रोक कहा जाता है। इसके बाद, रक्त वाहिका से निकला खून खोपड़ी में अतिरिक्त दबाव बनाता है और दिमाग को सूजा देता है। इस दौरान दिमाग के टिश्यू और सेल्स क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।

हेमोरेजिक स्ट्रोक के दो प्रकार होते हैं। जिन्हें इंट्रासेरेब्रल स्ट्रोक (Intracerebral Stroke) और सबअर्कनॉइड स्ट्रोक (Subarachnoid Stroke) कहा जाता है। इंट्रासेरेब्रल स्ट्रोक हेमोरेजिक स्ट्रोक का सबसे आम प्रकार है, जिसमें दिमाग में मौजूद टिश्यू आर्टरी फटने उससे रक्त स्राव होने की वजह से निकलने खून की वजह से सूज जाते हैं और क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। जबकि, दूसरी तरफ सबअर्कनॉइड स्ट्रोक दिमाग में मौजूद टिश्यू से ब्लीडिंग होने लगती है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, स्ट्रोक के करीब 13 प्रतिशत मामले हेमोरेजिक स्ट्रोक के होते हैं।

जानें किन लोगों में ज्यादा स्ट्रोक का खतरा होता है

वैसे तो स्ट्रोक का खतरा किसी को भी हाे सकता है और किसी भी उम्र के लोग को प्रभावित कर सकता है। लेकिन पेशेंट्स में इनका खतरा ज्यादा होता है, जैसे कि

सर्दियाें में ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण

ब्रने स्ट्रोक होने के पहले शरीर में कुछ तरह के बदलाव महसूस होने लगते हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए, ब्रेन स्ट्रोक के लक्ष्णों में शामिल हैं-

  • अचानक से आंखों की रोशनी में फर्क महसूस करना
  • चक्कर आना
  • सिर दर्द की समस्या
  • बोलने और समझने में परेशानी
  • सिर में दर्द महसूस करना
  • चलने में दिक्कत होना
  • उल्टी होना

विंटर ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव

स्मोकिंग से दूर रहें

स्मोकिंग आजकल काफी लोगों की आदत हो गई है। इसमें पाया जाने वाला निकोटिनब्लड प्रेशर को बढ़ाता है। इसके धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा होती है, जो खून में ऑक्सिजन की मात्रा को कम करती है। इसलिए ब्रेन स्ट्रोक के खतरे से बचने के लिए काफी जरूरी है कि आप स्मोकिंग न करें। इसके अलावा स्मोकिंग के अन्य और भी खतरे होते हैं, जैसे कि खून की नसों को सिकोड़ता है,  ट्राइग्लिसराइड्स ब्लड में फैट के स्तर को बढ़ाता है और क्लॉटेज का भी काम करता है।

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 ब्लड प्रेशर की समस्या को बढ़ने न दें

High Blood Pressure Diet Quiz

हाई ब्लड प्रेशर  ब्रेन स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। सामान्य रक्तचाप 120/80 से कम होता है। अगर आपका ब्लड प्रेशर 130/80 से 140/90 की सीमा से ऊपर है, तो आपको हाइपोटेंशन की समस्या हो सकती है। इससे बचाव के लिए सबसे पहले तो नमक का सेवन बहुत ही कम करें। चिकना भी कम खाएं। अपने खानपान में ताजे फलों को शामिल करें। सबसे बड़ी बात तो सर्दी के मौसम में बीपी का खतरा सबसे ज्यादा होता है इसलिए बीपी की दवाईं को बिल्कुल भी न भूलें। नहीं तो स्ट्रोक का खतरा और भी बढ़ सकता है।

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अल्कोहॉल से दूर रहें

Intoxication

अल्कोहॉल आपके ब्लड प्रेशर और ट्राइग्लिसराइड्स को हाई कर सकता है, जिसके कारण ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए अधिक अल्कॉहल के सेवन से बचें।

वजन को बढ़ने न दें

वेट लॉस योग-Yoga for weight loss

मोटापा कई बीमारियों क कारण है, इसके शिकार व्यक्ति में हार्ट प्रॉब्लम, हाई ब्ल्ड प्रेशर और डायबिटीज जैसे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जो मस्तिष्क के दौरे के खतरे को भी बढ़ा सकता है। इसलिए अधिक वजन वालों को अपने वेट कंट्रोल पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए अधिक वर्कआउट करें और अपनी डायट पर भी कंट्रोल करें। हाई ब्ल्ड प्रेशर होने पर स्ट्रोक का खतरा सबसे ज्यादा बढ़ जाता है

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डायबिटीज का कंट्रोल में होना है जरूरी

बुजर्गो में डायबिटीज

जिनकी डायबिटीज हाई रहती है, उनमें इसका अधिक खतरा पाया जाता है। ये नसों को बहुत तेजी से डैमेज कर सकती है और यह खून के थक्के बनाने की प्रक्रिया भी तेजी से कर सकती है। अगर आ़पको से डायबिटीज की समस्या है, तो आपको मस्तिष्काघात का खतरा भी अधिक हो सकता है। इसलिए अगर ब्रेन स्ट्रोक के खतरे से बचना है, तो अपने डायबिटीज को कंट्रोल में रखें। हो सके तो इसके लिए घरेलू उपायों को भी अपनाएं, ये बहुत ही प्रभावकारी होते हैं।

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दिल का रखें ख्याल

हार्ट डिसऑर्डर जैसे कोरोनरी धमनी रोग, अनियमित दिल की धड़कन या दिल में खून के थक्के जमने जैसी स्थितियां खून की नसों को डैमेज कर सकती हैं। दिल की अनियमित धड़कन को एरियल फाइब्रिलेशन  के तौर पर भी जाना जाता है। अगर आप ब्रेन स्ट्रोक कैसे रोकें के उपायों को फॉलो कर रहें हैं, तो जरूरी है कि आपका दिल दुरुस्त होना चाहिए, क्योंकि हार्ट डिजीज स्ट्रोक के मुख्य कारणों में से एक होता है। एट्रियल फाइब्रिलेशन खून के थक्कों के उत्पादन को बढ़ाता है। अगर यह थक्के मस्तिष्क में प्रवेश कर जाएं, तो स्ट्रोक का कारण बन सकते हैं। ऐसी स्थतियों से बचने के लिए खून को पतला करने वाली दवाएं, चिकित्सक उपचार या सर्जरी का सहारा लिया जा सकता है।

एक्सरसाइज है जरूरी

एक्सरसाइज-excercise

शरीर का आलसपन अपने आप में ही बीमारियों का घर होता है। इसलिए, अपने शरीर को हमेशा एक्टिव रखें। हफ्ते के 5 दिन कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज करें। आपको किस तरह की एक्सरसाइज करनी चाहिए, यह आपके स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर कर सकती है। इसके लिए आपको अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए आमतौर पर इन आदतों को भी अपना सकते हैं।

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स्ट्रोक का इलाज : एक्सपर्ट की राय

सर्दियों के मौसम के स्ट्रोक का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है।

इस्केमिक स्ट्रोक और टीआईए

ये स्ट्रोक के प्रकार हैं। ऐसे स्ट्रोक में मस्तिष्क में खून का थक्का जम जाता है जिससे खून का प्रवाह बंद हो जाता है। इसके लिए एंटीप्लेटलेट और एंटीकोआगुलंट्स दवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। इन दवाओं को स्ट्रोक के लक्षण शुरू होने के 24 से 48 घंटों के अंदर लेना चाहिए।

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क्लॉट-ब्रेकिंग ड्रग्स

थ्रोम्बोलाइटिक ड्रग्स आपके मस्तिष्क की धमनियों में रक्त के थक्के को खत्म कर देती हैं। जो स्ट्रोक के खतरे से बचाता है। इससे मस्तिष्क को कम नुकसान होता है।

इसके अलावा एल्टेप्लेस IV आर-टीपीए नाम के ड्रग को स्ट्रोक के लिए सबसे प्रभावी दवाई माना जाता है। यह रक्त के थक्कों को बहुत तेजी से खत्म करती है। स्ट्रोक के लक्षण शुरू होने के 3 से 4.5 घंटों के अंदर इसे शरीर में इंजेक्ट कर दिया जाना चाहिए। इससे स्ट्रोक होने पर स्थायी रूप से शरीर में कोई विकलांगता नहीं पनप पाती है।

स्टेंट्स

यदि डॉक्टर को पता चलता है कि स्ट्रोक से धमनी की दीवारें कमजोर हो गई हैं, तो वे संकुचित हुई धमनी को ठीक करने के लिए स्टेंट का प्रयोग कर सकते हैं।

सर्जरी

कई मामलों में दवाएं काम नहीं करती हैं ऐसे में डॉक्टर को सर्जरी करनी पड़ती है। डॉक्टर आपकी धमनियों से रक्त का थक्का हटाने के लिए सर्जरी कर सकता है। यह एक कैथेटर के साथ किया जा सकता है। यदि थक्का काफी बड़ा है तो सर्जरी ​के बिना उसे खत्म करना आसान नहीं होगा।

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दवाएं

इस्केमिक स्ट्रोक को ठीक करने के लिए दवाओं का प्रयोग किया जाता है। वहीं अगर आपको ​हीमोरेजिक यानी रक्तस्रावी स्ट्रोक है तो इसका उपचार करने के लिए खून का थक्का बनाना पड़ता है। ​हीमोरेजिक स्ट्रोक उसे कहते हैं जब दिमाग में रक्तस्त्राव होने लगता है। इसे रोकने के लिए अगर तरह का इलाज किया जाता है। ऐसी दवाएं भी दी जा सकती हैं जिससे आपका हाई ब्लडप्रेशर नॉर्मल हो सके। इससे मस्तिष्क में पड़ने वाला दबाव भी कम होगा।

ब्रेन स्ट्रोक का प्रभाव शरीर के अन्य हिस्सों में भी

ब्रेन स्ट्रोक में दिमान के साथ शरीर का कई और हिस्सा भी डैमेज होता है। हमारा दिमाग की शरीर के अन्य हिस्से को नियंत्रित करने का काम करता है। खून का प्रवाह होना बंद हो जाता है। स्ट्रोक के कारण शरीर के किस अंग पर प्रभाव पड़ेगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि स्ट्रोक शरीर के किस अंग को नियंत्रित करने वाली मस्तिष्क की नस पर पड़ता है।

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तंत्रिका तंत्र

तंत्रिका तंत्र हमारे शरीर से ब्रेन तक सिंग्नल पास करने का काम करती है, जोकि ब्रेन , रीढ़ की हड्डी और पूरे शरीर में तंत्रिकाओं से मिलकर बनता है। ब्रेन स्ट्रोक के दौरान इसके डैमेज होने पर ब्रेन को सिंग्नल देना बंद कर सकता है। अगर ब्रेन स्ट्रोक नर्वस सिस्टम को डैमेज करती है, तो इसके बाद आपको बॉडी मूवमेंट के दौरान अधिक दर्द महसूस होता है। क्योंकि, ब्रेन स्ट्रोक के कारण तंत्रिका तंत्र डैमेज होने के बाद मस्तिष्क ठंडी या गर्मी जैसे संवेदनाओं को पहले की तरह नहीं समझ पाता है।

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संचार प्रणाली

ब्रेन में ब्लीडिंग होने के कारण संचार प्रणाली  डैमेज हो सकती है। हाई कोलेस्ट्रॉलहाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या स्मोकिंग इसका मुख्य कारण हो सकता है। इसे रक्तस्रावी स्ट्रोक या इस्कीमिक स्ट्रोक भी कहा जाता है। अगर मस्तिष्क के दौरे के कारण सर्क्युलेटरी सिस्टम डैमेज होता है, तो दूसरा स्ट्रोक आने या दिल का दौरा पड़ने का खतरा भी अधिक बढ़ जाता है।

श्वशन प्रणाली

यह ब्रेन स्ट्रोक की बीमारी के सामान्य लक्षणों में से एक हो सकता है। अगर मस्तिष्क का दौरा खाने और निगलने को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के क्षेत्र को नुकसान पहुंचाता है, तो श्वशन प्रणाली (Respiratory system) कार्य करना बंद कर सकती है या इसके कार्य करने की क्रिया में किसी तरह की परेशानी आ सकती है। इसे  अपच  (Indigestion) भी कहा जाता है। इसके कारण भोजन, फूड पाइप में जाने में असमर्थ हो जाते हैं और कुछ जो भी खाने पर वो वायुमार्ग में से होते हुए फेफड़ों में इकठ्ठे होने लगते हैं। इससे संक्रमण और निमोनिया का भी खतरा बढ़ सकता है।

प्रजनन प्रणाली

स्ट्रोक के कारण प्रजनन प्रणाली  भ होती है, तो आप सेक्स का अनुभव कैसे करते हैं या आपका शरीर सेक्स के बारे में कैसा महसूस करता है, इसमें बदलाव आ सकता है। आपमें डिप्रेशन के भी लक्षण हो सकते हैं।

 पाचन तंत्र

दिमाग के दौरे के कारण अगर मस्तिष्क का आंतों को नियंत्रित करने वाला हिस्सा प्रभावित होता है, तो पाचन तंत्र (Digestive system) खराब हो सकता है। डाइजेस्टिव सिस्टम डैमेज होने के कारण कब्ज की समस्या, पर्याप्त तरल पदार्थ नहीं पी पाने की समस्या या शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होने की समस्या हो सकती है।

साइलेंट स्ट्रोक या साइलेंट सेरेब्रल इंफर्क्शन (SCI) क्या है?

साइलेंट स्ट्रोक को साइलेंट सेरेब्रल इन्फर्क्शन (SCI) भी कहा जाता है। यह अचानक से ब्रेन में खून की आपूर्ति रूकने की वजह से आता है। इसके कारण मस्तिक के ऊतकों का नुकसान होता है। जिसके कारण व्यक्ति बेहोश हो सकता है या बोलने, देखने और शारीरिक प्रक्रियाएं करने में असमर्थ हो सकता है। कई बार यह मृत्यु की भी वजह बन सकती है। आमतौर पर कुछ लोगों को इसका अनुभव ही नहीं हो पाता की उनके साथ ऐसा स्ट्रोक की वजह से हो रहा है। इसी वजह से इसे साइलेंट स्ट्रोक कहा जाता है।

साइलेंट स्ट्रोक का असर दिमाग के एक छोटे हिस्से पर पड़ सकता है। जिसकी वजह से वहां की कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं। साइलेंट स्ट्रोक के कारण प्रभावित व्यक्ति चलने-फिरने में असमर्थ हो सकता है, उसकी पाचन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और दिमाग भी ठीक से काम करना बंद कर सकता है।

इसके अलावा अगर किसी को एक से अधिक बार साइलेंट स्ट्रोक आता है, तो उसे भूलने की बीमारी हो सकती है और उनके स्ट्रोक के खतरे भी बढ़ सकते हैं।

दिमाग को तेज करने वाले ये सुपरफूड

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दालचीनी

दालचीनी में एंटी-ऑक्सिडेंट, ओमेगा 6, फाइबर, मैग्नीज, पोटैशियम और कैल्शियम पाया जाता है। यह मेटाबॉलिजम को अच्छा कर मोटापा घटाने को घटाने में मददगार है। यह शुगर भी कंट्रोल में रखती है। रोजाना दालचीनी का 3 ग्राम पाउडर खाने से स्ट्रोक, हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर और कॉलेस्ट्रॉल के कारण होने वाले प्रभाव को रोकने में मददगार है।

बादाम

इसमें विटमिन ई, कैल्शियम, फाइबर, गुड फैट,  प्रोटीन, आयरन और जिंक आदि अच्छी मात्रा में होते हैं। यह कॉलेस्ट्रॉल कम करने में मददगार है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम शुगर लेवल को मेंटेन रखता है। कड़वे बादाम में मौजूद हाइड्रोसायनिक एसिड नर्वस सिस्टम स्लो करता है।

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अखरोट

अखरोट में ओमेगा 6, फॉलिक एसिड, मैग्नीज, कॉपर, फॉस्फोरस, विटमिन बी 6 और विटमिन ई होता है। कॉपर दिल के लिए भी अच्छा है तो ओमेगा 6 दिमाग के लिए। स्किन को भी यह बेहतर बनाता है।

फ्लैक्स सीड्स

फ्लैक्स सीड्स यानी अलसी के बीजों में ओमेगा-थ्री, कैल्शियम और फाइबर अच्छी मात्रा में होते हैं। ये गुड कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद करते हैं और दिल की सेहत को सुधारते हैं

स्प्राउट्स

फल और कच्ची सब्जियों से 100 गुना ज्यादा एंजाइम्स दालों (मूंग, चना, लोबिया, राजमा, गेहूं आदि) को अंकुरित करने पर मिलते हैं। साथ ही, इनमें फाइबर, विटमिन सी आदि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इनमें एंटी-ऑक्सिडेंट ज्यादा होते हैं, जोकि हमारे डीएनए को होने वाले नुकसान को कम करते हैं। यह हमारे खून को साफ कर शरीर को डीटॉक्स करता है।

मखाना

मखाने में प्रोटीन, मैग्नीज, पोटैशियम, जिंक, मैग्नीशियम, फाइबर और आयरन अच्छी मात्रा में होता है और फैट बिल्कुल नहीं होता। ज्यादा पोटैशियम और कम सोडियम की वजह से यह हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों के लिए फायदेमंद है। मन को शांत कर नींद लाने में यह मदद करता है। इसमें मौजूद मैग्नीशियम और फोलेट खून के दौरे को बेहतर बनाकर दिल की बीमारियों का खतरा कम करता है।

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लहसुन

मैग्नीज, विटमिन सी, बी6, फाइबर, कैल्शियम, आयरन अच्छी मात्रा में होता है लहसुन में। इसमें मौजूद एलिसिन कंपाउंड कॉलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में मदद करता है।

यह जोड़ों के दर्द को कम करने और खून साफ करने में मदद करता है। स्किन और बालों को भी बेहतर बनाता है। बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शन कम करता है। यह कैंसर से भी बचाता है।

हल्दी

विटमिन ए व सी के अलावा मैग्नीज भी काफी मात्रा में होता है हल्दी में। यह कैंसर से लड़ने और ट्यूमर सेल्स को ठीक करने के अलावा दिमाग से जुड़ी बीमारियों में भी फायदेमंद है। हल्दी में मौजूद कर्कुमिन एंटी-बायोटिक और एंटी-इन्फ्लेमेटरी है इसलिए यह सूजन, दर्द और चोट में राहत पहुंचाती है। शुगर लेवल कंट्रोल करने के अलावा यह जोड़ों का दर्द और गैस भी कम करती है।

ग्रीन टी/हर्बल टी

ग्रीन टी में बेस्ट एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं जो बढ़ती उम्र के नुकसान को कम करते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कई बीमारियों से बचाव करते हैं। यह कॉलेस्ट्रॉल घटाने में मदद करती है। इमें मौजूद एल-थियेनाइन नामक कंपाउंड दिमाग को ज्यादा अलर्ट, लेकिन शांत रखता है यानी ब्रेन बेहतर काम करता है।

स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल के लिए टिप्स

  • स्ट्रोक के मरीजों के लिए स्प्लिंट्स का उपयोग दर्द, हाइपोटेंशन, स्पस्टीटी आदि के प्रबंधन के लिए न्यूरो-रिहैबिलिटेशन  के लिए किया जाता है। स्ट्रोक के पैसेंट को कब, कैसे और कितने समय में स्लिंट्स का उपयोग करना है ये सीखना जरूरी है।
  • मरीज के लेटने अथवा बैठने के दौरान तकिए की पोजिशन का  विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • अव्यवस्था से बचने के लिए कंधे को सावधानी पूर्वक संभालना।
  • घर पर या बाहर जाते समय सभी तरह की स्ट्रोक के मरीज को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी देखभाल के लिए कोई हो।
  • मरीजों और देखभाल करने वालों को कमजोर हाथों या पैरों के उपयोग की बजाय मजबूती का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा शारीरिक गतिविधियां की जा सके।
  • दिन में स्ट्रोक वाले हिस्से का अभ्यास या मूवमेंट करें।
  • जब भी व्यक्ति को व्हीलचेयर या बिस्तर से स्थानांतरित करने के लिए सही तकनीक का इस्तेमाल करें ताकि पीठ दर्द से बचा जा सके।
  • स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल में हमेशा प्रोत्साहित अथवा मोटिवेट करें ताकि वे जल्दी से आम जिंदगी में वापसी कर सके।
  • स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल और सुविधा के लिए अपने घर की सीढ़ियों, हैंडल बार, नॉन स्किड मैट, एलिवेटेड टॉयलेट सीट पर रेलिंग लगाएं ताकि उनको इस्तेमाल करने में सुविधा हो सके।
  • स्ट्रोक के मरीजों की देखभाल के लिए ज्यादा थकान उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है इसलिए समय-समय पर उचित आराम भी महत्वपूर्ण है।

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डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Stroke: Understanding Stroke. https://my.clevelandclinic.org/health/diseases/5601-stroke-understanding-stroke.

Effects of Stroke. https://www.stroke.org/en/about-stroke/effects-of-stroke.

Effects of Stroke. https://www.hopkinsmedicine.org/health/conditions-and-diseases/stroke/effects-of-stroke.

Effects of stroke. https://www.betterhealth.vic.gov.au/health/conditionsandtreatments/effects-of-stroke.

Early changes in physiological variables after stroke. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2771993/

Current Version

07/01/2021

Niharika Jaiswal द्वारा लिखित

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील

Updated by: Niharika Jaiswal


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के द्वारा मेडिकली रिव्यूड

डॉ. प्रणाली पाटील

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Niharika Jaiswal द्वारा लिखित · अपडेटेड 07/01/2021

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