जिन शिशुओं में एपनिया का खतरा होता है, उसे एक मॉनिटरिंग के साथ ऑक्सिजन दिया जाता है। सामान्य समसया होने पर एपनिया का इलाज एमिनोफिललाइन नामक दवा से किया जाता है। इसकी डोज डाॅक्टर द्वारा तय किया जाता है। अधिक गंभीर मामलों के शिशु को वेंटिलेटर पर रखने की आवश्यकता हो सकती है। यह तब तक होगा जब तक तंत्रिका तंत्र परिपक्व नहीं हो जाता। यह समस्या पूर्ण रूप से शिशु में तब ठीक होती है, जब बच्चा 40 से 44 सप्ताह की आयु का होता है।
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फेफड़ों की क्रॉनिक बीमारी (सीएलडी)
इस स्थिति को ब्रोंकोप्लोमोनरी डिस्प्लेसिया (बीपीडी) भी कहा जाता है। ऐसा तब हो सकता है जब शिशु समय से बहुत जल्दी पैदा हुआ हो, या जब उसके फेफड़े ज्यादा देर तक वेंटिलेटर पर होने से थोड़े कड़े व सख्त हो जाते हैं। इस स्थिति वाले शिशु को वेंटिलेटर से आने के बाद थोड़ी देर के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता हो सकती है। बीपीडी लगभग 25 से 30 प्रतिशत शिशुओं में होता है जो 28 सप्ताह से पहले पैदा होते हैं और जिनका वजन 2.2 पाउंड से कम होता है। 24 से 26 सप्ताह के बीच जन्म लेने वाले बहुत समय से पहले के बच्चों में यह सबसे आम है।
इसके अधिकतर मामलों में वेंटीलेटर पर शिशु को रखना पड़ता है। जब बच्चा 3 से 4 सप्ताह का हो जाता है, तो डॉक्टर कभी-कभी दवाओं द्वारा ठीक करने की काेशिश करते हैं। डॉक्टर अक्सर बीपीडी के इलाज के लिए स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल करते थे। लेकिन क्योंकि स्टेरॉयड का उपयोग सेरेब्रल पाल्सी जैसी बाद की विकास संबंधी समस्याओं को देखा गया है, डॉक्टर अब केवल सबसे गंभीर मामलों में ही स्टेरॉयड का उपयोग करते हैं।
प्री मैच्योर शिशु का काफी ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। लेकिन अलर शिशु में इस तरह के लक्षण दिखायी दे रहे हैं, तो घरेलू इलाज के बजाए डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।