हम सब किसी न किसी चीज से अवश्य ही डरते हैं। भय हमारे जीवन की अन्य भावनाओं की तरह ही एक अहसास है। भय के और भी कई प्रकार हो सकते हैं। जब यह भय बहुत ज्यादा बढ़ जाए तो फोबिया का रूप ले लेता है। ऐसा भी माना जाता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं इसका सामना अधिक करती हैं।
फोबिया के भी कई प्रकार होते हैं जैसे सोशल फोबिया, भीड़ से डर लगना या किसी खास चीज से डरना। जब लोग ऐसा कहते हैं कि उन्हें सांप, मकड़ी, कॉकरोच आदि से डर लगता है तो यह एक किसी खास चीज से डर लगना है जैसे कि जानवर। जानिए इस तरह के फोबिया के बारे में और अधिक विस्तार से।
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जानिए अलग-अलग तरह के डर और फोबिया
अंधेरे का डर या फोबिया- निक्टोफोबिया
अंधेरे के डर को निक्टोफोबिया कहा जाता है यानी रात या अंधेरे में डर लगना। यह डर तब फोबिया बन जाता है, जब यह बहुत अधिक बढ़ जाए या आपके रोजाना के जीवन को प्रभावित करने लगे। छोटी उम्र में इन चीजों से डर लगना सामान्य है लेकिन अगर बड़े होने पर भी यह डर दूर ना हो और आपको इसका फोबिया हो, तो यह आपके लिए खतरनाक हो सकता है। कई बार अनिद्रा जैसी समस्या की वजह से भी ऐसा हो सकता है।
एक अध्ययन के अनुसार अगर आपको अच्छे से नींद नहीं आती या आपकी नींद पूरी नहीं होती है, तो हो सकता है कि आपको अंधेरे से डर लगता हो। अगर आपको भी यह समस्या है, तो इसे नजरअंदाज न करते हुए तुरंत डॉक्टर से मिलें और उचित उपचार कराएं।
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पानी का डर – एक्वाफोबिया
हम में से बहुत-से लोग पानी से भी डरते हैं जिसे एक्वाफोबिया कहा जाता है। अन्य किसी भी तरह का भय समय के साथ दूर हो जाता है या हम उससे समझौता कर लेते हैं, लेकिन जो लोग पानी से डरते हैं उन्हें पानी के पास जाना तक पसंद नहीं होता। यानी वो पानी के टब के पास भी नहीं जाते।
यह भय या फोबिया एक खास तरह का भी होता है। एक्वाफोबिया, हाइड्रोफोबिया से काफी अलग होता है और कभी भी इनकी तुलना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह एक समान नहीं होते हैं। इस स्थिति में कुछ खास थेरेपी से एक्वाफोबिया का उपचार किया जा सकता है।
अकेले रहने से डर- ऑटोफोबिया
अकेले रहने के डर को ऑटोफोबिया भी कहा जाता है। यह वो विकार है जिसमें आपको अकेले रहने के नाम से भी डर लगता है। इस डर से ग्रस्त मनुष्य के शरीर और मन पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। यही नहीं, अगर इसका इलाज न कराया जाए तो परिणाम भयंकर हो सकते हैं।
इसके कुछ लक्षण इस प्रकार हैं :
- ऐसा महसूस होना जैसे आप असुरक्षित हों
- आपको सांस नहीं आ रही
- आप बेहोश हो रहे हैं या मर रहे हों
- आप सही से सोच नहीं पा रहे हों आदि।
यह समस्या बढ़ने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे रहे हों तो तुरंत डॉक्टर से मिलें। आपकी स्थिति जानकर डॉक्टर आपको कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) या एक्सपोजर थेरेपी की सलाह दे सकते हैं और मेडिटेशन करने के लिए भी कह सकते हैं।
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तेज आवाज से डर- फोनोफोबिया
इस तरह के भय को फोनोफोबिया कहा जाता है, जो अधिकतर छोटे बच्चों में देखने को मिलता है। ऐसे लोग अचानक तेज आवाज से डर जाते हैं। तेज आवाज से डरने वाले लोगों को घर से बाहर निकलने या लोगों से घुलने-मिलने में समय लगता है।
बच्चों का यह भय उम्र के बढ़ने के साथ-साथ ठीक हो जाता है लेकिन अगर बड़ो में यह समस्या हो तो ऐसे लोग किसी भी पार्टी, फंक्शन या घर से बाहर तक जाने में घबराते हैं। इस समस्या का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी परेशानी कितनी बड़ी है। इसके उपचार में एक्सपोजर और टॉक थेरेपी दी जाती है, ताकि रोगी इस समस्या से जल्दी बाहर आ सके।
ऊंचाई से डर- एक्रोफोबिया
ऊंचाई से डर लगने को एक्रोफोबिया भी कहा जाता है। कई लोगों को ऊंचाई से इतना अधिक भय होता है कि वो मॉल में एस्केलेटर्स का प्रयोग भी नहीं करते। हालांकि, इस भय को वर्टिगो से जोड़ कर देखा जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है, यह दोनों अलग-अलग हैं। (वर्टिगो का पता लगाने के लिए डॉक्टर इलेक्ट्रोनिस्टेग्मोग्राफी रिकमेंड करते हैं)
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उड़ने का डर- एरोफोबिया
उड़ने के डर को एविओफोबिया या एरोफोबिया भी कहा जाता है, इसमें रोगी को जहाज में बैठने से डर लगता है। उन्हें लगता है कि कहीं उनका प्लेन क्रैश न हो जाए और उनकी मृत्यु न हो जाए।
रेंगने वाले कीड़ों का डर- एंटोमोफोबिया
रेंगने वाले कीड़ों से डर लगने को एंटोमोफोबिया कहा जाता है। दरअसल, कीड़े जैसे मकड़ी, छिपकली आदि छोटे होते हैं और अधिकतर काटते हैं। इसलिए ज्यादातर लोग इन्हें पसंद नहीं करते और इनसे डरते हैं।
सांप का डर- ओफिडीओफोबिया
सांपों से डर लगने को ओफिडीओफोबिया कहा जाता है। सांप देखने में भयंकर होते हैं और काटते भी हैं। इनके काटने से मृत्यु भी हो सकती है इसलिए लोग इनसे डरते हैं।
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कुत्तों से डर- साइनोफोबिया
कई लोगों को अक्सर कुत्तों से डर लगता है जिसे साइनोफोबिया कहा जाता है। इस मानसिक स्थिति में व्यक्ति कुत्तों के भौंकने या कुत्तों के आसपास होने पर भी डर जाता है। साइनोफोबिया वाले लोग कुत्तों से जितना भी संभव हो दूर रहने की कोशिश करते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर 10 से 13 साल की उम्र के बीच दिखाई देते हैं।
फोबिया होने के लक्षण कैसे पहचानें?
फोबिया के लक्षणों को पहचानने के लिए आप इसे दो भागों में बांट सकते हैं। पहला स्पेस्फिक फोबिया और दूसरा सोशल फोबिया। फोबिया का दौरा पड़ने पर लोगों में तनाव, बेचैनी, बहुत ज्यादा पसीना आना, सांस फूलना, परिस्थिति से दूर भागने की कोशिश करना, सिर में भारीपन महसूस करना, कानों में अलग-अलग तेज आवाजें सुनाई देना, दिल की धड़कन बढ़ जाना, डायरिया होना, चक्कर आना, शरीर में कहीं भी दर्द महसूस करना, पेट खराब हो जाना, ब्लड प्रेशर बढ़ना या कम हो जाना जैसी स्वास्थ्य समस्याएं होने लगती है।
फोबिया के कारण
अनुवांशिक या पर्यावरण के कारण फोबिया हो सकता है। जिन बच्चों के रिश्तेदार इस बीमारी से पीड़ित होते हैं उनको यह बीमारी होने की संभावना अधिक होती है। फोबिया बहुत अधिक ऊंचाई, जानवरों या मच्छरों के संपर्क में आने से पैदा हो सकता है।
लंबे समय से चल रही दवाईयों की वजह से या किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या की वजह चिंता में रहने वाले लोगों को भी फोबिया हाे सकता है। यदि कोई व्यक्ति नशीले पदार्थों का सेवन करता है जैसे ड्रग्स, शराब और स्मोकिंग तो यह भी फोबिया का कारण बन सकता है।
इसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं
जैविक कारक : मस्तिष्क में कुछ ऐसे रसायन होते हैं जिन्हें न्यूरोट्रांसमीटर कहा जाता है। मनुष्य जो भी महसूस करता है उसे दिमाग तक पहुंचाने का कार्य यही करते हैं। सेरोटोनिन और डोपामाइन दो न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं जो आपके अवसाद और फोबिया का कारण बन सकते हैं।
पारिवारिक काराक : जिस व्यक्ति को अपने परिवार से चिंता या किसी प्रकार का डर विरासत मे मिलता है उसे फोबिया होने की संभावना अधिक होती है। जिस तरह बच्चा अपने माता-पिता से नैन नक्श, हाइट और रंग रूप लेता है उसी तरह वह चिंता करने की प्रवृत्ति भी अपने परिवार से ले सकता है।
ऐसा उसके स्वभाव में खुद ही आ जाता है क्योंकि वह घर में चिंता के माहौल मे पला होता है। उदाहरण के लिए एक बच्चा जिसके माता-पिता कॉकरोच से डरते हैं तो उनका बच्चा भी कॉकरोच से डरना सीख सकता है।
पर्यावरण कारक : एक दर्दनाक घटना जिसका अनुभव करके व्यक्ति मानसिक रूप से नकरात्मक सोच बना लेता है जैसे कि तलाक, बीमारी या परिवार में किसी की मौत हो जाने जैसी घटनाओं से चिंता करके वह जीवन भर अवसाद में जीता है।
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ऐसे ही कुछ लोगों को तूफान यहां तक कि कुछ लोग एक सुईं से भी डरते हैं। दरअसल, डर केवल हमारे मन में होता है। कोई चीज हमें तब तक डरा सकती है, जब तक हम उससे डरना चाहते हैं। इसलिए, अपने मन से हर तरह का डर निकाल दें। लेकिन, अगर यह डर आपके मन में घर कर चुका है, जिससे आपका रोजाना का जीवन प्रभावित हो रहा है, तो डॉक्टर से मिलें और इस फोबिया का सही इलाज कराना न भूलें।