कोरोना वायरस के कहर को एक साल हो चुका है। इसी समय (जनवरी-फरवरी 2020) से इस खतरनाक वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। अब तक भारत में इस वायरस के कारण 1 लाख 54 हजार तक मौतें हुईं और 1 करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस का शिकार हुए। अगर बात विश्व की करें तो अब तक 10 करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस का शिकार हुए हैं और 20 लाख से ज्यादा लोगों की मौत इस वायरस के कारण हुई हैं, लेकिन अब दुनिया इससे उबर रही है। वैक्सीनेशन शुरू हो चुका है और संक्रमितों की संख्या में भी लगातार कमी आ रही है। लंबे लॉकडाउन के बाद लोग ‘न्यू नार्मल’ की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे में एक बार नजर घुमाते हैं पीछे ओर और देखते हैं कि कोरोना के लिए डॉक्टर्स ने किन दवाओं को प्रिस्क्राइब किया था औ अब कौन सी वैक्सीन लोगों को दी जा रही हैं।
कोरोना की कोई स्पेसिफिक दवा तो नहीं थी, लेकिन कुछ एंटीवायरल दवाओं से कोरोना का इलाज किया गया और इसमें सफलता भी मिली। आइए उन दवाओं पर एक नजर डालते हैं जो आधिकारिक कोरोना की दवाएं आने से पहले दी जा रही थीं। इनके परिणाम अच्छे थे इसलिए इन एक्सपेरिमेंटल कोविड ड्रग्स का इस्तेमाल किया जा रहा था। जिन्हें कोरोना वायरस की दवाएं कहा जा सकता है।
[mc4wp_form id=’183492″]
और पढ़ें: कोरोना वायरस से बचने के लिए ट्रैवलिंग से लेकर होटल में स्टे तक, रखें इन बातों का ध्यान
कोरोना की दवाएं :
फेविपिराविर (favipiravir)
भारत के औषधि महानियंत्रक डीसीजीआई ने फेविपिराविर (favipiravir) को इस्तेमाल करने की अनुमति दी। फेविपिराविर एक एंटीवायरल ड्रग है। इसका इस्तेमाल कोरोना वायरस को रोकने में किया गया। यह एक तरह की एक्सपेरिमेंटल कोरोना वायरस की दवा है। विभिन्न कंपनियों ने विभिन्न नामों से इसे बाजार में उतारा। फेविपिराविर (favipiravir) कम बीमार लोगों पर अधिक असर करती है। माना जाता है कि यदि कोविड-19 के वायरस के शुरूआती दिनों में जब आप हल्के-फुल्के लक्षणों जैसे सिर दर्द, जुकाम से जुझ रहे हैं हो तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। शरीर में कोरोना वायरस के अधिक फैलने पर इसका कम ही असर देखा गया।
कैसे काम करती है फेविपीराविर (favipiravir)
वायरस आरएनए पोलीमरेस नामक एंजाइम की मदद से स्वयं की अधिक कॉपी बनाता है। फेविपीराविर इस एंजाइम को अधिक कॉपी बनाने से रोकता है। इस तरह से वायरस की अधिक कॉपी नहीं बन पाती और शरीर में वायरस के लोड में कमी आती है।
फायदे व नुकसान
फेविपीराविर कोविड-19 के वायरस से लड़ने में मरीजों की मदद करती है। वहीं यदि इसके साइडइ फेक्ट्स की बात करें तो इसके कारण दस्त, व्हाइट ब्लड सेल में कमी, ब्लड में यूरिक एसिड का बढ़ना आदि समस्याएं हो सकती हैं। प्रेग्नेंट या ब्रेस्टफीडिंग करने वाली महिलाओं, लीवर की समस्या से जुझ रहे मरीज या किडनी की समस्या वाले लोगों को इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए। सबसे बेहतर है कि अपने डॉक्टर की सलाह से ही दवा का उपयोग किया जाए।
विभिन्न कंपनियों ने इन ब्रैंड नाम से फेविपिराविर को बाजार में उतारा।
फेविपिराविर (favipiravir)
बीडीआर फार्मास्यूटिकल ने फेविपिराविर को लॉन्च किया।
और पढ़ें: जानें कोरोना जैसे संकट के साथ कैसा रहा साल 2020, लोगों ने शयर किया अपना अनुभव
कोविहॉल्ट (covihalt)
ल्यूपिन द्वारा लॉन्च की गई कोविहाल्ट टैबलेट।
फ्लूगार्ड (fluguard)
सन फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने फेविपिराविर को फ्लूगार्ड के नाम से बाजार में उतारा।
फेबिफ्लू (fabiflu)
ग्लेनमार्क फार्मा ने एंटीवायरल दवा फेबिफ्लू (Fabiflu) निकाली।
अन्य एक्सपेरिमेंटल दवाएं इस प्रकार हैं।
रेमडेसिविर (Remdesivir)
फेविपिराविर की ही तरह रेमडेसिविर को भी कई कंपनियों ने ब्रांड नाम से बाजार में उतारा और इसे कथित तौर पर कोरोना वायरस की दवाएं कहा गया। इसे वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गनाइजेशन ने कोरोना वायरस की दवाओं की लिस्ट से बाहर कर दिया।
कैसे काम करती है रेमडेसिविर (remdesivir)?
रेमडेसिविर को (Gilead Sciences) ने इबोला का इलाज करने के लिए बनाया था। यह कोरोना वायरस की कॉपी बनाने में मदद करने वाले एंजाइम को ब्लॉक करती है। इस वजह से वायरस शरीर में नहीं फैल पाता। रेमडेसिविर को 12 साल या ज्यादा उम्र के लोगों को दिया जाता था।
रेमडेसिवीर को इन नामों से कंपिनयों ने बाजार में उतारा
माइलन (mylan) ने रेमडेसिवीर के जेनरिक वर्जन को लॉन्च किया। इस दवा को केवल इमरजेंसी में इस्तेमाल किए जाने की अनुमति मिली।
कोविफोर (covifor)
हेटरो फार्मा ने कोविफोर को बाजार में उतारा। इस दवा को केवल अस्पताल में भर्ती मरीजों को देने की अनुमति थी। घर में रहने वाले रोगी यह नहीं ले सकते थे। इसके साथ ही यह इलाज के दौरान बस 6 बार उपयोग की जा सकती थी। यह भी एक वैक्सीन है।
और पढ़ें: कोरोना वायरस के बाद नए इंफेक्शन का खतरा, जानिए क्या है म्युकोरमाइकोसिस (Mucormycosis)
जुबी.आर (jubi.r)
जुबिलेंट लाइफ साइंसेस ने जुबी.आर को लॉन्च किया।
सिपेर्मी (cipermi)
सिपला ने रेमडेसिवीर के वर्जन सिपेर्मी को लॉन्च किया। डीसीजीए ने इस कोरोना वायरस की दवाएं का इस्तेमाल एडल्ट व बच्चों पर इमरजेंसी के दौरान करने की अनुमति दी।
भारत में इस वायरस से लड़ने के लिए उपयोग की गई अन्य कोरोना की दवाएं निम्न हैं।
टोसिलीज़ुमाब (Tocilizumab)
टोसिलीज़ुमाब (Tocilizumab) एक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा है। इस दवा का उपयोग मुख्य रूप से गठिया (rheumatoid arthritis) और सिस्टेमेटिक जुवेनाइल आइडियोपेथिक अर्थराइटिस (systemic juvenile idiopathic arthritis) के उपचार के लिए होता है, जो बच्चों में गठिया का एक गंभीर रूप है। यह इंटरल्यूकिन-6 रिसेप्टर के खिलाफ एक मानवकृत मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है। इसका उपयोग कई ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। क्लीनिकल ट्रायल्स में पाया गया कि टोसिलीजुमाब (Tocilizumab) उन मरीजों के लिए बहुत अच्छी साबित हो रही है जो बहुत ज्यादा बीमार हैं।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine)
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन वही दवा है जिसकी मांग ट्रंप ने भारत से की थी। इसे भी कोरोना वायरस की दवा कहा गया था। यह मलेरिया की एक पुरानी दवा है। वह भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ ही निर्यातक भी है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा ऑटोइम्यून डिजीज जैसे रूमेटिक अर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) और ल्यूपस (lupus) के ट्रीमेंट के लिए उपयोग की जाती रही है। कोविड वायरस के खिलाफ भी कई देशों ने इसे मददगार पाया।
कोरोना की दवाएं तो आपको हमने आपको याद दिला दीं। अब जानते हैं कोरोना के लिए कौन सी वैक्सीन दी जा रही हैं और इनका निर्माण कैसे हुआ है?
और पढ़ें: क्यों कोरोना वायरस वैक्सीनेशन हर एक व्यक्ति के लिए है जरूरी और कैसे करें रजिस्ट्रेशन?
कोवैक्सीन (covaxin)
भारत बायोटेक लिमिटेड (बीबीआईएल) द्वारा कोवैक्सीन को बनाया गया है। इसमें बीबीआईएल का साथ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने दिया है। कोरोना वायरस को रोकने के लिए कोवैक्सीन को बनाया गया है।
कोवैक्सीन (covaxin) कैसे बनाई गई है?
कोवैक्सीन को होल वाइरियोन इनएक्टीवेटेड वेरो सेल (Whole-Virion Inactivated Vero Cell) तकनीक के माध्यम से विकसित किया गया है। इसमें वैक्सीन को पैथोजेन को न्यूट्रलाइज करके बनाया जाता है। इसलिए यह एक इनएक्टीवेटेड वैक्सीन है। इनएक्टीवेटेड वैक्सीन का मतलब है कि इसे एक डेड वायरस से बनाया गया है। इनेक्टीवेटेड वायरस संक्रामक नहीं होते और इम्युनिटी को रोग से लड़ने में सहायक होते हैं। वैक्सीन के दो डोज लेने होते हैं। इन्हें 28 दिन के अंतराल में लिया जाना चाहिए।
कैसे काम करती है वैक्सीन?
इनएक्टीवेटेड वैक्सीन को जब इंजेक्ट किया जाता है तो इम्यून सिस्टम इस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडिज बनाने लगते हैं। इसमें डेड वायरस ना ही अपनी कॉपी बना सकता है और ना ही संक्रमित कर सकता है। एंटीबॉडिज बनाने का ही काम इसके माध्यम से लिया जाता है।
कैसे किया जाता है टेस्ट?
एक वैक्सीन को लोगों में उपयोग से पहले कई चरणों से गुजरना पड़ता है। कोवैक्सीन को इंसानी ट्रायल से पहले प्री-क्लीनिकल टेस्टिंग से गुजरना पड़ा। इसमें इंसानों पर इसका प्रयोग करने से पहले जानवरों पर इसके परिणामों की जांच की जाती है। इसमें सफल होने के बाद इंसानी ट्रायल किया गया। इंसानों पर ट्रायल के तीन चरण होते हैं।
पहला चरण- पहले चरण में कम संख्या में लोगों पर इसका ट्रायल किया जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि कितनी मात्रा में डोज दी जानी चाहिए। क्या यह व्यक्ति पर पॉजिटिव इफेक्ट डाल रही है या इसके कोई साइड इफेक्ट भी हैं। कोवैक्सीन की बात की जाए तो पहले चरण में 375 लोगों पर इस दवा की जांच की गई। इनमें से कुछ ही मामलों में थोड़े बहुत साइड इफेक्ट दिखे, जो बहुत ही मामूली प्रकार के थे और जिन्हें आराम से हैंडल कर लिया गया।
दूसरा चरण- दूसरे चरण में 380 लोगों पर इसका ट्रायल किया गया। इनकी उम्र 12 से 65 वर्ष तक थी। दूसरे चरण की बात की जाए तो इसमें मुख्य रूप से साइड इफेक्ट्स को लेकर अध्ययन किया जाता है। इसके साथ ही देखा जाता है कि इम्यून सिस्टम वैक्सीन पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है। कोवैक्सीन के दूसरे चरण के परिणाम भी पॉजिटिव होने के कारण अब इसका तीसरा चरण चल रहा है।
तीसरा चरण- कोवैक्सीन अपने तीसरे चरण में है। अन्य देशों ने भी कोवैक्सीन के ट्रायल की अपने देश में मांग की है।
कोविशील्ड (covishield)
कोविशील्ड (covishield) को कैसे बनाया गया?
कोविशील्ड वैक्सीन को ऑक्सफॉर्ड ऐस्ट्राजेनेका के सहयोग से विकसित किया है। भारत का सीरम इंस्टिट्यूट इनका मैन्युफैक्चरिंग और ट्रायल पार्टनर है। कोविशील्ड (ChAdOx1 viral vector technology) पर आधारित है। इसे ऐसे एडीनोवायरस को विकसित कर बनाया गया है जो चिम्पेंजीज में सर्दी-जुकाम के लिए जिम्मेदार होता है। यह वायरस रेप्लीकेट नहीं हो पाता। इसलिए इससे कोई खतरा नहीं होता है। यह एक तरह से इम्यून सिस्टम को जल्द रिस्पॉन्स करने के लिए प्रोत्साहित करता है। SARS-CoV-2 Spike (S) स्पाइक प्रोटीन के जेनेटिक सीक्वेंस के साथ (ChAdOx1 viral vector) के संयोजन से कोविशील्ड वैक्सीन को बनाया गया।
कितने टेस्ट हुए हैं?
कोविशील्ड की बात की जाए तो इसने तीनों चरण पूरे कर लिए हैं। यह टेस्ट 18 से 65 वर्ष तक के व्यक्तियों पर किए गए।
कोरोना वैक्सीन निम्न लोगों को दी जा रही है।
- हेल्थ वर्कर्स (डॉक्टर्स), नर्स, पैरामेडिक्स से जुड़े लोगों को। तकरीबन 80 लाख लोगों को कोरोना वायरस वैक्सीनेशन दी जाने की संभावना है।
- हेल्थ वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स के बाद पुलिसकर्मियों, पैरामिलिटरी फोर्सेस, सेनाकर्मी और सैनिटाइजेशन वर्कर्स को वैक्सीन दी जाएगी।
- इसके बाद उन लोगों का टीकाकरण किया जाएगा जिनकी उम्र 60 से ज्यादा है और वे किसी क्रोनिक डिजीज से पीड़ित हैं।
- कोवैक्सीन इमरजेंसी होने पर 12 वर्ष से ज्यादा उम्र के बच्चों को दी जा सकती है।
उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा कोरोना की दवाएं और वैक्सीन से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।