माइलन (mylan) ने रेमडेसिवीर के जेनरिक वर्जन को लॉन्च किया। इस दवा को केवल इमरजेंसी में इस्तेमाल किए जाने की अनुमति मिली।
कोविफोर (covifor)
हेटरो फार्मा ने कोविफोर को बाजार में उतारा। इस दवा को केवल अस्पताल में भर्ती मरीजों को देने की अनुमति थी। घर में रहने वाले रोगी यह नहीं ले सकते थे। इसके साथ ही यह इलाज के दौरान बस 6 बार उपयोग की जा सकती थी। यह भी एक वैक्सीन है।
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जुबी.आर (jubi.r)
जुबिलेंट लाइफ साइंसेस ने जुबी.आर को लॉन्च किया।
सिपेर्मी (cipermi)
सिपला ने रेमडेसिवीर के वर्जन सिपेर्मी को लॉन्च किया। डीसीजीए ने इस कोरोना वायरस की दवाएं का इस्तेमाल एडल्ट व बच्चों पर इमरजेंसी के दौरान करने की अनुमति दी।
भारत में इस वायरस से लड़ने के लिए उपयोग की गई अन्य कोरोना की दवाएं निम्न हैं।
टोसिलीज़ुमाब (Tocilizumab)
टोसिलीज़ुमाब (Tocilizumab) एक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा है। इस दवा का उपयोग मुख्य रूप से गठिया (rheumatoid arthritis) और सिस्टेमेटिक जुवेनाइल आइडियोपेथिक अर्थराइटिस (systemic juvenile idiopathic arthritis) के उपचार के लिए होता है, जो बच्चों में गठिया का एक गंभीर रूप है। यह इंटरल्यूकिन-6 रिसेप्टर के खिलाफ एक मानवकृत मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है। इसका उपयोग कई ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। क्लीनिकल ट्रायल्स में पाया गया कि टोसिलीजुमाब (Tocilizumab) उन मरीजों के लिए बहुत अच्छी साबित हो रही है जो बहुत ज्यादा बीमार हैं।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine)
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन वही दवा है जिसकी मांग ट्रंप ने भारत से की थी। इसे भी कोरोना वायरस की दवा कहा गया था। यह मलेरिया की एक पुरानी दवा है। वह भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक होने के साथ ही निर्यातक भी है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा ऑटोइम्यून डिजीज जैसे रूमेटिक अर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) और ल्यूपस (lupus) के ट्रीमेंट के लिए उपयोग की जाती रही है। कोविड वायरस के खिलाफ भी कई देशों ने इसे मददगार पाया।
कोरोना की दवाएं तो आपको हमने आपको याद दिला दीं। अब जानते हैं कोरोना के लिए कौन सी वैक्सीन दी जा रही हैं और इनका निर्माण कैसे हुआ है?
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कोवैक्सीन (covaxin)

भारत बायोटेक लिमिटेड (बीबीआईएल) द्वारा कोवैक्सीन को बनाया गया है। इसमें बीबीआईएल का साथ भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने दिया है। कोरोना वायरस को रोकने के लिए कोवैक्सीन को बनाया गया है।
कोवैक्सीन (covaxin) कैसे बनाई गई है?
कोवैक्सीन को होल वाइरियोन इनएक्टीवेटेड वेरो सेल (Whole-Virion Inactivated Vero Cell) तकनीक के माध्यम से विकसित किया गया है। इसमें वैक्सीन को पैथोजेन को न्यूट्रलाइज करके बनाया जाता है। इसलिए यह एक इनएक्टीवेटेड वैक्सीन है। इनएक्टीवेटेड वैक्सीन का मतलब है कि इसे एक डेड वायरस से बनाया गया है। इनेक्टीवेटेड वायरस संक्रामक नहीं होते और इम्युनिटी को रोग से लड़ने में सहायक होते हैं। वैक्सीन के दो डोज लेने होते हैं। इन्हें 28 दिन के अंतराल में लिया जाना चाहिए।
कैसे काम करती है वैक्सीन?
इनएक्टीवेटेड वैक्सीन को जब इंजेक्ट किया जाता है तो इम्यून सिस्टम इस वायरस के खिलाफ एंटीबॉडिज बनाने लगते हैं। इसमें डेड वायरस ना ही अपनी कॉपी बना सकता है और ना ही संक्रमित कर सकता है। एंटीबॉडिज बनाने का ही काम इसके माध्यम से लिया जाता है।