
नवजात शिशु के पैदा होने के बाद माता-पिता की उत्सुकता उसे तुरंत देखने की होती है। पेरेंट्स नवजात शिशु की पहली झलक देखने के साथ ही शरीर के सभी अंगों को भी जांचते- परखते हैं। नवजात शिशु को छोटी आंखें, लाल रंग का शरीर और धीमे से रोने की आवाज सभी को अच्छी लगती है। नवजात शिशु शरीरिक रूप से ठीक है या फिर नहीं, इसे जांचना भी माता-पिता के लिए महत्वपूर्ण काम होता है। बच्चे की शारीरिक संरचना कई बार डिलिवरी के प्रकार पर भी निर्भर कर सकती है।
अगर बच्चे की वैक्यूम या फिर फॉरसेप्स डिलिवरी हुई है तो हो सकता है कि बच्चे को किसी प्रकार की चोट लग गई हो। कुछ बातें जो माता-पिता को बच्चे के पैदा होने के बाद जरूर गौर करनी चाहिए। नवजात शिशु चाहे जिस भी विधि से पैदा हुआ हो, कुछ हफ्तों तक बच्चों के क्रियाकलाप पर निगरानी करना जरूरी होता है। इस आर्टिकल के माध्यम से बच्चों के क्रियाकलापों के बारे में जानिए।
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पॉश्चर के बारे में जानकारी
आपने कई बार देखा होगा। नवजात शिशु मुट्ठी को बंद करके, कोहनी को मोड़े हुए, कूल्हे और घुटनों को मोड़कर और हाथ और पैरों को अक्सर ऊपर की ओर उठाएं हुए रहते हैं। इसी प्रकार की स्थिति गर्भावस्था के अंतिम महीनों के दौरान पेट के अंदर भ्रूण की भी होती है। जो बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं, उनकी एक्टिविटी, बिहेवियर, पॉश्चर आदि में फुल टाइम में पैदा हुए न्यू बॉर्न की अपेक्षा अंतर आ सकता है।
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बच्चे के रिफ्लेक्स की जांच
नवजात शिशु जन्म के बाद कुछ प्रतिक्रिया देते हैं। ये बहुत जरूरी है कि इसकी जांच डॉक्टर के साथ ही पेरेंट्स को भी करनी चाहिए। मां बच्चे के हाथ में उंगली रखकर, मुंह में टच करके, चौंकाने के लिए थोड़ी तेज आवाज करके बच्चे के रिफ्लेक्स के बारे में चेक कर सकती है।
ग्रेस्प रिफ्लेक्स
इस दौरान बच्चे की खुली हथेली में उंगली रखी जाती है। बच्चे को उंगली पकड़नी चाहिए। बच्चा उंगली पर मजबूत पकड़ बनाता है।
मोरो रिफ्लेक्स
जब नवजात अचानक से चौंक जाए। मोरो रिफ्लेक्स में बच्चा रोते हुए अपनी बाहों को फैलाता है।
रूटिंग रिफ्लेक्स
जब बच्चे के मुंह या होंठ के दोनों तरफ स्ट्रोक होता है तो नवजात अपना सिर घुमाने की कोशिश करता है। नवजात इस दौरान दूध पीने के लिए निप्पल खोजने की कोशिश करता है।
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सकिंग रिफ्लेक्स
जब कोई वस्तु नवजात के मुंह में रखी जाती है तो वो इसे चूसने लगता है। इसे सकिंग रिफ्लेक्स कहते हैं।
सोना और सांस लेना
नवजात शिशु जन्म के कुछ समय बाद यानी लगभग एक हफ्ते तक ज्यादातर समय सोने में गुजार देते हैं। जिन नवजात शिशु की माओं को लेबर के दौरान मेडिकेशन दिया जाता है, उनके बच्चों में नींद ज्यादा देखने को मिलती है। 60 ब्रीथ पर मिनट यानी एक मिनट में 60 बार सांस लेना नवजात शिशु के लिए आम बात होती है। कुछ लोग बच्चों के तेजी से सांस लेने से घबरा भी जाते हैं। कई बार बच्चे 2 से 3 सेकेंड के लिए ब्रीथ रोककर फिर से लेना भी शुरू कर सकते हैं। अगर आपका बच्चा देखने में नीला लग रहा हो और उसकी सांसें भी कम मालूम पड़ रही हो तो तुरंत बच्चे को हॉस्पिटल ले जाए। ये एक एमरजेंसी केस है।
नवजात शिशु के सिर की पड़ताल
डिलिवरी के समय सबसे पहले बर्थ कैनाल से बच्चे का सिर ही बाहर आता है। बच्चे का सिर इस प्रकार का बना होता है कि छोटी सी बर्थ कैनाल से बाहर आने पर भी उसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती है, लेकिन वैक्यूम या फिर फॉरसेप्स डिलिवरी के दौरान ये घायल भी हो सकता है। वजायनल डिलिवरी से पैदा हुए नवजात शिशु के सिर में भी मोल्डिंग दिख सकती है। ऐसा तब होता है जब बच्चे की स्कल बोन शिफ्ट या फिर ओवरलैप हो जाए। सिजेरियन या फिर ब्रीच कंडिशन में पैदा हुए बच्चों के सिर में मोल्डिंग नहीं दिखाई देती है।
बच्चे के खाने का समय
नवजात शिशु को प्रत्येक ढेड़ से साढ़े तीन घंटे के बीच में भूख लगती है। अगर नवजात शिशु को फॉर्मुला मिल्क दिया जा रहा है तो दो घंटे का अंतराल भी हो सकता है। ब्रेस्टमिल्क नवजात शिशु जल्दी पचा लेते हैं, वही फॉर्मुला मिल्क पचाने में समय लगता है। बच्चे को जब भूख लगती है तो वे रोकर, या फिर फिंगर को चूसकर या फिर मां की ओर देखकर मुंह खोल सकता है। ज्यादातर नवजात शिशु के रोने पर ही मां को एहसास होता है कि वो भूखा है, लेकिन ये लक्षण तब दिखाई देता है जब बच्चा बहुत भूखा हो जाता है।
नवजात शिशु के वेट डायपर
अगर आप नई मां बनने वाली हैं तो आपको नहीं पता होगा कि बच्चा एक दिन में कितनी बार पॉटी और सूसू करता है। नवजात शिशु एक दिन में छह बार सूसू और चार बार पॉटी कर सकता है। पहले हफ्ते में बच्चे को थिक और ब्लैक या फिर डार्क ग्रीन पॉटी आ सकती है। इसे मैकोनियम कहते हैं। नवजात शिशु के पैदा होने के पहले उसकी आंत में ब्लैक सबस्टेंस भरा होता है, जो मैकोनियम के रूप में बाहर निकलता है। ब्रेस्टफीड के बाद बच्चे के यलोइश पॉटी होने लगती है। साथ ही फॉर्मुला मिल्क पीने वाले नवजात शिशु टैन या यलो रंग की पॉटी करते हैं। कुछ दिनों बाद बच्चा दिन में एक से दो बार पॉटी करेगा।
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नवजात शिशु का रोना
नवजात शिशु पैदा होने के कुछ हफ्तों बाद तक अपना कम्युनिकेशन रोने के माध्यम से ही करता है। जब बच्चे को भूख लगती है तो बच्चा रोता है। कई बार सूसू करने पर भी बच्चा रोता है। पॉटी आने पर भी बच्चा रोने के माध्यम से जानकारी दे सकता है। अगर बच्चा दूध पीने के दो घंटे बाद रो रहा है तो मां अंदाजा लगा लेती है कि बच्चे को भूख लगी होगी।
अगर बच्चे का डायपर भी सूखा है और वह दूध भी पी चुका है तो समस्या कुछ और भी हो सकती है। कई बार बच्चे एक ही जगह में लेटने से बोर हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें कुछ देर टहलाना सही रहेगा। बच्चे को टहलाने के बाद भी आराम नहीं मिल रहा है और वो लगातार रो रहा है, इसका मतलब है कि उसे किसी चीज से समस्या हो रही है। ऐसे में डॉक्टर से संपर्क करना बेहतर रहेगा।
नवजात शिशु के पैदा होने के बाद उस पर गौर करना बहुत जरूरी है। आप इस बारे में डॉक्टर से भी राय ले सकती हैं। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।
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