परिचय
अर्थराइटिस हड्डियों से संबंधित समस्या है, जिसे संधिशोथ, गठिया, वात दोष, जोड़ों का दर्द आदि नाम से भी जाना जाता है। आज भारत में हर तीसरी व्यक्ति अर्थराइटिस की समस्या से जूझ रहा है। अर्थराइटिस की सबसे ज्यादा समस्या महिलाओं में होती है। इसके लिए लोग कितनी दवाएं तक कर डालते हैं, लेकिन अर्थराइटिस से राहत नहीं मिल पाती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून डिजीज है। जिसके लिए हमारा खुद का इम्यून सिस्टम जिम्मेदार होता है। आइए जानते हैं कि अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज आप कैसे कर सकते हैं और आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए :
अर्थराइटिस क्या है?
अर्थराइटिस या संधिशोथ जिसमें शरीर के हड्डियों के जोड़ों में दर्द होता है। इसे गठिया, गाउट और वात दोष भी कहा जाता है। अर्थराइटिस में किसी व्यक्ति के शरीर के कई अलग-अलग हड्डियों के जोड़ों में दर्द, जकड़न या सूजन जैसी समस्या हो सकती है। अर्थराइटिस में कई बार शरीर के हड्डियों के जोड़ों में गांठें तक बन जाती हैं। जहां पर सुई जैसे चुभन महसूस होती है। अर्थराइटिस में तेज दर्द के साथ, बुखार, शरीर में जकड़न आदि महसूस होती है और चलने-फिरने में भी परेशानी हो सकती है। अर्थराइटिस की समस्या 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में ज्यादातर देखी जा सकती है। लेकिन आजकल की लाइफस्टाइल के कारण ये किशोरों और युवाओं में भी देखने को मिल रही है।
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अर्थराइटिस के प्रकार क्या हैं?
अर्थराइटिस निम्न प्रकार के होते हैं :
रयूमेटाइड अर्थराइटिस (Rheumatoid arthritis)
रयूमेटाइड अर्थराइटिस क्रॉनिक इन्फ्लमेटरी डिजीज है, जो हड्डियों के जोड़ों को ज्यादा प्रभावित करती है। रयूमेटाइड अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। ये तब होता है जब आपका इम्यून सिस्टम गलती से शरीर की मसल्स पर ही अटैक करने लगता है। रयूमेटाइड अर्थराइटिस में सूजन शरीर के अन्य हिस्सों को भी नुकसान पहुंचा सकती है। कुछ मामलों में रयूमेटाइड अर्थराइटिस शारीरिक विकलांगता का कारण बन सकता है।
ऑस्टियोअर्थराइटिस (Osteoarthritis)
ऑस्टियोअर्थराइटिस, अर्थराइटिस का सबसे सामान्य प्रकार है। ऑस्टियोअर्थराइटिस तब होता है जब जोड़ों के बीच में मौजूद कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाता है या खत्म हो जाता है। जिससे जोड़ों में दर्द और सूजन के साथ-साथ उनके मूवमेंट पर रगड़ने सी आवाज आती है। ऑस्टियोअर्थराइटिस शरीर की हड्डी के किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है। लेकिन यह हाथों, घुटनों, कुल्हों और रीढ़ की हड्डी के जोड़ों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है।
रिएक्टिव अर्थराइटिस (Reactive Arthritis)
रिएक्टिव अर्थराइटिस, अर्थराइटिस का एक जटिल प्रकार है। इसमें जोड़ों का दर्द होता है और जिसकी वजह से शरीर के अन्य हिस्सों में इंफेक्शन के कारण सूजन आ सकती है। ये इंफेक्शन सबसे ज्यादा आंतों, जननांगों या मूत्र मार्ग आदि को प्रभावित करता है। रिएक्टिव अर्थराइटिस आमतौर पर पैर के घुटनों और हाथों की कलाई और पैरों के जोड़ों जैसे- टखने और उंगलियों को प्रभावित करता है। रिएक्टिव अर्थराइटिस के कारण आंखों, त्वचा और मूत्रमार्ग में भी सूजन हो सकती है।
सोरियाटिक अर्थराइटिस (Psoriatic Arthritis)
सोरायटिक अर्थराइटिस, अर्थराइटिस का एक ऐसा प्रकार है जो सोरायसिस से पीड़ित लोगों को प्रभावित कर सकता है। सोरियाटिक अर्थराइटिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोहनी, घुटनों, टखनों, पैरों, हाथों और शरीर के अन्य हिस्सों की स्किन पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। इन चकत्तों पर खुजली होती है। कुछ लोगों में सोरायसिस होने के बाद सोरियाटिक अर्थराइटिस के लक्षण सामने आते हैं। लेकिन कई बार सोरायसिस के लक्षण सामने आने से पहले ही सोरियाटिक अर्थराइटिस में जोड़ों में समस्या शुरू हो जाती है। जोड़ों में दर्द, ऐंठन और सूजन सोरियाटिक अर्थराइटिस के मुख्य लक्षण हैं।
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आयुर्वेद में अर्थराइटिस क्या है?
अर्थराइटिस को आयुर्वेद में गठिया या संधिशोथ के नाम से जानते हैं। आयुर्वेद में अर्थराइटिस को वात दोष में असंतुलन के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्या मानी जाती है। आयुर्वेद में अर्थराइटिस को तीन भागों में बांटा गया है :
आमवात
आयुर्वेद में आमवात सबसे ज्यादा दर्द देने वाली बीमारी है। जब ब्लड में यूरिक एसिड की मात्रा ज्यादा होती है तो आमवात की समस्या होती है। ये अपाचन की समस्या के कारण पैदा होती है।
वातरक्त
वातरक्त में अर्थराइटिस की समस्या शरीर में दूषित खून के कारण उत्पन्न होने वाली समस्या है। रयूमेटाइड अर्थराइटिस को आयुर्वेद में वातरक्त कहा जाता है। इसमें कई बार विकलांगता का सामना भी करना पड़ता है।
संधिगत वात
संधिगत वात यानी कि जोड़ों में होने वाली अर्थराइटिस, जिसे आम भाषा में ऑस्टियोअर्थराइटिस कहते हैं। ये ज्यादातर महिलाओं में होता है। संधिगत वात होने का सबसे बड़ा कारण शरीर में कैल्शियम की कमी को माना गया है।
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लक्षण
अर्थराइटिस के लक्षण क्या हैं?
अर्थराइटिस के लक्षण निम्न हो सकते हैं :
- हड्डियों के जोड़ों में सूजन होना
- चलते समय या कोई भी शारीरिक गतिविधि करते समय जोड़ों में तेज दर्द होना
- हड्डियों के जोड़ों में जकड़न होना
- जोड़ों को छूने पर अधिक गर्म महसूस होना
- जोड़ों की त्वचा लाल होना
- जोड़ों को ज्यादा हिलाने-डुलाने में परेशानी महसूस होना या आवाज आना
- शरीर के जोड़ों में विकृति या टेढ़ापन दिखाई देना
- लगातार वजन घटना
- ज्यादा थकान महसूस होना
- बुखार आना
- घुटने के साथ-साथ, कुल्हे, कंधे, हाथ या पूरे शरीर के किसी भी जोड़ में दर्द महसूस करना
- भूख में कमी होना
- एनीमिया की समस्या होना
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कारण
अर्थराइटिस होने के कारण क्या हैं?
अर्थराइटिस होने के निम्न कारण हो सकते हैं :
- कार्टिलेज हमारे शरीर के जोड़ो का एक नर्म और लचीला टिश्यू होता है। यह हमारो शरीर को लचीलापन प्रदान करता है। जब हम कोई शारीरिक गतिविधि करते हैं, तो हमारे शरीर के जोड़ों, खासकर घुटनों, कुल्हों और कोहनी पर अधिक दबाव पड़ता है। ऐसी में कार्टिलेज शरीर के जोड़ों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने में मदद करता है। जिससे शरीर के जोड़ों पर हड्डियां आपस में घर्षण से बच जाती हैं। जब इन्हीं कार्टिलेज में कमी आती है तो अर्थराइटिस की समस्या होती है।
- ऑस्टियोअर्थराइटिस के मामले में हड्डियों के जोड़ों में सामान्य चोटें लगती है, जिससे ये समस्या हो जाती है। इसके अलावा, जोड़ों में किसी तरह का इंफेक्शन होने पर भी कार्टिलेज टिश्यू की मात्रा कम हो सकती है। वहीं, ये जेनेटिकल भी है।
- रयूमेटाइड अर्थराइटिस में सिनोवियम प्रभावित होता है। सिनोवियम हमारे हड्डियों के जोड़ों में पाए जाने वाला एक सॉफ्ट टिशू होता है जो ऐसे लिक्विड को बनाता है जिससे कार्टिलेज को नरिशमेंट मिलता रहे। जोड़ो को चिकनाई देता है।
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अर्थराइटिस का निदान कैसे होता है?
अर्थराइटिस का निदान यानी जांच करने के लिए डॉक्टर कई तरीकों की मदद ले सकता है। जिसमें शारीरिक टेस्ट, लैब टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट किए जा सकते हैं। इन टेस्ट्स में अर्थराइटिस के लक्षणों का पता लगाया जाता है।
अर्थराइटिस की शारीरिक जांच
शारीरिक जांच में डॉक्टर आप से उन जोड़ों के बारे में पूछता है, जहां आपको दर्द महसूस होता है। फिर इसके बाद वह उन जोड़ों पर सूजन, लालिमा और छूने पर दर्द जैसे लक्षणों की जांच करता है। इसमें डॉक्टर आपके जोड़ों पर हाथों या टूल्स की मदद से छूकर या हल्की चोट मारकर देखता है।
लैब टेस्ट
शारीरिक जांच के अलावा, अर्थराइटिस के लिए लैब टेस्ट भी किए जाते हैं। जिसमें ब्लड टेस्ट से लेकर यूरिन टेस्ट और जोड़ों में फ्ल्यूइड का लेवल जांचा जाता है। इससे अर्थराइटिस की जांच करने में मदद मिलती है।
इमेजिंग टेस्ट
अर्थराइटिस के आयुर्वेदिक इलाज से पहले जरूरी है कि इमेजिंग टेस्ट से इसका पता लगा लिया जाए। जिसमें एक्स रे, एमआरआई, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड की मदद ली जाती है। इन टेस्ट्स की मदद से जोड़ों के आसपास सूजन, टिश्यू डैमेज आदि के बारे में पता लगाया जाता है। जो कि अर्थराइटिस के सबसे आम लक्षणों में से एक हैं।
इलाज
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें?
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज पंचकर्म, तेलों, थेरिपी, जड़ी-बूटी और औषधियों के द्वारा किया जाता है :
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज पंचकर्म के द्वारा
पंचकर्म एक आयुर्वेदिक थेरिपी है, जिसमें तेल के मदद से सिंकाई की जाती है। पंचकर्म थेरिपी को करने के लिए निम्न स्टेप्स को फॉलो किया जाता है :
- पहले चने के आटे या सफेद उड़द की दाल का आटा पानी की मदद से गूथा जाता है।
- इस आटे को अर्थराइटिस से प्रभावित स्थान पर चारों ओर से घेरे बना कर लगाएं।
- इसके बाद उसमें औषधीय तेल को डाला जाता है।
- इसके बाद ऊपर से एक गर्माहट के लिए इलेक्ट्रिक बल्ब को लटकाया जाता है।
- इसके बाद जब तेल गर्म होने लगता है तो उससे सिकाईं होती हैं।
- इसके बाद तेल गर्म होने पर उसे किसी चम्मच की सहायता से निकाल लिया जाता है।
- इस प्रक्रिया को रोजाना एक्सपर्ट की मदद से किया जाता है।
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अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज तेलों के द्वारा
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज निम्न तेलों की मालिश से किया जाता है :
मुरिवेन्ना तेल
मुरिवेन्ना तेल एक आयुर्वेदिक औषधीय तेल है। जो हड्डियों के जोड़ो में होने वाले दर्द से राहत दिलाता है। इससे अर्थराइटिस से प्रभावित स्थान पर मालिश करने से राहत मिलती है।
महानारायण तेल
महानारायण तेल कई तरह की जड़ी-बूटियों से मिल कर बनी होती है। जो दर्द निवारक तेल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे में डॉक्टर पंचकर्म में भी महानारायण तेल का इस्तेमाल करते हैं।
कोट्टमचुकादि तेल
कोट्टमचुकादि तेल एक आयुर्वेदिक मालिश तेल है। ये वात दोषोंं के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे दिन में दो बार एक महीने तक मालिश करने से राहत मिलती है।
धन्वंतरम तेल
धन्वंतरम तेल रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए बेहतरीन मालिश करने वाली औषधि है। इससे प्रभावित स्थान पर लगा कर गर्म सिंकाई करने से राहत मिलता है। ऐसा दिन में दो बार एक महीने तक करने से आराम मिलता है।
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज जड़ी-बूटियों के द्वारा
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज निम्न जड़ी-बूटियों की मदद से किया जाता है :
सोंठ
सूखी हुई अदरक को सोंठ कहते है। सोंठ में एंटी-इन्फ्लमेटरी गुण पाए जाते हैं। इसके अलावा 2 ग्राम सोंठ को 50 मिलीलीटर गर्म पानी में डाल कर दिन में दो बार पीने से अर्थराइटिस में आराम मिलता है।
अमलतास
अमलतास की पत्तियां खाने से अर्थराइटिस में होने वाले दर्द से राहत मिलती है। इसके लिए आप 12 से 24 ग्राम तक अमलतास की पत्तियों को घी या सरसों के तेल के साथ मिला कर या पका कर खाने से राहत मिलती है।
हरड़ और गुडुची
हरड़ या हर्रे का सेवन गुडुची के साथ करने से अर्थराइटिस से राहत मिलती है। इसके लिए सोंठ और गुडुची की जड़ को पीस कर 6 ग्राम हरड़ पाउडर के साथ मिला कर सेवन करने से अर्थराइटिस में राहत मिलती है।
गुड़
6 से 12 ग्राम तक गुड़ को 6 से 12 ग्राम घी के साथ मिला कर खाने से वातरक्त अर्थराइटिस में राहत मिलती है।
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अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज औषधियों के द्वारा
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज निम्न औषधियों के द्वारा किया जाता है :
पुनर्नवादि गुग्गुल
बाजार में अर्थराइटिस के लिए ये औषधि पुनर्नवादि गुग्गुल के ही नाम से मिलती है। इसमें मुख्य सामग्री गुग्गुल है, जिसके साथ त्रिकुट, त्रिफला, पुनर्नवा आदि जड़ी-बूटियां मिली होती हैं। ये टैबलेट के रूप में बाजार में उपलब्ध है, इसका सेवन दिन में दो बार करने से अर्थराइटिस में आराम मिलता है।
योगराज गुग्गुल
योगराज गुग्गुल एक ऐसी औषधि है, जिसे कफ, वात और पित्त सभी दोषों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है। डॉक्टर के परामर्श पर आप योगराज गुग्गुल की दो गोलियां दिन में दो या तीन बार ले सकते हैं।
ओस्टिकोट टैबलेट
ऑस्टियोअर्थराइटिस के लिए ओस्टियोकोट टैबलेट का सेवन किया जाता है। ये टैबलेट अर्थराइटिस के कारण होने वाले सूजन और इंफेक्शन से राहत दिलाती है। इससे दर्द में भी आराम मिलता है। डॉक्टर के परामर्श पर ही इसका सेवन करें।
आमवातरि रस
आमवातरि रस रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए एक बेहतरीन दवा है। इसमें दशमूला, पुनर्नवा, त्रिफला, गुग्गुल, अमृतु आदि जड़ी-बूटियां मिली होती है। इसके सेवन से दर्द और सूजन से राहत मिलती है। लेकिन इसमें इस्तेमाल होने वाली औषधियों में कुछ मेटैलिक गुण भी होते हैं, जिससे ये सेहत पर बुरा असर भी डाल सकती है। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह के इस औषधि का सेवन ना करें।
रसनादि कषायम
रसनादि कषायम अर्थराइटिस के लिए एक अच्छी लिक्विड औषधि है। इसे 12 से 24 मिलीलीटर पानी में उतनी ही मात्रा में मिला कर दिन में दो बार पीने से आराम मिलता है।
साइड इफेक्ट
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज करने वाली औषधियों से कोई साइड इफेक्ट हो सकता है?
- अगर महिला गर्भवती है या बच्चे को स्तनपान करा रही है तो अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज में प्रयुक्त होने वाली औषधियों के सेवन से पहले डॉक्टर से जरूर परामर्श ले लेनी चाहिए।
- अगर आप किसी अन्य रोग की दवा का सेवन कर रहे हैं तो भी आपको अपने डॉक्टर की सलाह लेनी जरूरी है।
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जीवनशैली
आयुर्वेद के अनुसार आहार और जीवन शैली में बदलाव
आयुर्वेद के अनुसार अर्थराइटिस के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
- संतुलित आहार लें।
- वात को बढ़ाने वाले भोजन को ना करें।
- पूरी नींद लें।
- योग और एक्सरसाइज नियमित रूप से करें। इसके लिए अपने डॉक्टर से पूछ लें कि कौन सी एक्सरसाइज आप कर सकते हैं।
क्या ना करें?
- वात और पित्त को असंतुलित करने वाले आहार ना लें।
- ज्यादा भारी एक्सरसाइज ना करें।
- सुबह देर से ना उठें। समय से उठ कर थोड़ा बहुत टहलें। इससे जोड़ों की जकड़न से राहत मिलती है।
अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं। इसलिए आप जब भी अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें। उम्मीद करते हैं कि आपके लिए अर्थराइटिस का आयुर्वेदिक इलाज की जानकारी बहुत मददगार साबित होगी।
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