लोगों को अलग-अलग कारणों से इन्फेक्शन होने का खतरा बना रहता है। इंसेक्ट्स से होने वाले इन्फेक्शन के कई प्रकार होते हैं। इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन भी कभी-कभी जानलेवा साबित होते हैं। छोटे-छोटे कीड़ों की वजह से इंसान को कुछ ऐसी बीमारियां हो सकती हैं, जिसके बारे में वे सोच भी नहीं सकते। इंसेक्ट के संक्रमण का उदाहरण दें, तो मच्छर से व्यक्ति को मलेरिया होता है और चूहों से प्लेग की बीमारी फैलती है। इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन कौन-कौन से हैं? इसके बारे में हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं।
ये हैं इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन (infections caused by insects)
मलेरिया (Malaria)
इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन की बात की जाए, तो मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जिससे भारत में एक बड़ी संख्या में लोग ग्रसित होते हैं। मादा मच्छर एनाफिलीज (Anopheles) के काटने से मलेरिया का बुखार होता है। इस मच्छर में प्लाज्मोडियम (Plasmodium) नाम का परजीवी (Parasite) पाया जाता है, और इसके काटने से यह रक्त में फैल जाता है। इस बीमारी में तेज ठंड या सर्दी (कंपकंपी) लगने के बाद बुखार आता है। मलेरिया रोग में कभी बुखार तेज हो जाता है, तो कभी कम हो जाता है। मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें व्यक्ति को 7 से 12 दिन तक लगातार बुखार रहता है।
मलेरिया के लक्षण (Malaria Symptoms)
- मलेरिया होने पर व्यक्ति को सर्दी के साथ सिरदर्द और बार-बार बुखार की समस्या होती है।
- मलेरिया से ग्रसित लोगों को शरीर में दर्द रहता है और उल्टी जैसा भी महसूस होता है।
- जिन्हें मलेरिया रोग होता है, उन्हें पसीना भी काफी ज्यादा आता है।
- मलेरिया में शरीर में खून की कमी हो जाती है।
- मलेरिया में मांसपेशियों में दर्द होने लगता है।
- कुछ लोगों को मलेरिया के दौरान डायरिया (दस्त) की भी समस्या होती है।
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मलेरिया से बचाव (Prevention of Malaria)
- मलेरिया से बचने का सबसे बेस्ट तरीका है, मच्छरों को पनपने से रोकना।
- रात के समय मच्छर अधिक सक्रिय होते हैं, ऐसे में घर के अंदर ही रहना चाहिए।
- ज्यादा मच्छर होने पर मच्छरदानी का उपयोग करें।
- शरीर के अधिकतर भाग को ढंकने वाले कपड़े पहनें।
मलेरिया का इलाज (Malaria Treatment)
मलेरिया का इलाज एंटीमलेरियल ड्रग्स (Antimalarial Medication) से किया जाता है। इसके लक्षणों को कम करने के लिए दवाएं दी जाती हैं। मलेरिया होने पर अधिक मात्रा में तरल पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है। रोग की गंभीरता को देखते हुए दवा का चयन किया जाता है।
प्लेग (Plague)
इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन की बात की जाए तो, प्लेग भी एक ऐसी बीमारी है, जो कीड़ों से फैलती है। ‘येसिर्निया पेस्टिस (Yersinia Pestis)’ नाम के बैक्टीरिया से ‘प्लेग’ बीमारी होती है। छोटे स्तनधारियों और उनके पिस्सू से प्लेग संक्रमण फैलता है।
प्लेग के प्रकार (Types of Plague)
- पहला प्रकार ‘ब्युबोनिक प्लेग (Bubonic Plague)’ कहलाता है, जिसमें शरीर में दर्द, ठंड लगना, लिंफ नोड (Lymph Node) को छूने पर दर्द होने जैसी समस्याएं होती हैं।
- प्लेग के दूसरे प्रकार को ‘सेप्टिसेमिक प्लेग (Septicemic Plague)’ कहा जाता हैं, जिसमें बुखार, ठंड लगना, बॉडी शॉक, शरीर के किसी अंदरूनी अंग में खून बहना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। प्लेग का यह प्रकार होने पर खून में बैक्टीरिया बढ़ने लगते हैं।
- तीसरा प्रकार ‘न्यूमोनिक प्लेग (Pneumonic Plague)’ के नाम से जाना जाता है, जिसमें बैक्टीरिया फेंफड़ों तक पहुंच जाता है, जो निमोनिया का कारण बनता है।
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प्लेग के लक्षण (Plague Symptoms)
- प्लेग होने पर व्यक्ति को बुखार आता है।
- प्लेग में सिरदर्द की समस्या होती है।
- व्यक्ति को कब्ज और दस्त लग जाते हैं। साथ ही काले रंग का मल भी आता है।
- प्लेग में व्यक्ति को ठंड लगती है।
- इसमें कभी-कभी खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है।
- लो ब्लड प्रेशर (Low Blood Pressure)
- छाती में दर्द महसूस होना।
- शरीर में कमजोरी लगना।
प्लेग के बचाव (Prevention of Plague)
नीचे बताए गए तरीकों से प्लेग रोग से बचाव किया जा सकता है।
- प्लेग से बचने के लिए इस बात का ध्यान रखें कि आपके घर में चूहें न हों।
- चूहों को छूने से बचें। ऐसे जानवरों को न छुएं, जो कि मरे हुए जानवरों को अपना भोजन बनाते हों।
- घर में चूहें न आएं, इसके लिए घर में बिल व अन्य दरारों को भर दें।
- अपने घर के पेट (पालतू जानवरों) को पिस्सुओं (एक प्रकार का छोटा कीड़ा) से मुक्त रखें।
- जिन घरों में प्लेग के मामले पाए गए हों, वहां जाने से बचें।
- जहां पक्षियां अपना घोंसला बना सकती हैं, उन जगहों को साफ रखें।
प्लेग का इलाज (Plague Treatment)
प्लेग का इलाज कई दवाइयों से किया जाता है। हालांकि, डॉक्टर से सलाह लिए बगैर कोई भी मेडिसिन नहीं लेनी चाहिए। ऐसा करने से आपकी सेहत को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। प्लेग बीमारी को एंटीबायोटिक दवाओं की मदद से ठीक किया जाता है।
लाइम रोग (Lyme Disease)
इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन की बात करें, तो उसमें लाइम डिजीज (बीमारी) का भी नाम आता है। लाइम रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो एक कीट (कीटाणु) के काटने से फैलती है। यह बीमारी होने पर सूजन व लालिमा जैसी समस्या होने लगती है। लाइम रोग को ‘लाइम बोरेलियोसिस (Lyme Borreliosis)’ के नाम से भी जानते हैं। बैक्टीरिया ‘बोरेलिया बर्गडोरफेरी (Borrelia Burgdorferi)’ के काटने से यह रोग फैलता है। व्यक्ति की त्वचा से चिपक कर ये छोटे जीव उनका खून चूसते हैं, जिसका पता खुद व्यक्ति को भी नहीं चल पाता। ये कीट इतने छोटे होते हैं कि इन्हें देखना लगभग नामुमकिन होता है।
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लाइम रोग के लक्षण (Lyme Symptoms)
- शरीर पर मच्छर के काटने जैसा निशान हो जाना।
- लाइम रोग में व्यक्ति को बुखार भी आता है।
- हाथ पैर सुन्न होना व झुनझुनी महसूस होना।
- लिंफ नोड्स का बढ़ना।
- लाइम रोग में गले में दर्द भी होता है।
- इस रोग में नाड़ी की गति असामान्य हो जाती है।
- आंखों की रौशनी में बदलाव आना।
- सिरदर्द व हद से ज्यादा थकान महसूस होना।
- मांसपेशियों में दर्द होना।
लाइम रोग से बचाव (Prevention of Lyme)
हालांकि, कोई निश्चित तरीका अपनाकर लाइम रोग से बचा नहीं जा सकता, लेकिन जो कीट रोग का कारण बनते हैं, उनसे बचने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं।
- अधिक कीट पाए जाने वाले क्षेत्रों में ध्यानपूर्वक रहें। छायादार जगह, नम धरती, लंबी घास, पेड़ और झाड़ियों में कीट अधिक पाए जाते हैं।
- बाग व घास आदि के मैदानों में जाने से बचें।
- पहनने के लिए हल्के रंग के कपड़ों का चुनाव करें, ताकि कीट ऊपर चढ़े तो आसानी से नजर में आ सके।
- कीट वाली जगह से आने के बाद शरीर, कपड़े व बाल की सफाई अच्छे से करें।
- ऐसी क्रीम का इस्तेमाल करें, जो कीट को दूर भगाने का काम करती हो।
- फुल बाजू वाले या शरीर के अधिकतर हिस्सों को ढंकने वाले कपड़ों का चुनाव करें।
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लाइम रोग का इलाज (Lyme Treatment)
यदि आपको शरीर पर कोई कीट चिपका हुआ मिले, तो उसे चिमटी की मदद से निकाल दें, पर यह जरूर सुनिश्चित करें कि कीट को स्किन से आपने पूरी तरह से निकाल लिया हो। लाइम रोग का इलाज शुरूआती चरणों में सबसे बेहतर किया जा सकता है। इसे ठीक करने के लिए डॉक्टरों द्वारा प्रेसक्राइब्ड 14 से 21 दिनों का एंटीबायोटिक दवाओं का कोर्स चलाया जाता है, जो कि संक्रमण को शरीर से खत्म कर देता है।
चगास रोग (Chagas Disease)
कीड़ों से होने वाले इंफेक्शनमें चगास रोग भी आता है। इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन की बात करें, तो प्रोटोजोन पैरासाइट की वजह से चगास रोग का संक्रमण फैलता है। ट्रायटोमिन बग (Triatomine Bug) नाम के इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन होता है। यह कीड़ा व्यक्ति के चेहरे को काटता है, जिस वजह से इसे ‘किसिंग बग’ के नाम से भी जाना जाता है। चगास रोग को ‘अमेरिकी ट्रिपैनोसोमियासिस (American Trypanosomiasis)’ के नाम से भी जानते हैं।
चगास रोग के लक्षण (Chagas Symptoms)
चगास रोग के लक्षण दो चरणों में देखने को मिलते हैं।
- तीव्र (जो कम समय तक रहता है)
- मध्यम (जो लंबे समय तक रहता है)
तीव्र चरण के लक्षण
तीव्र चरण के लक्षण मध्यम चरण की तुलना में कम गंभीर होते हैं। इसमें आमतौर पर आपको नीचे बताए गए लक्षण देखने को मिलते हैं।
- बुखार
- चक्कर
- मतली की समस्या
- दस्त
- भूख न लगना
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मध्यम चरण के लक्षण
रोग गंभीर होने पर दूसरा चरण आता है, जिसे मध्यम चरण कहते हैं। मध्यम चरण व्यक्ति के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इसके लक्षण कुछ इस प्रकार हैं-
- व्यक्ति का हार्ट फेल होना।
- रक्त का थक्का जम जाना।
- कार्डिएक अरेस्ट पड़ना।
- हृदयगति (Heart rate) का असामान्य होना।
- ग्रासनली (Esophagus) बड़ी हो जाती है, जिस वजह से निगलने में परेशानी होती है।
- कोलोन के बड़ा होने पर पेट दर्द और कब्ज की समस्या होना।
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चगास रोग से बचाव (Prevention of Chagas)
फिलहाल अभी तक इस रोग की कोई वैक्सीन (टीका) नहीं आई है। ऐसे में बचाव का सबसे बेस्ट तरीका है कि खुद को ट्रायटोमिन नाम के कीट से दूर रखें। यदि आप उस इलाके में रहते हैं, जहां चगास रोग होने का खतरा है, तो संक्रमण से बचाव के लिए नीचे बताए गए कदम उठा सकते हैं-
- कच्ची ईंट, मिट्टी व घास-फूस में न सोएं, क्योंकि इन जगहों पर ट्रायटोमिन कीड़े के होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।
- ऐसी जगहों पर यदि किसी कारणवश सोना पड़ भी जाए, तो मच्छरदानी जरूर लगाएं।
- कीड़ा मारने वाली दवा या स्प्रे को छिड़काव करें।
- त्वचा पर कीट से बचाव करने वाली क्रीम लगाएं।
चगास रोग का इलाज (Chagas Treatment)
इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन में चगास रोग काफी गंभीर माना जाता है। चगास रोग के इलाज के दौरान सबसे पहले व्यक्ति के शरीर में मौजूद पैरासाइट को खत्म करते हैं, जिससे कि लक्षणों व अन्य कारकों को नियंत्रित किया जा सके। चगास रोग के गंभीर होने पर दवाइयां बीमारी का इलाज नहीं कर पातीं। हालांकि, जिन लोगों की उम्र 50 से कम है, उन्हें दवाइयां दी जा सकती हैं। दवाई बीमारी के लक्षण को बढ़ने नहीं देते, जिससे कि गंभीर जटिलताएं होने की संभावना कम हो जाती है।
तो देखा आपने इंसेक्ट से होने वाले इन्फेक्शन कितने गंभीर होते हैं। ध्यान न देने पर से इंसेक्ट से इन्फेक्शन व्यक्ति को हो सकते हैं। इनमें से कोई भी समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।