प्ले स्कूल का चुनाव सिलेबस या करिकुलम के हिसाब से
बच्चों के लिए प्ले-स्कूल का चयन में स्कूल का सिलेबस और करिकुलम भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वाति पोपट कहती हैं “पेरेंट्स को भी सिलेबस के असली मतलब को समझना बहुत जरुरी होता है। स्वाति आगे कहती हैं “ज्यादातर लोग सिलेबस को गलत समझते हैं। अधिकतर पेरेंट्स इसे केवल पढ़ाई- लिखाई से जोड़कर देखते हैं। जबकि उनका फोकस इस बात पर होना चाहिए कि स्कूल में बच्चे को क्या चीजें पढ़ाई जा रही हैं और किस तरीके से पढ़ाई जा रही है? पेरेंट्स का फोकस इस ओर ज्यादा होना चाहिए कि बच्चे कैसे और किस माहौल में पढ़ रहे हैं?” सिलेबस में स्कूल की फिलॉसफी दिखनी चाहिए। इसमें ये पता चलना चाहिए की स्कूल प्रोजेक्ट पर आधारित पाठ्यक्रम पर भरोसा करता है या खेले-खेल में बच्चों को पढ़ाया जाता है।”
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सुरक्षा है महत्वपूर्ण प्ले-स्कूल के चयन में
स्वाति कहती हैं कि प्ले-स्कूल का चयन में बच्चों की सुरक्षा बहुत ही जरूरी सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है। यह सवाल करने पर कि फिर इन्होने इसे पहले पायदान पर क्यों नहीं रखा? कहती हैं “क्योंकि जहां ट्रेनिंग पाए और अच्छे पोलाइट टीचर्स होंगे वहां बच्चों की सुरक्षा का ख्याल जरूर रखा जाता है। ट्रेंड टीचर को बच्चों की सुरक्षा के बारे में प्रशिक्षित की जाती है। उनका ये भी मानना है की सुरक्षा केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी होनी चाहिए।
बच्चे का मानसिक विकास हो सही
आज के परिवेश में जहां माता- पिता दोनों ही नौकरी पेशेवर हैं। बच्चे को अच्छी स्टडी मिल सके, इसके लिए वे प्री- स्कूल में दाखिला दिला देते हैं। लेकिन, बच्चे को प्री- स्कूल में पढ़ाई का बोझ डालने के बजाय खेल- खेल में ही उसे एक दूसरे से इंटरेक्शन करना सिखाया जाए, ताकि बच्चे के मानसिक विकास में कोई बाधा न उत्पन्न हो।
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स्कूल का वातावरण
बच्चे के इमोशनल हेल्थ पर आसपास के वातावरण का बहुत असर पड़ता है। जिस स्कूल में साफ-सुथरे क्लास-रूम होते हैं, वहां आप देखेंगे कि बच्चों की बातें सुनी जाती हैं और वो भी बातें सुनते और समझते हैं। ड्राइंग बनाने, पेंटिंग जैसी कार्यों से पहले स्कूल को अच्छे से देख लेना चाहिए, उसके माहौल को उसके वातावरण को अच्छे से समझ लेना चाहिए।