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स्जोग्रेन सिंड्रोम इम्यून सिस्टम से जुडी हुई बीमारी है। यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है, इसका अर्थ यह है कि आपका इम्यून सिस्टम गलती से अपने शरीर के अन्य भागों को प्रभावित करता है। ऐसा तब होता है जब वाइट ब्लड सेल स्लाइवा ग्लैंड्स, आंसू ग्रंथियों और अन्य एक्सोक्राइन ऊतकों में जा कर उन पर असर डालते हैं, जिससे हमारे शरीर में आंसू और स्लाइवा के उत्पादन में कमी आती है। यह रोग होने से मुंह, आंख, त्वचा, नाक, योनि या ऊपरी श्वांस नलिका में रूखापन आ जाता है। यही नहीं, शरीर के अन्य भागों जैसे जोड़ों, फेफड़ों, किडनी आदि को भी इससे नुकसान होता है।
स्जोग्रेन सिंड्रोम की समस्या अधिकतर महिलाओं में अधिक देखने को मिलती है और यह रोग 40 साल की उम्र के बाद ही शुरू होता है। यह रोग कभी-कभी अन्य बीमारियों जैसे गठिया और ल्यूपस से जुड़ा होता है।
स्जोग्रेन सिंड्रोम में कुछ लोग निम्नलिखत लक्षण भी महसूस कर सकते हैं:
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स्जोग्रेन सिंड्रोम के कारणों के बारे में सही से कोई जानकारी नहीं है। लेकिन, अध्य्यनों के अनुसार वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन इस रोग का कारण हो सकते हैं। हालांकि इसके मुख्य कारण आनुवंशिक और पर्यावरणीय है। तंत्रिका तंत्र, एंडोक्राइन या हार्मोन-उत्पादक प्रणाली को भी स्जोग्रेन सिंड्रोम का कारण माना जा सकता है।
कोई पर्यावरणीय कारक (Environmental factor) भी इम्यून सिस्टम को बदल सकता है और बाद में इम्यून समस्याओं का कारण बन सकता है, जैसे कि हेपेटाइटिस सी या एपस्टीन-बार वायरस से संक्रमण होना।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं को यह समस्या अधिक होती है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा महिलाओं के हार्मोन्स की वजह से होता है। हालांकि इस बारे में सही से बताया नहीं जा सकता।
रजोनिवृत्ति भी इसका एक कारण हो सकता है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि एस्ट्रोजेन स्जोग्रेन की सुरक्षा करता है और हार्मोन का गिरता हुआ स्तर इम्यून फंक्शन को बदल सकता है और स्थिति बदतर बना सकता है।
स्जोग्रेन सिंड्रोम का कोई उपचार नहीं है। लेकिन, प्रभावित अंगों के रूखेपन को दूर कर के इस रोग में होने वाली समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। वर्तमान में कई क्लिनिकल ट्रायल प्रोग्राम हैं जो स्जोग्रेन के लिए नई थेरेपी को विकसित करने पर केंद्रित हैं।
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स्जोग्रेन सिंड्रोम का निदान थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि इस रोग के लक्षण अन्य बीमारियों की तरह ही होते हैं। इसका निदान करने के लिए डॉक्टर रोगी की शारीरिक जांच कर सकते हैं और कुछ सवाल पूछ सकते हैं जैसे
डॉक्टर आपका ब्लड टेस्ट करा सकते हैं। इससे वो यह जान पाएंगे कि क्या आपमें जर्म-फाइटिंग प्रोटीन्स (एंटीबाडीज ) हैं, जो आमतौर पर इस सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में होती हैं। इससे आपके शरीर में प्रोटीन (इम्युनोग्लोबुलिन) की मात्रा का भी पता चल सकता है।
स्जोग्रेन सिंड्रोम का कोई खास उपचार नहीं है। लेकिन , इसके लक्षणों को कम करके रोगी को राहत मिल सकती है। दवाइयां भी इन लक्षणों में राहत पाने में मददगार होती हैं। जैसे:
1) Cequa
2)लेकरेसर्ट (Lacrisert)
3) रेस्टासिस (Restasis)
लेकरेसर्ट एक छोटी सी दवाई होती है जिसे खास ऐप्लिकेटर की मदद से दिन में दो बार आंखों में रखना होता है जबकि अन्य दो दवाइयां ड्रॉप्स के रूप में आती हैं।
1) केविमलाइन (Evoxac)
2)सुपरसैचुरेटेड कैल्शियम फॉस्फेट रिंस (NeutraSal)
3)पाइलोकार्पिन (Salagen)
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https://www.webmd.com/a-to-z-guides/sjogrens-syndrome#1 Accessed 20 march, 2020
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