परिचय
एड़ी, पैर का सबसे निचला हिस्सा होता है। हमारे पैर और टखने में 26 हड्डियां, 33 ज्वाइंट्स और 100 से भी ज्यादा टेंडन पाए जाते हैं। ऐसे में अगर आपको चलने-फिरते समय एड़ियों में दर्द होने लगे तो काफी परेशानी हो सकती है।
आजकल तो हाई हील्स का फैशन भी एड़ियों में दर्द का एक बड़ा कारण बन गया है। ऐसे में आप इलाज के लिए अगर आयुर्वेद की ओर जाना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल में हम आपको एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज बताएंगे।
एड़ी में दर्द (Heel pain) होना क्या है?
एड़ी में दर्द की शिकायत अक्सर उन लोगों को होती है, जो एड़ी के बल पर ज्यादा डांस करते हैं या जरूरत से ज्यादा चलते हैं। इसके अलावा जिन्हें कभी एड़ी में चोट लगी हो तो, उन्हें हील पेन हो सकता है।
एड़ी में दर्द (Heel pain) आमतौर पर एड़ी के नीचे या उसके पीछे की तरफ होता है। पीछे की तरफ एड़ी में दर्द वहां होता है जहां पर अकिलिस टेंडन एड़ी की हड्डी से जुड़ता है। कभी-कभी यह एड़ी के किनारे को भी प्रभावित कर सकता है।
अधिकतर मामलों में, दर्द किसी चोट के कारण नहीं होता है। पहले तो ये दर्द हल्का होता है, फिर धीरे-धीरे ये गंभीर और कभी-कभी इतना ज्यादा होने लगता है कि चलना-फिरना मुश्किल हो सकता है।
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एड़ी में दर्द के प्रकार क्या हैं? (Types of Heel pain)
एड़ी में दर्द होने के दो प्रकार होते हैं :
प्लांटर फेशिआइटिस (Plantar Fasciitis)
प्लांटर फेशिआइटिस एड़ी में दर्द का एक प्रकार है जिसमें पैर में सूजन आने की वजह से एड़ी में दर्द होता है। बता दें कि प्लांटर फेशिया पैर की हड्डी के नीचे पाया जाने वाला टिशू का एक बैंड है, जो रबड़ बैंड की तरह होता है।
प्लांटर फेशिआइटिस का दर्द जब आप सुबह उठते हैं तब होता है। 40 और 60 साल के पुरुषों में प्लांटर फेशिआइटिस होना सामान्य है। यह बीमारी अक्सर एथलीट्स में पाई जाती है।
अकिलिस टेंडॉन रप्चर (Achilles Tendon Rupture)
ये टेंडॉन किसी चोट के कारण टूट जाते हैं। इसे अकिलिस टेंडॉन रप्चर (Achilles Tendon Rupture) कहा जाता है।
टेंडॉन का यह हिस्सा पैरों की कॉल्फ की मसल्स को एड़ी की हड्डी से जोड़ता है। अकिलिस टेंडॉन चलने, कूदने या दौड़ने में मदद करती है। यह मजबूत टिश्यू का एक समूह होता है, लेकिन चोट लगने के कारण यह टूट सकता है।
आयुर्वेद में एड़ी में दर्द (Heel pain) होना क्या है?
आयुर्वेद में एड़ी का दर्द वात दोष के कारण माना गया है। इसके लिए शरीर में वात का असंतुलन जिम्मेदार होता है। आयुर्वेद में भी एड़ी में दर्द के दो प्रकार होते हैं – प्लांटर फेशिआइटिस और अकिलिस टेंडन रप्चर।
आयुर्वेद में इसे वात कंटक के रूप में जाना जाता है क्योंकि पैरों में चुभन जैसा दर्द होता है। इसलिए वात कंटक के अंतर्गत ही एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज किया जाता है।
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लक्षण
एड़ी में दर्द होने के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Heel pain)
एड़ी में दर्द होने के निम्न लक्षण हो सकते हैं :
- बिना किसी चोट के भी एड़ी में दर्द धीरे-धीरे शुरू हो सकता है। इसका सबसे बड़ा कारण फ्लैट जूता या खराब क्वालिटी के जूते पहनने के कारण हो सकता है।
- एड़ी में दर्द एड़ी के नीचे या एड़ी के पीछे की तरफ महसूस होता है।
- अधिकतर मामलों में एड़ी में दर्द पैर के नीचे, एड़ी के सामने की तरफ होता है।
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कारण
एड़ी में दर्द होने के कारण क्या हैं? (Cause of Heel pain)
एड़ी में दर्द होने निम्न कारण हो सकते हैं :
- हील पेन एड़ी के नीचे या एड़ी के पीछे की तरफ होता है। इसके अलावा बिना किसी चोट के भी एड़ी में दर्द हो सकता है। प्लांटर फेशिआइटिस तब होता है जब पैरों पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है। इसके कारण पैरों में मौजूद प्लांटर फेशिया लिगामेंट को हानि पहुंचती है। इसी कारण से एड़ी में दर्द और अकड़न होती है।
- पैरों में मोच आने और तनाव के कारण भी कभी-कभी एड़ी में दर्द होता है।
- फ्रैक्चर के कारण भी एड़ी में तकलीफ होती है।
- अकिलिस टेन्डोनिटिस के कारण भी एड़ी में दर्द होता है। ये तब होता है जब पिंडली या निचले पैर के पिछले हिस्से की मांसपेशियों को एड़ी से जोड़ने वाला टेंडॉन किसी कारण खिंच जाता है।
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इलाज
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज क्या है? (Ayurvedic treatment for Heel pain)
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज थेरेपी, जड़ी-बूटियों और औषधियों के द्वारा किया जाता है :
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज कर्म या थेरिपी के द्वारा
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज निम्न थेरिपी के द्वारा किया जाता है :
विरेचन कर्म
विरेचन कर्म में शरीर को डिटॉक्सीफाई किया जाता है जिसमें औषधियों के द्वारा पाचन तंत्र को डिटॉक्सीफाई कराते हैं।
इसके बाद स्वेदन विधि के द्वारा पसीना निकलवाया जाता है, जिससे बॉडी डिटॉक्स होती है। ऐसा करने से वात का संतुलन बनता है और एड़ी में दर्द से भी आराम मिलता है।
अभ्यंग कर्म
अभ्यंग कर्म में औषधीय तेलों को शरीर पर लगातार गिराया जाता है। एड़ी में दर्द के लिए अभ्यंग कर्म के लिए पिंड तेल का इस्तेमाल होता है। इसे प्रभावित स्थान पर या संवेदनशील बिंदुओं पर तेल डाल कर किया जाता है जिससे एड़ी में दर्द से राहत मिलती है।
रक्तमोक्षण
रक्तमोक्षण एक ऐसी आयुर्वेदिक थेरिपी है, जिसमें शरीर से दूषित ब्लड को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में जोंक के द्वारा प्रभावित स्थान से खून निकाला जाता है। इसके बाद जब जोंक पूरी तरह से खून चूस लेती है तो जोंक पर हल्दी डाल कर उन्हें, त्वचा से छुड़ाया जाता है। इससे एड़ी के दर्द में राहत मिलती है।
लेप कर्म
लेप कर्म करने के लिए औषधियों का लेप तैयार किया जाता है, इसके बाद एड़ी में दर्द से प्रभावित स्थान पर लगाया जाता है। इसके लिए वच, आंवला और जौ का मिश्रण बनाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से राहत मिलती है। प्लांटर फेशियाइटिस में हींग का लेपन प्रभावी होता है।
एड़ी में दर्द (Heel pain) का आयुर्वेदिक इलाज जड़ी बूटियों के द्वारा
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज निम्न जड़ी बूटियों के द्वारा किया जाता है :
अरंडी
अरंडी एक बेहतरीन दर्द निवारक जड़ी-बूटी है। ये नसों में होने वाले दर्द से आराम दिलाने वाली औषधि की तरह काम करती है। वात दोषों में अरंडी का इस्तेमाल सबसे अच्छा माना जाता है। इसके लिए आपको डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही अरंडी का सेवन करना चाहिए।
चित्रक
चित्रक की जड़ में वात रोगों के लिए औषधीय गुण होते हैं। चित्रक की तासीर गर्म होती है। इसके लिए आपके एड़ी के दर्द को गर्माहट से ठीक करने के लिए चित्रक का सेवन कराया जाता है। चित्रक का लेप लगाने से भी प्रभावित स्थान पर राहत मिलती है।
रसना
रसना एक सूजन को कम करने वाली जड़ी-बूटी है। ये आर्थराइटिस और हड्डियों के दर्द के लिए बेहतरीन दवा है क्योंकि इसमें दर्द निवारक गुण पाए जाते हैं।
ये वातकंटक के लिए एक उपयुक्त औषधि मानी गई है। रसना का उपयोग कई तरह की औषधियां बनाने में भी किया जाता है, खासकर के इसे गठिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
एड़ी में दर्द (Heel pain) का आयुर्वेदिक इलाज औषधियों के द्वारा
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज निम्न औषधियों के द्वारा किया जाता है :
दशमूलारिष्ट
अक्सर दशमूलारिष्ट को गर्भावस्था के बाद लेते हुए ही देखा होगा। दशमूलारिष्ट दशमूल, हरड़, गुड़, लौंग, शहद, पिप्पली आदि से बनता है। एड़ी की हड्डियों में दर्द, प्लांटर फेशिआइटिस और अकिलिस टेंडॉन रप्चर के लिए दशमूलारिष्ट का उपयोग किया जाता है।
योगराज गुग्गुल
योगराज गुग्गुल आर्थराइटिस और एड़ी में दर्द के लिए एक बेहतरीन टैबलेट है। योगराज गुग्गुल, गुडुची, पिप्पली की जड़, चित्रक, रसना, अजवायन, गुग्गुल, शतावरी आदि चीजों को मिला कर बना होता है। योगराज गुग्गुल पाचन तंत्र को दुरुस्त कर देता है।
एड़ी के दर्द (Heel pain) में आयुर्वेदिक इलाज का प्रभाव
एक अध्ययन में एड़ी के दर्द से पीड़ित 30 प्रतिभागियों को शामिल किया गया। इसमें नौ पुरुष और 21 महिलाएं थीं। इन प्रतिभागियों पर आयुर्वेदिक औषधियों जैसे कि पिंड तेल अभ्यंग, रसनादि स्वेदन और हिंगवादि लेप के प्रभाव की जांच की गई।
उपचार से पहले और बाद में दर्द, जलन, सूजन, सुन्नता, त्वचा का सख्त होने और एड़ी फटने जैसे मापदंडो पर ध्यान दिया गया।
उपचार के एक महीने के अंदर ही सभी प्रतिभागियों को अमूमन सभी लक्षणों से राहत मिली। इस रिसर्च के अनुसार एड़ी में दर्द के इलाज के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचारों को एक साथ प्रयोग करने से लाभ मिल सकता है।
एड़ी में दर्द के लिए आयुर्वेदिक नुस्खे
वात के बढ़ने पर एड़ी में दर्द हो सकता है। बढ़ा हुआ वात एड़ी की नाडियों को ब्लॉक कर देता है जिससे एड़ी में दर्द होने लगता है। शरीर में अमा यानि विषाक्त पदार्थ (यदि अमा एड़ी वाले हिस्से में जमा हो) बढ़ने पर भी एड़ी में दर्द हो सकता है। इस स्थिति में आप कुछ प्रभावशाली आयुर्वेिदक तरीकों से एड़ी में दर्द को ठीक कर सकते हैं।
- गुनगुने पानी में नमक डालकर पैरों को उसमें कुछ देर के लिए डुबोकर रखें। इससे एड़ी में जमा वात निकल जाता है और आपको दर्द से राहत मिलती है।
- हल्दी का पाउडर लें और गुड़ को पीसकर पाउडर बना लें। अब हल्दी और गुड़ का पेस्ट बना लें और रातभर के लिए एड़ी पर इस पेस्ट को लगाकर रखें। इस पेस्ट से एड़ी की सूजन को भी कम करने में मदद मिलती है।
- आधा चम्मच अजवाइन, 1 कली लहसुन की पिसी हुई और एक कली अदरक की लें। गैस की धीमी आंच पर पैन रखें और उसमें थोड़ा-सातिल का तेल डालें। इसके गर्म होने पर बाकी सभी सामग्रियों को इसमें डाल दें। इसे मध्यम आंच पर दो से तीन मिनट तक पकाएं। इस तेल को हल्का गुनगुना होने पर एड़ी की मालिश करें। आपको ये उपाय रोज करना है।
- रात को सोने ये पहले एक गिलास दूध में घी डालकर पीने से भी एड़ी के दर्द से आराम मिलता है। घी पाचन अग्लि को तेज करती है और शरीर में जमा अमा को बाहर निकालती है जिससे एड़ी में दर्द से राहत मिलती है।
एड़ी में दर्द के आयुर्वेदिक इलाज के दौरान क्या करें और क्या न करें
आहार की मदद से शरीर में वात दोष को कम करता है।
क्या करें:
आपको आसानी से पचने वाली चीजें और चिकनी चीजें खानी चाहिए। अपने आहार में तेल और घी, बैरी, तरबूत और दही, सूप, तैलीय खाद्य पदार्थ जैसे कि एवोकाडो, नारियल, ऑलिव, छाछ, चीज, अंडे, दूध, गेहूं, नट्स और बीजों को शामिल करें।
क्या न करें
- पैरों को पर्याप्त आराम देना जरूरी है।
- ज्यादा देर तक न चलें और लंबे समय तक खड़े भी न रहें।
- पैरों और पिंडलियों की स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करें।
- नमक के गुनगुने पानी में एड़ियों को डुबोकर सिकाई करें।
- एड़ी के दर्द को कम करने के लिए तौलिए में बर्फ के टुकड़े भरकर 5 से 10 मिनट तक सिकाई करें।
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साइड इफेक्ट्स
एड़ी में दर्द के आयुर्वेदिक इलाज की औषधियों को लेने पर क्या साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं?
- गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को एड़ी में दर्द के आयुर्वेदिक इलाज की औषधियों का सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श कर लेना चाहिए।
- अगर आपको किडनी, मूत्राशय या आंतों में संक्रमण है तो अरंडी का सेवन ना करें।
जीवनशैली
आयुर्वेद के अनुसार आहार और जीवन शैली में बदलाव
आयुर्वेद के अनुसार एड़ी में दर्द के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
- फुटवियर ऐसे पहनें, जिससे आपको आराम महसूस हो।
- एड़ी को आराम दें।
क्या ना करें?
- बेवजह ज्यादा ना चलें।
- ज्यादा वक्त तक खड़ा ना रहें।
- हाई हील्स पहनने से बचें।
एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं।
इसलिए आप जब भी एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें। उम्मीद करते हैं कि आपके लिए एड़ी में दर्द का आयुर्वेदिक इलाज की जानकारी बहुत मददगार साबित होगी।